अनुग्रह विपत्र से आशय
जो विपत्र बिना किसी प्रतिफल के चुकाए कुछ समय के लिए एक-दूसरे की पारस्परिक आर्थिक सहायता के लिए लिखे एवं स्वीकार किए जाते हैं, 'अनुग्रह विपत्र' (Accommodation Bill) या 'सहायतार्थ विपत्र' कहलाते हैं। इस प्रकार के विपत्रों का प्रयोग एक व्यापारी द्वारा दूसरे व्यापारी की आर्थिक सहायता के लिए किया जाता है। इनमें धन का भुगतान करने वाले को बदले में कोई मूल्य प्राप्त नहीं होता है। स्वीकृति के उपरान्त विपत्र को बैंक से बट्टे पर भुना लिया जाता है तथा प्राप्त धनराशि को आवश्यकतानुसार किसी निश्चित आपस में श्चित अनुपात में अ बाँट लिया जाता है। बट्टे की राशि भी उसी अनुपात में बॉट ली जाती है, जिस अनुपात में प्राप्त धनराशि बाँटी जाती है। भुगतान की तिथि पर विपत्र की राशि का भुगतान कर दिया जाता है।
अनुग्रह-विपत्र लिखे जाने की दशाएँ
अनुग्रह विपत्र सामान्यतया अग्रलिखित तीन परिस्थितियों में लिखे जाते हैं-
(1) जब विपत्र का लेखक विपत्र की सम्पूर्ण धनराशि का स्वयं उपयोग करे
जब एक व्यापारी दूसरे व्यापारी की सहायता के लिए, बिना किसी प्रतिफल के प्राप्त. किए, उसका लिखा हुआ विपत्र स्वीकार कर लेता है, तब पहला व्यापारी उस विपत्र को अपने बैंक से धुनाकर अपना काम चलाता है तथा भुगतान की तिथि आने से पूर्व ही वह विपत्र की रकम विपत्र के स्वीकर्ता के पास पहुँचा देता है, जिससे कि वह देय तिथि पर विपत्र का भुगतान कर सके। इस प्रकार भुगतान तिथि पर विपत्र का भुगतान हो जाता है।
(2) जब विपत्र का लेखक एवं स्वीकारकर्त्ता दोनों विपत्र की धनराशि का उपयोग करें
कभी-कभी एक व्यापारी दूसरे व्यापारी पर विपत्र लिखता है तथा स्वीकृति प्राप्त हो जाने पर वह उसे बैंक से बट्टे पर भुना लेता है। प्राप्त धनराशि को दोनों आवश्यकतानुसार आपस में बाँट लेते हैं। । भुगतान तिथि से पूर्व विपत्र का लेखक स्वीकर्ता के पास अपने हिस्से की रकम पहुँचा देता है, जिससे वह विपत्र का भुगतान अपने हिस्से की रकम को मिलाकर कर देता है। विपत्र के भुनाने पर देय होने वाले बट्टे की राशि भी धनराशि के वितरण के अनुपात में बाँट ली जाती है।
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(3) जब दोनों पक्षों द्वारा अलग-अलग विपत्र लिखे जाएँ तथा दोनों पक्ष अपने-अपने विपत्रों की रकम का स्वयं उपयोग करें
कभी-कभी दोनों व्यापारी आपस में पारस्परिक सहायता के लिए एक-दूसरे पर विपत्र लिखते हैं तथा स्वीकृति प्राप्त हो जाने के पश्चात् उसे बैंक से (बट्टे पर) भुनाकर अपना कार्य चला लेते हैं। भुगतान की तिथि पर दोनों अपने-अपने विपत्रों का भुगतान कर देते हैं। अपने-अपने विपत्रों को भुनाने का बट्टा वे स्वयं वहन करतें हैं।
स्वीकर्ता का दिवालिया होना (Bankruptcy of the Drawee)
कभी-कभी विपत्र की देय तिथि पर अथवा उससे पूर्व ही स्वीकर्ता दिवालिया हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वीकर्ता से विपत्र की सम्पूर्ण राशि प्राप्त नहीं हो पाती, उसका केवल कुछ भाग ही प्राप्त हो पाता है। इस दशा में सबसे पहले विपत्र को अनादृत किया जाता है, उसके बाद जो रकम प्राप्त होती है उससे 'रोकड़ खाता डेबिट' तथा 'आहायर्थी के खाते को क्रेडिट' किया जाता है। जो भाग प्राप्त नहीं हो पाता वह अशोध्य ऋण मानकर 'अशोध्य ऋण खाते में डेबिट' किया जाता है। आहार्यों दिवालिया होने के कारण जिस भाग का भुगतान नहीं कर पाता वह उसे 'आपूर्ति खाते' (Deficiency A/c) में क्रेडिट करता है। अतः इस दशा में निम्नलिखित प्रकार से जर्नल लेखा किया जाता है-
(i) भुगतान प्राप्त करने वाले अर्थात् लेखक की पुस्तक में लेखा-
Bad Debts A/c Dr.
To Particular Debtors A/c
(Being drawee become insolvent and bad debts arise)
(ii) स्वीकर्ता की पुस्तकों में लेखा-
To Cash A/c
To Deficiency A/c
(Being declaration of bankruptcy and partial payment made)