बाजार विभक्तिकरण का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, आधार, आवश्यकतायें तथा लाभ अथवा महत्व

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ए राबर्ट के अनुसार- "बाजार विभक्तिकरण से आशय किसी उत्पाद के बाजार को टुकड़ों में करने की रीति-नीति से है ताकि उस पर विजय प्राप्त की जा सके।"

    आज के गलाकाट प्रतिस्पर्दी युग में ग्राहक सर्वोपरि है और उसकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि में ही विपणकों की सफलता निहित है। ग्राहकों की रुचियों, प्राथमिकताओं, आवश्यकताओं एवं क्रय-व्यवहार में अन्तर पाया जाता है। एक ही प्रकार का उत्पाद सभी प्रकार के उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं कर सकता। इस कारण एक ही निर्माता एक प्रकार के ग्राहकों के समुदाय के लिए एक प्रकार की वस्तु बनाता है और दूसरे प्रकार के ग्राहक के समुदाय के लिए दूसरी प्रकार की वस्तु बनाता है। उदाहरण के लिए, आधुनिक कपड़ा मिल तीन किस्म के कपड़े का निर्माण करती है- मोटा कपड़ा जिसे निम्न वर्ग के लोग क्रय करते हैं, फाइन कपड़ा जिसे मध्यम श्रेणी के लोग क्रय करते हैं और सुपरफाइन कपड़ा जिसे उच्च वर्ग के लोग क्रम करते हैं। इस प्रकार वह अपने बाजार को विभिन्न खण्डों में विभाजित कर देता है। इस प्रकार का खण्डीकरण ही 'बाजार विभक्तिकरण' कहलाता है। इस बाजार विभक्तिकरण का आधार आय, आयु, लिंग, शिक्षा, रहन-सहन का स्तर आदि हो सकता है।

    बाजार विभक्तिकरण का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, आधार, आवश्यकतायें तथा लाभ अथवा महत्व

    बाजार विभक्तिकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
    (MEANING AND DEFINITIONS OF MARKET SEGMENTATION) 

    अर्थ (Meaning)

    बाजार विभक्तिकरण से आशय किसी वस्तु के बाजार को विभिन्न बाजारों अथवा खण्डों एवं उप-बाजारों अथवा उप-खण्डों में विभाजित किये जाने से है। यह कार्य ग्राहकों की समान प्रकृति, रुचियों, गुणों और आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाता है।

    परिभाषाएँ (Definitions) 

    बाजार विभक्तिकरण को विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न शब्दों में परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नांकित हैं -

    (1) फिलिप कोटलर के अनुसार- "जब कभी किसी उत्पाद या सेवा के सम्बन्ध में बाजार में दो या दो से अधिक क्रेता हों तो वह विभक्त किया जा सकता है अर्थात् सार्थक क्रेता समूहों में विभाजित किया ज सकता है। बाजार विभक्तिकरण को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि "ग्राहकों के समजातीय उपवगों में बाजार के उपविभाजन को बाजार विभक्तिकरण कहते हैं जिसके अन्तर्गत किसी भी उपवर्ग को चुना जा सके और विशिष्ट विपणन अन्तर्लय (Mix) के साथ बाजार लक्ष्य बनाकर उस तक पहुँचा जा सके।"

    (2) विलियम जे. स्टेण्टन के अनुसार- "बाजार विभक्तिकरण से आशय किसी उत्पाद के सम्पूर्ण विजातीय बाजार को अनेक उप-बाजारों या उप-खण्डों में इस प्रकार विभाजित करने से है कि प्रत्येक उप-बाजार उप-खण्ड में सभी महत्वपूर्ण पहलुओं में समजातीयता हो।" 

    (3) ए. राबर्ट के अनुसार- "बाजार विभक्तिकरण बाजारों को टुकड़ों में बाँटने की रीति-नीति है, ताकि उस पर विजय प्राप्त की जा सके।" 

    (4) अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार- "बाजार विभक्तिकरण से आशय एक विजातीय बाजार के सापेक्षिन्नः समजातीय लक्षणों वाले छोटे पाहक खण्डों में, जिन्हें फर्म सन्तुष्ट कर सकती है, विभक्त करने से है।"

    (5) रुस्तम एस. डावर के अनुसार- "बाजारों का वर्गीकरण विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है जो ग्राहक विशेषताओं पर निर्भर करता है। ग्राहकों द्वारा किसी उत्पाद या सेवा का किस प्रकार से प्रभोग किया जाता है, इस आधार पर ग्राहकों के समूह बनाये जा सकते हैं। ग्राहकों का समूहीकरण आयु, लिंग, आय स्तर, शिक्षा या भौगोलिक आधार पर विक्रय क्षेत्रों के सन्दर्भ में भी किया जा सकता है। ग्राहकों का यह समूहीकरण अथवा बाजार को टुकड़ों में बाँटना ही बाजार विभक्तिकरण कहलाता है।"

