भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण (Causes of Quit India Movement)
1. क्रिप्स योजना की असफलता
भारत की संवैधानिक तथा स्वतंत्रता की समस्या को सुलझाने के लिए मार्च 1942 के क्रिप्स प्रस्तावों में विभिन्न रुचियों को सन्तुष्ट करने वाले विभिन्न प्रस्ताव थे, लेकिन क्रिप्स के सुझाव अपर्याप्त थे तथा इसमें अनेक दोष थे। इसलिए अन्त में इन्हें सभी दलों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया। क्रिप्स प्रस्ताव की असफलता और क्रिप्स का एकाएक भारत छोड़ जाना अचानक बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ, इससे भारतीयों में निराशा और हतोत्साह की लहर फैल गई।
2. युद्ध की भयंकरता, शरणार्थियों के प्रति कठोर व्यवहार
इधर भारत पर जापान के आक्रमण का भय लगातार बढ़ रहा था। बर्मा से जो भारतीय शरणार्थी आ रहे थे, वे दुःख भरी कहानियाँ सुनाते थे। अंग्रेजों को बर्मा से बचाने और निकालने के तो महान् प्रयत्न किए गए, लेकिन भारतीयों के साथ अत्यन्त अपमानजनक व्यवहार किया गया। महात्मा गाँधी ने कहा, "भारतीय व यूरोपीय शरणार्थियों के प्रति व्यवहार में जो भेदभाव किया जा रहा है और सेनाओं की जो खराब व्यवस्था है, उससे अंग्रेजों के इरादों व घोषणाओं के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है।"
3. बंगाल में आतंक का राज्य
पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का साम्राज्य था। वस्तुओं के मूल्य बढ़ते जा रहे थे, मुद्रा पर से विश्वास हटता ही जा रहा था। गाँधी जी को भी यह विश्वास हो गया था कि अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ हैं। यह सोचा जा रहा था कि अंग्रेजों का भारत में रहना जापानी आक्रमण का बढ़ावा देना है। यदि अंग्रेज चले जायें तो शायद जापान आक्रमण न करे, इसलिए गाँधी जी ने अंग्रेजों को भारत से निकल जाने के लिए कहा।
4. शोचनीय आर्थिक स्थिति
युद्ध के कारण आर्थिक स्थिति बहुत खराब होती जा रही थी। वस्तुओं के मूल्य बढ़ते जा रहे थे और जनता को अत्यधिक परेशानी हो रही थी। मध्यम वर्ग की स्थिति विशेष रूप से शोचनीय थी।
5. जापानी आक्रमण का भय तथा ब्रिटिश रक्षा-व्यवस्था असन्तोषजनक
भारतीयों को यह विश्वास हो गया था कि ब्रिटेनवासी भारत की रक्षा करने में असमर्थ हैं। जापान ने सिंगापुर, मलाया तथा बर्मा पर विजय प्राप्त कर ली थी और भारत पर उसके आक्रमण का भय प्रतिक्षण रहता था। ऐसी स्थिति में भारतीय यह सोचते थे कि यदि अंग्रेज भारत छोड़कर चले जायें तो शायद जापान भारत पर आक्रमण न करे। गाँधी जी ने 'हरिजन' में लिखा था कि "भारत के लिए उसके परिणाम कुछ भी क्यों न हों, भारत और ब्रिटेन की वास्तविक सुरक्षा समय रहते इंग्लैण्ड के भारत छोड़ देने में ही है।"
वर्धा प्रस्ताव (जुलाई 1942) [Vardha Proposal (July, 1942)]
अप्रैल 1942 में इलाहाबाद (प्रयागराज) में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी की बैठक हुई थी, उससे यह निश्चित किया गया कि काँग्रेस किसी ऐसी स्थिति को किसी भी दशा में स्वीकार करने को तैयार नहीं हो सकती, जिसमें भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के दास के रूप में कार्य करना पड़े। जुलाई 1942 को काँग्रेस कार्य समिति की वर्धा में जो बैठक हुई उसमें गाँधी जी के इन विचारों का समर्थन किया गया कि भारतीय समस्या का हल अंग्रेजों के भारत छोड़ देने में ही है।
