आदिवासी क्षेत्र एवं जनजातीय महिलाएँ : (Tribal Area and Tribal Women)

आदिवासी क्षेत्र एवं जनजातीय महिलाएँ : (Tribal Area and Tribal Women)

आदिवासी क्षेत्र एवं जनजातीय महिलाएँ : (Tribal Area and Tribal Women)

आदिवासी क्षेत्र अथवा भारतीय जनजातियों का प्रदेश अनुसार विवरण

भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेको जनजातियाँ निवास करती हैं। भारत की कुल जनसंख्या की लगभग 8% संख्या जनजातियों की है। इस प्रकार भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग बिल्कुल ही असभ्य और आदिम अवस्था में रहा है। ब्रिटिश काल से ही जनजातियों की खोज, उनकी सभ्यता संस्कृति और प्रकाश में लाने और उनके उत्थान के लिए सरकारी और गैर सरकारी तौर पर अनेक समाजशास्त्रियों ने अनुसंधान व सर्वेक्षण कार्य किए हैं जिससे हमें इन जनजातियों के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ है।

भारत में जनजातियों का वितरण पूरे देश में समान नहीं है। कुछ राज्यों में जनजातियों की संख्यो बहुत अधिक है जबकि कुछ राज्यों में बिल्कुल कम है। भारत में जनजातियों के प्रदेशों अनुसार वितरण को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-

(क) उत्तरी भारत की जनजातियाँ

1. उत्तर प्रदेश- उत्तर प्रदेश में भील, भूईया, गोंड, थारु तथा चेरु और कोल मुख्य जनजातियाँ पाई जाती हैं।

2. पश्चिमी बंगाल- पश्चिमी बंगाल की जनजातियों में मुण्डा, सन्थाल, कुकि, खेड़िया, लुशाई आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

3. पंजाब- पंजाब के कांगड़ा जिले में तिब्बतन, गद्दी या कनोर नामक जनजाति के नाम उल्लेखनीय हैं।

4. हिमाचल प्रदेश- हिमाचल प्रदेश में गद्दी, जूज्ज, जाड, कन्नर तथा पंगवाल आदि जनजातियाँ बसती हैं।

5. असम- कचारी गारो, खासी कूकी, नागा, डफलर, राभा होजाई आदि जनजातियों का निवास स्थान असम में है।

(ख) मध्यवर्ती भारत की जनजातियाँ

1. बिहार- बेगा, विरहोर, गोंड, गोराइत, खरबार, साबर, कुमारभाग, पहाड़िया, पहिरा, तमरिया तथा थारू आदि जनजातियाँ बिहार में बसती हैं।

2. अजमेर- भील तथा भीलमीणा जनजातियों का स्थान अजमेर है।

3. राजस्थान- भील, उमरिया, गरासिया, खेहरिया, आदि जनजातियाँ राजस्थान में निवास करती हैं।

4. भोपाल- भील, गोंड, कीर, कोरकू, सौर आदि जनजातियाँ भोपाल में निवास करती हैं। 

5. बम्बई- वर्ज, वाचवा, भील, डुंगरी, मेवासी भील, चौधरा, घाणका, घोड़ियाँ, गायटा, नायक, पोमला, पावरा, वारली आदि जनजातियाँ बम्बई में पाई जाती हैं।

6. कच्छ- भील, कोली, वाघरी तथा घोड़ियाँ आदि जनजातियाँ कच्छ प्रदेश में पाई जाती हैं। 

7. उड़ीसा- उड़ीसा जनजातियों का प्रमुख स्थान है। बेगा, बनजारा, मुईयाँ, बिरहोर, चेंचू, गादबा, कावार, खरिया, कोली, दौरा, कोरा मुग्धा, मुण्डा, औरंग आदि जनजातियों का निवास 'उड़ीसा' में ही है।

8. मध्य भारत- गोड़, भील, निहाल, तड़वी आदि जनजातियों का स्थान मध्य भारत है।

9. मध्य प्रदेश- आंध्र, वैगा, भैना, भारिया, भूमिया, भतरा, भूजिए, विरहोर, खोण्ड, कोलम, कोरकू, कंवर, मुण्डा, सोता, सवरा, पांडो, कोया आदि जनजाति मध्य प्रदेश की निवासी हैं।

