बांध निर्माण के लाभ एवं समस्याएं- Formation of Dams- 2024

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बाँधों का निर्माण (Formation of Dams)

बाँध विकास की प्रक्रिया को गति देते हैं। वर्तमान में बहुउद्देश्यी परियोजनाओं के अन्तर्गत बड़े-बड़े बाँध बनाने की प्रवृत्ति सभी देशों में जोरों पर है। जल के समुचित उपयोग, सिंचाई, विद्युत उत्पादन, पेयजल, मत्स्य पालन आदि उद्देश्यों की पूर्ति हेतु नदियों पर बाँध बनाये जाते. हैं। भारत में भी स्वाधीनता के पश्चात् इस दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। वर्तमान में भी अनेक बाँध निर्माण योजनाएँ प्रगति पर हैं। निःसन्देह बाँध आवश्यक हैं, वे देश की प्रगति में सहायक हैं किन्तु इसका दूसरा पक्ष पर्यावरण सम्बन्धी है अर्थात् इन बाँधों के निर्माण से पर्यावरण को क्षति पहुँचती है तथा पारिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन होने का संकट बना रहता है। 

बांध निर्माण के लाभ एवं समस्याएं- Formation of Dams

अतः यदि बाँधों का निर्माण पर्यावरण के तथ्यों को दृष्टिगत रखकर किया जाये तो इसकी त्रासदी से बचा जा सकता है। भारत में अनेक बाँध जैसे भाखड़ा नांगल, हीराकुण्ड, दामोदर, तुंगभद्रा, कोसी, रिहन्द, गाँधी सागर आदि मयूराक्षी, बेतवा, भद्रावती, कृष्णा, चम्बल जैसी नदियों पर बनाये गये हैं और इनका पर्यावरण तथा क्षेत्रीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव हुआ है। हाल ही में टिहरी बाँध परियोजना एवं नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर एवं नर्मदा सागर परियोजना का पर्यावरण प्रभाव विषय पर बहस हो रही है कि ये योजनाएँ पर्यावरण के संदर्भ में कहाँ तक लाभदायक हैं। 

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अतः इन बाँधों के सम्बन्ध में प्रशासन एवं पर्यावरणविदों के मध्य मतभेद हैं लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि जहाँ इनसे लाभ होंगे वहीं पर्यावरण पर दूरगामी विपरीत प्रभाव भी पड़ेंगे। अतः इनके विपरीत प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में नदियों पर छोटे बाँधों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। वर्तमान में सरकार र ने प्रत्येक बाँध निर्माण योजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति लेना आवश्यक कर दिया है। बाँधों का निर्माण आवश्यक है लेकिन उनसे पर्यावरण में व्यतिक्रम न हो यह और भी अधिक आवश्यक है।

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बाँधों के प्रभाव (Effects of Dams)

बाँधों के प्रभावों को हम निम्न दो शीर्षकों बाँधों से लाभ तथा बाँधों से उत्पन्न हानियाँ अथवा समस्याएँ-में बाँटकर अध्ययन कर सकते हैं-

(अ) बाँधों से लाभ

बहुउद्देश्यी परियोजनाओं के अन्तर्गत बाँधों का निर्माण किया जाता है, अतः इनसे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं-

1. बड़ी मात्रा में जल संग्रहण- बाँधों में बड़ी मात्रा में जल संग्रह किया जाता है जिससे बाढ़ एवं सूखा आदि पर नियंत्रण लगता है। इससे अकाल का असर भी कम होता है।

2. सिंचाई सुविधा- बाँधों से नहरें निकाल कर खेतों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।

3. जल विद्युत उत्पादन- बाँध निर्माण का एक प्रमुख उद्देश्य जल विद्युत उत्पादन करना होता है। जल विद्युत शक्ति का एक असमाप्य संसाधन है तथा यह प्रदूषण रहित भी होती है। 

4. मत्स्य पालन- बाँधों में मत्स्य पालन भी किया जाता है। इससे एक ओर रोजगार के अवसर मिलते हैं तो दूसरी ओर खाद्य पदार्थ का उत्पादन होता है।

5. पेयजल तथा औद्योगिक आपूर्ति- बाँधों में एकत्रित जल से आस-पास के क्षेत्र में पेयजल की आपूर्ति की जाती है। उद्योगों को भी बाँधों द्वारा जल उपलब्ध कराया जाता है। 

6. रोजगार के अवसर- बाँधों से कृषि का विकास होता है, मत्य्स पालन को प्रोत्साहन मिलता है, पर्यटन क्षेत्रों का विकास होता है, इससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते है। 

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(ब) बाँधों से हानियाँ अथवा समस्याएँ

बाँधों से अनेक समस्याएँ भी पैदा होती हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

1. वन विनाश- बाँधों से सर्वाधिक हानि वनों को पहुँचती है। बड़े बाँधों के निर्माण से विस्तृत वन क्षेत्र जलमग्न हो जाता है, इससे उस क्षेत्र के वन नष्ट हो जाते हैं। वनों के नष्ट होने से अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ जन्म लेती हैं। वनों के विनाश से वन्य जीवों का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाता है।

2. जनजातियों के निवास स्थान समाप्त होना- बाँधों के कारण सैकड़ों गाँव तथा बहुत बड़ा वन क्षेत्र जलमग्न हो जाता है। इससे वनों में रहने वाली जनजातियों के निवास स्थान समाप्त हो जाते हैं। उनका परम्परागत वन आधारित रोजगार छिन जाता है। उनके लिए अनुकूल वातावरण समाप्त हो जाता है तथा उन्हें नगरीय अथवा कस्बाई समाज के साथ जुड़ने में अत्यधिक समस्याएँ आती हैं।

3. जल एकत्रीकरण एवं लवणता- बाँधों से निकाली गई वितरण नहरों द्वारा लगातार सिचाई के कारण जल एकत्रीकरण तथा लवणता की समस्या भी पैदा होती है। राजस्थान में इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में जल एकत्रीकरण तथा लवणता की समस्या से बड़ी मात्रा में भूमि बंजर हो गई है।

4. भूकम्प की सम्भावनाएँ- बड़े बाँधों के क्षेत्रों में भूतल अस्थिर होने से भूकम्प आने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। महाराष्ट्र में कोयना नदी पर बनाये गये कोयना बाँध के कारण 1967 में वहाँ भूकम्प आया था।

5. बीमारियों में वृद्धि- बाँधों में पानी रुका हुआ रहता है। रुके हुए पानी के कारण मलेरिया, पीलिया, पीला ज्वर, हैजा, मोतीझरा, मस्तिष्क ज्वर, हेपेटाइटिस, डायरिया आदि बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

6. डेल्टा अपरदन- बाँधों के कारण डेल्टा अपरदन भी बढ़ता है। नदियों द्वारा लाई गई अवसाद (गाद) बाँधों में जमा होने से वह डेल्टाई भागों तक नहीं पहुँच पाता और डेल्टा का प्रसार रुकने के साथ उसका कटाव भी प्रारम्भ हो जाता है। उदाहरण के लिए, नील नदी पर बने आस्वान बाँध के कारण पुराने डेल्टा का कटाव प्रारम्भ हो गया है, इससे वहाँ स्थित सिकन्दरिया बन्दरगाह को खतरा पैदा हो गया है।

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