वर्धा प्रस्ताव के उपरान्त काँग्रेस में यह भावना जागृत हुई कि काँग्रेस की ओर से शीघ्र ही जन-आन्दोलन की घोषणा की जायेगी, किन्तु काँग्रेस ने जन-आन्दोलन की घोषणा के पहले आवश्यक तैयारी कर लेना उपयोगी समझा। काँग्रेस नेता जनजागृति को और अधिक प्रबल बनाने के प्रयत्नों में लंग गए। अगस्त 1942 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में तिलक दिवस मनाया गया। इस अवसर पर पं. नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि "हम आग के साथ खेलने जा रहे हैं। हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं जिसकी चोट उल्टी हमारे ऊपर भी पड़ सकती है, लेकिन हम क्या करें ? विवश है।" इसी समय बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने कहा- "हमको इस बार गोली खाने और तोप का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।" सरदार पटेल ने मुम्बई में कहा- "इस बार का आन्दोलन थोड़े दिनों का, किन्तु बड़ा भयानक होगा।"
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भारत छोड़ो प्रस्ताव (Quit India Proposal)
वर्धा प्रस्ताव के निश्चय के अनुसार 7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। न केवल भारत वरन् सम्पूर्ण संसार की निगाहें इस अधिवेशन पर लगी हुई थीं। भविष्य के इतिहास तथा घटनाओं ने इस अधिवेशन को ऐतिहासिक अधिवेशन की संज्ञा प्रदान की। इसी समिति ने पर्याप्त विचार-विमर्श के उपरान्त भारत छोड़ो आन्दोलन पास किया जिसमें कहा गया था- "यह समिति काँग्रेस कार्यकारिणी समिति के 14 जुलाई, 1942 के प्रस्ताव का समर्थन करती है तथा उसका यह विश्वास है कि बाद की घटनाओं ने इसे और भी अधिक औचित्य प्रदान किया है और इस बात को स्पष्ट कर दिखाया है कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल ही अन्त भारत के लिए और मित्र राष्ट्रों के आदेशों की पूर्ति के लिए अति आवश्यक है। इसी के ऊपर युद्ध का भविष्य और स्वतन्त्रता तथा प्रजातन्त्र की सफलता निर्भर है।"
चूँकि काँग्रेस इस तथ्य से परिचित थी कि अंग्रेज भारत छोड़कर आसानी से नहीं जायेंगे। अतः एक जन-आन्दोलन का निश्चय किया गया, लेकिन आन्दोलन की तिथि की घोषणा नहीं की गई थी, क्योंकि गाँधीजी आन्दोलन छेड़ने से पूर्व सरकार से अन्तिम बार बात कर लेना चाहते थे। गाँधीजी ने इस समय काँग्रेस कार्य समिति के सम्मुख 70 मिनट तक भाषण दिया। पट्टाभिसीतारमैया के शब्दों में- "वास्तव में गाँधी जी उस दिन एक अवतार और पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे।" अपने इस दिव्य भाषण में गाँधी जी ने भारतवासियों को 'करो या मरो' का इतिहास विख्यात संदेश दिया। 8 अगस्त, 1942 को रात्रि साढ़े दस बजे भारत छोड़ो ओन्दोलन का प्रस्ताव पास हुआ।
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भारत छोड़ो प्रस्ताव की मुख्य बातें
- भारत को तुरन्त स्वतन्त्र करना चाहिए।
- प्रस्ताव व में यह माँग की गई थी कि ब्रिटिश सरकार भारत को शीघ्र छोड़ दे।
- देश के सम्मुख दलों तथा समूहों को सहयोग प्राप्त करने वाली एक अस्थाई सरकार की स्थापना की जाए और स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी जाए।
- भारत का संविधान संघात्मक होगा जिसमें इकाइयों को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जायेगी।
- अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित किया जाए।
- यदि प्रस्तावों की माँगों की उपेक्षा की गई तो काँग्रेस गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आन्दोलन आरम्भ करेगी।
