भंडारण क्या है- अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, उद्देश्य, महत्व, कार्य, लाभ तथा भण्डारगृहों के प्रकार

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भंडारण का अर्थ एवं परिभाषा 

वह स्थान जहाँ वस्तुओं का संग्रहण (Store) करके रखा जाता है, भण्डार कहलाता है। उत्पादन को अनवरत बनाये रखने एवं उससे सम्बद्ध विभिन्न परिचालकों को उनकी गति से कार्य करने की स्थिति में बनाये रखने एवं ग्राहकों के आदेशों की तुरन्त पूर्ति करने के लिए यह आवश्यक है कि सामग्री का संग्रहण किया जाये। भण्डारण स्टोरेज से अधिक व्यापक अर्थीय शब्द है। भण्डारगृहों द्वारा ऐसे भी अनेक कार्यों का निष्पादन किया जाता है जो सामान्यतः थोक व्यापारियों द्वारा निष्पादित किये जाते हैं, जैसे- माल को टुकड़ों में बाँटना, फुटकर व्यापारियों को थोड़ी मात्रा में माल भेजना, फुटकर व्यापारियों की ओर से माल को रखना, बाजार सूचनाएं उपलब्ध कराना एवं निर्माताओं को अन्य व्यापारिक सेवाएँ देना। सभी प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले भण्डारगृह को वितरण केन्द्र भी कहा जा सकता है।

भंडारण क्या है- अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, उद्देश्य, महत्व, कार्य, लाभ तथा भण्डारगृहों के प्रकार
भंडारण फोटो 
भण्डारण द्वारा समय उपयोगिता का सृजन होता है और इससे वस्तु के मूल्यों को स्थिर रखा जा सकता है। बाजार में माँग में परिवर्तन के अनुसार माल की पूर्ति को नियमित किया जा सकता है। इससे मूल्यों में उतार-चढ़ाव नहीं होने पाते। एक व्यवसायी स्वयं के अपने भण्डारगृह स्थापित कर सकता है अथवा आवश्यक शुल्क देकर सार्वजनिक भण्डारगृहों की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है।

एलफोर्ड के अनुसार- "भण्डारण विभिन्न प्रकार की सामग्री को भण्डार करने से सम्बन्धित नियन्त्रण का कार्य होता है। भण्डार वह स्थान होता है जहाँ विभिन्न सामग्री को क्रमबद्ध तरीके से रखा जाता है।"

    भण्डारण क्या है ? (What is Warehousing?) 

    भण्डारण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा माल का स्वामी शुल्क या किराये का भुगतान करने की शर्त पर माल को भण्डारगृह में रखकर सुरक्षित कर सकता है। इसके अन्तर्गत माल के स्वामी अथवा उसके प्रतिनिधि को आवश्यकतानुसार माल को भण्डारगृह से निकालने की सुविधा प्रदान की जाती है। भण्डारण में माल की सुरक्षा के साथ-साथ श्रेणीयन, मिश्रण, पैकिंग, बोटलिंग आदि की सेवाएँ भी उपलब्ध करायी जाती हैं।

    भण्डारण की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF WAREHOUSING)

    1. भण्डारण में शुल्क के बदले में माल को भण्डारगृह में रखने की सुविधा प्रदान की जाती है। इस प्रकार भण्डारण में माल को सुरक्षित रूप में रखने हेतु स्थान उपलब्ध कराया जाता है।

    2. माल का स्वामी या उसका प्रतिनिधि आवश्यकतानुसार माल को भण्डारगृह से निकाल सकता है। 

    3. भण्डारण में माल की सुरक्षा के साथ-साथ पैकिंग, श्रेणीयन, वित्त प्रदान करना, मिश्रण आदि सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

    4. भण्डारगृहों की सेवाएँ निर्माताओं, थोक व्यापारियों, वितरकों आदि सभी के लिए उपलब्ध होती हैं। 

    5. भण्डारगृह सार्वजनिक अथवा निजी हो सकते हैं। प्रायः सार्वजनिक भण्डारगृह ही पाये जाते हैं।

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    भण्डारण के उद्देश्य (PURPOSES OF WARHOUSING)

    1. भण्डारण का प्रमुख उद्देश्य माल संग्रहण की सुविधा प्रदान करना होता है।

    2. संग्रह या भण्डार किये गये माल की समुचित सुरक्षा की जाती है। चोरी व अग्नि से सुरक्षा के साथ- साथ जलवायु, कीड़े-मकोड़े, छीजन आदि के विरुद्ध यथासम्भव सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

    3. भण्डारण सुविधाओं का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायता देना भी है।

    4. भण्डारण व्यवस्था का उद्देश्य सुरक्षा के साथ व्यापार सम्बन्धी अनेक सहायक सेवाएँ, जैसे- श्रेणीयन, मिश्रण, पैकिंग, बोटलिंग, ऋण सुविधा आदि प्रदान करना भी है।

    5. सार्वजनिक भण्डारगृहों की सुविधाओं के कारण उद्योगपतियों या निर्माताओं को स्वयं के भण्डारगृह निर्मित नहीं करने पड़ते। यह उल्लेखनीय है कि आधुनिक सुविधाओं से युक्त भण्डारण व्यवस्था तैयार करन। अत्यन्त खर्चीला है। अधिकांश निर्माता अपने साधनों से स्वयं के भण्डारगृह स्थापित नहीं कर पाते।

