बजट क्या है : अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, उद्देश्य, महत्व एवं बजट के महत्वपूर्ण सिद्धांत

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बजट क्या है ?

बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेन्च भाषा के शब्द ब्यूजे (Bougettee) से हुई जिसका अर्थ है- चमड़े का बैग या थैला। सन् 1733 तक इस शब्द का प्रयोग इंग्लैण्ड में जादू के पिटारे के रूप में किया जाता था। बजट में देश के आय एवं व्यय का वितरण आर्थिक आधार पर होता है जिसे वित्तमन्त्री लोकसभा के सम्मुख रखता है। सन् 1803 में फ्रांस ने इस अर्थ में बजट का प्रयोग किया और बाद में विश्व के अन्य राष्ट्रों ने भी इसका इसी अर्थ में प्रयोग किया। फ्रांस में सन् 1779 में बजट का उदभव हुआ और सन् 1871 में यह जर्मनी पहुँच गया।

    बजट का अर्थ एवं परिभाषाएँ 

    बजट का अर्थ है एक साथ ही एक रिपोर्ट या अनुमान प्रस्ताव या एक ऐसा यंत्र जिसमें आय और व्यय का विवरण निहित होता है। तथा बजट में किए जाने वाले खर्चों का अनुमान लगाया जाता है और उसके अनुसार आय को प्राप्त करने के लिए संसाधनों की खोज भी की जाती है।

    बजट की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

    (1) गैस्टन जेज के अनुसार, एक आधुनिक राज्य में बजट एक पूर्व कल्पना तथा लोक आय एवं व्यय का एक अनुमान है तथा कुछ विशिष्ट व्ययों को करने व आय को प्राप्त करने का अधिकार हैं।

    (2) प्रो. फिण्डले शिराज के अनुसार, संक्षेप में बजट में गत वर्षों की आय एवं व्यय का विवरण आने वाले वित्तीय वर्ष की आय एवं व्यय के अनुमान तथा घाटों को पूरा करने हेतु साधनों के मार्ग या बचत को वितरित करने के प्रस्ताव सम्मिलित रहते हैं।

    (3) रेन स्टोर्न के अनुसार, बजट एक ऐसा प्रपत्र है जिसमें लोक आय एवं व्यय की प्रारम्भिक स्वीकृत व्यवस्था रहती है।

    (4) डब्ल्यू, एफ. विलोबी के अनुसार, बजट एक ही साथ एक प्रतिवेदन, एक अनुमान एवं एक प्रस्ताव है कि यह वह साधन है जिसमें वित्तीय प्रशासन की समस्त प्रक्रिया को सम्बन्धित, तुलना एवं समन्वित किया जाता है।

    (5) पी.एल. बिल्यू के अनुसार, यह एक निश्चित अवधि की अनुमानित आय एवं व्ययों का विवरण है। यह तुलनात्मक तालिका है जिसमें प्राप्त होने वाली आय तथा किये जाने वाले व्ययों की राशियों को दिखाया जाता है।

    (6) टेलर के अनुसार, बजट सरकार की मास्टर वित्तीय योजना है। यह आगामी आय के अनुमान तथा बजट के प्रस्तावित व्ययों के अनुमान साथ-साथ प्रदान करता है।

    (7) डाल्टन के अनुसार, सन्तुलित बजट की सामान्य विचारधारा यह है कि एक समयावधि में आय बढ़ती है या व्यय से कम नहीं करती है।

    (8) क्लीवलैण्ड तथा बक के अनुसार, बजट वित्तीय वर्ष के लिए कॉमनवेल्थ के प्रस्तावित व्यय जिसमें कानून द्वारा पहले से ही अधिकृत व्यय सम्मिलित होता है तथा सभी करों, आर्यों, ऋणों तथा अन्य साधन, का एक लेखा है।

    बजट क्या है : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, महत्व एवं बजट के महत्वपूर्ण सिद्धांत

    एक अच्छे बजट की विशेषतायें

    बजट एक भावी कार्यक्रम है, जिसका अतीत के अनुभव एवं उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर निर्माण किया जाता है। एक आदर्श बजट में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चा

    हिए-

    (1) विवरण- यह एक विवरण के रूप में बनाया जाता है।

    (2) समय से पूर्व- इसे एक निश्चित समय से पूर्व तैयार किया जाता है।

    (3) उद्देश्यों का विवरण- इसमें भविष्य के लिए प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों का वर्णन होता है।

    (4) वित्त सम्बन्धी वर्णन- इसमें वित्त सम्बन्धी ब्यौरे दिये जाते हैं। गैर-वित्तीय व्यवहारों को इसमें नहीं लिया जा सकता। इसमें गत वर्ष के आँकड़े, चालू वर्ष के वित्तीय आँकड़े एवं आगामी वर्ष के सम्भावित आँकड़े दिए जाते हैं।

    (5) महत्वपूर्ण स्थान- राष्ट्रीय क्रियाओं में बजट अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

    (6) न्यायपूर्ण प्रभाव- बजट इस प्रकार बनाया जाता है कि देश में कर-प्रभाव न्यायपूर्ण रहे।

    (7) घाटे का बजट- प्रारम्भ में बजट प्रायः घाटे के बनाये जाते हैं जिसे बाद में सन्तुलित कर दिया जाता है।

    (8) नियोजन के उद्देश्य- बजट का निर्माण सदैव नियोजन के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

