वन संसाधन क्या है ? वन संसाधनों का उपयोग, विनाश के कारण, समस्याएँ एवं संरक्षण

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

वन संसाधन (Forest Resources)

ऐसा विस्तृत क्षेत्र जहाँ पेड़-पौधों तथा घास आदि का सघन आवरण पाया जाता है, वन कहलाता है। वन जैविक संसाधन की श्रेणी में आता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मानव विकास के पूर्व ही वनों का विकास हो गया था। प्रारंभिक अवस्था में पृथ्वी का लगभग 25% भाग इन वनों से ढका था। पृथ्वी पर वन संसाधन भू-पारिस्थितिकी के सबसे प्रमुख उदाहरण हैं। मानव ने इन वन संसाधनों का उपयोग कई रूपों में किया है तथा इसके साथ सामंजस्य भी कई रूपों में स्थापित किया है। इसी कारण वन मानव के पालने गृह रहे हैं।

    वनों से ही वनोपज एकत्रित कर भोजन, वस्त्र, आवास जैसी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति मानव करता रहा है, वहीं वन जलवायु को प्रभावित करते हैं, वन मेघों को आकर्षित करते हैं, भूमि के अपरदन को रोकते हैं, बाढ़ों को नियंत्रित करते हैं, अधिक वाष्पीकरण को प्रभावित करते हैं, पशुओं को चारा उपलब्ध कराते हैं, उद्योग-धन्धों एवं ग्रामीणों के लिए कच्चे माल उपलब्ध कराते हैं एवं जीव-जन्तुओं के शरण-स्थल आदि हैं। वनों की इसी उपयोगिता एवं महत्व को देखते हुए मानव ने इनका अंधाधुंध शोषण किया। फलतः अब पृथ्वी के केवल 15% भाग पर ही वन रह गये हैं, जिसके दुष्परिणाम अब हमारे सामने आने लगे हैं, जैसे- अपेक्षाकृत कम वृष्टि, बाढ़, मृदा क्षरण, पर्यावरण प्रदूषण आदि ।

    वनों का विकास कई तत्वों पर निर्भर करता है, जैसे- उर्णाद्र जलवायु में वनों में तीव्र वृद्धि होती है, इसीलिए भू-मध्य रेखीय क्षेत्र में घने सर्वाधिक वन पाये जाते हैं। इसी प्रकार जहाँ पर गहरी एवं उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है, वहाँ पर भी वनस्पतियों का विकास तीव्र होता है। इसके अतिरिक्त समुद्र तट से दूरी, सूर्य प्रकाश की प्राप्ति, समुद्र तल से ऊँचाई आदि कारक भी वनों के विकास को प्रभावित करते हैं।

    वन संसाधन क्या है ? वन संसाधनों का उपयोग, विनाश के कारण, समस्याएँ एवं संरक्षण

    वन संसाधन के उपयोग (Utility of Forest Resources)

    (1) प्रत्यक्ष उपयोग एवं लाभ

    • वनों से अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों की उपलब्धि होती है। 
    • वनों में निवास करने वाली आदिम जातियाँ एकत्रीकरण (Gathering) द्वारा कन्दमूल, फल एकत्र कर अपने भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। 
    • वनों से अनेक प्रकार की उपयोगी लकड़ी प्राप्त होती है, जिनका प्रयोग मनुष्य अनेक कार्यों में करता है। जैसे-भवन-निर्माण, साज-सज्जा, ट्रक, जलयान का ढाँचा-निर्माण आदि। 
    • लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। लकड़ी का कोयला बनाकर उसका उपयोग ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है। 
    • लकड़ी से अनेक प्रकार के उद्योग चलाये जाते हैं, जैसे-कागज उद्योग, माचिस उद्योग, रेयान उद्योग • आदि। 
    • वनों से रबड़ प्राप्त होती है, जिसका उपयोग परिवहन-साधनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 
    • अनेक प्रकार के गोंद, लाख, छाल, जड़ी-बूटियाँ, तारपीन तेल आदि प्राप्त होते हैं, जिनसे कई प्रकार के उद्योग पनपे हैं। 
    • व्यापार में लकड़ी की पेटियों का उपयोग लाभप्रद हुआ है। 
    • वनों में वन्य जीव पाये जाते हैं, जो प्राकृतिक सुन्दरता को बढ़ाते हैं।
    यह भी पढ़ें- जल संसाधन के संरक्षण की समस्या एवं प्रबंधन- Water Resource