    हमारे देश में भण्डारण सुविधाओं का उपयोग अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में संलग्न उद्योगपतियों द्वारा ही मुख्य रूप से किया जाता है। इस कार्य में सार्वजनिक भण्डारगृहों की सेवाएँ काफी सन्तोषजनक हैं। यही कारण है कि अधिकांश भण्डारगृह बन्दरगाह शहरों या प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों पर ही स्थित हैं।

    स्टोर करना एवं भण्डारगृह में अन्तर 
    (DIFFERENCE BETWEEN STORAGE AND WAREHOUSE)

    स्टोरेज एवं भण्डारगृह के अन्तर को निम्नांकित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

    स्टोरेज

    भण्डारगृह

    1. स्टोरेज प्रायः कारखाने के समीप ही स्थित होते हैं।
    2.  स्टोरेज निजी प्रयोग के लिए भी होता है।
    3. स्टोरेज में अन्य विपणन कार्यों का निष्पादन नहीं किया जाता ।
    4. स्टोरेज में कच्चे माल एवं निर्मित माल के संग्रहण की सुविधा प्रदान की जाती है।
    5. यह माल को रखने का ही स्थान है।

    1. भण्डारगृह बाजार के समीप स्थित होते हैं।
    2. ये व्यापारिक उद्देश्य से ही स्थापित किये जाते हैं।
    3. विपणन के अनेक कार्य, जैसे- श्रेणीयन, प्रमापी- करण, मिश्रण, पैकिंग आदि कार्यों का निष्पादन किया जाता है।
    4. भण्डारगृह में अन्तिम उत्पाद (Final Products) का संग्रहण किया जाता है।
    5. भण्डारगृह में माल एक वितरण केन्द्र के रूप में रखा जाता है।

    भण्डारण का महत्व (IMPORTANCE OF WAREHOUSING)

    विपणन में वितरण महत्वपूर्ण है और वितरण कार्य में भण्डारण की विशेष भूमिका होती है। भण्डारण के महत्व को संक्षेप में निम्नलिखित शीर्षकों की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. समय एवं स्थान उपयोगिता (Time and Place Utility) 

    भण्डारण की उपयुक्त व्यवस्था करके वस्तु को उस समय एवं उस स्थान पर उपलब्ध कराया जा सकता है जहाँ उसकी माँग हो। इस प्रकार वस्तु में समय एवं स्थान उपयोगिता के सृजन में भण्डारण सहायक है।

    2. रूप उपयोगिता (Form Utility)

    कुछ अवस्थाओं में भण्डारण द्वारा रूप उपयोगिता का भी सृजन किया जाता है। श्रेणीयन, पैकिंग, मिश्रण आदि द्वारा वस्तुओं के रूप में परिवर्तन कर उसे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाता है।

    3. मौसमी वस्तुओं के लिए आवश्यक (Essetial for Seasonal Goods) 

    वैसे तो निर्माता को लगभग सभी प्रकार के उत्पादों का न्यूनाधिक मात्रा में भण्डारण करना होता है परन्तु मौसमी वस्तुओं का भण्डारण तो अनिवार्य ही है। मौसमी वस्तुओं या उत्पादों को माँग समय-विशेष पर बड़ी मात्रा में होती है अतः निर्माता के लिए यह आवश्यक होता है कि वह पहले से ही पर्याप्त मात्रा में उत्पादों का भण्डारण करे। कभी-कभी तो भण्डारण अनेक स्थानों पर करने की भी आवश्यकता पड़ती है जिससे उपभोक्ताओं को उत्पादों की पूर्ति शीघ्र व समय पर हो सके।

    4. माँग व पूर्ति में सन्तुलन (Balance between Demand and Supply) 

    उत्पादों का पर्याप्त भण्डारण माँग और पूर्ति में सन्तुलन बनाये रखने में भी सहायक होता है। इससे कीमतों में स्थिरता बनी रहती है।

    5. माँग में वृद्धि (Increase in Demand) 

    समय पर माल की उपलब्धि माँग को बढ़ाती है। मौसमी वस्तुओं की माँग गैर-मौसम (Off-scason) में भी पैदा की जा सकती है। इस प्रकार भण्डारण माँग को बढ़ाता है।

    6. विस्तृत बाजार (Wider Market)

    भण्डारण सुविधाओं के कारण बाजार को विस्तार मिला है। एक निर्माता निर्माण स्थल से काफी दूर स्थित बाजारों में भी उत्पादों की नियमित आपूर्ति बनाये रख सकता है।

    7. हानि से सुरक्षा (Protection against Loss)

    अच्छे भण्डारगृहों में उत्पाद सुरक्षित रहते हैं। वर्षा, जलवायु, कीड़े-मकोड़े, चूहों आदि से उत्पादों को बचाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में 5 से 10 प्रतिशत अनाज भण्डारगृहों के अभाव में नष्ट हो जाता है। शीघ्र नाशवान वस्तुओं को भी कोल्ड स्टोरेज एवं वैज्ञानिक विधियों द्वारा अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

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    भण्डारण के कार्य (FUNCTIONS OF WAREHOUSING)