10. मणिपुर- कुकी, लुशाई, नागा आदि मुख्य जनजातियाँ मणिपुर में रहती हैं।

11. सौराष्ट्र- घंटीया, आडोडिया, बेड़दा, बाघरी आदि जनजातियों का स्थान सौराष्ट्र माना गया है। 

12. विंध्य प्रदेश- भील, भूमिया, वयार तथा गोंड जनजातियों का स्थान विध्य प्रदेश माना गया है।

(ग) दक्षिणी भारत तथा अन्य प्रदेशों की जनजातियाँ

दक्षिण भारत की जनजातियाँ केरल, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में नीलगिरी और अन्य पर्वतों के मध्य घने जंगलों में निवास करती हैं। इन जनजातियों में प्रमुख है-

1. आन्ध्रप्रदेश- वतो, ओरियो, वर्तिक, घूल्ला, कोंड, रेडी, देसाथ, गोडराज, नागकन आदि अनेक जनजातियों का निवास आन्ध्रप्रदेश में है।

2. मद्रास- मद्रास प्रान्त में जनजातियों की संख्या बहुत ही अधिक है। मुरिया, भूमिया, चेंचू, गौड्स, जेहू, कमरिया, कोमराओं, लोहार, गोड, शोलग, टोडा, मरौटी, वड़गा, काडर, सुलगी तथा कुरंगन आदि जनजातियों के नाम इस प्रदेश की जनजातियों में मुख्य हैं।

3. कुर्ग- कोमरा, मेडा, भारवा आदि जनजातियों का स्थान कुर्ग में है।

4. हैदराबाद-अन्ध, भील, चेंचू, गोंड, कोलम, कोमा, मोटी, कमाण आदि जनजातियाँ हैदराबाद में पाई जाती हैं।

जनजातीय महिलाओं की स्थिति

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय नेताओं ने जनजातियों के विकास को सम्पूर्ण समाज के विकास के लिये आवश्यक माना। सामाजिक विकास और परिवर्तन की ओर बढ़ते कदमों को तेज करने के उद्देश्य से भारतीय संविधान में जनजातियों को संरक्षण देने का प्रस्ताव संविधान निर्माण समिति के समक्ष रखा गया। संविधान निर्माण समिति ने, जनजातियों के विकास की पूर्ण सम्भावनाओं के उद्देश्य से उन्हें संरक्षण प्रदान किया।

वर्तमान युग में आधुनिक सभ्यता के सम्पर्क में आने के कारण जनजातीय स्त्रियों की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। भारत सरकार उन्हें पुनर्स्थापन के पूरे पूरे अवसर दे रही है जिससे आर्थिक क्षेत्र में वह आगे बढ़ सके। सभ्य प्राणी के रूप में आदिम नारी का भी विकास होना परमावश्यक है। आज के युग में अनेक आदिम स्त्रियाँ प्रत्येक परिवार के उद्योग-धंधे में प्रवेश कर रही है एवं पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा लगाकर काम कर रही है। वैधानिक रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को बिना किस लींगीय जातीय भेद के विकसित व कार्य करने की स्वतन्त्रता है। परन्तु जनजातियों की स्त्रियों की स्थिति अपनी ही सामाजिक परम्पराओं के आधार पर निर्धारित होती है। परन्तु ज्यों-ज्यों आदिम स्त्रियाँ प्रौद्योगिक कार्यों के सम्पर्क में आती जा रही हैं उनका सामाजिक जीवन भी अवश्य ही प्रभावित हो रहा है।

