UP TGT PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 04 in Hindi medium

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

मेरे प्यारे साथियों UP TGT PGT परीक्षा प्रश्नों के नवीनतम परीक्षा पैटर्न और Trends को जानकर अपनी UP TGT PGT परीक्षा की तैयारी करें। UP TGT PGT की परीक्षा पास करने के लिए Praveen education blog आवश्यक तैयारी करने का सही ज्ञान प्रदान करता है और आपको भरपूर जानकारी भी देता है। UP TGT PGT प्रश्न बैंक में सभी UP TGT PGT COMMERCE परीक्षा प्रश्न हिंदी में हैं।

यहां पर UP TGT-PGT कॉमर्स 2024 की दैनिक प्रैक्टिस के लिए 20 प्रश्नों का सेट दिया गया है। ये प्रश्न विभिन्न कॉमर्स विषयों से संबंधित हैं, जैसे कि अकाउंटिंग, बिजनेस स्टडीज, इकोनॉमिक्स, और फाइनेंस।

UP TGT PGT परीक्षा 2024 के सभी विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा को अच्छे number से पास  करने के लिए नियमित रूप से UP TGT PGT अभ्यास सेट का अध्ययन तथा अभ्यास करें और किसी भी प्रकार की गलतियों से बचने के लिये और अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए उसके अनुरूप तैयारी करें। 

अतः सभी विद्यार्थियों से विनम्र अनुरोध है कि अभ्यास प्रश्नों उत्तरों का विवेकपूर्ण चयन के साथ अभ्यास करेंविश्लेषण करें और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है और आप खूब मेहनत और लगन के साथ अध्ययन करें और सफल हों।

UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 04 in Hindi medium

UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 04 in Hindi

1. एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान के उद्देश्यों में सम्मिलित नहीं है-

  • (a) सकल विनिवेश को अधिकतम करना
  • (b) लाभों को अधिकतम करना
  • (c) विक्रय को अधिकतम करना
  • (d) उत्तरजीविता

Ans : (a) एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान का निम्नलिखित उद्देश्य है-

  • लाभ कमाना
  • विक्रय को अधिकतम करना
  • उत्तरजीविता
  • ग्राहकों का सृजन करना
  • प्रतिष्ठा और सम्मान या ख्याति बढ़ाना

2. भारतीय लेखांकन मानक 10 का सम्बन्ध है-

  • (a) रहतिया के मूल्यांकन से
  • (b) सरकारी अनुदानों के लेखांकन से
  • (c) हास-लेखांकन से
  • (d) स्थिर सम्पत्तियों के लेखांकन से

Ans. (d): भारतीय चार्टर्ड लेखाकार संस्थान द्वारा निर्गमित AS-10 स्थायी सम्पत्तियों हेतु लेखांकन से सम्बन्धित है।

Also read-UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 03 in Hindi medium

3. लेखांकन प्रमाप-14 के अनुसार क्रय प्रतिफल भुगतान होता है, जो निम्नलिखित में से किसी एक को देय है-

  • (a) अंशधारी तथा ऋण-पत्रधारी
  • (b) ऋण-पत्रधारी तथा लेनदार
  • (c) अंशधारी तथा लेनदार
  • (d) अंशधारी

Ans. (d): लेखांकन मानक-14 (AS-14) के अनुसार क्रय प्रतिफल का भुगतान अंशधारी को होता है। इसके अन्तर्गत हस्तान्तरी कम्पनी (Transferee Company) द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी (Transferor Company) के अंशधारी को क्रय प्रतिफल का भुगतान किया जाता है।

4. लेखांकन प्रमाप-14 है-

  • (a) सम्मिश्रण हेतु लेखांकन
  • (b) सरकारी प्रान्ट हेतु लेखांकन
  • (c) विनियोग हेतु लेखांकन
  • (d) अदृश्य सम्पत्ति हेतु लेखांकन