    भण्डारण विपणन प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग है। भण्डारण द्वारा निम्नलिखित कार्यों का निष्पादन किया जाता है-

    1. संग्रहण या संचयन (Storage)

    भण्डारण व का एक कार्य अतिरिक्त (Surplus) वस्तुओं का संग्रह करना है जिससे जब भी आवश्यकता हो, उन्हें उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जा सके। एक विपणनकर्ता के लिए यह आवश्यक होता है कि वस्तु की मांग आने से पूर्व ही वह वस्तु की सुपुर्दगी योग्य स्थिति सुनिश्चित कर दे।

    2. कीमतों में स्थिरता (Price Stabilisation)

    माँग एवं पूर्ति की स्थिति के अनुसार वस्तुओं के मूल्यों में परिवर्तन होते रहते हैं। भण्डारण द्वारा इस स्थिति पर नियन्त्रण करके कीमतों में स्थिरता रखी जा सकती है। अतिरिक्त वस्तुओं के भण्डारण द्वारा माँग व पूर्ति में सन्तुलन रखा जा सकता है।

    3. जोखिम वहन करना (Risk Bearing)

    भण्डारण निक्षेप (Bailment) का अनुबन्ध है। भण्डार की गयी वस्तु यदि नष्ट हो जाती है या खराब हो जाती है तो निक्षेप की शर्तों के अनुसार भण्डार रक्षक या भण्डारणकर्ता हानि की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार भण्डारण के पश्चात् जोखिम उत्पादक भण्डारकर्ता को हस्तान्तरित हो जाती है। अन्य शब्दों में, भण्डारण का एक कार्य भण्डार की, गयी वस्तु की से जोखिम को वहन करना भी है। 

    4. श्रेणीयन, प्रमापीकरण, पैकिंग आदि (Grading, Standardisation, Packing etc.)

    भण्डारण में विपणन के अन्य कार्यों, जैसे- श्रेणीयन, प्रमापीकरण, पैकिंग, मिश्रण आदि कार्यों का भी निष्पादन किया जाता है।

    5. वित्त प्रबन्धन (Financing)

    भण्डारगृह की रसीद प्रस्तुत कर माल का स्वामी बैंक से ऋण ले सकता है। इस प्रकार जल्दी में कम कीमत पर माल बेचे बिना भी व्यवसायी बैंक से ऋण लेकर अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।

    6. अन्य कार्य (Other Functions) 

    (i) वस्तुओं के छोटे पार्सल तैयार करना।

    (ii) कस्टम अधिकारियों के निरीक्षण के लिए माल को खोलना एवं पुनः बन्द करना।

    (iii) निक्षेपी के निर्देशसानुसार माल को ग्राहकों को सौंपना ।

    (iv) माल की समुचित देखभाल व सुरक्षा करना एवं चोरी से बचाना।

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    भण्डारण के लाभ (ADVANTAGES OF WAREHOUSING)

    भण्डारण की उपयुक्त व्यवस्था से निर्माता, उपभोक्ता, विक्रेता व व्यवसाय से सम्बन्धित उनके पक्षकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं। भण्डारण के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं-

    1. भण्डारगृहों में वस्तुएँ सुरक्षित रहती हैं। वस्तुओं को अग्नि, चोरी, कीड़े-मकोड़े, चूहे आदि से बचाया जा सकता है और छीजन को रोका जा सकता है।

    2. भण्डारण व्यवस्था ऐसे निर्माताओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद है जिनके पास स्वयं के भण्डारगृह नहीं हैं या आवश्यकता की तुलना में कम हैं। 

    3. उपभोक्ताओं की मितव्ययिता एवं शीघ्रता से अधिक अच्छी सेवा की जा सकती है।

    4. विपणन के अन्य कार्यों, जैसे- श्रेणीयन, प्रमापीकरण, मिश्रण, पैकिंग आदि का निष्पादन भी भण्डारण में सम्भव है।

    5. भण्डारगृह की रसीद/वारण्ट के आधार पर बैंकों से ऋण प्राप्त किया जा सकता है।

    6. भण्डारण सुविधाओं की उपलब्धि के कारण निर्माता को स्वयं के भण्डारगृह बनाने की आवश्यकता नहीं रहती है। इससे निर्माता अपने सीमित वित्तीय साधनों का उपयोग अन्य महत्वपूर्ण कार्यों हेतु कर सकता है। 

    7. एक निर्माता अपने उत्पादों को महत्वपूर्ण केन्द्रों पर उपलब्ध कराके उनकी अच्छी कीमत प्राप्त कर सकता है।

    8. महत्वपूर्ण मागों पर सार्वजनिक भण्डारगृहों की स्थिति से वस्तुओं के आवागमन को बढ़ावा मिलता है। परिणामस्वरूप अधिकाधिक स्थानों पर वस्तुओं की उपलब्धि सम्भव हुई है।

    9. भण्डारगृहों में रखे उत्पादों को भौतिक हस्तान्तरण के बिना भी एक पक्षकार से दूसरे और दूसरे से तीसरे पक्षकार को बेचा जा सकता है।

