पीलिया रोग के कारण, लक्षण उपचार व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।

पीलिया (Jaundice)

पीलिया रोग के कारण यकृत (जिगर) हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग है जिसका वजन लगभग 1.4 कि.ग्रा. होता है। पाचन क्रिया द्वारा हमारे भोजन के विभिन्न अवयन यथा शर्करा (काबर्बोहाइड्रेट्स) वसा एवं प्रोटीन्स छोटी-छोटी इकाइयों में परिवर्तित हो जाते हैं जो कि आंत द्वारा शोषित होकर रक्त में पहुँचती हैं। रक्त परिवहन द्वारा ये इकाइयाँ यकृत में पहुँचती है जहाँ या तो यह ऊर्जा उत्पन्न करने के काम आती हैं अन्यथा भविष्य के लिए संग्रहित हो जाती है।

पीलिया रोग के कारण, लक्षण उपचार व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।

यकृत विभिन्न औषधियों, शरीर के भीतर बने एवं शरीर में बाहर से प्रवेश करने वाला हानिकारक विषैले पदार्थों को विषमुक्त करने का कार्य भी करता है। बिलीरुबिन उनमें से एक है। लाल रक्त कणिकाओं की टूट-फूट के उपरान्त लाल रक्त कण (हीमोग्लोबिन) ही बिलीरूबिन में परिवर्तित हो जाता है।

रक्त में बिलीरुबिन की सान्द्रता सामान्य सीमा 0.3-0.8 मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली. से अधिक हो जाने की अवस्था पीलिया कहलाती है। रक्त बिलीरुबिन 4. मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली. से कम रहने पर पीलिया गुप्त रहता है (लिटेंट जान्डिस) एवं इससे अधिक होने पर त्वचा, आंखें एवं म्युकस झिल्ली पीली पड़ जाती है एवं पीलिया स्पष्ट हो जाता है। (क्लीनिकल जान्डिस) पीलिया के लिए उत्तरदायी प्रमुख सम्भावित कारण निम्नवत हैं-

(अ) यकृत द्वारा उत्सर्जित करने की सीमा से अधिक मात्रा में बिलीरुबिन का निर्माण। 

(ब) पित्त के ड्यूडिनम (जहाँ आमाशय और आँत जुड़ती है) में प्रवाह में कोई बाधा। 

(स) यकृत कोशिकाओं की कार्यक्षमता में कभी कमी, जिससे कि यकृत बिलीरुबिन को हाग्लूिकरोनायड में परिवर्तित कर पित्त में उत्सर्जित करने में असमर्थ हो।'

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पीलिया के प्रकार (Types of Jaundice)

1. हेपेटिक (इन्फेक्टिवा/टॉक्सिक) जॉन्डिस 

विषाक्त पदार्थों, संक्रामक रोगकारकों द्वारा पेरेन्काइमा कोशिकाओं की क्षति यकृत की कार्य क्षमता को विपरीत रूप से प्रभावित करती है। हेपेटाइटिस वारिस (दूषित जल द्वारा) इस प्रकार के पीलिया का सर्वप्रमुख एवं सामान्य कारण है। कई जहरीले रसायनों, विषाक्त पदार्थों एवं सिरोसिस की वजह से भी यह जॉन्डिस हो सकती है।

2. हीमोलिटिक जॉन्डिस 

इस प्रकार की जॉन्डिस लाल रक्त कणिकाओं की टूट- फूट में वृद्धि के कारण होती है यदि इस टूट-फूट की दर इतनी बढ़ जाए कि बनने वाले उत्पादों (बिलीरुबिन समेत) को उत्सर्जित कर पाने में यकृत सक्षम न हो तो रक्त में बिलीरुबिन का बढ़ना ही इस प्रकार के पीलिया का कारण बनता है। ऐसा विभिन्न संक्रमणों से- जैसे औषध जन्य विषाणु संक्रमण से, विषाक्त पदार्थों से, हीमोलिटिक एनीमिया में व रोगी को बेमेल रक्त दिये जाने पर होता है।

3. आब्स्ट्रक्टिव जॉन्डिस

पित्त पित्ताशय से पित्तवाहिनी नलिका द्वारा आंत में पहुँचकर पाचन में सहायक होता है। यदि पित्त के इस सामान्य बहाव में अवरोध उत्पन्न हो तो आब्सट्र‌क्टिव जॉन्डिस होती है। सामान्य कारण निम्नवत हैं- (अ) पित्त प्रवाह के रास्ते में पथरी का होना। (ब) ग्रन्यि का अत्यधिक बढ़ जाना या अग्नाशय के मुख पर ट्यूमर होना, (स) पित्तवाहिनी का संकीर्ण होना (शल्यक्रिया के परिणामस्वरूप)।

कुछ नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन को उत्सर्जित करने की क्षमता का पूर्ण विकास न हो पाने से भी 'फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस' हो जाती है।

पीलिया के सामान्य लक्षण / संकेत (Sympoms)

कमजोरी, थकान, जी मितलाना, बुखार, यकृत का मुलायम होना, भूख न लगना, घी तेल से बनी चीजों के प्रति, अरुचि विभिन्न उदर विकास (पेट दर्द), पेशाब का गहरा पीले रंग का हो जाना, गहरे भूरे मल का विसर्जन इत्यादि।

उपचार तथा रोकथाम

  1. रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए।
  2. रोगी के कपड़े बर्तन तथा उपयोग की अन्य वस्तुएँ उबालकर साफ करना चाहिए। 
  3. रोगी की देखभाल करने वालों को स्वच्छता का विशेष ध्यान रखनना चाहिए।
  4. भोजन में रोगी की रूचि बनाये रखनी चाहिए जिससे कि रोगी को भूख लगे। 
  5. ऐसा भोजन देना चाहिए जिसमें काबर्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन्स सही मात्र में हो।
  6. वसा तथा वसा युक्त पदार्थों, तले हुए पदार्थों तथा अत्यधिक मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. फलों के रसों का सेवन करना चाहिए।
  8. मदिरा पान बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
  9. पानी को उबालकर प्रयोग करना चाहिए।
  10. समय-समय पर ग्लूकोज का घोल देना चाहिए।

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