    (9) अमरीकन बजट एवं एकाउण्टेन्सी अधिनियम, 1921 के अनुसार बजट में निम्नलिखित बातों को सम्मिलित करते हैं-

    • आगामी वर्ष में सरकार की आय का अनुमान, 
    • आगामी वर्ष में सरकार के आवश्यक व्ययों का अनुमान, 
    • गत वर्ष की सरकार की आय का अनुमान, 
    • चालू वर्ष की आय-व्यय का अनुमान, 
    • चालू वर्ष की आय-व्यय की स्वीकृत राशि, 
    • सरकारी ऋणों की मात्रा, 
    • अन्य वित्तीय विवरण, 
    • विश्वसनीय अनुमान होना, 
    • लोच होना, 
    • सम्पूर्ण जानकारी होना, 
    • उत्तरदायित्व की भावना होना।

    बजट के उद्देश्य

    बजट के उद्देश्यों को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है-

    (1) लेखा देयता

    लोकतन्त्र में कोई भी व्यय करारोपण संसद व विधानसभा की अनुमति के बिना सम्भव नहीं है। आर्थिक बजट प्रणाली बजट वित्त पर विधानमण्डल का नियन्त्रण रखने का एक सबल माध्यम है। इस बात की व्यवस्था की जाती है कि व्यय हेतु जितनी राशि स्वीकृत हुई है, उससे अधिक राशि व्यय नहीं की जानी चाहिए।

    (2) कार्यकलाप बजट पद्धति 

    बजट प्रस्तावों की रचना का उनके कार्यान्वयन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। बजट की रचना एवं उसके वास्तविक परिणामों के मध्य मेल स्थापित किया जाता है।

    (3) राजकीय नीति का उपकरण 

    बजट राजकीय नीति का एक प्रधान उपकरण है। अर्थव्यवस्था वांछित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु बजट-नीति का निर्धारण किया जाता है। कराधान व लोक व्यय के स्तर में द्वारा आर्थिक लक्ष्य, आर्थिक विकास तथा सम्पत्ति के वितरण में समानता को कम किया जाता है। 

    (4) कार्यात्मक दृष्टिकोण 

    बजटों में आय तथा व्यय का ऐसा प्रावधान किया गया है जो आर्थिक क्षेत्र में प्रभावकारी परिणाम दे सके। इससे सरकार के कार्यों का स्पष्ट चित्र जनता के सामने आ जाता है।

    (5) योजना से सम्बन्धित 

    आर्थिक विकास के सन्दर्भ में योजनाओं से सम्बन्धित बजट प्रावधानों को रखा जाता है। लक्ष्यों का निर्धारण करके उसे प्राप्त करने के प्रयास किये जाते हैं। लक्ष्यों का निर्धारण योजना के आधार पर ही किया जाना चाहिए। योजना से सम्बन्धित मदों पर ही समस्त व्यय किये जाते हैं।

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    आयगत बजट एवं पूँजीगत बजट

    बजट के दो भाग होते हैं- आयगत बजट एवं पूँजीगत बजट। 

    आयगत बजट में सरकार को करों व उपक्रमों से प्राप्त आय दिखायी जाती है तथा व्यय के रूप में प्रशासन, सुरक्षा व न्यायालय, आदि पर व्यय दिखाते हैं। इसके विपरीत, पूँजीगत बजट में पूँजीगत स्वभाव के आवश्यक आँकड़े रखे जाते हैं। पूँजीगत बजट की प्राप्तियों में- 

    • आयगत बजट का आधिक्य, 
    • आन्तरिक व बाह्य ऋणों की राशि, 
    • ऋणों की अदायगी, 
    • लघु बचतें, 
    • भविष्य निधि, 
    • सुरक्षित निधि, आदि मदें आती हैं। 

    पूँजीगत व्यय की मदें हैं- राजस्व घाटा, विकास एवं गैर-विकास व्यय, ऋणों का भुगतान, राज्य सरकारों को दिये जाने वाले ऋण एवं अग्रिम ।

    नियोजन एवं बजट में अन्तर

    नियोजन एवं बजट में मुख्य अन्तर निम्न प्रकार हैं-

    (1) नियोजन का आधार- बजट नियोजन अर्थव्यवस्था का आधार माना जाता है और उसी के अनुरूप बजट का निर्माण किया जाता है। इसके विपरीत, नियोजन को बजट के आधार पर समायोजित नहीं किया जाता और बजट पर नियोजन में परिवर्तन करना सम्भव नहीं होता।

    (2) आर्थिक एवं भौतिक दृष्टि- योजना का निर्माण आर्थिक एवं भौतिक दोनों ही दृष्टि से किया जाता है, जबकि बजट का निर्माण केवल आर्थिक दृष्टि से किया जाता है।

    (3) अवधि- बजट का निर्माण  प्रायः प्रत्येक अगले वित्तीय वर्ष के लिए ही किया जाता है, अर्थात् बजट की अवधि प्रायः एक वर्ष होती है, जबकि नियोजन में योजना का निर्माण प्रायः पाँच या सात वर्षों के लिए किया जाता है।

    (4) व्यय की सीमा- बजट में स्वीकृत धनराशि को उसी वित्तीय वर्ष में व्यय करना आवश्यक होता है, जबकि योजना में व्यय करने सम्बन्धी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती।