    10. बन्दरगाह शहरों पर स्थित बॉण्डेड भण्डारगृहों (Bonded Warchouses) के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायता मिलती है। बॉण्डेड भण्डारगृहों में आयातित माल को भण्डार करके आयातकर्ता कस्टम टेक्स की राशि को किश्तों में चुका सकता है। इससे कर राशि को एक साथ चुकाने का बोझ आयातक पर नहीं पड़ता ।

    11. उपभोक्ताओं को वस्तुएँ सही समय एवं सही स्थान पर उपलब्ध करायी जा सकती हैं। इस प्रकार भण्डारण से समय एवं स्थान उपयोगिता का सृजन किया जा सकता है।

    12. मौसमी वस्तुओं की माँग के समय पर्याप्त आपूर्ति भण्डारण द्वारा सम्भव है। भण्डारण बाजार में मांग के अनुसार उत्पादों की नियमित आपूर्ति में भी सहायक है।

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    भारत में भण्डारगृह (WAREHOUSES IN INDIA)

    भारतीय किसान की स्थिति प्रारम्भ से ही यह रही है कि वह फसल तैयार होते ही इसे बेच देता है। इसका मुख्य कारण एक तो उसे रुपयों की आवश्यकता होती है और दूसरा उस फसल को स्टॉक करने का उपयुक्त स्थान उपलब्ध नहीं होता। जल्दी में फसल बेचने के कारण उसे उसका पूरा मूल्य नहीं मिल पाता। कई बार तो फसल काटने से पहले ही वह साहूकार से ऋण ले लेता है जिसके कारण फसल तैयार होते ही उसे मजबूर होकर बहुत कम कीमत पर साहूकार को ही फसल बेचनी पड़ती है। यदि किसी प्रकार कुछ किसान अपनी फसल को कुछ समय तक अपने पास रोके रखने की स्थिति में होते हैं तो भी उनके पास फसल को सुरक्षित रूप से स्टाक करने की अच्छी व्यवस्था नहीं होती।

    इस स्थिति को ध्यान में रखकर ही 1928 में रॉयल कमीशन ऑफ इण्डिया ने देश में भण्डारण व्यवस्था के महत्व की बात कही। इसके बावजूद आज भी देश में भण्डारण व्यवस्था पर्याप्त नहीं है और उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी अभाव है। ग्रामीण बैंकिंग जाँच समिति ने 1950 में और अखिल भारतीय ग्रामीण साख सर्वेक्षण की संचालकों की समिति की 1954 में दी गयी सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार ने 1957 में केन्द्रीय भण्डारण निगम (Central Warehousir. Corporation) की स्थापना की। 1956 के बाद से ही आर्थिक नियोजन में भण्डारण के महत्व को स्वीकार किया गया और सरकार द्वारा इस दिशा में पूँजीगत व्यय किया जाने लगा।

    केन्द्रीय भण्डारण निगम के कार्य (Functions of Central Warehousing Corporation)

    1. भारत में विभिन्न स्थानों पर गोदामों व भण्डारगृहों की स्थापना करना।

    2. कृषि उपज, बीज, खाद आदि के भण्डारण हेतु भण्डारगृहों का संचालन करना।

    3. कृषि उपज को भण्डारगृहों तक लाने-ले जाने हेतु परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध कराना।

    4. राज्य भण्डारण निगमों की अंश पूँजी में विनियोग करना।

    5. कृषि उपज, बीज, खाद आदि के क्रय एवं विक्रय तथा वितरण हेतु सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना ।

    राज्य भण्डारण निगम (State Warehousing Corporation) 

    प्रत्येक राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेकर अपने स्वयं के भण्डारण निगम स्थापित करने का अधिकार है। राज्य भण्डारण निगमों में 50 प्रतिशत पूँजी केन्द्रीय भण्डारण निगम व 50 प्रतिशत पूँजी राज्य सरकार द्वारा विनियोजित की जायेगी। राज्य भण्डारण निगम के कार्य निम्नलिखित हैं-

    1. केन्द्रीय भण्डारगृहों के लिए सुरक्षित स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर भण्डारगृहों की स्थापना करना।

    2. लाइसेंस प्राप्त भण्डारगृहों का संचालन करना।

    3. केन्द्र सरकार, राज्य सरकार अथवा केन्द्रीय भण्डारण निगम के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना।

    4. भण्डारण में विशेषज्ञता रखने वाली सहकारी संस्थाओं की अंशपूँजी में विनियोग करना। इससे राज्य स्तर पर भण्डारण को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा।

    धीमी प्रगति के कारण (Causes of Slow Growth)

    भारत में भण्डारण के क्षेत्र में सन्तोषजनक प्रगति नहीं हो पायी है। आज भी भण्डारगृहों की संख्या आवश्यकता से कम है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी भण्डारगृहों को अच्छा नहीं कहा जा सकता। इस स्थिति के लिए उत्तरदायी कारणों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है-

    1. कृषकों के पास बची अतिरिक्त फसल की मात्रा इतनी कम होती है कि उसे भण्डारगृहों में रखना मितव्ययी नहीं होता।

    2. भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। मानसून अक्सर कमजोर रहता है। अकाल पड़ने या कुछ स्थानों पर बाढ़ आ जाने के कारण फसल कमजोर होती है। इसके परिणामस्वरूप किसानों के पास भण्डारण हेतु पर्याप्त खाद्यान्न नहीं होता।