    निष्कर्ष 

    इस प्रकार बाजार विभक्तिकरण के अन्तर्गत एक उत्पाद के बाजार को विभिन्न उप-बाजारों या खण्डों में विभाजित किया जाता है। यह उप-विभाजन ग्राहकों की विशेषताओं एवं प्रकृति के अनुसार किया जाता है। विपणन की दृष्टि से यह आवश्यक है कि ग्राहकों को समजातीय खण्डों में विभाजित किया जाय और प्रत्येक खण्ड की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए प्रभावपूर्ण विपणन और रीति-नीति (Strategy) तैयार की जाय। संक्षेप में, "किसी उत्पाद या सेवा के बाजार को ग्राहकों की समजातीयता के आधार पर विभिन्न वर्गों अथवा खण्डों में विभाजन करने की क्रिया को बाजार विभक्तिकरण कहते हैं।"

    ध्यान रहे कि बाजार विभक्तिकरण तथा बाजार खण्ड (Market Segment) इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। बाजार विभक्तिकरण एक क्रिया है जिसके द्वारा समूचे बाजार को विभिन्न खण्डों में विभाजित किया जाता है। बाजार खण्ड कुल बाजार का एक भाग है जिसमें प्रत्येक ग्राहक के क्रय-व्यवहार में समानता पायी जाती है।

    यह भी पढ़ें-बाजार विभक्तिकरण से आप क्या समझते हैं? | Bajaar Vibhaktikaran Se Aap Kya Samajhate Hain

    बाजार विभक्तिकरण का उद्देश्य
    (OBJECTIVE OF MARKET SEGMENTATION)

    यह तो सर्वविदित है कि सभी क्रेता एक समान नहीं होते अपितु उनमें पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर वस्तुओं के चयन को प्रभावित करता है। अतः बाजार विभक्तिकरण का प्रमुख उद्देश्य किसी उत्पाद के विभिन्न क्रेताओं में जो अन्तर पाया जाता है, उसका पता लगाना है, ताकि उसी के अनुसार उत्पाद का विक्रेता विपणन की विभिन्न विधियों एवं रीति-नीतियों का निर्धारण कर सके। 

    एसमण्ड पीयर्स (Esmond Pearce) के अनुसार, "बाजार विभक्तिकरण का उद्देश्य क्रेताओं के बीच उन अन्तरों को निर्धारित करता है जो कि बाजार क्षेत्र अथवा विपणन विधियों के चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं।" विपणन प्रबन्ध विशेषज्ञ श्री फिलिप बोटलर के अनुसार, "बाजार विभक्तिकरण का उद्देश्य क्रेताओं के मध्य पाये जाने वाले अन्तरों का पता लगाना है, ताकि उनमें चुनाव करना अथवा उनको विपणन करना सम्भव हो जाए।" विलियम जे. स्टेण्टन के अनुसार, "बाजार विभक्तिकरण के अन्तर्गत किसी उत्पाद के सम्पूर्ण विजातीय (Heterogenous) बाजार को कई उप-बाजारों या खण्डों में इस प्रकार बाँटा जाता है कि प्रत्येक उप-बाजार या खण्ड समस्त महत्वपूर्ण पहलुओ के समान हों।" 

    एक अर्थशास्त्री की भाषा में यह कहा जा सकता है कि हम कई माँग-सारणियों का विकास करते हैं जिनमें से प्रत्येक एक अलग बाजार खण्ड के लिए होगी, जबकि पहले सम्पूर्ण बाजार के लिए केवल एक ही सारणी थी।" बाजारों अथवा खण्डों में विभाजित कर सकते हैं, जैसे कॉलेज के छात्रों के लिए जूतों का बाजार, बच्चों के लिए जूतों का बाजार, खिलाड़ियों के लिए जूतों का बाजार, कार्यालय में कार्यरत व्यक्तियों के लिए जूतों का बाजार, लूले, लँगड़े व अन्य अपाहिजों के लिए जूतों का बाजार, बूढ़े एवं अन्य अवकाश प्राप्त लोगों के लिए जूतों का बाजार आदि।

    उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि निष्कर्ष रूप में बाजार विभक्तिकरण के प्रमुख उद्देश्य निम्न है- 