    (5) आयगत व पूँजीगत- बजट में आयगत व पूँजीगत दोनों ही मदों को सम्मिलित किया जाता है, जबकि योजना में ऐसा नहीं होता।

    बजट का महत्व

    वर्तमान समय में बजट का स्थान महत्वपूर्ण है। फिण्डले शिराज का कथन है कि "बजट निःसन्देह प्रशासन की धुरी है और सुदृढ़ सिद्धान्तों पर आधारित बजट बिना वित्तीय व्यवस्था, अपने समस्त परिणामों के साथ अव्यवस्थित हो जाती है जैसे कि दिन के बाद रात घटित होती है।"

    डाल्टन का मत है कि "अब हम बजट को कुछ निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु शक्तिशाली उपकरण समझ सकते हैं। ये उद्देश्य हैं- (i) पूर्ण रोजगार, (ii) उच्चस्तरीय विनियोग, (iii) उचित वितरण। बजट के महत्व को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है-

    (1) अधिकारियों के कार्यक्षेत्र का निर्धारण- बजट द्वारा विभिन्न अधिकारियों के कार्यक्षेत्र को निर्धारित करके उनके उत्तरदायित्व को स्पष्ट करते हुए प्रशासकीय कुशलता को बढ़ाने के प्रयास किये जाते हैं।

    (2) आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति- बजट के द्वारा देश की आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति का अनुमान लगाया जा सकता है। सरकार द्वारा बजट नीति की सहायता से ही देश में उद्योग एवं कृषि को आर्थिक सहायता प्रदान करके उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाता है। 

    (3) आर्थिक नियन्त्रण- बजट में ऐसी व्यवस्था की जाती है कि आय-व्यय सम्बन्धी पूरी कार्यवाही को नियन्त्रित किया जा सके। बजट की सहायता से ही विधानसभा कार्यकारिणी सभा के कार्यों पर नियन्त्रण लगाकर आर्थिक नीति का निर्माण करती है।

    (4) आय-व्यय का निर्देशन- बजट की सहायता से देश में आय एवं व्यय की क्रियाओं का निर्देशन किया जा सकता है तथा सरकारी कार्यों को पूर्ण रूप से नियन्त्रित किया जा सकता है।

    (5) आर्थिक स्थिरता- बजट द्वारा मूल्यों को स्थिर रखकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लायी जा सकती है। आर्थिक स्थिरता ही देश की दीर्घकालीन आर्थिक विकास के लिए आवश्यक होती है।

    (6) सरकारी वित्त की वृहत् योजना- बजट को सरकारी वित्त की बड़ी योजना माना गया है, जिसमें आयगत एवं पूँजीगत दोनों ही प्रकार की मदों को लिखा जाता है। किसी भी विभाग को स्वीकृत की गयी राशि से अधिक धन व्यय करने की स्वतन्त्रता प्रदान नहीं की जाती जिससे उस पर पूर्ण रूप से आर्थिक दृष्टि से नियन्त्रण रखा जा सके।

    बजट का सिद्धान्त

    टेलर के अनुसार, 'बजट को सरकार के वित्त की वृहत् योजना' कहा जाता है। प्रमुख बजट सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

    (1) निष्पादन कार्यक्रम- बजट निर्माण होने के बाद सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि उसे लागू करे। यह कार्य प्रमुख अधिकारी द्वारा किया जाता है। बजट का कार्यक्रम एक ही सिक्के के दो पहलू है जो प्रत्यक्ष रूप से मुख्य अधिकारी द्वारा पूरे किये जाते हैं।

    (2) निष्पादन उत्तरदायित्व- अधिकारी को यह देखना होता है कि विभागीय कार्यक्रम विधान की शर्तों को पूर्ण करते हुए कार्यक्रम का निष्पादन करते हैं तथा इसमें मितव्ययिता का प्रयोग किया जाता है। 

    (3) रिपोर्ट देना- कार्य की प्रगति के बारे में चालू सूचनाएँ कार्यकारिणी एवं वैधानिक शाखा को दी जानी चाहिए जिसमें आय, व्ययों आदि की पूरी जानकारी आवश्यक है। 

    (4) पर्याप्त उपकरण- बजट के दायित्व को पूर्ण करने में मुख्य अधिकारी के पास पर्याप्त प्रशासनिक उपकरण होना आवश्यक है। बजट निर्माण करने से पूर्व उस सम्बन्ध में सभी आँकड़े व सूचना उपलब्ध होनी चाहिए।

    (5) बहुमुखी प्रक्रिया- सरकारों को अनेक कार्य करने होते हैं, अतः बजटों में अनेक प्रकार के कार्य करने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। बहुमुखी प्रक्रिया द्वारा ही देश का आर्थिक विकास सम्भव किया जा सकता है। 

    (6) निष्पादन निर्देश- बजट में संसद के लिए पूर्ण जानकारी होनी चाहिए तथा अधिकारी के लिए मार्गदर्शन होना चाहिए। इस प्रकार बजट में निष्पादन निर्देशों का होना आवश्यक माना गया है।

    (7) समय में लोच- बजट में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप बदलने की लोच होनी चाहिए तथा समय के आधार पर उसमें परिवर्तन की व्यवस्था होनी चाहिए।

    (8) बजट संगठन का द्विमार्गी होना- बजट की सफलता समस्त विभागों की कुशलता एवं सहयोग पर निर्भर करती है। प्रत्येक विभाग में एक बजट कार्यालय होना चाहिए जिससे बजट को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सके।

