UP TGT PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 06 in Hindi medium

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यहां पर UP TGT-PGT कॉमर्स 2024 की दैनिक प्रैक्टिस के लिए 20 प्रश्नों का सेट दिया गया है। ये प्रश्न विभिन्न कॉमर्स विषयों से संबंधित हैं, जैसे कि अकाउंटिंग, बिजनेस स्टडीज, इकोनॉमिक्स, और फाइनेंस।

UP TGT PGT परीक्षा 2024 के सभी विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा को अच्छे number से पास  करने के लिए नियमित रूप से UP TGT PGT अभ्यास सेट का अध्ययन तथा अभ्यास करें और किसी भी प्रकार की गलतियों से बचने के लिये और अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए उसके अनुरूप तैयारी करें। 

अतः सभी विद्यार्थियों से विनम्र अनुरोध है कि अभ्यास प्रश्नों उत्तरों का विवेकपूर्ण चयन के साथ अभ्यास करेंविश्लेषण करें और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है और आप खूब मेहनत और लगन के साथ अध्ययन करें और सफल हों।

UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 06 in Hindi medium

UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 06 in Hindi

1. निम्नलिखित में से कौन-सा लेखाविधि का सिद्धान्त नहीं है?

  • (a) दोहरा लेखा प्रणाली
  • (b) लागत सिद्धान्त
  • (c) भौतिकता का सिद्धान्त
  • (d) सत्यता का सिद्धान्त

Ans: (a) लेखांकन के सिद्धांतों के सत्यापन हेतु प्रमाण देने की आवश्यकता होती है, इसकी जननी मान्यताएँ होती हैं। इसमें आवश्यकतानुसार एवं व्यवसायिक परिस्थितिवश परिवर्तन किए जा सकते हैं। इसके प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं-

  1. लागत सिद्धांत
  2. भौतिकता का सिद्धांत
  3. सत्यता का सिद्धांत

स्पष्ट है कि दोहरा लेखा प्रणाली लेखांकन की एक विधि है न कि लेखांकन सिद्धांत।

2. निम्नलिखित में से किस लेखांकन अवधारणा के अनुसार व्यापार का स्वामी भी अपनी पूँजी की सीमा तक लेनदार माना जाता है?

  • मुद्रा मापन अवधारणा
  • लागत अवधारणा
  • द्विपक्षीय अवधारणा
  • व्यवसायिक इकाई अवधारणा

Ans : (d) व्यवसायिक इकाई अवधारणा या पृथक व्यवसाय की अवधारणा (Seperate Business Entity) के अनुसार व्यवसाय का स्वामी भी अपनी पूँजी की सीमा तक लेनदार माना जाता है। दूसरे शब्दों में व्यवसाय की इकाई अवधारणा के अनुसार व्यापार एक पूर्ण स्वतन्त्र इकाई है। इसलिए व्यापार के अस्तित्व को इसके स्वामी, लेनदारों, प्रबन्धकों और अन्य दूसरे व्यक्तियों से अलग माना जाता है।

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3. लेखांकन की वसूली का सिद्धान्त लागू नहीं होता-

  • (a) दीर्घकालीन ठेका कार्यों में
  • (b) बिजली उत्पादन एवं वितरण में
  • (c) जहाजरानी कम्पनियों में
  • (d) रेलवे में

Ans : (a) लेखांकन का वसूली सिद्धान्त दीर्घकालीन ठेका कार्यों के सम्बन्ध में लागू नहीं होता है। वसूली अवधारणा तब लागू होती है, जब बिक्री सम्पन्न हो और माल की सुपुर्दगी कर दी जाय। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

यह भी पढ़ें- UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 05 in Hindi medium

4. सामान्यतया स्वीकृत सिद्धान्तों का आधार है-

  • (a) मान्यताएँ
  • (b) नियम
  • (c) प्रमाप
  • (d) परम्पराएँ

Ans : (a) सामान्यतः स्वीकृत सिद्धान्तों का आधार मान्यताएँ (Assumptions) होती है।

5. 'चलित कारोबार' विचार के अन्तर्गत एक व्यवसाय के चालू रहने के बारे में मान्यता होती है-

  • (a) अपरिमित अवधि
  • (b) समुचित दीर्घकालीन
  • (c) अल्पकाल
  • (d) एक वर्ष

Ans : (a) 'चलित कारोबार' के विचार के अन्तर्गत एक व्यवसाय के अपरिमित अवधि तक चालू रहने के बारे में मान्यता होती है। अर्थात व्यवसाय के चालू व्यवसाय की अवधारणा के अन्तर्गत यह मान्यता होती है कि सम्बन्धित व्यवसाय अनिश्चित भावी समय तक चलता रहेगा जिसके लाभ-हानि को समय-समय पर जानते रहने के लिए व्यापारिक खाता, लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा तैयार किया जाता है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