    • ग्राहकों को उनकी समान प्रकृति, रुचियों, स्वभाव, गुणों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप समाजतीय वर्गों में बाँटना, ताकि प्रत्येक वर्ग के लिए उपयुक्त विपणन कार्यक्रम तैयार किया जा सके। उदाहरण के लिए, पुस्तकों की बिक्री के विज्ञापन अलग विषयों एवं अलग कक्षाओं के छात्रों के लिए अलग-अलग होंगे। 
    • ग्राहकों की. रुचियों, क्रय आदतों, आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं का पता लगाना। 
    • विपणन रीति-नीतियाँ एवं लक्ष्य निर्धारित करना। 
    • फर्म के कार्यों को ग्राहकोन्मुखी बनाना। 
    • उन क्षेत्रों का पता लगाना जिनमें प्रयत्न करने पर ग्राहक बनाये जा सकते हैं और विपणन क्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है।

    बाजार विभक्तिकरण के विकास के कारण 
    (CAUSES OF THE DEVELOPMENT OF MARKET SEGMENTATION)

    वेण्डल आर. स्मिथ के अनुसार, "उत्पाद विभिन्नीकरण तथा बाजार विभक्तिकरण दोनों वैकल्पिक विपणन व्यूह रचना है।" उन्होंने अपने लेख में बाजार विभक्तिकरण के विकसित होने के निम्न कारण बताये हैं- 

    (1) तकनीकी विकास के कारण अनेक वस्तुओं की कुशल निर्माणी इकाई (Manufacturing Unit) के न्यूनतम आकार में कमी आ गई है, अतः इन वस्तुओं का उत्पादन छोटे पैमाने पर भी उतने ही प्रति इकाई की लागत पर किया जा सकता है जितना कि पहले किया जाता रहा है। इससे भिन्न-भिन्न वर्ग-समूहों (Market Segments) के लिए उनकी आवश्यकतानुसार वस्तुएँ उत्पादन करना सम्भव हो गया है।

    (2) स्व-सेवा (Self-service) और इससे मिलती-जुलती लागत कम करने वाली तकनीकों (Cost Reducing Techniques) को अपनाने की वजह से उत्पाद व उसकी माँग में अच्छा समायोजन होना आवश्यक हो गया है। बाजार-खण्ड के अनुरूप उत्पाद-पूर्ति से उत्पाद और उसकी माँग में अच्छे समायोजन की सम्भावना होती है।

    (3) पिछले कुछ दशकों से क्रेता वस्तु-क्रय सावधानी से क्रय करने लगा है। क्रेता की आय में वृद्धि होने से वह अपनी रुचि के अनुकूल वस्तु प्राप्त करने पर अधिक जोर देने लगा है, चाहे उसे अधिक मूल्य क्यों न देना पड़े। बाजार विभक्तिकरण द्वारा उनकी रुचि के अनुकूल वस्तुओं की पूर्ति करना सुगम हो जाता है।

    (4) वस्तुओं की किस्मों और उनकी स्थानापन्न वस्तुओं (Substitutes) के बढ़ जाने से बाजार ग्राहकोन्मुखी होता जा रहा है। प्रत्येक विक्रेता अपनी वस्तु बेचने के लिए क्रेता को खोजता रहता है। बाजार विभक्तिकरण द्वारा विक्रेता को इस कार्य में सहायता प्राप्त होती है। 

    (5) प्रवर्तन के कुछ समय पश्चात् बाजार विभक्तिकरण आवश्यक हो जाता है, कारण कि एक सम्पूर्ण बाजार के लिए विपणन प्रयास पर किया जाने वाला खर्च क्रमशः घटते हुए प्रतिफल देने लगता है।

    (6) अनेक व्यावसायिक फर्मों में कुल लागत का अधिकांश भाग स्थायी लागत के रूप में होता है। अतः विक्रय में कुल मिलाकर स्थिरता लाना आवश्यक हो जाता है। बाजार विभक्तिकरण इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इस सिद्धान्त पर आधारित है कि प्रत्येक क्रेता एक-दूसरे से भिन्न है। अतएव वस्तु बाजार उतने खण्डों में विभक्त किया जा सकता है जितने कि उसके विक्रेता हैं।

    बाजार विभक्तिकरण के आधार
    (BASES OR CRITERIA FOR MARKET SEGMENTATION)

    बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है। प्रायः उपभोक्ता बाजारों और औद्योगिक बाजारों के विभक्तिकरण के लिए भिन्न-भिन्न आधारों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उपभोक्ता बाजार (Consumer Market) का विभक्तिकरण प्रायः आयु, आय, लिग, शिक्षा, धर्म आदि आधारों पर किया जाता है, जबकि उपभोक्ता का आकार, भौगोलिक विभाग, सामान्य क्रय का तरीका आदि आधारों पर औद्योगिक बाजार (Industrial Market) का विभक्तिकरण किया जाता है। बाजारों के विभक्तिकरण के लिए मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक (Socio-economic) आधारों, जैसे- आयु, लिंग, आय स्तर, शिक्षा आदि का प्रयोग अधिक लोकप्रिय है क्योंकि इनसे विभिन्न ग्राहकों की संवेदनशीलता का अच्छा ज्ञान प्राप्त करना सम्भव होता है। इनके प्रयोग का एक कारण यह भी है कि इनसे सम्बन्धित आँकड़े आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यह उल्लेखनीय है कि इनके अतिरिक्त भी अनेक आधारों पर बाजार विर्भाक्तकरण सम्भव है।

    फिलिप कोटलर के अनुसार- बाजार विभक्तिकरण के मुख्य आधार निम्नांकित हैं :

    (1) भौगोलिक (Geographic)

    एक वस्तु के सम्पूर्ण बाजार का विभक्तिकरण भौगोलिक आधार पर किया जा सकता है। भौगोलिक पैमाने पर उत्पादन किया जाता है और जिन्हें काफी बड़े बाजार क्षेत्र में बेचा जाता है, उनके लिए भौगोलिक तत्व सन्तोषजनक आधार प्रदान करते हैं। सन्पूर्ण बाजार क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्तरों के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे- सांस्कृतिक परम्पराएँ, जलवायु आदि ।

    सांस्कृतिक परम्पराओं के सम्बन्ध में हमारे देश के विभिन्न राज्यों में भी खान-पान, रहन-सहन, रुचियों आदि में काफी अन्तर देखने को मिलता है। इसी प्रकार ग्रामीण बाजार और शहरी बाजार की विशेषताओं में भी काफी भिन्नता पायी जाती है। उदाहरण के लिए, एक फर्नीचर निर्माता को राष्ट्रव्यापी बाजार के निर्माण हेतु विभिन्न बाजार खण्डों की विशेषताओं को ध्यान में रखना होगा। प्रायः भारतीय ग्रामीण बाजारों में अपेक्षाकृत फर्नीचर की कम माँग है और साथ ही फैशनेबल फर्नीचर की माँग तो नहीं के बराबर है। इसी प्रकार एक वस्त्र निर्माता को ग्रामीण क्षेत्रों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए कपड़े के रंगों, डिजाइनों और किस्मों पर विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि कपड़े की जो किस्में और रंग शहरों में अधिक लोकप्रिय होती हैं, उन्हें प्रायः ग्रामीण स्वीकार नहीं करते। इसके विपरीत, गाँवों में लोकप्रिय रंगों एवं डिजाइनों को शहरी लोग प्रायः 'गंवारू' कहकर स्वीकार नहीं करते हैं।

    अनेक वस्तुओं के सम्बन्ध में जलवायु सम्बन्धी भौगोलिक अन्तर भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, मुम्बई में ठण्डे एवं गर्म पेय पदार्थों की माँग वर्ष भर रहती है, जबकि दिल्ली, आगरा, कानपुर आदि शहरों में प्रायः शीतकाल में ठण्डे पेय पदार्थों की माँग नहीं के बराबर रह जाती है। इसी प्रकार अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में प्रायः मच्छर अधिक होते हैं, अतः मच्छर मारने की दवा का ऐसे क्षेत्रों में अधिक विक्रय होता है। जहाँ सड़के पक्की होती हैं तो कारों और स्कूटरों का अधिक प्रयोग किया जाता है। इसके विपरीत, धरातल के अधिक ऊँचा-नीचा होने पर जीपों और मोटर साइकिलों के अधिक प्रयोग की सम्भावनाएँ रहती हैं।

    इस प्रकार भौगोलिक अन्तरों के आधार पर बाजार विभक्तिकरण किया जा सकता है, जैसे- ग्रामीण क्षेत्र तथा शहरी क्षेत्र एवं गर्म क्षेत्र तथा ठण्डे क्षेत्र आदि।

    (2) जनांकिकी (Demographic)

    इसके अन्तर्गत एक विक्रेता विभिन्न समूहों में जनांकिकी चलों के आधार पर अन्तर करने का प्रयास करता है, जैसे- आयु, लिंग, परिवार का आकार, आय, धन्धा, शिक्षा, धर्म, राष्ट्रीयता आदि। ये जनांकिकी चल (Demographic Variables) काफी समय तक बाजार का सर्वाधिक लोकप्रिय आधार रहे हैं क्योंकि प्रथम, ये चल अनेक विक्रय उत्पादों के साथ अच्छी तरह से सम्बन्धित होते हैं। द्वितीय, इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है और अन्य अनेक चलों की तुलना में आसानी से मापा जा सकता है। तृतीय, इसके अन्तर्गत आवश्यक समंक आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।