    3. उपभोक्ता केन्द्रों पर कोल्ड स्टोरेज की कमी है।

    4. भण्डारण व्यय अधिक है। भारतीय किसान के लिए इसे वहन करना मुश्किल है। भण्डारण के कारण प्राप्त होने वाली अधिक कीमत की तुलना में भण्डारण व्यय के अधिक होने के कारण किसान इसमें रुचि नहीं लेते।

    5. परिवहन की अनियमितता भी भण्डारण सुविधाओं के विकास में बाधक है।

    6. भण्डारगृहों की सुविधा शहरों में ही उपलब्ध है।

    विकास हेतु सुझाव (Suggestions for Improvement)

    देश में भण्डारण सुविधाआ का विकास आवश्यक है। इस हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं:

    1. गोदामों और भण्डारगृहों की स्थापना उपभोक्ता केन्द्रों पर होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में परिवहन सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    2. उत्पादन के स्थान पर गोदामों की सुविधा दी जानी चाहिए।

    3. उत्पादकों और व्यापारियों को वैज्ञानिक भण्डारण का महत्व समझाया जाना चाहिए।

    4. भण्डारगृह आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होने चाहिए। इनमें कार्यरत कर्मचारी पूर्ण प्रशिक्षित होने चाहिए।

    5. भण्डारगृहों द्वारा वसूला जाने वाला व्यय कम किया जाना चाहिए। इस हेतु छूट (Discount) भी दी जा सकती है।

    6. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विकास भी आवश्यक है। भण्डारगृह रसीद पर दिये जाने वाले ऋण को सरल बनाया जाना चाहिए।

    भण्डारगृहों के प्रकार या वर्गीकरण (TYPES OR CLASSIFICATION OF WAREHOUSES)

    स्वामित्व के आधार पर भण्डारगृह दो प्रकार के होते है- 

    (1) सार्वजनिक भण्डारगृह एवं (2) निजी भण्डारगृह ।

    1. सार्वजनिक भण्डारगृह (Public Warchouse)

    इन भण्डारगृहों का उपयोग सभी के द्वारा किया जा सकता है। इनके संचालन के नियम व किराया दरें सरकार द्वारा तय की जाती हैं। सरकारी नियमन हारी हुए भी ये व्यापारिक आधार पर कार्य करते हैं। इनमें वैज्ञानिक आधार पर भण्डारण सुविधाएँ दी जाती होते भण्डारण की आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होने के करण इनके निर्माण पर काफी विनियोग करना पड़ता है। सार्वजनिक भण्डारगृहों में विभिन्न प्रकार की हानियों एवं छोजन को काफी कम किया जा सकता है। माल के स्वामी और भण्डारगृह के मध्य निक्षेपी (Bailer) और निश्क्षेपगृहीता (Bailce) का सम्बन्ध होता है।

    सार्वजनिक भण्डारगृहों के लाभ (Advantages of Public Warchouses)

    1. सार्वजनिक भण्डारगहों का निर्माण आधुनिक ढंग से किया जाता है जिससे विभिन्न प्रकार की हानियों काफी कम हो जाती हैं और माल सुरक्षित रहता है।

    2. भण्डारण की सुविधा सभी के लिए होती है। सरकारी नियमन के कारण प्रायः किराया भी कम ही वसूल किया जाता है।

    3. क्रेन, रेल पटरी आदि सुविधाओं से मुक्त होने के कारण माल को चढ़ाने-उतारने में सुविधा रहती है।

    4. योग्य एवं कुशल कर्मचारियों के कारण भण्डारगृहों का प्रयोग करने वालों को अच्छी सेवाएँ प्राप्त होती हैं।

    5. इन भण्डारगृहों द्वारा निर्गमित रसीद पर वित्तीय संस्थाओं से वित्त की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।

    6. अचानक भण्डारण सुविधा की आवश्यकता होने पर भी सार्वजनिक भण्डारगृह उपयुक्त रहते हैं।

    7. व्यवसायी को स्वयं के भण्डारगृहों के निर्माण पर राशि व्यय नहीं करनी पड़ती। इस राशि का प्रयोग व्यवसाय के अन्य कार्यों में किया जा सकता है।

    8. सार्वजनिक भण्डारगृह श्रेणीयन, प्रमापीकरण, मिश्रण, पैकिंग आदि की सेवाएँ भी प्रदान करते हैं।

    9. थोड़े स्थान की आवश्यकता होने पर सार्वजनिक भण्डारगृह अत्यन्त मितव्ययी सिद्ध होते हैं।

    10. मौसमी वस्तुओं के भण्डारण हेतु भी उपयुक्त हैं।

    2. निजी भण्डारगृह (Private Warchouses)

    निजी भण्डारगृहों पर स्वामित्व बड़े-बड़े उत्पादकों एवं थोक व्यापारियों का होता है। इनका निर्माण स्वयं के प्रयोग के लिए किया जाता है और स्वामी द्वारा ही इनका संचालन किया जाता है। हमारे देश में इस प्रकार के भण्डारगृह बहुत ही कम हैं। इसका मुख्य कारण इनके निर्माण पर आने वाला अत्यधिक व्यय है। निजी भण्डारगृह कारखाना भवन में या उसके आस-पास अथवा बाजार के समीप बनाये जा सकते हैं। वर्तमान में इन भण्डारगृहों का महत्व निरन्तर कम हो रहा है। निजी भण्डारगृहों के स्थान पर वितरण केन्द्र (Distribution Centres) स्थापित किये जा रहे हैं जिनका मुख्य उद्देश्य माल के भण्डारण के स्थान पर वितरण के प्रवाह को बनाये रखना है।