Ans. (a): लेखांकन प्रमाप-14 एकीकरण/सम्मिश्रण के लिए लेखांकन से सम्बन्धित है। जबकि लेखांकन प्रमाप-12 सरकारी अनुदानों के लिए लेखांकन, लेखांकन प्रमाप-13 विनियोगों के लिए लेखांकन तथा लेखांकन प्रमाप 26 अमूर्त/अदृश्य सम्पत्तियों के लेखांकन से संबंधित है।

यह भी पढ़ें- UP TGT-PGT COMMERCE 2024 Daily Practice SET 05 in Hindi medium

5. लेखांकन की परिभाषा से उसके निम्नलिखित कार्य उभरते हैं-

  1. Classifying/वर्गीकरण
  2. Interpreting/निर्वचन
  3. Recording/लेखा करना
  4. Summarising/संक्षिप्तीकरण

इन कार्यों का सही अनुक्रम है-

  • (a) 3,1,4,2
  • (b) 3,1,2,4
  • (c) 4,1,3,2
  • (d) 1,4,3,2

Ans. (a): लेखांकन का आशय है वित्तीय स्वभाव के व्यापारिक सौदे का मौद्रिक रूप में लेखा करना। लेखांकन के क्रमशः चरण निम्नलिखित हैं-

  • लेखा करना
  • वर्गीकरण
  • संक्षिप्तीकरण
  • निर्वचन

6. लेखांकन मानक-6, जो ह्रास से सम्बन्धित है, का प्रयोग संस्तुत किया गया है, निम्न के लिये-

  • (a) किसी मान्य स्टॉक एक्सचेन्ज में सूचीबद्ध कम्पनियों के लिये
  • (b) निर्माण व्यवसाय में लगी हुई कम्पनियों के लिये
  • (c) निर्माणी तथा व्यापारिक व्यवसायों में लगी हुई कम्पनियों के लिये
  • (d) सभी प्रकार के व्यवसायिक उपक्रमों के लिये

Ans. (a): भारतीय चार्टर्ड लेखाकार संस्थान द्वारा निर्गमित लेखांकन मापदण्ड के AS-6 के अर्न्तगत ह्रास लेखांकन का वर्णन है। यह मानक किसी मान्य स्टाक एक्सचेन्ज में सूचीबद्ध कम्पनियों के लिए है।

7. लेखांकन का मुख्य उद्देश्य निम्न की जानकारी से है-

  • (a) व्यापार के लाभ-हानि तथा संपत्तियों और दायित्वों को ज्ञात करना
  • (b) माल के रहतिये की स्थिति ज्ञात करना
  • (c) नकद की स्थिति ज्ञात करना
  • (d) कर्मचारियों की गलतियों तथा कपटों को ज्ञात करना

Ans. (a): लेखांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-

  1. व्यापार के लाभ-हानि तथा सम्पत्तियों एवं दायित्वों को ज्ञात करना।
  2. मौद्रिक लेन-देनों के लेखन, वर्गीकरण एवं संक्षिप्तीकरण की प्रक्रिया है।
  3. प्रबन्धकों को नीति निर्धारण में सहयोग प्रदान करता है।
  4. यह ज्ञात करना कि व्यापार प्रगति पर है या अवनति पर।

8. व्यवसाय की पूँजी है-

  • (a) Cash/नकद
  • (b) An asset/एक सम्पत्ति
  • (c) A Liability/एक दायित्व
  • (d) उपरोक्त में से कोई नहीं 

Ans. (c): जो पूँजी व्यवसाय में लगायी जाती है, वह व्यवसाय का एक दायित्व है, क्योंकि लेखांकन की पृथक अस्तित्व अवधारणा के आधार पर मालिक भी व्यापार के लिए एक बाहरी व्यक्ति होता है। अतः उसके द्वारा लगायी गयी पूँजी, व्यापार का एक दायित्व है।

9. पूर्वदत्त किराया से संबंधित है।

  • (a) नाम का लेखा
  • (b) व्यक्तिगत लेखा
  • (c) मूर्त वास्तविक लेखा
  • (d) अमूर्त वास्तविक लेखा
  • (e) प्रतिनिधिक व्यक्तिगत लेखा

