सतही जल एवं भूजल का अधि-उपयोग, बाढ़, सूखा, जल पर संघर्ष का वर्णन कीजिये।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

सतही जल एवं भूजल का अधि-उपयोग (Over-Utilization of Surface and Ground Water)

जल जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक तत्व है। सभी प्रकार के जीवों तथा वनस्पतियों के लिए जल अति आवश्यक है। मनुष्य के उपयोग के लिए शुद्ध जल आवश्यक होता है। किन्तु पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का केवल 1% भाग ही नदियों, झीलों, तालाबों व भूजल के रूप में हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध है। मनुष्य द्वारा जल के अविवेकपूर्ण उपयोग तथा अधि-उपयोग से स्वच्छ जल की मात्रा में और कमी आती जा रही है।

    जल का आवश्यकता से अधिक उपयोग तथा व्यर्थ उपयोग जल के अधि-उपयोग (over-utilization) की श्रेणी में आता है। एक ओर जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से जहाँ स्वच्छ जल की माँग में अत्यधिक वृद्धि हुई है वहीं इसके अधि-उपयोग से इसमें निरन्तर कमी होती जा रही है। जल के अधि-उपयोग का एक मुख्य कारण लापरवाही है। मनोरंजन हेतु स्थापित किये जाने वाले वाटर पार्क भी जल के अति दोहन की कहानी कहते हैं। एक अनुमान के अनुसार जितना जल उपयोग में लिया जाता है उसका 25% भाग व्यर्थ उपयोग होता है जिसे समुचित उपाय अपनाकर रोका जा सकता है। 

    सतही जल एवं भूजल
    फोटो - सतही जल एवं भूजल

    अतः आज नलकूपों की बढ़ती संख्या तथा उनके अन्धाधुंध उपयोग से भूजल स्तर में कमी आती जा रही है। अनेक क्षेत्रों की डार्क जोन के रूप में पहचान की जा चुकी है जहाँ भूजल स्तर अत्यन्त नीचे जा चुका है। बड़े होटलों तथा धनाढ्य परिवारों में टब बाथ व्यवस्था; पलश शौचालय, दाँत माँजते समय, दाढ़ी बनाते समय, नहाते समय, कपड़े धोते समय नल लगातार खुला रहना, डिटर्जेन्ट पाउडर का अत्यधिक उपयोग आदि में जल का बहुत अधिक व्यय होता है, जिससे पानी की कमी उत्पन्न होती हैं।

    जल का अधि-उपयोग रोकने के लिए जनजागृति पैदा की जानी चाहिए तथा कड़े कानून बनाये जाने चाहिए। जल के अधि-उपयोग को रोककर, जल संसाधन की बचत करके शुद्ध एवं स्वच्छ जल की पूर्ति बढ़ायी जा सकती है।

    यह भी पढ़ें- जल संसाधन के संरक्षण की समस्या एवं प्रबंधन- Water Resource

    बाढ़ (Floods)

    बाढ़ का सामान्य अर्थ है विस्तृत स्थलीय भाग का लगातार कई दिनों तक जलमग्न रहना। बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है तथा अत्यधिक वर्षा का परिणाम है। प्राकृतिक के साथ-साथ कुछ एक मानवीय कारण ऐसे भी हैं जो बाढ़ की तीव्रता, आवृत्ति तथा विस्तार को बढ़ा देते हैं। वास्तविक रूप में बाढ़ प्राकृतिक पर्यावरण का एक गुण है तथा अपवाह बेसिन के जलीय चक्र का एक संघटक है। बाढ़ उस समय प्रकोप बन जाती है जब इसके द्वारा अपार धन- जन की क्षति होती है।

    विश्व के समस्त भौगोलिक क्षेत्रफल के लगभग 3.5% क्षेत्र पर बाढ़ का विस्तार पाया जाता है। इस क्षेत्र में विश्व की लगभग 16.5% जनसंख्या निवास करती है। अनेक नदियाँ तो अपनी बाढ़ों के लिए कुख्यात हैं। इनमें प्रमुख हैं- भारत में गंगा, यमुना, रामगंगा, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी, दामोदर, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, गोदावरी, महानदी, नर्मदा, ताप्ती आदि; संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी तथा मिसौरी; चीन में यांगट्सी तथा यलो; बर्मा (म्यांमार) में इरावदी; पाकिस्तान में सिंधुः नाइजीरिया में नाइजर; इटली में पो तथा इराक में दजला-फरात नदी।