    (9) वार्षिक सन्तुलन का बजट- प्राचीन समय में सरकारी व्यय कम होता था तथा सरकारी हस्तक्षेप भी न्यूनतम था। सरकार की आय पाप्त करने तथा व्यय करने के अधिकार सीमित थे। उस समय बचत के बजट बनाने वाली सरकार अच्छी मानी जाती थी, परन्तु मन्दी ने इस विचारधारा को तोड़ दिया। आज घाटे के बजटों का युग है। मुद्रा संकुचन में प्रायः घाटे के बजटों को बनाना ही उपयुक्त रहता है।

    बजट बनाने की विधि

    प्रजातान्त्रिक शासन-व्यवस्था वाले राष्ट्रों में बजट बनाने की समान विधि प्रयोग में लायी जाती है। बजट निर्माण की प्रक्रिया निम्न चरणों से होकर गुजरती है-

    (1) बजट की तैयारी

    बजट कार्यकारिणी सभा द्वारा तैयार किया जाता है। भारत में प्रतिवर्ष फरवरी माह में संसद के समक्ष बजट प्रस्तुत किया जाता है। यह बजट आयगत खाते व पूँजीगत खाते के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। बजट तैयार करने से पूर्व सभी विभागों एवं मन्त्रालयों को सूचित कर दिया जाता है, जिससे आगामी तीन वर्षों के आय एवं व्यय के अनुमान माँगे जाते हैं। इन अनुमानों को अनेक भागों में विभाजित किया जाता है- 

    • वे अनुमान जिनका सम्बन्ध वर्तमान से होता है, एवं 
    • वे अनुमान जिनका सम्बन्ध भावी व्यवस्था से होता है। 

    इन अनुमानों में निश्चित शीर्षकों के अन्तर्गत ही आँकड़े दिए जाते हैं। जैसे- 

    • गत वर्ष के आय व व्यय, 
    • चालू वर्ष के आय एवं व्यय सम्बन्धी आँकड़े,
    • चालू वर्ष के शोधित आय एवं व्यय के आँकड़े, 
    • गत वर्ष के बजट अनुमान एवं 
    • गत वर्ष व चालू वर्ष के वास्तविक आँकड़े।

    अब बजट की तैयारी का दूसरा चरण प्रारम्भ होता है। विभिन्न विभागों से प्राप्त अनुमानों का प्रशासन विभाग द्वारा निरीक्षण करके और कुछ आवश्यक टिप्पणियों सहित उसे वित्त मन्त्रालय के पास भेज दिया जाता है, जो उनका पुनः निरीक्षण करता है।

    (2) बजट का प्रस्तुतिकरण

    बजट तैयार करने के बाद उसे परिषद् में प्रस्तुत किया जाता है। भारत में दोनों सभाओं में यह बजट प्रस्तुत किया जाता है। वित्तमन्त्री बजट पेश करने में अपना भाषण देता है जिस पर कोई बहस नहीं की जाती है और जिसमें वित्तीय प्रस्तावों के कारणों पर प्रकाश डाला जाता है तथा करारोपण में छूट पर भी बताया जाता है। बजट भाषण बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है।

    (3) सामान्य बहस 

    वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के बाद दोनों सदनों में सामान्य बहस की जाती है। वाद-विवाद प्रायः तीन दिन तक चलता है जिसमें सदस्यों को सरकार की नीति की आलोचना करने के पूरे अधिकार होते हैं, परन्तु प्रस्ताव रखने या वोट के लिए प्रस्ताव रखने का कोई अधिकार नहीं होता। यह बहस निश्चित तिथि तक चलती है और उसके बाद वित्तमन्त्री उनके उत्तर देता है और बहस समाप्त हुई समझी जाती है। व्यय की प्रत्येक मद को सामान्य बहस में रखा जाना अनिवार्य है।

    (4) मतदान (Voting)

    बजट पर सामान्य बहस हो जाने के बाद विभिन्न विभागों के मन्त्री अपने-अपने विभागों के लिए अनुमानों की माँग करते हैं और इन पर पृथक् पृथक् बहस होती है। बजट की समस्त मदों को दो भागों में रखकर विभाजित किया जाता है-

    (अ) मतदान अयोग्य मदें (Non-votable Items)- इसमें वे व्यय सम्मिलित किये जाते हैं जिन पर लोकसभा को मतदान करने की आवश्यकता नहीं होती और यह व्यय भारत के संगठित कोष (Consolidated Fund of India) से दिये जाते हैं। यह व्यय निम्नलिखित हैं-

    • राष्ट्रपति का वेतन, उनके कार्यालय से सम्बन्धित व्यय,
    • सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते,
    • भारत के प्रधान लेखा परीक्षक का वेतन भत्ता,
    • ऋण सम्बन्धी व्यय,
    • विधानसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का वेतन एवं लोक सभा के प्रवक्ता एवं उप-प्रवक्ता के वेतन,
    • संघीय न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन,
    • ऋण सम्बन्धी मूलधन एवं ब्याज,
    • न्यायालय के आदेशानुसार सरकार की देनदारियाँ,
    • कोई अन्य व्यय जो संविधान द्वारा चुकाना आवश्यक हो।