6. लेखांकन नियम, प्रविधियाँ तथा पद्धतियाँ एक समान अपनाई जानी चाहिए और उन्हें प्रति वर्ष बदलना नहीं चाहिए। इसे निम्नलिखित लेखांकन प्रथा कहते हैं-

  • (a) सुसंगति
  • (b) सम्पूर्ण प्रकटीकरण
  • (c) रूढ़िवादिता
  • (d) चालू संस्था

Ans : (a) लेखांकन की सुसंगति प्रथा के अनुसार लेखांकन नियम, प्रविधिर्या एवं पद्धतियाँ एक समान अपनाई जानी चाहिए और उन्हें प्रतिवर्ष बदलना नहीं चाहिए।

दूसरे शब्दों में, एकरूपता/सुसंगति की अवधारणा के अनुसार प्रबन्धकों द्वारा अपने व्यापार के सम्बन्ध में निश्चित निष्कर्ष निकालने और धारणाएँ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि व्यापार का लेखा करने के लिए प्रत्येक वर्ष समान नियमों व पद्धतियों का प्रयोग किया जाये। अतः स्पष्ट है कि विकल्प (a) सही उत्तर है।

7. पूँजी खाता किस अवधारणा के अन्तर्गत आता है?

  • (a) पृथक व्यवसाय
  • (b) लेखांकनअवधि
  • (c) अर्जित
  • (d) वसूली 

Ans : (a) लेखांकन व्यवसाय की पृथक इकाई की अवधारणा के अनुसार समामेलित एवं असमामेलित संस्थाओं की दशा में स्वामियों एवं संस्थाओं का अस्तित्व पृथक-पृथक माना जाता है। इसी कारण से संस्था के आर्थिक चिट्ठे में संस्था के स्वामियों की पूँजी एवं लाभों को दायित्व पक्ष में प्रदर्शित किया जाता है। चूंकि यह व्यवसाय का दायित्व होता है अर्थात स्वामी की पूँजी को संस्था का दायित्व माना जाता है, इसी वजह से एक व्यापारी व्यापार में पूँजी लगाता है, तो निम्नलिखित प्रविष्टि की जाती है-

Cash A/C Dr.
              To Capital A/c

स्पष्ट है कि पूँजी खाता पृथक व्यवसाय की अवधारणा के अन्तर्गत आता है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

8. प्रयुक्त पूँजी क्या है ?

  • (a) समता
  • (b) दीर्घकालीन ऋण
  • (c) उक्त (a) + (b)
  • (d) इनमें से कोई नहीं

Ans: (c) प्रयुक्त पूँजी या विनियोजित पूँजी (Capital Employed) की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं-

विनियोजित पूँजी = समता अंश पूंजी + दीर्घकालीन ऋण 
या 
विनियोजित पूँजी = स्थायी सम्पत्तियाँ + चालू सम्पत्तियाँ - बाह्य दायित्व 

स्पष्ट है कि विनियोजित या प्रयुक्त पूँजी में समता एवं दीर्घकालीन ऋण दोनों को शामिल किया जाता है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

9. रूढ़िवादिता के सिद्धान्त के अन्तर्गत स्टॉक का मूल्यांकन किया जायेगा-

  • (a) बाजार मूल्य पर
  • (b) लागत मूल्य पर
  • (c) बाजार मूल्य या लागत मूल्य जो भी कम है
  • (d) बाजार मूल्य या लागत मूल्य जो भी अधिक है

Ans: (c) लेखांकन की रूढ़िवादिता सिद्धान्त के अनुसार अन्तिम खाता तैयार करते समय स्टॉक का मूल्यांकन लागत या बाजार मूल्य में से जो भी कम होता है, पर किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे व्यवसाय द्वारा अधिक लाभ न दिखाया जा सके। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

10. व्यवसाय में सम्भावित हानियों का आयोजन पूर्व में ही कर लेना चाहिये। ऐसी परम्परा है-

  • (a) रूढ़िवादी
  • (b) प्रकटीकरण
  • (c) महत्वपूर्णता
  • (d) वसूली 

Ans : (a) लेखांकन की रूढ़िवादी अवधारणा के अनुसार व्यवसाय में सम्भावित हानियों का आयोजन पूर्व में ही कर लेना चाहिए, जबकि संभावित लाभों का नहीं। इस आधार पर व्यवसाय को अधिक सुरक्षित बनाने का प्रयास किया जाता है किन्तु इस रूढ़िवादी दृष्टिकोण का प्रयोग अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

