अनुसूचित जनजाति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ तथा जनजाति एवं अनुसूचित जनजाति में अंतर

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अनुसूचित जनजाति का अर्थ (Meaning of Scheduled Tribe)

जब स्वतन्त्र भारत के संविधान निर्माण का कार्य चल रहा था उस समय भारतीय आदिवासियों (जंगल में निवास करने वाली जातियों को जिनको विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न नामों से सम्बोधित किया है, जैसे रिजले आदि अनेक विद्वानों ने उन्हें 'आदिवासी' कहा है, हट्टन ने इन्हें 'आदिम जातियाँ' कहा है; सर बेन्स ने इन्हें 'पर्वतीय जनजातियाँ' (Hill Tribes) कहा है, सेल्जनिक और मार्टिन ने इन्हें 'सर्वजीव वाही' (Animist) कहा है, घुरिये ने इन्हें आदिवासी या पिछड़े हिन्दू कहा है। उत्थान के लिए विशेष प्रावधान रखे गए। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 330 में इन आदिवासियों या जनजातियों के नाम गिनाकर एक सूची (Schedule) तैयार की गई। इसलिए इन सबको एक संवैधानिक नाम अनुसूचित जनजातियाँ (Scheduled Tribes) कहा जाता है।

    अतः स्पष्ट है कि 'अनुसूचित जनजाति' एक संवैधानिक शब्दावली है, जिसका प्रथम प्रयोग भारतीय संविधान में हुआ है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार देश के 26 राज्यों एवं 4 केन्द्र शासित राज्यों में लगभग 106 विविध भाषाएँ बोलने वाले 460 समुदायों को 'अनुसूचित जनजाति' की श्रेणी में रखा गया है। उल्लेखनीय है कि देश के दो राज्यों पंजाब और हरियाणा तथा तीन केन्द्र शासित प्रदेशों दिल्ली, चन्डीगढ़ तथा पाण्डिचेरी में जनजातियाँ न होने के कारण इन्हें जनजाति अनुसूची में निर्दिष्ट नहीं किया गया है।

    अनुसूचित जनजाति की प्रमुख परिभाषाएँ

    इम्पीरियल गजटियर ऑफ इण्डिया ने जनजातियों को परिभाषित करते हुए लिखा है, "जनजाति परिवारों का वह समूह है, जिसका एक सामान्य नाम होता है, जिसके सदस्य एक सामान्य भाषा बोलते हैं तथा एक सामान्य क्षेत्र में या तो वास्तव मे रहते हैं अथवा अपने को उसी क्षेत्र से सम्बन्धित मानते हैं तथा ये अन्तर्विवाही भी होते हैं।"

    रिचार्ड के अनुसार- "जनजाति एक ऐसे समूह का नाम है जो आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होता है, समान भाषा बोलता है और जब किसी बाह्य शत्रु का सामना करना होता है तब इस समूह के सब लोग मिलकर एक हो जाते हैं।"

    डॉ. डी.एन. मजूमदार के अनुसार- "जनजाति परिवारों या परिवार समूह के सम्प्रदाय का नाम है, इन परिवारों या परिवार समूहों का एक सामान्य नाम होता है, ये एक ही भू-भाग में निवास करते हैं। एक ही भाषा बोलते हैं तथा विवाह आदि में एक ही प्रकार की बातों को निषिद्ध मानते हैं। एक-दूसरे के साथ व्यवहार के सम्बन्ध में इन्होंने अपने पुराने अनुभव के आधार पर अपने कुछ निश्चित नियम बना लिए हैं।"

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 खण्ड 1 में लिखा है- "राष्ट्रपति सार्वजनिक सूचना द्वारा जनजातियों, जनजाति समुदायों या जनजाति समुदाय के भीतर समूहों की घोषणा करेंगे। इस सूचना में जो जनजातियाँ, जनजाति समुदाय या जनजातियों के भीतरी समूह परिभाषित किये जाएँगे, वे सब अनुसूचित जनजाति कहलाएँगे।" 1125

    अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख विशेषताएँ

    डेविड मेण्डलबोम का मत है कि जनजातियों की परिभाषा में राष्ट्रपति की सूची अन्तिम है। धर्म, जाति एवं जनजाति के आधार पर जनजातियों को 'जनजाति अनुसूची' में राष्ट्रपति शामिल कर लेते हैं, वे अनुसूचित जनजातियाँ कहलाती है।

    इन अनुसूचित जनजातियों की कुछ सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    1. एक जनजाति अनेक परिवारों या परिवारों के समूह का एक संकलन होती है। प्रत्येक अनुसूचित जनजाति का एक सामान्य नाम होता है।

    2. प्रत्येक जनजाति की अपनी एक सामान्य भाषा होती है, जिससे विचारों का आदान- प्रदान तथा पारस्परिक एकता व सामाजिक संगठन का विकास सरलता से हो सके। डॉ. घुरिये का मत है, "किसी एक विशिष्ट भाषा का प्रयोग करने की अपेक्षा वे जनजातीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं।"

    3. प्रत्येक अनुसूचित जनजाति एक निश्चित भू-भाग पर रहती है। डॉ. घुरिये ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है, "सभ्य जगत से दूर पर्वतों तथा जंगलों के दुर्गम स्थानों में ये लोग निवास करते हैं। 

    4. डॉ. घुरिये का कहना है कि प्रत्येक अनुसूचित जनजाति समूह का निग्रोइड, मंगोलोइड एवं आस्ट्रेलोइड में से किसी एक प्रजातीय समूह से सम्बन्ध अवश्य है।