    सार्वजनिक भण्डारगृहों एवं निजी भण्डारगृहों में अन्तर 
    (Difference between Public Warehouses and Private Warehouses)

    सार्वजनिक भण्डारगृह

    निजी भण्डारगृह

    1. विज्ञापन लागत व लाभ तत्व के कारण सार्वजनिक भण्डारगृहों की संचालन लागत अधिक होती है।
    2. इन भण्डारगृहों का लाभ प्राप्त करने वाले व्यवसायियों को किसी प्रकार का प्रारम्भिक विनियोग नहीं करना पड़ता।

    3. व्यवसायी को भण्डारगृह का संचालन एवं नियन्त्रण नहीं करना पड़ता ।
    4. जोखिम न्यूनतम होती है।
    5. अनेक ग्राहकों की सेवाओं के कारण मितव्ययिता रहती है।
    6. सार्वजनिक भण्डारगृह के उपयोग की अवस्था में घिसावट की छूट मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता ।
    7. सार्वजनिक भण्डारगृह माल को जहाज से भण्डारगृह एवं भण्डारगृह से ग्राहक तक पहुँचाने की सुविधा प्रदान करते हैं।
    8. व्यवसायी को भण्डारण व्यय की जानकारी होती है।

    1. यदि पर्याप्त मात्रा में माल का भण्डार किया जाये तो संचालन लागत 10 से 25 प्रतिशत तक कम आती है।
    2. इनके निर्माण एवं रखरखाव पर एक बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है।
    3. निजी व्यवसायी को स्वयं को संचालन एवं नियन्त्रण का उत्तरदायित्व उठाना पड़ता है।
    4. तकनीकी परिवर्तन या माँग में कमी के कारण अप्रचलन की जोखिम रहती है।
    5. कम्पनी का स्वयं का पर्याप्त माल भण्डार किये जाने पर ही मितव्ययिता रह सकती है।
    6. स्वयं के निजी भण्डारगृह की अवस्था में व्यवसायी घिसावट (Depreciation) का लाभ प्राप्त कर करों में छूट प्राप्त कर सकता है।
    7. निजी भण्डारगृह की अवस्था में ऐसी सुविधा की व्यवस्था स्वयं व्यवसायी को ही करनी होती है।
    8. भण्डारण व्यय अनुमानित ही होते हैं।

    भण्डारगृहों के अन्य प्रकार (OTHER TYPES OF WAREHOUSES)

    1. बॉण्डेड भण्डारगृह (Bouded Warehouses) 

    ऐसे भण्डारगृहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बन्दरगाह शहरों पर स्थित इन भण्डारगृहों का स्वामित्व गोदी अधिकार सत्ता (Dock Authorities) का होता है। निजी स्वामित्व की दशा में लाइसेंस लेना आवश्यक होता है। इन भण्डारगृहों में आयातित माल को भण्डार करके आयातकर्ता कस्टम शुल्क की राशि को एक साथ न चुकाकर किश्तों में भी चुका सकता है। आयातकर्ता को एक बॉण्ड भरकर देना पड़ता है कि भण्डारगृह से माल को हटाने से पूर्व वह आयात शुल्क का भुगतान कर देगा। आयातकों को मूल्यवान सेवाएँ देने के कारण बॉण्डेड भण्डारगृहों का आयातकों के लिए विशेष महत्व है।

    वॉण्डेड भण्डारगृहों के लाभ (Advantages of Bonded Warehouses)

    1. आयातकर्ता शुल्क का भुगतान किश्तों में कर सकते हैं। आनुपातिक रूप से शुल्क का भुगतान कर भण्डारगृह में रखे माल को आंशिक सुपुर्दगी प्राप्त की जा सकती है।

    2. आयातकर्ता भण्डार में रखे माल को बोतलों में भर सकता है अथवा आपस में कोई मिश्रण तैयार कर सकता है।

    3. आयातकर्ता बॉण्डेड भण्डारगृह में रखे सामान को दिखाने के लिए ग्राहकों को वहाँ ले जा सकता है और ग्राहक वहाँ माल का निरीक्षण कर सकता है। इससे भण्डारगृह में रखे माल के विक्रय में सुविधा रहती है।

    4. कस्टम शुल्क का भुगतान किये बिना आयातकर्ता भण्डारगृह में रखे माल का निर्यात कर सकता है। 

    5. श्रेणीयन, मिश्रण एवं पैकिंग आदि सुविधाओं के कारण आयातकर्ता माल को अच्छी कीमत में बेचने में सफल हो सकता है।

    2. ड्यूटी-पेड भण्डारगृह (Duty-paid Warehouse) 