11. वसूली की अवधारणा है-

  • (a) जब आदेश प्राप्त हो जाय
  • (b) जब ग्राहकों को माल की आपूर्ति दे दी जाय
  • (c) जब देनदार से रकम प्राप्त हो जाय
  • (d) इनमें से कोई नहीं

Ans : (b) अवधारणा से आशय उन स्वीकृत तथ्यों, कल्पनाओं व शर्तों से है, जिन पर लेखांकन के विभिन्न सिद्धान्त आधारित होते हैं। वसूली की अवधारणा का आशय उस स्थिति से होता है जब ग्राहकों को माल की आपूर्ति दे दी जाय अर्थात् जब ग्राहक के आदेश पर उसे माल की आपूर्ति कर दी जाती है, तो ऐसी स्थिति में माल प्राप्तकर्ता देनदार की स्थिति में आ जाता है किन्तु यदि आदेश दे दिया जाय और माल की आपूर्ति न की जाय तो आदेशकर्ता। देनदार की स्थिति में नहीं होता और वसूली की अवधारणा प्रभावहीन होती है। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

12. व्यवसाय के शुद्ध मूल्य से आशय है-

  • (a) चालू सम्पत्ति-चालू दायित्व
  • (b) कुल अंश पूँजी
  • (c) कुल सम्पत्ति
  • (d) कुल सम्पत्ति कुल दायित्व

Ans : (d) लेखांकन की द्विपक्षीय स्वरूप की अवधारणा के कारण व्यवसाय में पूँजी व दायित्व का मूल्य सम्पत्तियों के मूल्य के बराबर होता है। किसी व्यवसायिक संस्था का शुद्ध मूल्य ज्ञात करने के लिए कुल सम्पत्तियों में से कुल दायित्वों को घटा देते हैं। अर्थात- 

शुद्ध मूल्य = कुल सम्पत्ति - कुल दायित्व 
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

13. यदि एक फर्म अपने ग्राहक से प्राप्त अग्रिम राशि को अपनी आय मान लेती है, तो वह निम्न में से किस अवधारणा का उल्लंघन करती है?

  • (a) मुद्रा मापन अवधारणा 
  • (b) लागत अवधारणा 
  • (c) वसूली अवधारणा
  • (d) पृथक अस्तित्व अवधारणा

Ans: (c) यदि एक फर्म अपने ग्राहक से प्राप्त अग्रिम राशि को अपनी आय मान लेती है तो वह लेखांकन के वसूली अवधारणा का उल्लंघन करती है क्योंकि इस अवधारणा के अनुसार आगम तभी वसूल हुआ माना जाता है जब माल की बिक्री सम्पन्न हो जाय अथवा सेवा ठेकों की स्थिति में सेवा का निष्पादन पूरा हो जाय। जब माल की सुपुर्दगी कर दी जाती है या मॉल का स्वामित्व हस्तान्तरित हो जाता है, तब इसे बिक्री हुआ मानते हैं। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

14. किसी व्यवसाय की सम्पत्ति से आशय है-

  • (a) दायित्व पूँजी
  • (b) रोकड़ पूँजी
  • (c) दायित्व पूँजी 
  • (d) पूँजी आहरण

Ans: (c) लेखांकन की दोहरी अवधारणा के अनुसार एक व्यवसाय की सम्पतियों उसके पूँजी और दायित्वों के योग के बराबर होती है। अर्थात-

सम्पत्ति = पूँजी + दायित्व
या दायित्व = सम्पत्ति - पूँजी
पूँजी = सम्पत्ति - दायित्व

15. लेखांकन का वसूली सिद्धांत लागू नहीं होता है-

  • (a) दीर्घकालीन निर्माणी ठेका प्रसंविदाओं में
  • (b) रेल यातायात में
  • (c) खदान उद्योग में
  • (d) सेवा उद्योग में

Ans : (a) लेखांकन की वसूली अवधारणा के अनुसार लाभ तभी माना जाना चाहिए जब वास्तव में वस्तु या सेवा बिक जाये और वसूली का कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाय या वस्तु का स्वामित्व हस्तान्तरण हो जाय। लेखांकन की यह अवधारणा निम्नलिखित व्यवसायों के सम्बन्ध में लागू होती है-

  1. रेल यातायात में
  2. खदान उद्योग में
  3. सेवा उद्योग में
  4. विनिर्माणी उद्योग में

स्पष्ट है कि दीर्घकालीन निर्माणी ठेका प्रसंविदाओं में लेखांकन की वसूली अवधारणा लागू नहीं होती है।

16. लेखांकन समीकरण आधारित है-

  • (a) चालू व्यवसाय अवधारणा पर
  • (b) द्विपक्ष अवधारणा पर 
  • (c) मुद्रा मापन अवधारणा पर
  • (d) लागत अवधारण पर