    (ब) मतदान योग्य मदें (Votable Items)- इनमें उन मदों को सम्मिलित किया जाता है जिन पर मतदान की आवश्यकता होती है। इन मदों पर बहस का समय पृथक् पृथक् निर्धारित कर दिया जाता है। इसमें लोकसभा का मत लेकर उस माँग को स्वीकृत या अस्वीकृत किया जाता है। माँगों पर बहस के लिए अध्यक्ष द्वारा कुछ खास दिन निश्चित कर दिये जाते हैं। माँगों पर खुलकर बहस की जाती है और सदन द्वारा स्वीकृत होने पर अनुदान माना जाता है। अनुदान सम्बन्धी माँगों के सभी प्रश्न तय हो जाने पर उसे गिलोटन कहते हैं।

    कटौती प्रस्ताव (Cut Motion)- कटौती प्रस्ताव के दो उद्देश्य होते हैं- (i) सरकारी व्यय में मितव्ययिता लाना, (ii) शासन के अनुमानों के सम्बन्ध में विशेष बात की जानकारी प्राप्त करना। 

    मितव्ययिता लाने हेतु बड़ी मात्रा के कटौती प्रस्तावों के सम्बन्ध में प्रस्तावक को यह सुझाव स्वयं ही देना पड़ता है कि किस मद में किस प्रकार की कटौती सम्भव है। इसके विपरीत, छोटी-सी कटौती को सांकेतिक कटौती कहते हैं। उत्तरं सन्तोषप्रद होने पर प्रस्ताव वापस हो जाता है। प्रस्ताव के स्वीकृत हो जाने पर सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास हो जाता है, परन्तु इस स्थिति में सरकार का पतन होना जरूरी नहीं होता ।

    पूरक बजट (Supplementary Budget)- देश में विशेष परिस्थितियाँ होने पर यदि व्यय समय से पूर्व ही समाप्त हो जाता है तो बचे समय के लिए अतिरिक्त राशि की माँग पूरक बजट की सहायता से हो जाती है। भारत में यह बजट नवम्बर में पेश किया जाता है। पूरक बजट के लिए भी संसद से स्वीकृति प्राप्त होना आवश्यक माना गया है। भारत में प्रायः प्रत्येक वर्ष पूरक बजट पेश किया जाता रहा है। देश के आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार के बजट की स्वीकृति दी जाती है। 

    सांकेतिक माँगें (Token Grants)- बजट स्वीकृत होने के बाद कुछ मदें ऐसी होती हैं जिन्हें अनिवार्य रूप से व्यय करना आवश्यक होता है, परन्तु संसद के सामने लाकर स्वीकृति भी प्राप्त करनी होती है, तो ऐसी परिस्थिति में सांकेतिक माँग के रूप में उस व्यय की स्वीकृति लेने हेतु सदन में प्रस्तुत किया जाता है। यदि किसी विशेष कारण से निर्धारण राशि से अधिक धन व्यय हो गया है तो उसकी स्वीकृति के लिए अतिरिक्त अनुदान की व्यवस्था की जाती है। इन अनुदानों की माँगों को लोकसभा में प्रस्तुत करने से पूर्व लोक लेखा समिति के सम्मुख रखा जाता है।

    (5) विनियोजक विधेयक

    बजट की माँगों पर बहस हो जाने के बाद एक विनियोग विधेयक रखा जाता है, जिसमें कर लगाने के सुझाव होते हैं। इसकी प्रक्रिया साधारण विधेयक के समान होती है। लोकसभा द्वारा अपनी कार्यवाही पूरी कर लेने पर इसे राज्यसभा में भेज दिया जाता है। इसके बाद इस विधेयक को कानूनी रूप मिल जाता है और सरकार को संचित कोषों से धन निकालने की अनुमति मिल जाती है। वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पूर्व यदि सरकार को किसी मद के लिए अतिरिक्त धन व्यय करने की आवश्यकता हो तो उसके लिए अनुपूरक माँग प्रस्तुत की जाती है।

    (6) वित्त विधेयक (Finance Bill)

    करों के संग्रह के सम्बन्ध में वित्त बिल सदन में रखा जाता है। यह बिल पारित होने पर अधिनियम का रूप धारण कर लेता है। इस विधेयक में समस्त करारोपण सम्बन्धी प्रस्तावों को सम्मिलित किया जाता है।

    (7) बजट का निष्पादन

    बजट निष्पादन में आय को प्राप्त करके, उन्हें बजट के अनुरूप व्यय किया जाता है। आय प्राप्त करने व व्यय करने सम्बन्धी व्यवस्था प्रस्तुत की जाती है।

    (8) लेखा अनुदान

    संविधान की धारा 16(1) के अनुसार, "लेखा अनुदान संसद द्वारा पास किया गया एक अग्रिम अनुदान है जो नियमित बजट पास होने तक वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए अनुमानित व्यय के सम्बन्ध में होता है।" यह उपाय उस समय प्रयोग किया जाता है जब बजट में सामान्य बहस अप्रैल में भी चलती रहती हो। वित्तीय वर्ष पहली अप्रैल से प्रारम्भ होता है तथा मार्च तक समाप्त हो जाता है। प्रत्येक बजट प्रति वर्ष 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर 31 मार्च को समाप्त हो जाता है। इसे वित्तीय वर्ष कहा जाता है।

    बजटिंग के लक्षण

    बजटिंग के अनेक लक्षण होते हैं जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। बजट बनाने में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-