    2. अप्रत्यक्ष उपयोग एवं लाभ

    • वनों की पत्तियों के मिट्टी में गिरकर सड़ने-गलने से मिट्टी को ह्यूमस तत्वों की प्राप्ति होती है, जिससे उसकी उर्वरता बढ़ती है। 
    • वन बर्फीले मेघों को आकर्षित कर वर्षों में सहायक होते हैं। 
    • वन जलवायु में कठोरता को कम करते हैं। 
    • वनों से मृदा अपरदन रुकता है। बाढ़ कम आती है। 
    • वन दलदली तथा मरुस्थलीय प्रदेशों के विस्तार को रोकने में सहायक होते हैं। 
    • वनों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु शरण लेते हैं। मनुष्य उनका शिकार कर भोजन व वस्त्र प्राप्त करता है।
    • वनों के मिट्टी की परतों में दबने से ही लाखों- करोड़ों वर्षों बाद कोयला तथा पेट्रोलियम प्राप्त होती है।
    यह भी पढ़ें- बांध निर्माण के लाभ एवं समस्याएं- Formation of Dams

    वन संसाधन के विनाश के कारण

    वन हमारा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, क्योकि हम अपने भोजन, आवास एवं कपड़े, सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इन्हीं पौधों पर आश्रित हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मनुष्य इनका अतिदोहन कर रहा है जिसके कारण आज बहुत सी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। वन संसाधन के विनाश के प्रमुख कारण एवं उत्पन्न समस्याएँ निम्नानुसार हैं-

    1. वृक्षों की अंधाधुन्ध कटाई

    स्वतन्त्रता के पश्चात् निरन्तर जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि उद्योग विकास के लिए वनों की अंधाधुन्ध कटाई से भारत में वनों का क्षेत्रफल अत्यन्त कम हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में मकान के निर्माण तथा जलाऊ ईंधन के लिए वनों को काटा जाता है। शहरों में स्थापित उद्योगों में कच्चा माल की पूर्ति के लिए वनों को काटा जाता है जिसके परिणामस्वरूप भारत के अधिकांश वन क्षेत्र आज नग्न भूमि में परिवर्तित हो चुके हैं।

    यह भी पढ़ें- वनों की कमी अथवा कटाई से होने वाले दुष्परिणाम

    2. वनों में आग लगना

    मानवीय या प्राकृतिक कारणों से वनों में आग लग जाती है। इससे वन जलकर नष्ट हो जाते हैं।

    3. वनों के क्षेत्रफल में कमी

    कृषि के विस्तार, उद्योग स्थापित करने तथा मानव बस्ती के लिए आजकल वन भूमि का उपयोग किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप वन भूमि के क्षेत्रफल में कमी आ रही है।

    4. पर्यावरण असन्तुलन

    पर्यावरण सन्तुलन के लिए भूमि में से 33% भाग पर वन होने चाहिए जबकि भारत में 22.9% भूमि पर ही वन हैं। वनों की कमी से वायुमण्डल में गैसों का सन्तुलन बिगड़ गया है और पर्यावरण में जहरीली गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है। विश्व व्यापी स्तर पर ओजोन मण्डल में छेद पड़ने लगे हैं जो मानव तथा पर्यावरण के लिए खतरे की चेतावनी है। 

    5. वन भूमि का कृषि भूमि में परिवर्तन

    आबादी बढ़ने के साथ-साथ भोज्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु कृषि भूमि का विस्तार हो रहा है। इसके लिए वनों की कटाई की जाती है तथा उसके स्थान पर कृषि भूमि विकसित की जाती है। इसके कारण वनों का विनाश हो रहा है।

    6. अतिचारण (Overgrazing)

    पालतू पशुओं एवं जंगली जानवरों के द्वारा घास के मैदानों एवं वन भूमि में उपस्थित घासों एवं पेड़-पौधों की सतत चराई भी वन विनाश का प्रमुख कारण है।

    7. वनों का चारागाहों में परिवर्तन

    पालतू पशुओं के चारे आपूर्ति एवं चराई हेतु भी वनों को काटकर उसे चारागाहों में परिवर्तित करना भी वन विनाश का एक कारण है।

    8. बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं, बाँधों, नहरों आदि के निर्माण के लिए एक वृहत् वन क्षेत्र को समाप्त करना पड़ता है। इसके कारण उस स्थान की प्राकृतिक वन सम्पदा का समूल विनाश हो जाता है तथा उस स्थान का पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।

    यह भी पढ़ें- सतही जल एवं भूजल का अधि-उपयोग, बाढ़, सूखा, जल पर संघर्ष का वर्णन कीजिये।

    वन विनाश से उत्पन्न समस्याएँ या दुष्प्रभाव

    वनों से हमारा पुराना और गहरा सम्बन्ध है, इसके बिना हमारा जीवन सम्भव नहीं है। इस बात से भली-भाँति परिचित होते हुए भी हम वनों को अपने तात्कालिक सुखों के लिए तेजी से काटते जा. रहे हैं, जिसके कई दुष्परिणाम हमारे सामने आते जा रहे हैं-

    वनों की कटाई से उत्पन्न होने वाले प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