म. प्र. की जनजातीय स्त्रियों की विकास में भागीदारी

भारतीय संविधान में वर्णित मध्यप्रदेश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक- आर्थिक बेहतरी का हकदार है। 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति के 23.27 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 14.55 प्रतिशत लोग म.प्र. में आबाद हैं। मध्यप्रदेश में आदिवासी बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने का व्यापक तौर पर प्रयास किया गया है। अनुसूचित जनजाति की अशिक्षित महिलाओं की लाभार्थ कन्या साक्षरता प्रोत्साहन योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत आदिवासी बालिका को पाँचवीं कक्षा पास कर छठवीं कक्षा में जाने पर प्रोत्साहन बतौर 250 रुपये दिये जाते थे। इस राशि को बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया। इस योजना का लाभ सभी 459 विकास खण्डों की सभी 46 जनजातियों की बालिकाओं को मिलता है।

मध्यप्रदेश शासन ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सर्वांगीण कल्याण हेतु अनेक आर्थिक-सामाजिक विकास की सुनिश्चित योजनाएँ आरम्भ की है। सरकार ने इनके विकास के लिये वात्सल्य योजना, आयुष्मति योजना, निराश्रित विधवाओं की सामाजिक सुरक्षा पेशन, ग्राम्य योजना एवं कल्प वृक्ष योजना इन पाँचों योजनाओं को मिलाकर 1 नवम्बर 1991 से अभिनव 'पंचधारा' योजना की शुरूआत की गई है, जो इस प्रकार है-

वात्सल्य योजना

इस योजना का उद्देश्य प्रसव के समय आदिवासी महिलाओं को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया करना है ताकि प्रसव के कारण माताओं और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। इस योजना में प्रत्येक महिला को 500 रुपये का अनुदान दिया जाता है जो ग्रामीण क्षेत्र में रहती हो और अनुसूचित जाति, जनजाति की हो तथा गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों की हो।

आयुष्मति योजना

इस योजना का उद्देश्य उन आदिवासी महिलाओं को जो गरीबी में भी सबसे गरीब और उपेक्षित रही हैं, उनके बीमार होने पर इलाज और पौष्टिक आहार का समुचित प्रबन्ध करने में सरकारी सहायता देने के लिए शुरू की गई है।

निराश्रित विधवाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना

निराश्रित विधवाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में वृद्धि कर इन्हें लाभान्वित करने का निर्णय म.प्र. शासन ने 'पंचधारा' योजना के अन्तर्गत लिया है। इस योजना में निराश्रित विधवाओं को 100 रुपये प्रतिमाह की दर से पेंशन दी जाती है। इस योजना में शामिल होने के लिये निराश्रित विधवाओं की आयु 50 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिये तथा यह सुविधा उन विधवाओं के लिये है जिनका कोई संरक्षक न हो।

कल्प वृक्ष योजना

कल्पवृक्ष योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को सीधे रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इस योजना की शुरूआत प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले रायगढ़ से की गई है। जिला रायगढ़ अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जिला है और वहाँ रेशम उद्योग का कार्य पारम्परिक रूप से चल रहा है, इसलिए योजना में इस जिले का चयन किया गया है।

ग्राम्य योजना

इस योजना के अन्तर्गत आदिवासी ग्रामीण महिलाओं को लघु व्यवसाय शुरू करने हेतु कार्यशील पूँजी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे वे आत्मनिर्भर हो सकें। योजनान्तर्गत प्रत्येक हितग्राही महिला को 500 रुपये ब्याज मुक्त ऋण दिया जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार ने आदिवासी महिलाओं को आर्थिक विकास की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए तथा रोजगार में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये अनेक योजनाएँ तैयार की हैं, जिनका क्रियात्त्वयन किया जा रहा है। विशेषकर घरेलू उद्योगों में रोजगार, महिलाओं के लिये अधिक सुविधाजनक होता है, इससे वे पारिवारिक जिम्मेदारी को पूरा करते हुए आसानी से कार्य कर सकते हैं। 

अतः गृह उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस प्रकार प्रदेश में आदिवासी महिलाओं के लिये रोजगार की अपार सम्भावनाएँ हैं। आवश्यकता इस बात की है कि राज्य शासन के साथ-साथ स्वैच्छिक संस्थाएँ भी आदिवासी महिलाओं के उत्थान एवं विकास की दिशा में आगे आकर कार्य करें।

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