प्रस्ताव पर सरकार का दृष्टिकोण 8 अगस्त, 1942 के काँग्रेस द्वारा स्वीकृत यह प्रस्ताव कोई धमकी या आन्दोलन की तुरन्त शुरूआत नहीं था। गाँधीजी ने कहा था कि आन्दोलन प्रारम्भ करने से पूर्व वे एक बार वायसराय महोदय से भारत छोड़ो प्रस्ताव पर बातचीत करेंगे, परन्तु सरकार ने गाँधीजी को इस प्रकार की बातचीत का अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त, 1942 को प्रातः ही गाँधीजी और कार्य समिति के सब सदस्य मुम्बई में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। काँग्रेस को अवैध संस्था घोषित कर दिया गया। काँग्रेस के दफ्तरों को पुलिस ने अपने अधिकार में कर लिया। इन सब बातों से जनता में क्रोध और आक्रोश उमड़ पड़ा।
भारत छोड़ो आन्दोलन का कार्यक्रम (Program of Quit India Movement)
कर्णधारों के गिरफ्तार हो जाने से जनता निर्देशहीन होकर अससंजस में पड़ गयी। जनता के सामने कोई निर्देश या कार्यक्रम नहीं था। गाँधी जी के केवल कुछ प्रस्ताव थे- "मेरे जीवन का यह अन्तिम संघर्ष होगा", 'करो या मरो', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो'। ऐसी दशा में काँग्रेस के शेष नेताओं की ओर से 12 सूत्री कार्यक्रम प्रकाशित कर दिया गया, जिसकी प्रतिलिपियों को सरकार ने जब्त करने की कोशिश की। इस 12 सूत्री कार्यक्रम में सारे देश में हड़ताल करने, सार्वजनिक सभाएँ करने, नमक बनाने और लगान न देने के लिए कहा गया था। आगे चलकर सरकारी कर्मचारियों से भी हड़ताल करने को कहा गया, अहिंसात्मक आन्दोलन पर बल दिया गया था तथा तोड़-फोड़ आदि की कोई बात नहीं थी।
भारत छोड़ो आन्दोलन के कार्यक्रम की मुख्य बातें
- करो या मरो का नारा लगाया गया।
- 12 सूत्री कार्यक्रम बनाया गया जिसमें सार्वजनिक सभाएँ करने, नमक बनाने तथा कर न देने पर विशेष बल दिया गया।
- पुलिस थानों, तहसीलों को अहिंसात्मक तरीकों से अकर्मण्य बनाने पर बल दिया गया।
- आवागमन के साधनों को हानि पहुँचाने की मनाही की गई।
- कार्यालयों, बैंकों तथा अनाज के भण्डारों को लूटना अहिंसात्मक नहीं माना गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन का विकास (Development of Quit India Movement)
भारत छोड़ो आन्दोलन तीव्र गति से आगे बढ़ा जिसका विकास-क्रम चार सोपानों में विभक्त करके देखा जा सकता है-
(अ) प्रथम सोपान
गाँधीजी की 9 अगस्त, 1942 की गिरफ्तारी से लेकर यह आन्दोलन तीन-चार दिन तक चला। सारे देश में हड़ताल, प्रदार्शन, जलसे और जुलूस निकाले गये। मजदूरों की हड़तालें बड़ी दृढ़ता से की गईं। सरकार ने दमन और अत्याचार किए। मुम्बई में 2 दिन के अन्दर पुलिस ने 17 बार गोलियाँ चलाईं। अनेक पुरुष, औरतें और बच्चे मारे गए। इससे देश में विद्रोह की आग भड़की और आन्दोलन का दूसरा हिंसात्मक पक्ष शुरू हो गया।
(ब) द्वितीय सोपान
जनता ने सरकारी भवनों, दफ्तरों और सम्पत्ति पर धावे बोल दिये। स्टेशन, कारखाने, थाने जला दिये गए। रेलों और तारों की लाइने काट दी गयीं। कहीं-कहीं जनता ने प्रशासन अपने हाथ में ले लिया, जैसे- उत्तर प्रदेश के बलिया आदि पूर्वी जिलों में। सरकार ने सेना और पुलिस की मदद से दमन किया। बिहार के कुछ गाँवों में मशीनगनों से लोगों को भून डाला गया।
(स) तृतीय सोपान
सितम्बर 1942 से आन्दोलन का तीसरा चरण प्रारम्भ हुआ। सेना और पुलिस की कार्यवाहियों से उत्तेजित जनता ने भी सशस्त्र आक्रमण किये। जनता ने सरकारी सम्पत्ति, संचार साधनों व अफसरों पर बम वर्षा की और घातक प्रहार किये। यह क्रम फरवरी 1943 तक चलता रहा।
