मधुमेह रोग के कारण लक्षण, उपचार व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिये।

मधुमेह (Diabetes)

मधुमेह को शर्करा का रोग भी कहते हैं यह रोग शरीर में एक नलिका विहीन ग्रन्थि से हारमोन के ठीक मात्र में न निकलने के कारण चयापचय (Metabolisim) सम्बन्धी रोग है। पक्वशय (Pancreas) ग्रन्थि के नलिकाविहीन भाग से इन्सुलिन हारमोन का ठीक मात्रा में निर्माण नहीं हो पाता है। जिसके परिणामस्वरुप ग्लूकोज ग्लायकोजन में परिवर्तित नहीं हो पाता है तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती जाती है जब तक कि ग्लूकोज की मात्रा मूत्र के रुप में उत्सर्जित नहीं हो जाती है। यह लक्षण ग्लायकोसूरिया (Glyco Suria) कहलाता है। ग्लूकोज के उत्सर्ज के लिए ऊतकों से जल का भी अधिक उत्सर्जन होता है जिसके कारण रोगी को बार- बार मुत्र त्याग के लिए जाना पड़ता है। यह लक्षण पॉलीयूरिया (Polyurea) कहलाता है। जल का अधिक अधिक उत्सर्जन होने के कारण रोगी की प्यास बढ़ जाती है। साथ ही रोगी की भूख भी बढ़ जाती है क्योकि व्यक्ति जो भोजन खाता है उसका पूर्ण रूप से उपयोग नहीं हो पाता है। 

मधुमेह रोग के कारण लक्षण, उपचार व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिये।

मधुमेह के कारण

मधुमेह रोग अधिकतर वंशानुक्रम का रोग है। यदि माता-पिता में से किसी एक को मधुमेह रोग है उस स्थिति में कुछ सन्तानों को मधुमेह रोग प्रगट रूप में हो सकता है। कुछ सन्तानों को प्रगट रूप में नहीं होगा तथा कुछ सन्तानों को यह रोग बिल्कुल नहीं होगा। यदि माता-पिता दोनों को मधुमेह रोग है तो उनकी सभी सन्तानों को यह रोग होगा।

यह रोग सभी अवस्थाओं में हो सकता है पर प्रौढ़ावस्था में 50 वर्ष की अवस्था के बाद विशेष रूप से यह रोग प्रकट होता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में यह रोग होने की अधिक सम्भावना होती है।

इसके अतिरिक्त बहुत अधिक मात्रा में कार्बोहाड्रेट विशेष रुप से शर्करा का प्रयोग करना, बहुत अधिक आहार लेना तथा कम क्रियाशील रहना भी इस रोग को उत्पन्न करने में सहायक रहता है।

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मधुमेह के लक्षण

मधुमेह के रोगी को ग्लूकोज से सम्बन्धित लक्षणों के अतिरिक्त निम्नलिखित लक्षण भी प्रकट होते है- 

  1. अधिक शारीरिक कमजोरी महसूस होना। 
  2. वजन का कम होना जिससे रोग निरोधक क्षमत्ता कम हो जाती है और संक्रमण सम्बन्धी रोग बहुत जल्दी लग जाते है। 
  3. अधिक प्यास लगना। 
  4. अधिक भूख लगना। 
  5. बार-बार पेशाब आना। 
  6. मूत्र में ग्लूकोज की मात्रा का पाया जाना। 
  7. शरीर में घाव भरने की क्षमता का कम होना। 
  8. आँखों के देखने की शक्ति या रोशनी का धीरे-धीरे कम होना। 
  9. शरीर पर जगह-जगह डायबिटीज कार्बन्कल (Carbuncle) निकल आते है, त्वचा पर काले काले चकत्ते पड़ जाते है तथा तान्त्रिक शोध (Neutritis) के लक्षण प्रकट होते है। ये लक्षण कभी-कभी गम्भीर परिणाम उत्पन्न करते है। 

मधुमेह रोग का उपचार 

मधुमेह के रोग का उपचार करते हुए कुछ विशेष उद्देश्य ध्यान रखे जाते हैं जो इस प्रकार के हैं-

  1. मधुमेह के सामान्य लक्षणों को कम करना, 
  2. रक्त तथा मूत्र में ग्लूकोज की मात्रा में सुधार करना, 
  3. शरीर का भार सन्तोषजनक बनाये रखना, 
  4. मधुमेह के गम्भीर परिणामों से बचना।

मधुमेह का पूर्ण उपचार नहीं हो पाता है, इसे नियन्त्रित किया जा सकता है। इस रोग का नियन्त्रण रोगी के ऊपर निर्भर करता है। रोगी को रोग के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए तथा उसे आहार के व्यवस्थित करने के बारे में पूर्ण ज्ञान देना चाहिए। मधुमेह रोग के उपचार के लिए तीन विधियाँ अपनायी जाती हैं। इन सभी विधियों में रोगी को जीवन भर अपने आहार को व्यवस्थित करना पड़ता है-

  1. केवल आहार में सुधार करके 
  2. आहार तथा रक्त शर्करा सतह कम करने के लिए ड्रग का प्रयोग करके 
  3. आहार तथा इन्सुलिन का प्रयोग करके।

रोगी के रोग की तीव्रता देखकर आहार व्यवस्थित करना चाहिए। यदि तीव्रता अधिक है तो व्यवस्थित आहार के साथ ड्रग अथवा इन्सुलिन की आवश्यकता होती है। रोग की प्रारम्भिक स्थिति को केवल आहार के द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।

 मधुमेह के रोगी का आहार

रोगी के आहार की व्यवस्था करते हुए निम्नलिखित सिद्धान्तों का ध्यान रखना आवश्यक होता है-

  1. आहार व्यक्ति के मोटापे को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थित करना चाहिए। यदि मोटापा अधिक है, तो ऐसा आहार रोगी को देना चाहिए जिससे उसके मोटापे में कमी आये तथा वह सामान्य भार का बने। 
  2. आहार ऐसा हो जिससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक न बढ़ पाये। 
  3. भोजन में कैलोरीज की मात्रा उसकी क्रियाशीलता के अनुसार नियन्त्रित रहे। 
  4. भोजन में विभिन्नता हो जिससे व्यक्ति भोजन के एक समान होने के कारण ऊबे नहीं।

इस प्रकार रोगी के सही उपचार के लिए आहार पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। 

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