    (1) नकदी के आधार- पर बजट का निर्माण नकदी के आधार पर किया जाना चाहिए, बहीखाते के आधार पर नहीं। इस प्रकार बजट में दिखायी जाने वाली समस्त मर्दे उसी वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित होनी चाहिए। बजट में पूर्व वर्षों या आगामी वर्षों के आँकड़े केवल प्रदर्शित किये जाते हैं।

    (2) कुल आय आधार- बजट को कुल आय के आधार पर बनाया जाना चाहिए, शुद्ध आय के आधार पर नहीं। बजट में कुल आय को एक स्थान पर तथा एकत्रित करने सम्बन्धित व्ययों को दूसरे स्थान पर दिखाया जाना चाहिए, अर्थात् बजट में आय एवं व्यय को पृथक् पृथक् दिखाया जाना चाहिए। 

    (3) संसद का नियन्त्रण- शासन विभाग पर संसद का पूरा नियन्त्रण बने रहने से उन्हें समस्त प्रकार के व्ययों के लिए संसद से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती है। स्वीकृति प्राप्त होने के बाद ही कोई व्यय लोक क्षेत्र में किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।

    (4) वास्तविक अनुमान- बजट में अनुमानों को वास्तविक आधार पर ही दिखाया जाना चाहिए। बजट को अनुमानित आधार पर दिखाने से जनता से अधिक मात्रा में कर वसूल कर लिया जायेगा जोकि उचित नहीं है।

    (5) वास्तविक स्थिति- बजट को एक व्यय में एक ही मद में दिखाया जाना चाहिए, जिससे वास्तविक स्थिति को ज्ञात किया जा सके। यदि अनेक मदों में इसे दिखाया गया तो उसकी वास्तविक स्थिति की जानकारी प्राप्त नहीं हो पायेगी।

    (6) एक-वर्षीय बजट- शासन विभाग के कार्यों पर देखभाल एवं उचित नियन्त्रण लगाने के लिए बजट को एक-वर्षीय आधार पर ही बनाया जाना चाहिए जिससे प्रत्येक वर्ष लोक सभा कार्यकारिणी के कार्यों का अवलोकन कर सके।

    (7) समस्त क्रियाओं का एक ही बजट- देश में समस्त आर्थिक क्रियाओं के लिए एक ही बजट बनाया जाना चाहिए, जिससे देश की आर्थिक स्थिति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त हो सके। जैसे- भारत में दामोदर घाटी निगम एवं रेलवे के लिए जो पृथक् पृथक् बजट बनाये जाते हैं, वह उचित नहीं माने जाते हैं। 

    (8) सन्तुलित बजट- बजट सदैव सन्तुलित ही होना चाहिए। ब्यूहलर के अनुसार, "एक सन्तुलित बजट से सरकार में विश्वास उत्पन्न होता है तथा आर्थिक अवस्थाओं पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।" जिस प्रकार व्यक्ति को अपनी आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए उसी प्रकार से सरकार को चाहिए कि वह अपने व्यय को आय की सीमा के अन्दर ही सीमित रखे।

    (9) बजट समाप्ति नियम- बजट में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि यदि वित्तीय वर्ष में किसी विभाग द्वारा कोई राशि व्यय न की जा सके तो उसे डूबा गया समझा जायगा और अगले वर्ष के लिए उसे आधिक्य के रूप में जमा नहीं किया जा सकता।

    (10) समान लेखे- वित्तीय नियन्त्रण में सुविधा रहने की दृष्टि से केन्द्र एवं राज्यों में समान आधार पर ही लेखों को रखा जाना चाहिए।

    (11) संगठित व कुशल वित्तीय प्रबन्ध- बजट एवं सरकार की वित्तीय नीति की सफलता देश की संगठित एवं कुशल वित्तीय प्रबन्ध पर निर्भर करती है।

    (12) वैज्ञानिक प्रशासनिक आधार- बजट का निर्माण सदैव वैज्ञानिक प्रशासनिक आधार पर किया जाना चाहिए जिससे देश के आर्थिक विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ सके।

    (13) आर्थिक प्रगति का सूचक- बजट देश की आर्थिक प्रगति का सूचक होता है। अतः बजट का निर्माण करने में अत्यन्त ही सावधानीपूर्वक कार्य किया जाना चाहिए।

    बजट के विभिन्न रूप

    बजट के विभिन्न रूपों को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है-

    (1) आधिक्य बजट- जब लोक व्यय की तुलना में आय अधिक हो तो ऐसे बजट को आधिक्य बजट कहते हैं।

    (2) पूँजीगत बजट- इस बजट में केवल पूँजीगत मदों को ही सम्मिलित किया जाता है। इसके लिए लोक ऋण द्वारा ही धन प्राप्त किया जाता है। इसे सामान्य बजट से पृथक् रखा जाता है।

    (3) रोकड़ बजट- इस बजट में सरकार के समस्त रोकड़ सम्बन्धी आय एवं व्ययों को रखा जाता है। इससे देश की सही आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

    (4) बहुउद्देशीय बजट- इस बजट का उ‌द्देश्य देश में वित्तीय नियन्त्रण रखना एवं वित्तीय योजना को सफल बनाना है। देश में समस्या उत्पन्न होने पर बजट की सहायता से उसका उचित समाधान कर दिया जाता है। अतः यह बजट अल्पकालीन होते हैं।