    5. जनजाति की अपनी धार्मिक व्यवस्था होती है। ये लोग भोपा, आत्मा व देवी आदि में अधिक विश्वास करते हैं। डॉ. घुरिये के शब्दों में, "ये जनजातियाँ आदिम धर्म को मानती हैं, जिनमें भूतों तथा आत्माओं का स्थान प्रमुख है।"

    6. जनजातियों के लोग सभ्य समाज की तुलना में पिछड़े हुए हैं। ये आदिम व्यवसाय शिकार करना, जंगलों से वस्तुओं का संग्रह और अधिक से अधिक कृषि करना तक सीमित हैं। कुछ जनजातियाँ जंगल से कन्द-मूल फल एकत्रित करके पेट भरती हैं, तो कुछ जनजातियाँ कृषि भी करती है। अधिकांश जनजाति के लोग मांसाहारी होते हैं।

    7. एक जनजाति प्रायः एक अन्तर्वैवाहिक समूह होता है, लेकिन वर्तमान में शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने जनजाति की इस विशेषता को धुँधला दिया है।

    8. एक जनजाति के सदस्यों में पारस्परिक आदान-प्रदान के कुछ सामान्य नियम और निषेध हैं, जिनको प्रत्येक सदस्य को मानना पड़ता है और जिनके आधार पर इनका व्यवहार नियन्त्रित होता है।

    9. प्रत्येक जनजाति की एक सामान्य संस्कृति होती है और बाहर के समूहों के विरुद्ध इसके सदस्यों में एकता की भावना भी होती है। मदिरा एवं नृत्य के प्रति इनकी अधिक आस्था होती है।

    10. कुछ जनजातियाँ संख्या में बहुत कम होती है, तो कुछ जनजातियों की संख्या अधिक होती है।

    11. आमतौर पर ये जनजातियाँ दूसरों से सम्पर्क नहीं करती। एक आदिवासी समूह का दूसरे आदिवासी समूह से सम्पर्क नहीं के बराबर होता है। चाहे वह दूसरी जगह रहने वाला अपना ही समूह क्यों न हो।

    12. जनजातियों का अपना स्वयं का ही एक राजनीतिक संगठन होता है।

    जनजाति एवं अनुसूचित जनजाति में अन्तर

    सामान्यतः वन्य प्रदेशों तथा पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले वे मानव-समुदाय जो सभ्यता के विकास की दृष्टि से अभी काफी पिछड़े हुए है या इस सम्बन्ध में प्रारम्भिक सोपान पर ही है, इन्हें ही जनजाति अथवा आदिवासी कहा जाता है। इस तरह की जनजातियाँ लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में पायी जाती है।

    भारत में स्वतन्त्रता पश्चात्, सन् 1950 में विभिन्न जनजातीय समुदायों की पहचान कर इस प्रकार के 212 जनजातीय समुदायों की एक सूची तैयार करने के बाद 'अनुसूचित जनजातीय आदेश 1950' में लागू किया गया। किसी कारण इस सूची में सभी जनजातीय समुदाय शामिल नहीं किये जा सके थे, फलतः बाद में इसमें संशोधन कर कई अन्य उन जनजातीय समुदायों को भी शामिल किया गया, जिनकी पूर्व जानकारी प्राप्त हो चुकी थी तथा जो पूर्व में इस सूची में शामिल नहीं हो पाये थे। इस प्रकार, इन सूचीबद्ध जनजातियों को ही 'अनुसूचित जनजाति' कहा जाता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि अनुसूचित जनजाति वे जनजातीय समूह है, जिनको संवैधानिक तथा कानूनी रूप से सरकार द्वारा बनायी गई सूची में शामिल किया गया है।

    अतः वे जनजातीय समूह जो जनजातियों के अन्तर्गत तो आते हैं, किन्तु भारत सरकार की अनुसूची में किसी भी कारण से यदि शामिल नहीं किया गया तो वे अनुसूचित जनजाति नहीं कहे जाएँगे।

    अफ्रीका या अन्य किसी देश के वे जनजातीय समुदाय जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध भारत की किसी जनजाति से नहीं है, तो हम उन्हें जनजाति तो कहेंगे किन्तु वे अनुसूचित जनजाति नहीं कहे जाएँगे।

    इस प्रकार सीधे शब्दों में कहें तो हम यह कह सकते हैं कि जनजाति एवं अनुसूचित जनजाति में कोई लाक्षणिक अन्तर नहीं होता। अनुसूचित जातियों में वे सारी विशेषताएँ पायी जाती हैं, जो किसी भी जनजाति में होती हैं। अन्तर सिर्फ यह है कि भारतीय संविधानानुसार राष्ट्रपति द्वारा घोषित अनुसूची में शामिल जनजातियाँ अनुसूचित जनजाति होंगी, शेष सभी जनजातीय समुदाय सिर्फ जनजाति कहलाएँगे, अनुसूचित नहीं। 

    इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान के अनुसार, सभी अनुसूचित जनजातियों को केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न तरह की सुविधाएँ प्रदान की जाती है। ये सुविधाएँ शिक्षा, रोजगार तथा अन्य क्षेत्रों में दी जाती हैं। ये सुविधाएँ सिर्फ उन्हीं जनजातियों को प्रदान की जाती हैं, जो भारत सरकार की अनुसूची में सम्मिलित की गई हैं। किसी अन्य जनजाति को यह सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है।

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