(द) चतुर्थ सोपान
अब इस समय आन्दोलन की गति बहुत धीमी हो गई। सरकार का भयंकर अत्याचार और दमन-चक्र चल रहा था। अपनी इस चौथी अवस्था में आन्दोलनकारियों ने स्वतंत्रता दिवस और तिलक दिवस मनाये।
भारत छोड़ो आन्दोलन और मुस्लिम लीग (Quit India Movement and Muslim League)
भारत छोड़ो आन्दोलन एक असाधारण आन्दोलन था, जिसमें विद्यार्थियों, किसानों और श्रमिकों ने महत्वपूर्ण भाग लिया। यह भारत की आजादी की अन्तिम लड़ाई थी। इसमें सेना को 6 बार मशीनगनें चलानी पड़ीं, 538 बार गोली चलाई गई, सरकारी तौर पर 950 व्यक्ति मारे गये, लेकिन गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार संख्या 10,000 तक थी। 60,229 व्यक्तियों को जेलों में डाला गया। 200 रेलवे स्टेशन नष्ट कर दिए गए। 550 डाकघरों पर हमले किए गए। 50 डाकघरों को जला दिया गया। 3,500 स्थानों पर तार व टेलीफोन लाइनें काटी गईं। 79 थाने व 85 सरकारी भवन जला दिए गए।
इस आन्दोलन का ध्येय भारत की स्वतन्त्रता की प्राप्ति था। इससे जनता में जागृति आई, विदेशी शासन से लोहा लेने का भाव पैदा हुआ और भारत की स्वतन्त्रता की पृष्ठभूमि तैयार हुई। लेकिन मुस्लिम लीग ने इसमें सहयोग नहीं दिया था इसलिए अंग्रेज तथा लीग और अधिक पास आ गए। जिन्ना ने मुसलमानों से सरकार की सब प्रकार की मदद करने के लिए कहा। अंग्रेजों ने इस समय ऐसी मदद को बहुत मूल्यवान समझा। और जब उन्हें भारत आजाद करना पड़ा तब जिन्ना को पाकिस्तान इनाम के रूप में दे दिया गया। इस आन्दोलन का प्रभाव विदेशों में भी पड़ा। भारत को आजाद करने का लोकमत और भी अधिक तेज हो गया। चीन और अमेरिका ने स्पष्ट घोषित किया अब श्रेष्ठ नीति भारत को तुरन्त स्वतन्त्रता प्रदान कर देना है।
भारत छोड़ो आन्दोलन का सरकार द्वारा दमन (Daman by Government of Quit India Movement)
काँग्रेस के नेतृत्व में जनता ने तन-मन-धन से अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए इस 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भाग लिया। मुस्लिम लीग, साम्यवादी दल, उदारवादी, एंग्लो-इण्डियन तथा अकाल पार्टी ने इस आन्दोलन का विरोध किया, लेकिन काँग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था थी, इसलिए इसका विरोध होते हुए भी देश के कौने-कौने में आन्दोलन भड़क उठा था। यह सरकार के विरुद्ध एक खुला विद्रोह था। जनता ने जमकर सरकार के भयंकर दमन चक्र और अमानवीय दुष्कर्मों का सामना किया। अहिंसात्मक आन्दोलन में हिंसा भी शामिल हो गई। गाँधी जी तथा काँग्रेस हिंसा के सम्बन्ध में अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहते थे, लेकिन सरकार ने उन्हें अवसर नहीं दिया। गाँधी जी को 21 दिन का अनशन करना पड़ा जिसमें उनकी रक्षा ईश्वर ने की, लेकिन सरकार का व्यवहार यथावत् रहा। इस निष्ठुर दृष्टिकोण के विरोध में वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य मोदी, नलिनी, रंजन और अणे ने त्याग-पत्र दे दिये। इतना सब कुछ होने पर भी यह आन्दोलन सफल न हो सका और सरकार ने इसका भीषण निर्ममता से दमन कर दिया। चर्चिल ने कॉमन सभा में कहा, "आन्दोलन को शासन की समस्त शक्ति से कुचल दिया गया।" आन्दोलन के दमन के सम्बन्ध में जवाहरलाल नेहरू ने कहा, "सभी परम्पराएँ व छल-कपट जो शासन के कार्यों को ढके रहते हैं, दूर कर दिए गये व नग्न शक्ति सत्ता की प्रतीक बन गयी।"