Ans. (e): पूर्वदत्त किराया प्रतिनिधि व्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित है। खातों को सामान्यतः 3 भागों में बाँटा जाता है।

  1. व्यक्तिगत खाता
  2. वास्ततिक खाता
  3. नाममात्र खाता

पुनः व्यक्तिगत खातों को (3) तथा वास्तविक खातों को दो प्रकार में बाँटा जाता है।

व्यक्तिगत खाता-

  1. प्राकृतिक व्यक्तिगत खाता राम, श्याम, मोहन खाता आदि
  2. अप्राकृतिक व्यक्तिगत खाता YCT Ltd. BHU etc.
  3. प्रतिनिधि व्यक्तिगत खाता वास्तविक खाता- पूर्वदत्त एवं अदत्त आय व्यय खाता

वास्ततिक खाता-

  1. मूर्त वास्तविक खाता
  2. अमूर्त वास्तविक खाता

10. अर्जित किन्तु अप्राप्त आय मानी जाती है-

  • (a) Assets/संपत्ति
  • (b) Liability/दायित्व
  • (c) Loss/हानि
  • (d) Capital/पूँजी

Ans. (a): अर्जित किन्तु अप्राप्त आय सम्पत्ति मानी जाती है, और उसे आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष की ओर दर्शाते है तथा लाभ- हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखते है।

और अन्तिम खाते बनाने की तिथि तक व्यवसायी को जो आय प्राप्त नहीं होती है, यद्यपि वह कमायी जा चुकी है, तो ऐसी आय में उपार्जित आय कहा जाता है।

11. भविष्य में माल की आपूर्ति के लिये किसी ग्राहक से प्राप्त अग्रिम धनराशि है एक,

  • (a) Income/आय
  • (b) Expense/व्यय
  • (c) Current Liability/चालू दायित्व
  • (d) Current Asset/चालू सम्पत्ति

Ans. (c): भविष्य में माल की आपूर्ति के लिए किसी ग्राहक से प्राप्त अग्रिम धनराशि चालू दायित्व कहलाता है। चालू दायित्व के अन्तर्गत निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-

i. लेनदार (Creditors) 

ii. देय विपत्र (Bills Payable)

iii. करों के लिए दायित्व (Liability of For taxes)

iv. अदत्त व्यय (Outstanding expences)

v. बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdrafts)

vi. प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend)

12. लेखांकन विवरणों में संयोगिक दायित्वों के संबंध में नोट्स जोड़ने का अभ्यास इसके अनुपालन में है-

  • (a) स्थिरता की प्रथा
  • (b) मुद्रा अवधारणा मापन
  • (c) रूढ़िवादी की परिपाटी 
  • (d) प्रकटीकरण की परिपाटी

Ans. (d): लेखांकन के प्रकटीकरण की अवधारणा (Convention of disclosure) के अन्तर्गत लेखांकन विवरणों में संयोगिक दायित्वों के सम्बन्ध में नोट्स जोड़ने का अभ्यास इसके अनुपालन में होता है। जहाँ पूर्ण प्रकट की प्रथा को नहीं अपनाया जाता वहाँ लेखांकन रखने का उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाता है, क्योंकि इस प्रथा के अन्तर्गत लेखपाल किसी भी तथ्य को नहीं छिपाता है। वस्तुतः पूर्ण प्रकटीकरण की लेखांकन का प्रमुख आधार है। इस प्रथा के अनुसार तथ्यों को सही रूप में और पूर्ण रूप में दिखाया जाना चाहिए 

13. रूढ़िवादिता की परिपाटी लागू होती है-

  • (a) लेनदारों पर छूट प्रदान करने में
  • (b) अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋण के प्रावधान में
  • (c) वित्तीय स्थिरता के लिये संचय बनाने में
  • (d) इनमें से कोई नहीं