    ये भण्डारगृह भी बन्दरगाह शहरों पर स्थित होते हैं और इनका स्वामित्व गोदी ऑथोरिटी या पब्लिक ऑथोरिटी के पास होता है। एक आयातकर्ता को पहले कस्टम शुल्क का भुगतान करना पड़ता है और उसके पश्चात् ही माल को इन भण्डारगृहों में रखा जा सकता है। इस प्रकार बॉण्डेड भण्डारगृहों में जहाँ कस्टम शुल्क का भुगतान बाद में और वह भी किश्तों में किया जा सकता है, वहाँ ड्यूटी पेड भण्डारगृहों में कस्टम शुल्क का भुगतान पहले करना आवश्यक होता है।

    3. विशिष्ट वस्तु भण्डारगृह (Special Commodity Warehouse) 

    ऐसे भण्डारगृह जो वस्तु विशेष को भण्डार करने के लिए बनाये जाते हैं, विशिष्ट वस्तु भण्डारगृह कहलाते हैं। यह उल्लेखनीय है कि भिन्न-भिन्न वस्तुओं को उनकी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के भण्डारगृहों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, शीघ्र नाशवान वस्तुओं के लिए उपयुक्त भण्डारगृह इलेक्ट्रोनिक वैस्तुओं, ऊन, कपास आदि के लिए अच्छे नहीं कहे जा सकते। विशिष्ट वस्तु भण्डारगृहों का उद्देश्य वस्तु का भण्डारण इस प्रकार से करना होता है जिससे वस्तु का मौलिक स्वरूप एवं गुण बने रहें।

    4. कोल्ड स्टोरेज या रेफ्रीजरेटेड भण्डारगृह (Cold Storage or Refrigerated Warehouse) 

    भण्डारण के क्षेत्र में यह नवीन प्रगति है। आजकल इनकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। शीघ्र नाशवान वस्तुएँ, जैसे-फल, सब्जियाँ, दूध, अण्डे आदि के भण्डारण हेतु कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होती है जिससे इन वस्तुओं को अधिक समय तक खाने योग्य बनाये रखा जा सके और जब भी बाजार में माँग हो, इन्हें उपलब्ध कराया जा सके। ऐसे भण्डारगृहों की स्थापना बाजारों या उपभोक्ता केन्द्रों के पास होती है जिससे माँग उत्पन्न होते ही वस्तु को उपभोक्ताओं तक शीघ्रता से पहुँचाया जा सके। 

    अतः कोल्ड स्टोरेज के लाभ निम्नलिखित हैं-

    • वस्तु को वर्षपर्यन्त बाजार में उपलब्ध कराया जा सकता है।
    • कोल्ट स्टोरेज के कारण शीघ्र नाशवान वस्तुओं का बाजार भी विस्तृत हुआ है।
    • शीघ्र नाशवान वस्तुओं का जीवन अपेक्षाकृत लम्बा हो जाता है।
    • विपणन लागत में कमी होती है।
    • वस्तु का मौलिक स्वरूप बना रहता है।
    • बाजार में वस्तुओं के बाहुल्य या आधिक्य को रोका जा सकता है।
    • माँग व पूर्ति पर नियन्त्रण रखकर वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता रखी जा सकती है। 
    • माँग के अनुसार बाजार में वस्तु की पूर्ति को बनाये रखा जा सकता है।

    5. सामान्य व्यापारिक भण्डारगृह (General Merchandise Warehouse) 

    भण्डारगृहों का यह सबसे सामान्य प्रकार है। अधिकांश भण्डारगृह इसी श्रेणी में सम्मिलित किये जाते हैं। इनमें कोई विशेष प्रकार की सुविधाएँ प्रदान नहीं की जातीं क्योंकि सभी प्रकार की वस्तुओं का भण्डारण किया जाता है। ये भण्डारगृह वितरण केन्द्रों पर स्थापित किये जाते हैं। इनमें निर्मित, अर्द्धनिर्मित एवं कच्चे माल को भण्डार करके रखा जाता है और उसे आवश्यकतानुसार निर्माताओं, वितरकों, फुटकर व्यापारियों, उपभोक्ताओं आदि को उपलब्ध कराया जाता है। विशिष्ट वस्तु भण्डारगृह जहाँ वस्तु-विशेष की आवश्यकता के अनुसार बनाये जाते हैं, वहाँ सामान्य व्यापारिक भण्डारगृह सभी प्रकार की वस्तुओं के भण्डार के लिए बनाये जाते हैं।

    भण्डारण व्यवस्था की डिजाइन तैयार करना (DESIGNING THE WAREHOUSING SYSTEM)

    उत्पाद को कारखाने से उपभोक्ता तक पहुँचाने हेतु विभिन्न विपणन मध्यस्थों, भण्डारगृहों अथवा वितरण केन्द्रों की सहायता ली जाती है। इस प्रक्रिया में भण्डारगृहों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान द्वारा भण्डारण व्यवस्था की डजाइन तैयार करते समय निम्नलिखित प्रश्नों एवं उनके समाधान पर ध्यान देना आवश्यक होता है-

    1. कितने भण्डारगृहों की स्थापना की जाये ?
    2. भण्डारगृहों की स्थापना कहाँ की जाये ?
    3. प्रत्येक भण्डारगृह का आकार व क्षमता क्या हो ?