    बाढ़ (Floods)
    फोटो- बाढ़ (Floods)

    बाढ़ के कारण

    बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है किन्तु अनेक मानवीय कारण भी इसे अस्तित्व में लाते हैं। बाढ़ के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-

    I. प्राकृतिक कारण-

    • लम्बी अवधि तक उच्च तीव्रता वाली वर्षा अर्थात् घनघोर वर्षा
    • नदियों के घुमावदार मार्ग
    • विस्तृत बाढ़-मैदान
    • नदियों की जलधारा की प्रवणता में अचानक परिवर्तन
    • भूकम्प तथा भूस्खलन
    • ज्वालामुखी उद्‌गार ।

    II. मानवीय कारण-

    • नगरीकरण
    • नदी-घाटियों में वनोन्मूलन 
    • भूमि उपयोग में परिवर्तन
    • निर्माण कार्यों से नदियों के मार्ग में परिवर्तन
    • नदियों पर बाँधों, पुलों एवं जल भण्डारों का निर्माण।

    बाढ़ से बचने के उपाय

    बाढ़ से बचने एवं उनका प्रभाव कम करने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं-

    • बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में वनों का विकास तथा संरक्षण
    • मृदा अपरदन रोकने के उपाय
    • घनघोर वर्षा के कारण उत्पन्न घरातलीय वाही जल को नदियों तक पहुँचने के समय में विलम्ब करना
    • नदियों के जल के आयतन को कम करना
    • चयनित स्थानों पर बाँधों का निर्माण
    • नदियों के जल प्रवाह की दिशा को मोड़ना
    • समय रहते बाढ़ की भविष्यवाणी करना
    • बाढ़ राहत केन्द्र स्थापित करना।
    यह भी पढ़ें- बांध निर्माण के लाभ एवं समस्याएं- Formation of Dams

    सूखा (Drought)

    सूखा भी बाढ़ की भाँति एक प्राकृतिक प्रकोप है। यह अत्यन्त घातक प्रकृति का होता है तथा एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। सामान्य अर्थ में सूखे से आशय वर्षा की अनुपस्थिति अथवा अत्यन्त कम मात्रा में होने से है। सूखे की उत्पत्ति जल के अभाव के संचयी प्रभावों से होती है। सूखे के कारण कृषि तथा प्राकृतिक वनस्पति को अत्यधिक क्षति पहुँचती है तथा अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सूखे को एक स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

    सूखा
    फोटो- सूखा 

    आई.एम.डी. (Indian Meteorological Department) के अनुसार : "सूखा वह दशा है जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से वास्तविक वर्षा 75 प्रतिशत से कम होती है। आई.एम.डी. ने सूखे को दो वर्गों में विभाजित किया है-

    1. प्रचण्ड सूखा- जब सामान्य वर्षा के 50 प्रतिशत से कम वर्षा होती है तो यह प्रचण्ड सूखे की श्रेणी में आता है।

    2. सामान्य सूखा- जब सामान्य वर्षा के 50 प्रतिशत से अधिक किन्तु 75 प्रतिश से कम वर्षा होती है तो यह सामान्य सूखे की श्रेणी में आता है।

    सूखे के कारण

    सूखा एक प्राकृतिक प्रकोप है किन्तु साथ ही अनेक मानवीय कारण भी सूखे की तीव्रता तथा आवृत्ति में वृद्धि करते हैं। सूखे के कारण निम्न हैं-

    • वर्षा का न होना अथवा अत्यन्त कम वर्षा होना
    • जल का व्यर्थ बह जाना
    • वनों का विनाश
    • अनियंत्रित पशुचारण
    • मरुस्थलों का प्रसार आदि।

    सूखे के प्रभाव

    सूखे का पारिस्थिक तंत्र के सभी जीवन-रूपों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके मुख्य प्रभाव निम्न प्रकार हैं-

    • अकाल की स्थिति पैदा होना
    • पौधों तथा जन्तुओं की कतिपय जातियाँ समाप्त हो जाना
    • मनुष्यों तथा जन्तुओं का प्रव्रजन
    • भुखमरी के कारण अनेक जानवरों की मृत्यु हो जाना आदि।

    भारत में सूखाग्रस्त प्रान्तों- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश से प्रायः प्रतिवर्ष लोग अपने मवेशियों के साथ प्रव्रजन करते हैं।