Ans. (b): रुढ़िवादिता की परिपाटी (Convention of Conservation) अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋण के प्रावधान में लागू होती है। रूढ़िवादी प्रथाओं का आशय उन प्रथाओं से है, जिसके अन्तर्गत भविष्य में होने वाली हानियों को सम्मिलित किया जाता है, किन्तु लाभ को नहीं, जैसे अन्तिम रहतिए का मूल्यांकन लागत मूल्य अथवा बाजार मूल्य दोनों में से जो कम हो, पर किया जाता है। अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान करना, सम्पत्तियों को ह्रासित मूल्य पर लेखा करना आदि, पर यहाँ लेनदारों की कटौती के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है, क्योंकि ऐसा करना लाभ को उत्पन्न करता है।

14. 'चालू व्यवसाय की अवधारणा' का आधार है-

  • (a) स्थायी सम्पत्तियों के प्रयोज्य जीवन काल पर हास लगाने का
  • (b) सहायक कम्पनियों के लेखों की उनकी मूल कम्पनियों के लेखों में समेकित करने का 
  • (c) प्रतिभूतियो बाजार मूल्य को प्रकट करने का
  • (d) आय विवरण में विक्रय एवं परिचालन सूचनाओं को प्रदर्शित करने का 

Ans. (a): "चालू व्यवसाय की अवधारणा" (Going Concern Concepts) स्थायी सम्पत्तियों के प्रयोज्य जीवन काल पर ह्रास लगाने का आधार है। लेखापालक की यह अवधारणा होनी चाहिए कि व्यवसाय चलता रहेगा और बन्द नहीं होगा। इसी अवधारणा के आधार पर लेखे किए जाने चाहिए। यह कारण है कि जब वर्ष समाप्त होता है और अन्तिम खाते बनाए जाते है, तब अदत्त व्ययों एवं पूर्वदत्त व्ययों का भी लेखा किया जाता है क्योंकि लेखापालक यह जानता है कि व्यवसाय भविष्य में चालू रहेगा और ये समायोजनाएं आगे वाली अवधि में समायोजित हो जायेंगी।

15. द्वि पहलू अवधारणा के आधार पर लेनदेन को अभिलेखित करने की प्रणाली को कहते है-

  • (a) दोहरा खाता प्रणाली
  • (b) दोहरा लेखा प्रणाली
  • (c) एकल लखा
  • (d) इनमें से कोई नहीं

Ans. (b): द्वि-पहलू अवधारणा (dual aspect concepts) के आधार पर लेन-देन को अभिलेखित करने की प्रणाली को दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) कहते है। इस प्रणाली का प्रतिपादन इटली के बेनिस शहर के ल्यूक्स पेंसीयोली ने किया था। इस प्रणाली के अन्तर्गत लेन के दोनों रुपो का लेखा किया जाता है। प्रत्येक व्यवहार के दोनों रुपों को डेबिट व क्रेडिट किया जाता है। जबकि इकहरा लेखा प्रणाली पद्धति में नकद लेन-देनों को रोकड़ पुस्तक में तथा उधार लेनदेनों को खाता-बही में लिखा जाता है, यह प्रणाली मुख्यतः छोटे व फुटकर व्यापारियों द्वारा प्रयोग की जाती है। इस प्रणाली के अपूर्ण व अवैज्ञानिक प्रणाली माना जाता है।

16.  मुद्रा मापन अवधारणा के अनुसार निम्नलिखित में से किसे व्यवसाय की लेखा पुस्तकों में अभिलेखित किया जाएगा-

  • (a) कंपनी के प्रबंध निर्देशक का स्वास्थ्य
  • (b) कंपनी के माल की गुणवत्ता
  • (c) संयन्त्र और मशीनरी का मूल्य
  • (d) इनमें से कोई नहीं

Ans. (c): मुद्रा मापन अवधारणा (Mony Measurement Concepts) के अनुसार सयन्त्र एवं मशीनरी के मूल्य को व्यावसाय की लेखा-पुस्तको में अभिलेखित किया जाएगा।

इस अवधारणा के अनुसार लेखांकन में केवल उन्ही तथ्यों, घटनाओं, एवं लेन-देनों का लेखा किया जाता है, जिन्हे केवल निश्चित रूप से लेखा किया जाता है, जिन्हे केवल निश्चित रूप से मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है। यह अवधारणा लेखांकन के क्षेत्र में सीमित करती है परन्तु लेखांकन को वस्तुनिष्ठता प्रदान करती है।

17. निम्नलिखित में से कौन-सी एक लिपिकीय त्रुटि नहीं है?