    1. वनों की कटाई से भूमि कटाव बढ़ जाता है, क्योंकि वर्षा का जल पृथ्वी पर सीधे गिरकर तेजी से बिना रुके बहता है और उपजाऊ सतह को बहा ले जाता है, जिससे मृदा की उपजाऊ शक्ति घटती है।
    2. वनों की कटाई से वर्षा कम तथा अनियन्त्रित होती है।
    3. बाढ़ ज्यादा तथा भयानक रूप से आती है, क्योंकि वर्षा का पानी तेजी से बढ़कर कम समय में एकत्रित हो जाता है।
    4. नदियाँ, तालाब तथा झील भूमि कटाव के कारण भर जाते हैं, जो बाढ़ लाने में योगदान करते हैं।
    5. नदी, झील, झरने कम वर्षा के कारण जल्दी सूख जाते हैं अर्थात् सूखे को बढ़ावा मिलता है।
    6. प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा पर्यावरण प्रदूषित होता है।
    7. कई उपयोगी पादप तथा जन्तु प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं जिसके कारण जीवित कोषों एवं प्राकृतिक संसाधनों में कमी आती है।
    8. वन आच्छादित क्षेत्र मनोहारी दृश्य पैदा करते हैं, जिससे मन को शान्ति मिलती है। वनों की कटाई से ऐसे दृश्यों का नाश होता है।
    9. वनों से ही जीवाश्मीय ईंधनों का निर्माण हुआ है तथा वन प्रत्यक्ष ईंधन भी देते हैं। इनकी कटाई से जीवाश्म बनने की सम्भावना तो घटती है साथ में प्रत्यक्ष ईंधन में भी कमी आती है।

    वन संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Forest Resources)

    हमारे देश में वन संसाधन की कमी तथा उससे उत्पन्न समस्याओं को देखते हुए वनों का संरक्षण करना आवश्यक है। वनों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-

    1. वृक्षारोपण

    वनों का विस्तार ही वनों का सर्वोत्तम संरक्षण है। भारत की राष्ट्रीय वन नीति में उल्लेखित 33% वन भूमि के लिए ठोस प्रयास किया जाना चाहिए। वनविहीन पहाड़ों, पठारों एवं अन्य खाली क्षेत्रों में वृक्षारोपण किया जाय। वृक्षारोपण कार्यक्रम को सार्थक बनाना और उसकी पर्याप्त सुरक्षा भी करनी चाहिए।

    2. वनों की कटाई पर रोक 

    वनों की कटाई पर कठोरता से रोक लगाकर ईंधन, चारे तथा लकड़ी की पूर्ति के लिए वैकल्पिक स्रोत तैयार किये जाने चाहिए। प्राकृतिक वनों को काटे जाने पर उनके स्थान पर शीघ्र पनपने वाले वृक्षों का रोपण किया जाना चाहिए। आदिवासी क्षेत्रों में वनों को काटकर खेती करने की प्रथा पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए।

    3. वनों को आग से बचाना

    वनों में आग लगाने की समस्या सामान्य हो गयी है। वनों में अग्नि शिमन के लिए आवश्यक उपकरण तथा प्रशिक्षित कर्मचारियों को तैयार किया जाना चाहिए।

    4. परिवहन मार्गों का विकास

    वनों की सुरक्षा के लिए जंगली क्षेत्रों में सड़क परिवहन तथा संचार के साधनों का विकास करना नितांत आवश्यक है। इससे वनों को सुरक्षित रखने में शासन को आसानी होगी।

    5. वानिकी विकास

    परम्परागत वानिकी के अतिरिक्त कृषि वानिकी, विस्तार वानिकी, रक्षा पंक्ति वानिकी एवं सामाजिक वानिकी विकास पर विशेष ध्यान दिया जाय। 

    6. वन-संरक्षण के प्रति लोगों में चेतना जाग्रत करना

    प्राचीनकाल से भारत में वनों को अत्यधिक महत्व दिया जाता रहा है, जैसा कि-अग्नि पुराण में कहा गया है- "एक वृक्ष दस पुत्रों के बराबर होता है" इसी से वनों का महत्व स्पष्ट होता है। दुर्भाग्यवश जनसंख्या वृद्धि एवं अज्ञानता के कारण वर्तमान में वनों की अंधाधुन्ध कटाई की जा रही है। वनों के विनाश से उत्पन्न होने वाले गंभीर दुष्परिणामों के प्रति समय रहते सचेत करने का प्रयास करना चाहिए एवं शासन को इस संबंध में एक निश्चित वन नीति निर्धारित करके लोगों में वन संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने का प्रयास करना चाहिए। 

    सन् 1952 की वन नीति के अनुसार जुलाई, 1952 से भारत सरकार ने वन महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया है। वन महोत्सव आन्दोलन का मूल आधार- "वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है और रोटी ही जीवन है।" यह निर्विवाद सत्य है कि वनों के बिना धरातल पर किसी भी जीव-जन्तु का जीवित रहना सम्भव नहीं है, इसलिए वन संरक्षण को सर्वोत्तम प्राथमिकता दी जाय।

    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    Post a Comment

    Previous Post Next Post