    यह भी पढ़ें- वन संसाधन क्या है ? वन संसाधनों का उपयोग, विनाश के कारण, समस्याएँ एवं संरक्षण

    सूखा नियन्त्रण के उपाय

    सूखा नियन्त्रण के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं-

    • वनारोपण करना
    • शुष्क कृषि पद्धति का विकास करना
    • मरुस्थलीकरण रोकने के उपाय करना
    • जल संरक्षण उपायों पर सख्ती से अमल करना
    • जल भण्डारों का विकास करना
    • भूजल का विवेकपूर्ण उपयोग करना आदि।

    जल पर संघर्ष या विवाद (Conflicts Over Water)

    जल मनुष्य के जीवन के लिए बहुत आवश्यक तत्व है। जल पर जीव-जन्तुओं का जीवन टिका हुआ है। यह विकास का भी आधार है। जल घरेलू कार्यों में, औद्योगिक कार्यों में, कृषि आदि अनेक कार्यों में उपयोग में आता है। वर्तमान में जल से बड़े पैमाने पर जल विद्युत उत्पन्न की जाती है। इसके साथ यह भी उल्लेखनीय है कि जल एक असीमित संसाधन होते हुए भी मानव उपयोगी जल की मात्रा सीमित है। जल की उपयोगिता, महत्त्व तथा इसकी सीमितता के कारण राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल विवाद होते रहते हैं। कभी-कभी तो ये जल विवाद इतना उग्र रूप धारण कर लेते हैं कि दो देशों की सीमाओं पर तनाव उत्पन्न हो जाता है।

    भारत-बंग्लादेश के बीच गंगा नदी जल विवाद अनेक वर्षों से चला आ रहा है। 1977 में इसके समाधान के लिए फरक्का समझौता हुआ किन्तु बाद में यह रद्द कर दिया गया। 1991- 92 में भी दोनों देशों के बीच नदी-जल विवाद को सुलझाने हेतु सचिव स्तरीय कार्य दल बनाये गये। 12 दिसम्बर, 1996 को गंगा नदी जल के बंटवारे को लेकर एक सन्धि हुई जिसे 1 जनवरी, 1997 से कार्यान्वित किया गया। इसी प्रकार भारत-पाक के सम्बन्धों में नदी पानी विवाद भी तनाव का एक मुख्य कारण था। सतलज और रावी नदियाँ दोनों देशों के बीच में बहती हैं। विभाजन के बाद सन् 1960 में दोनों देशों के बीच पानी के प्रश्न पर समझौता हुआ। 

    भारत में विभिन्न राज्यों के बीच भी जल विवाद देखने को मिलते हैं। भारत में रावी- व्यास नदी जल विवाद तथा कावेरी नदी जल विवाद मुख्य जल विवाद है। राज्यों के बीच भी जल विवाद का मुख्य कारण यही है कि कृषि, सिंचाई, बिजली, उद्योगों आदि के विकास का मुख्य आधार जल ही है, इसी पर राज्यों की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है।

    रावी-व्यास नदी जल विवाद पंजाब, राजस्थान व हरियाणा के बीच अनेक वर्षों से चलता आ रहा है। समय-समय पर इसके समाधान के लिए प्रयास किये गये हैं। किन्तु राज्यीय हितों के चलते अभी तक इसका स्थायी समाधान नहीं हुआ है। इस समस्या के समाधान के लिए अन्तर्राज्यीय जल विवाद (संशोधन) अधिनियम, 1986 पारित किया गया। इसके अन्तर्गत समस्या के समाधान हेतु इराडी आयोग का गठन किया गया। इराडी आयोग ने 1987 में अपनी रिपोर्ट पेश की तथा तीनों राज्यों का पानी का हिस्सा निर्धारित किया किन्तु इसका सर्वमान्य हल न निकल सका। यह विवाद अभी भी जारी है।

    इसी प्रकार तमिलनाडु व कर्नाटक राज्य के बीच अनेक वर्षों से कावेरी नदी जल विवाद चला आ रहा है। वर्ष 2003 के आरम्भ में तो इस विवाद ने इतना उग्र रूप धारण कर लिया कि दोनों राज्यों की जनता भी हिंसा पर उतारू हो गयी।

    इस प्रकार जल जीवन तथा विकास का आधार होने के कारण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल विवाद चलते ही रहते हैं। मानवीय हितों का ध्यान रखते हुए इनका समाधान किया जाना चाहिए।

    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    Post a Comment

    Previous Post Next Post