  • (a) चूक की त्रुटि
  • (b) करण त्रुटि
  • (c) सिद्धांत की त्रुटि
  • (d) क्षतिपूरक त्रुटि

Ans. (c): सिद्धान्त की त्रुटि (Errors of Principles) लिपिकीय त्रुटि की श्रेणी में शामिल नहीं होती है। यह लेखांकन के नियमों एवं सिद्धांतों का पालन न करने के कारण होती है जबकि अन्य मानवीय सभी मानवीय गलतियाँ हैं जो लेखांकन करते समय होती हैं। 

18. पुस्तपालन का मुख्य उद्देश्य है-

  • (a) लाभ अथवा हानि ज्ञात करना
  • (b) व्यवसायिक लेनदेनों के सही एवं पूर्ण अभिलेख रखना
  • (c) सम्पत्तियों एवं दायित्व की सही स्थिति दर्शाना
  • (d) व्यवसायिक लेनदेनों की शुद्धता का परीक्षण करना

Ans. (b): पुस्तपालन का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक लेन-देनों के सही एवं पूर्ण अभिलेखों को रखना होना है। पुस्तपालन के अन्तर्गत जर्नल में लेखा करना, इसकी पोस्टिंग खाता बही करना, इसके में योग मालूम करना और बाकियों को निकालना आदि आते है।

Note- एकाकी व्यापार एवं साझेदारी संस्था द्वारा पुस्तपालन एवं लेखाकर्म रखना भारत में 'अनिवार्य नहीं' है।

19.पुस्तपालन का मुख्य कार्य है-

  • (a) लेनदेनों के अभिलेखन की प्रणाली तैयार करना
  • (b) लेखाकार को जिम्मेदारी सौंपना
  • (c) वित्तीय समंकों का अभिलेखन करना
  • (d) अभिलेखित समंकों का वर्गीकरण करना

Ans. (c): पुस्तपालन (Book-Keeping) का कार्य व्यापारिक लेन-देनों को नियमानुसार क्रमबद्ध रूप से प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में लिखना तथा उनका सम्बन्धित खातों में वर्गीकरण करना होता है। इसके अन्तर्गत आने वाले कार्य है-

i. जर्नल तथा अन्य सहायक बहियों में लेखा करना।

ii. खाता-बही में खतौनी करना।

iii. खातों का शेष निकालना

अतः स्पष्ट है कि पुस्तपालन का मुख्य कार्य वित्तीय संमकों का अभिलेखन करना होता है।

20. लेखांकन की वह अवधारणा किसके आधार पर लाभ और हानि खाता तैयार किया जाता है, कहलाती है-

  • (a) Cost/लागत
  • (b) Realisation/वसूली 
  • (c) Matching/मिलान
  • (d) Disclosure/प्रकटन

Ans. (c): लेखांकन की वह अवधारणा जिसके आधार लाभ और हानि खाता तैयार किया जाता है, मिलान अवधारणा (Matching) कहलाती है। इसको आगम-व्यय मिलान अवधारणा के नाम से भी जानते हैं। व्यावसाय के शुद्ध लाभों के निर्धारण के लिए यह अवधारणा बहुत महत्वपूर्ण है। इस सिद्धान्त के अनुसार, शुद्ध लाभ के निर्धारण के लिए जिस अवधि में आगम की प्राप्ति हुई है, उस अवधि के व्ययों की भी गणना करनी होती है। दूसरे शब्दों में लागत के आगम से मिलान के लिए पहले आगम निर्धारित करने चाहिए और फिर आगम की प्राप्ति हेतु जो खर्च किए गए है, उसका निर्धारण होना चाहिए।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Post a Comment

Previous Post Next Post