बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में 1856 ई. में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की, वे गणित, संस्कृत तथा कानून के पण्डित थे। कॉलेज में पढ़ते समय ही तिलक का मन देश-सेवा की ओर झुक गया। शिक्षा समाप्त करने पर उन्होंने सरकारी नौकरी नहीं की, अपना सम्पूर्ण जीवन देश की सेवा में बिता दिया।
तिलक का कार्य-क्षेत्र महाराष्ट्र था, वे महाराष्ट्र में उग्र राष्ट्रीयता के जनक थे। उन्होंने 1889 ई. में काँग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली, इस समय काँग्रेस पर उदारवादियों का प्रभुत्व था। उदारवादियों को अंग्रेजों की न्यायप्रियता में विश्वास था लेकिन बाल गंगाधर तिलक उनकी नीति से सहमत नहीं थे, लेकिन फिर भी अपने विचारों के अनुरूप काँग्रेस में ही रहकर कार्य करते रहे। उन्होंने अपने विचारों तथा आदर्शों का प्रचार करने के लिए 'केसरी' तथा 'मराठा' नामक दो समाचार पत्रों का प्रकाशन किया। 'केसरी' मराठी में तथा 'मराठा' अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होते थे। इन पत्रों ने महाराष्ट्र में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का महान कार्य किया। इन पत्रों में लिखे लेखों के कारण तिलक को अनेक बार कठोर कारावास का दण्ड दिया गया।
महाराष्ट्र के नौजवानों में देशभक्ति, आत्मविश्वास तथा आत्मबलिदान की भावना पैदा करने के लिए अनेक कार्य किये गये। उन्होंने अनेक स्थानों पर लाठी क्लब तथा अखाड़ों की स्थापना की। सन् 1893 ई. में उन्होंने गणपति उत्सव तथा 1895 ई. में शिवाजी उत्सव मनाया। इन आयोजनों का उद्देश्य धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक भी था। वे एक ओर तो युवकों को सम्मिलित करके कार्य करने की शिक्षा देना चाहते थे। दूसरा, शिवाजी उत्सव के द्वारा युवकों को यह बताना चाहते थे कि उन्होंने मुगलों के शासन से संघर्ष करके महाराष्ट्र को बचाया और वे अंग्रेजों से सारे देश को बचाना चाहते थे।
स्वाधीनता आन्दोलन में योगदान
(1) ब्रिटिश शासन के सही रूप को प्रकट करना
तिलक का सबसे महत्वपूर्ण काम यह था कि उन्होंने ब्रिटिश शासन के सही रूप को देश के सामने रखा। तिलक ने सिखाया कि अंग्रेज लुटेरे हैं, देश की लूट करने के लिए छल-कपट से उन्होंने अपना शासन स्थापित किया है। उन्होंने देश की आर्थिक लूट की है और सभ्यता तथा संस्कृति को नष्ट करने का प्रयत्न किया है।
(2) पूर्ण स्वतन्त्रता का आदर्श प्रस्तुत करना
काँग्रेस के नरम दलीय नेता देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष नहीं कर रहे थे वे तो अंग्रेजी शासन की जड़ों को और अधिक सुदृढ़ बनाना चाहते थे। वे समझते थे कि यदि अंग्रेज चले गये तो यहाँ अराजकता फैल जायेगी और देश फिर पतन के गड्ढे में गिर जायेगा। तिलक ने इस दृष्टिकोण का खण्डन किया और कहा कि बिना पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त किये देश का कल्याण नहीं हो सकता। उन्होंने सिखाया कि 'स्वतन्त्रता हर एक व्यक्ति और राष्ट्र का जन्मसिद्ध अधिकार है।' इस प्रकार तिलक पहले राजनीतिक नेता थे जिन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता का आदर्श देश के सम्मुख रखा। डॉ. शेन ने लिखा है, "जब भारत में वास्तविक राजनीतिक जागृति आरम्भ हुई तो सर्वप्रथम तिलक ने ही स्वराज्य की आवश्यकता और लाभों की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट किया।"
(3) भीख माँगने की नीति का परित्याग
नरम दलीय नेताओं का विश्वास था कि यदि भारतवासी नम्रतापूर्वक अंग्रेजों के सामने अपनी उचित शिकायतें रखें और उन्हें अपनी बात समझायें तो वे अवश्य ही हमारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे और हमारी उचित शिकायतों को दूर करेंगे। तिलक ने इस नीति का खण्डन किया और स्वावलम्बन का उपदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि जब तक भारतवासी अपने पैदों पर खड़ा होना नहीं सीखते, तब तक देश का कल्याण नहीं हो सकता।
(4) निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति का प्रतिपादन
तिलक ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का एक नया तरीका निकाला, जो निष्क्रिय प्रतिरोध का सिद्धान्त कहलाता है। इसका सार यह था कि देशवासियों को जहाँ तक हो सके, अंग्रेज सरकार के साथ सहयोग नहीं करना चाहिए। बहिष्कार को तिलक ने सबसे शक्तिशाली अस्त्र माना। उन्होंने कहा कि देश को विदेशी शासन तथा विदेशी शिक्षा आदि सभी चीजों का बहिष्कार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शिक्षा भी देश के अनुकूल नहीं, हमें उसका भी बहिष्कार करना चाहिए। तिलक का कहना था कि हमें अंग्रेजों के कानूनों को तोड़े बिना निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति का अनुसरण करना चाहिए, किन्तु यदि सरकार फिर भी हमारे मार्ग में बाधा डाले तो हमें कानून तोड़ने और सरकार पर प्रहार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
(5) राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए प्रथम आन्दोलन
तिलक ने राष्ट्र के समक्ष आदर्श तथा कार्य-प्रणाली ही प्रस्तुत नहीं की बल्कि उन विचारों को क्रियान्वित करने के लिए एक नये दल का निर्माण किया और राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए पहला व्यापक संघर्ष चलाया। 1905 ई. में बंग-भंग के बाद स्वदेशी और बहिष्कार का आन्दोलन विशेषकर बंगाल और महाराष्ट्र में बड़े जोरों से चला। तिलक के पहले काँग्रेस उच्च शिक्षित वर्ग के लोगों की संस्था थी, साधारण जनता से उसका सम्बन्ध तथा सम्पर्क नहीं था। तिलक तथा उनके दल ने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के सन्देश को बहुत अधिक लोगों तक पहुँचाया, विशेषकर निम्न मध्यम वर्ग के लोग उसकी ओर अधिक आकृष्ट हुए। तिलक के आन्दोलन को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का पहला संघर्ष कहना सर्वथा उचित है।
(6) भारतीय संस्कृति तथा जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना
तिलक का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने भारतीय संस्कृति तथा जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का महान् प्रयत्न किया। उस समय के शिक्षित भारतवासी प्रायः पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग चुके थे,भारतीय चीजों से उन्हें घृणा थी और वे प्रत्येक बात में अंग्रेजों की नकल करने में ही शान समझते थे। तिलक ने हर क्षेत्र में स्वदेशी भावना को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया। उन्होंने स्वयं प्राचीन भारतीय विचारों से प्रेरणा ली और सबको अपनी प्राचीन संस्कृति से प्रेम करना सिखाया। तिलक सही अर्थों में राष्ट्रवादी थे।