    (5) आपत्तिकालीन बजट- युद्ध एवं मन्दी जैसी संकटकालीन परिस्थितियों में साधारण बजट के अतिरिक्त बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप एक और बजट का निर्माण किया जाता है जिसे आपत्तिकालीन बजट कहते हैं।

    (6) साधारण बजट- जो बजट सामान्य परिस्थितियों में वार्षिक आधार पर तैयार किये जाते हैं, उन्हें साधारण बजट कहते हैं। इस बजट में सरकार की समस्त क्रियाओं का सही विवरण प्राप्त नहीं हो पाता।

    (7) घाटे का बजट- यदि बजट में आय की अपेक्षा व्यय को अधिक मात्रा में दिखाया जाय तो उसे घाटे का बजट कहते हैं। अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों में तीव्र आर्थिक विकास हेतु प्रायः घाटे के बजट ही बनाये जाते हैं।

    (8) सन्तुलित बजट- जब बजट अवधि में आयगत प्राप्तियाँ तथा आयगत व्यय बराबर हों तो उसे सन्तुलित बजट कहते हैं। यह एक आदर्श व्यवस्था होती है, जिसका पालन करना बड़ा कठिन कार्य रहता है। लुट्द्ध ने सन्तुलित बजट को ही वित्तीय स्थिरता का प्रतीक माना है। असन्तुलित बजट ऐसा करने में अक्षम है।

    बजट के लाभ

    बजट निर्माण करने के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

    (1) बजट का मितव्ययी होना- बजट को उत्पादक कार्यों पर ही व्यय किया जाना चाहिए, जिससे समाज का अधिकतम कल्याण सम्भव हो सके। इसके लिए बजट का मितव्ययी होना आवश्यक है।

    (2) व्यापक बजट- बजट का सम्बन्ध पूरे राष्ट्र के साथ होने के कारण इसे व्यापक होना चाहिए। बजट का उद्देश्य समाज का विकास करना है जिससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि सम्भव हो सके।

    (3) वास्तविक होना- सरकार बजट के द्वारा अगले वर्ष के लिए अनुमानित वित्तीय योजना तैयार करती है जिसमें अनुमान ही रहते हैं। यदि सोच-विचार कर बजट का निर्माण किया जाय तो भावी कार्यक्रमों का सही चित्रण किया जा सकता है। अनुमान तथा वास्तविकता में पर्याप्त सामंजस्य होना चाहिए।

    (4) सन्तुलित बजट- बजट का महत्वपूर्ण गुण उसका सन्तुलित होना है। ऐसा न होने पर देश को हानि सहन करनी होती है। अतः बजट में आय एवं व्यय दोनों बराबर होने चाहिए।

    (5) बजट का कल्याणकारी होना- बजट में देश के अधिकतम कल्याण को महत्व दिया जाना चाहिए। यदि बजट का समाज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तो उससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि होगी तथा उत्पादन, रोजगार एवं पूँजी निर्माण में भी वृद्धि सम्भव हो सकेगी।

    (6) प्रभाव से मुक्ति- बजट का निर्माण किसी भी राजनीतिक या व्यक्तिगत दबाव में आकर नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे देश का आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

    राजस्व पर नियन्त्रण

    सरकारी आय एवं व्यय पर नियन्त्रण रखा जाना आवश्यक है और यह तीन संस्थाओं द्वारा किया जाता है-

    इस कार्य को करने हेतु विधानसभा की निम्नलिखित समितियाँ कार्य करती है- (i) स्थायी वित्त समिति, (ii) राजकीय हिसाब समिति। भारत में उक्त जाँच तन्त्र के द्वारा वित्तीय नियन्त्रण केन्द्र एवं राज्य स्तर पर रखा जाता है।

    बजटिंग तकनीक

    बजटिंग तकनीक दो प्रकार की होती है-

    (1) प्रतिष्ठित तकनीक

    शास्त्रीय अर्थशास्त्री सन्तुलित बजट के प्रतिपादक थे। अर्थव्यवस्था में माँग व पूर्ति को सदैव बराबर माना जाता था और संघर्षात्मक बेरोजगारी ही विद्यमान रहती थी। निजी उद्योग पूर्ण रोजगार बनाये रखने की क्षमता रखता है जिसमें एक व्यक्ति की आय दूसरे व्यक्ति के व्यय पर आश्रित है और एक-दूसरे के बराबर होती है। अतः सरकारी दखल अर्थव्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न कर देगा।

    (2) आधुनिक तकनीक

    इसका प्रतिपादन लॉर्ड केन्स ने किया। हैन्सन के अनुसार, "यदि कोई अपने पूरे हृदय से यह सिद्धान्त अपनाता है तो सरकार की वित्तीय क्रियाओं को पूरे तौर से आर्थिक एवं लोक नीति का उपकरण माना जाना चाहिए, सन्तुलित बजट की धारणा चाहे कैसी भी हो, उस नीति के निर्धारण में कोई भी भूमिका नहीं निभा सकती है।" डाल्टन के अनुसार, "बजट को आर्थिक जीवन पर स्थायित्व लाने वाले प्रभाव के रूप में समझा जाना चाहिए।" अतः बजट में निम्न उद्देश्यों को प्राप्त करने का संयुक्त उपकरण होना चाहिए- 

