इतिहास लेखन, जिस प्रकार जीवन गतिशील है उसी प्रकार साहित्य भी। जिस साहित्य में गति नहीं होती हैं, वह निष्प्राण एवं मरणोन्मुख प्रवृत्ति की सीमा में बँधकर रह जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास को ही लीजिए वह समय-समय पर हुए सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं द…