Ans: (b) लेखांकन समीकरण द्विपक्षीय अवधारणा पर आधारित है। लेखांकन की इस अवधारणा के अनुसार व्यवसाय की सम्पूर्ण सम्पत्तियों उसके दायित्वों और पूँजी के योग के बराबर होती है। अर्थात्-

सम्पत्ति = पूँजी + दायित्व 
या, पूँजी = सम्पत्ति - दायित्व 
दायित्व = सम्पत्ति पूँजी

17. लेखांकन की स्वत्व अवधारणा लागू होती है-

  • (a) एकल स्वामित्व वाली संस्था पर
  • (b) साझेदारी फर्म पर
  • (c) संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल पर
  • (d) उपरोक्त सभी पर

Ans : (c) लेखांकन की स्वत्व अवधारणा संयुक्त स्कन्ध प्रमंडल पर लागू होती है। इस अवधारणा के अनुसार व्यापार और व्यापार के स्वामी पृथक-पृथक होते हैं। लेखांकन व्यवसायी या पूँजीदाता का न होकर व्यवसाय का होता है। अतः विकल्प (c) उत्तर है।

18. वह लेखांकन अवधारणा जहाँ व्यवसाय इसके स्वामी से अलग अस्तित्व रखता है-

  • (a) चलय सम्बन्ध अवधारणा
  • (b) द्वैआकृति अवधारणा
  • (c) व्यवसायिक अस्तित्व अवधारणा
  • (d) वसूली अवधारणा

Ans: (c) लेखांकन की पृथक व्यवसाय की अवधारणा (Seperate business entity) के अन्तर्गत व्यवसाय के अस्तित्व इसके स्वामी से पृथक माना जाता है। इसी के कारण ही व्यवसाय में पूँजी लगाने वाला स्वामी भी व्यवसाय में लेनदार की तरह होता है।

19. लेखांकन नियम, प्रविधियाँ तथा पद्धतियाँ एक समान अपनाई जानी चाहिए और उन्हें वर्ष प्रति वर्ष बदलना नहीं चाहिए। इसे निम्नलिखित लेखांकन प्रथा कहते हैं-

  • (a) Consistency/सुसंगति
  • (b) Full disclosure/सम्पूर्ण प्रकटीकरण
  • (c) Conservation/रूढ़िवादिता
  • (d) Going concern/चालू संस्था

Ans: (a) सुसंगति या एक रूपता की अवधारणा का आशय यह है कि लेखांकन की जिस पद्धति को एक बार चुन लिया जाता है, व्यवसायी को उसमें अधिक परिवर्तन नहीं करना चाहिए अन्यथा पिछले वित्तीय वर्षों से सही तुलनात्मक, अध्ययन नहीं किया जा सकेगा। 

20. आर्थिक चि‌ट्ठा में सांयोगिक दायित्व दर्शाने की आवश्यकता जिस परिपाटी के कारण पड़ती है, उसका नाम है-

  • (a) consistency/संगति 
  • (b) materiality/महत्त्वपूर्णता
  • (c) disclosure/प्रकटीकरण
  • (d) conservatism/संरक्षणता

Ans: (c) प्रकटीकरण परम्परा के अनुसार, "सूचनायें सही एवं उचित रूप से विधि सम्मत तरीके से प्रकट की जानी चाहिए।"

21. लेखांकन की स्वत्व अवधारणा लागू होती है-

  • (a) एकल स्वामित्व वाली संस्था पर
  • (b) साझेदारी फर्म पर
  • (c) संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल पर
  • (d) उपरोक्त में सभी पर

Ans: (c) लेखांकन की स्वत्व अवधारणा संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल पर लागू होती है। इस अवधारणा के अनुसार कम्पनी का अस्तित्व अपने सदस्यों से पृथक होता है, उनका कम्पनी के स्वत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

22. आर्थिक चिट्ठे में दिखाये गये सम्भाव्य दायित्व के उठने का कारण है लेखांकन परम्परा-

  • (a) सुसंगति की
  • (b) रूढ़िवादिता की
  • (c) प्रकटीकरण की
  • (d) उपरोक्त में से कोई नहीं

Ans: (c) आर्थिक चिट्ठे में संभाव्य दायित्व लेखांकन की पूर्ण प्रकटीकरण की प्रथा के तहत किया जाता है। ये प्रथा इस बात की व्याख्या करती है कि लेखांकन करते समय लेखाकार को समस्त विवरणों व मदों का जो व्यवसाय के लाभ-हानि अथवा आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डाल सकते हैं का शुद्ध एवं उचित प्रस्तुतीकरण करना चाहिए।

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