    यदि हम इन प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करें तो दो विरोधाभासी बिन्दु उभरकर सामने आते हैं। विक्रेता हमेशा सुपुदर्गी की सुविधा की बात कहकर अधिक से अधिक संख्या में भण्डारगृहों की स्थापना पर जोर देते हैं। दूसरी ओर, उच्च प्रबन्ध अधिक खचों की बात कहकर भण्डारगृहों की संख्या कम करने की बात कहता है जिससे भण्डारण एवं वितरण लागत को कम किया जा सके। यह विरोधाभास प्रायः चलता रहता है। अतः भण्डारण व्यवस्था की डिजाइन सम्बन्धी कोई भी अन्तिम निर्णय लेते समय दोनों बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    भण्डारण को भौतिक वितरण का ही एक अंग माना जाना चाहिए। अतः भण्डारण व्यवस्था ऐसी हो जो भौतिक वितरण व्यवस्था में आसानी से समायोजित हो जाये।

    भण्डारगृहों की संख्या, स्थान एवं आकार का निर्धारण (Determining the Number, Location and Size of Warehouses) 

    भण्डारगृहों की संख्या, स्थान एवं आकार का निर्धारण भण्डारण व्यवस्था के मूल प्रश्न हैं। इन्हीं पर ग्राहक सेवा स्तर, प्रतिस्पर्दी लाभ (Competitive Advantage) एवं सामग्री लागत संरचना निर्भर करती है।

    संख्या का निर्धारण (Determining the Number)

    सामान्यतः विपणन क्षेत्र में जितने कम भण्डारगृह होते हैं, भण्डारण की लागत भी उतनी ही कम आती है। यह भी सच है कि भण्डारगृहों की संख्या बढ़ने से विक्रय की मात्रा भी अवश्य बढती है। अतः यह एक प्रबन्धकीय कार्य है कि वह लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर भण्डारगृहों की अनुकूलतम संख्या का निर्धारण करे। यह अनुकूलतम संख्या अनेक बातों पर निर्भर करेगी, जैसे उत्पाद की प्रकृति, प्रत्येक भण्डारगृह के क्षेत्र में सम्मिलित बाजार का आकार एवं भौगोलिक सीमा, भण्डारगृह क्षेत्र की वर्तमान एवं सम्भावित बिक्री, क्षेत्र में उत्पाद की मौसमी माँग की सीमा, अधिकतम माँग का स्तर, क्षेत्र का व्यापार का स्वरूप, प्रत्येक भण्डारगृह द्वारा सेवा किये जाने वाले वितरण केन्द्रों की संख्या, स्वीकृत आदेश, आदेश निस्तारण समय एवं भण्डारगृह के संचालन में आने वाली लागत आदि। इस सम्बन्ध में भविष्य की आवश्यकताओं और प्रतिस्पर्दी स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।

    आकार का चुनाव (Choosing the Size) 

    भण्डारगृहों के आकार का निर्धारण भण्डारगृहों की कुल संख्या के साथ जुड़ा हुआ है। सामान्यतः भण्डारगृहों की संख्या अधिक होने पर उनका आकार छोटा एवं संख्या कम होने पर भण्डार गृहों का आकार अपेक्षाकृत बड़ा रखा जाता है। एक फर्म या कम्पनी को क्षेत्र-विशेष की विक्रय सम्भावनाओं का मूल्यांकन करते हुए अनुमानित बाजार माल के आधार पर विक्रय का पूर्वानुमान लगाना होता है। भण्डारण में तय किया जाने वाला मूल प्रश्न यह है कि सामग्री (Inventory) की अनुकूलतम सीमा क्या हो जिससे क्षेत्र-विशेष में अनुमानित विक्रय के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

    भण्डारगृह का आकार एवं लागत एक दूसरे से विपरीत रूप में सम्बन्धित हैं। सामान्यतः छोटे भण्डारगृह बड़े भण्डारगृहों की तुलना में अमितव्ययी होते हैं। छोटे आकार के अधिक भण्डारगृहों की स्थिति में बार-बार सामग्री को पहुँचाना पड़ता है जिससे सामग्री को ले जाने की लागतें, उपरिव्यय (Overheads) एवं अन्य व्ययों के कारण लागतों में वृद्धि होती है। इस सम्बन्ध में उपयुक्त संख्या में मध्यम और बड़े आकार के भण्डारगृह लाभप्रद रहते हैं। दूसरी ओर, बड़ी संख्या में छोटे आकार के भण्डारगृहों की स्थापना की अवस्था में ग्राहकों को अधिक अच्छी एवं शीघ्र सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं। उपभोग एवं प्रतिस्पर्धी की भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही भण्डारगृहों के आकार का निर्धारण किया जाना चाहिए।

    स्थान का चुनाव (Choosing the Locations)

    भण्डारगृहों की संख्या एवं आकार निर्धारण के समान ही भण्डारगृहों के स्थान का निर्धारण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। माँग घटकों, बाजार घटकों एवं प्रतिस्पर्दी घटकों के सन्दर्भ में भण्डारगृहों के स्थानों का परीक्षण किया जाना चाहिए। परिवहन सुविधाओं की उपलब्धता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। स्थान का वाणिज्यिक महत्व, बिक्री कर एवं अन्य स्थानीय करो के प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए। इन सब बातों के साथ-साथ भण्डारण हेतु उपलब्ध उपयुक्त स्थान को सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए।

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