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण (Causes of Unsuccessful. of Quit India Movement)
1. संगठन शक्ति का अभाव
भारत छोड़ो आन्दोलन एक जन-आन्दोलन था जिसके लिए एक संगठित शक्ति की आवश्यकता थी। लेकिन जब अचानक सब नेता गिरफ्तार कर लिये गये तब किसी को पता नहीं था कि अब क्या करना है। आन्दोलन अचानक नेतृत्वविहीन हो गया, जनता की समस्त शक्तियाँ बिखर गईं। हिंसा के विचार पर दृष्टिकोण का मतभेद बना रहा। इससे सरकार के विरुद्ध संगठित मोर्चा नहीं बन सका।
2. नेताओं में मत भिन्नता
प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने पर शेष लोग यह निर्णय न कर सके कि कौन-सी कार्यवाही हिंसात्मक है और कौन-सी अहिंसात्मक। इस मतभेद के कारण और वैचारिक विभिन्नता ने आन्दोलन को शिथिल कर दिया।
3. साधनों का अभाव
आन्दोलनकारियों के पास साधनों का अभाव था। सरकार के पास गोला, बारूद, बन्दूक व अन्य साधन थे, साथ में पुलिस और सेना भी थी। इसी कारण आन्दोलकर्ता सभी कार्य छिपकर कर रहे थे।
4. दमन में शीघ्रता
आन्दोलन का दमन करने में सरकार ने शीघ्रता की। सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और दमन चक्र द्वारा देश में आतंक फैला दिया गया।
5. अन्य दलों द्वारा असहयोग
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता का प्रमुख कारण था, अन्य दलों द्वारा असहयोग। साम्यवादी दल, मुस्लिम लीग, एंग्लो-इण्डियन, अकाली पार्टी आदि दलों ने इसका बहिष्कार किया। अतः यह आन्दोलन सफल न हो सका। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने आन्दोलन को 'अनुत्तरदायी व पागलपूर्ण कार्य बताया'।
6. सरकारी सेवाओं की वफादारी
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता का प्रमुख कारण यह था कि देश में सेना, पुलिस, देशी राजाओं तथा जमीदारों ने सरकार का साथ दिया और आन्दोलन में भाग नहीं लिया।
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व (Importance of Quit India Movement)
1. जन-जागृति उत्पन्न की
यद्यपि भारत छोड़ो आन्दोलन अपने मूल लक्ष्य भारत से ब्रिटिश शासन की समाप्ति को तात्कालिक रूप में प्राप्त नहीं कर सका, लेकिन इस आन्दोलन ने भारत की जनता में एक ऐसी अभूतपूर्व जागृति उत्पन्न कर दी जिसके कारण ब्रिटेन के लिए भारत पर और अधिक लम्बे समय तक शासन कर सकना सम्भव नहीं रहा।
ए. सी. बनर्जी के शब्दों में-"इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अधिराज्य की पुरानी माँग सर्वथा समाप्त हो गई और इसका स्थान पूर्ण स्वराज्य की माँग ने ले लिया।"
इस सम्बन्ध में डॉ. ईश्वरी प्रसाद का वक्तव्य उल्लेखनीय है- "अगस्त क्रान्ति अत्याचार और दमन के विरुद्ध भारतीय जनता का विद्रोह था और इसकी तुलना फ्रांस के इतिहास में बास्तील के पतन या सोवियत रूस की अक्टूबर क्रान्ति से की जा सकती है। यह क्रान्ति जनता में उत्पन्न नवीन उत्साह तथा गरिमा की सूचक थी।"
2. जल सेना का विद्रोह
इसी आन्दोलन के परिणामस्वरूप 1946 ई. में जल सेना का विद्रोह हुआ।
3. ब्रिटिश सरकार और मुस्लिम लीग की समीपता
इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार और मुस्लिम लीग दोनों एक-दूसरे के समीप आ गये।
4. अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव
इस आन्दोलन से विदेशों में भारत के पक्ष में जनमत प्रबल हुआ। च्यांग काई शेक के अनुसार, "अंग्रेजों के लिए सबसे श्रेष्ठ नीति यह है कि वे भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता, दे दें।"