    • पूर्ण रोजगार, 
    • विनियोग का उच्च स्तर, 
    • अ-स्फीति, तथा 
    • बेहतर वितरण व्यवस्था।

    प्रशुल्क नीति का मुख्य उद्देश्य देश में आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना है तथा बजटिंग तकनीक द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने की विधियों का प्रयोग किया जाता है। बजटिंग तकनीक प्रशुल्क नीति का एक मुख्य भाग माना जाता है।

    निष्पादन बजट

    वर्तमान में बजट के प्रारूप एवं कार्य प्रणाली में बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन होना आवश्यक है, क्योंकि बजट को सरकारी नीतियों का वास्तविक प्रतिबिम्ब माना जाता है। प्राचीन समय में, जब सरकारी कार्यकलाप सीमित थे, उनके आय एवं व्यय की मात्रा कम होती थी, परम्परागत बजट प्रणाली ही उपयुक्त मानी जाती थी, परन्तु आज के युग में प्रगतिशील सरकारों और बढ़ते हुए कल्याणकारी कार्यकलापों के फलस्वरूप लोक आय तथा व्यय का आकार इतना विस्तृत हो गया है कि बजट के परम्परागत स्वरूप का कोई महत्व नहीं है।

    निष्पादन बजट का अर्थ एवं परिभाषा 

    निष्पादन बजट सरकारी बजट तैयार करने की वह विधि है, जिसमें बजट में सम्मिलित होने वाली प्रत्येक मद किसी विशेष आर्थिक क्रिया को व्यक्त करती है। अतः "निष्पादन बजट सरकारी व्यय को कार्यकलापों, कृत्यों तथा निष्पादन इकाइयों में प्रस्तुत करने की एक ऐसी सुव्यवस्थित प्रणाली है, जिसका उ‌द्देश्य सरकारी उपज तथा लागत पर सामयिक प्रकाश डालना है।"

    अमेरिकन बजट ब्यूरो- "निष्पादन बजट वह बजट है जिसमें सरकार के उन उ‌द्देश्यों, जिनके लिए कोषों की माँग की जाती है, को पूर्ण करने की प्रस्तावित लागत और प्रत्येक परियोजना के अन्तर्गत पूर्ण किये जाने वाले कार्य का मूल्यांकन करने सम्बन्धी परिमाणात्मक आँकड़ों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जाता है।"

    गुण

    1. इसके द्वारा सरकारी व्यय पर नियन्त्रण रखना अधिक सरल हो जाता है। सरकारी व्यय को बजट की सीमा तक ही रखा जाता है तथा उस सीमा से अधिक व्यय स्वीकृत नहीं किया जाता है।
    2. निष्पादन बजट की सहायता से एक और वित्तीय व्यय व दूसरी ओर उन व्ययों से उत्पन्न भौतिक परिणामों की प्राप्ति के मध्य निकट सम्बन्ध स्थापित किया जाता है।
    3. इसके द्वारा यह भी पता लगाया जा सकता है कि जिन उद्देश्यों के लिए धन व्यय किया गया था, वे कहाँ तक पूरे हो सके हैं।
    4. इसे लागू करने की सिफारिश हुबर आयोग द्वारा की गयी थी और यह पद्धति आज भी अधिकांश देशों में लागू है।

    अवस्थाएँ

    निष्पादन बजट प्रणाली की तीन अवस्थाएँ है-

    1. विभिन्न राजकोषीय उपायों व नीतियों का निर्माण किया जाता है।
    2. विश्लेषणात्मक अवस्था में प्रस्तावित कार्यक्रमों का लागत-लाभ विश्लेषण तैयार किया जाता है। इसमें उद्देश्यों की पूर्ति के वैकल्पिक उपायों पर विचार करके सबसे अधिक मितव्ययी विकल्प को छाँट लिया जाता है।
    3. परियोजनात्मक अवस्था के अन्तर्गत चालू कार्यक्रमों तथा नीतियों को भावी लाभों से सम्बन्ध किया जाता है और अन्त में अवधि के समाप्त होने पर चुने हुए कार्य-कलापों की वास्तविक उपलब्धियों का मूल्यांकन कर लिया जाता है।

    सफलता की शर्तें (Conditions for Success)

    सफलता की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित हैं-

    1. कार्य मापन का निर्धारण करना एवं निष्पादन प्रमाप का प्रयोग करना।
    2. कार्य के आधार पर बजटिंग का रिकॉर्ड तैयार किया जाना चाहिए।
    3. निष्पादन बजटिंग में उचित व पर्याप्त लेखांकन व्यवस्था होनी चाहिए।
    4. निष्पादन रिपोर्टिंग के आधार पर संगठित कार्यक्रम प्रबन्ध होना चाहिए।
    5. प्रत्येक व्यय को ब्यौरे के आधार पर पृथक् से दिखाया जाना चाहिए।

    सुझाव (Suggestions)

    1. लेखा प्रारूप में परिवर्तन लाया जाना चाहिए।
    2. सरकारी संगठन में पुनर्गठन किया जाना आवश्यक है।
    3. राज्य सरकारों को निष्पादन बजटिंग के पालन करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    4. नवीन विधि का प्रयोग केन्द्र के चुने विभागों एवं राज्य सरकार के प्रत्येक विभाग में किया
    5. जाना चाहिए।
    6. पर्याप्त तैयारी करके व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन लाया जाना चाहिए।

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