    (3) मनोवैज्ञानिक (Psychologic)

    मनोवैज्ञानिक आधार पर भी बाजार विभक्तिकरण किया जा सकता है। अनेक उत्पादों के सम्बन्ध में क्रेता व्यवहार की भिन्नताओं के पीछे व्यक्तित्व सम्बन्धी तत्व भी काफी प्रभावशाली होते हैं, जैसे कुछ व्यक्ति नवीनतम वस्तुओं के क्रय द्वारा अपना उच्च स्तर बनाये रखना चाहते हैं, जबकि कुछ व्यक्ति साधारण वस्तुएँ खरीदकर सादा जीवन ही व्यतीत करना अच्छा समझते हैं।

    (4) लाभ (Benefit) 

    इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं का उप-विभाजन जनांकिकी या मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के बजाय उन विभिन्न लाभों के आधार पर करते हैं जिनकी क्रेता वस्तु का क्रय करते समय आशा करते हैं। उदाहरण के लिए, टूथ पेस्ट के सम्बन्ध में कुछ क्रेता दाँतों को गिरने से रोकना, चमकदार दाँत, स्वाद या कम कीमत आदि लाभों की आशा करते हैं। इसी प्रकार नहाने के साबुन के सम्बन्ध में कुछ क्रेता कीटाणुनाशक शक्ति या सफाई या सौन्दर्य आदि लाभों की आशा करते हैं। अतः ग्राहकों के लाभों को ध्यान में रखकर भी बाजार विभक्तिकरण किया जा सकता है।

    (5) विपणन (Marketing) 

    इसके अन्तर्गत बाजार विभक्तिकरण विभिन्न विपणन घटकों के आधार पर किया जाता है, जैसे- वस्तु की किस्म, कीमत, विज्ञापन आदि।

    (6) परिमाण (Volume)

    इसके अन्तर्गत ग्राहकों द्वारा वस्तु की क्रय की मात्रा के आधार पर ग्राहकों में अन्तर किया जाता है, जैसे- अधिक मात्रा में माल खरीदने वाले प्राहक अथवा कम मात्रा में माल खरीदने वाले पाहक। इस प्रकार ग्राहकों में अन्तर करने के पश्चात् विक्रेता द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि क्या इन ग्राहक समूहों में जनांकिकी या मनोवैज्ञानिक आधार पर कोई अन्तर है। विक्रेता अधिक मात्रा में माल खरीदने वाले क्रेताओं की विशेषताओं में सर्वाधिक दिलचस्पी लेता है।

    (7) वस्तु स्थान (Product Space)

    बाजार विभक्तिकरण का यह आधुनिक आधार है। इसके अन्तर्गत ग्राहकों से यह कहा जाता है कि वे विक्रेता की वस्तु की अन्य बाण्डों से तुलना करें। तत्पश्चात् समूह विश्लेषण द्वारा उत्तरदाताओं का विभिन्न समूहों में वर्गीकरण किया जाता है जिनमें आन्तरिक एकरूपता होती है परन्तु एक समूह से दूसरा समूह पूरी तरह भिन्न होता है। उत्तरदाताओं के प्रत्येक समूह को उत्पाद के सम्बन्ध में विशिष्ट ज्ञान या अनुभूति होती है। इसके पश्चात् विश्लेषणकर्ता यह देखता है कि क्या विभिन्न समूह विशिष्ट जनांकिकी या मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ रखते हैं? यदि हाँ तो उसे इस प्रकार विभिन्न उत्पाद प्राथमिकताओं पर आधारित वास्तविक खण्डों का पता लग जाता है।

    प्रभावी बाजार विभक्तिकरण की आवश्यकताएँ
    (REQUIREMENTS FOR AN EFFECTIVE MARKET SEGMENTATION)

    एक विपणनकर्ता सभी ग्राहकों के साथ एक-सा व्यवहार नहीं करना चाहता और न ही प्रत्येक ग्राहक के साथ पृथक् व्यवहार करना चाहता है। ऐसी स्थिति में उसे ग्राहकों के व्यापक वर्ग बनाने होंगे परन्तु उसके सामने मुख्य प्रश्न यह उपस्थित होता है कि प्राहक विशेषताओं के अनुसार किस प्रकार सर्वोत्तम ढंग से बाजार का विभक्तिकरण किया जाय। प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए उपयुक्त ग्राहक विशेषताओं का चुनाव करने में विपणनकर्ता को निम्नांकित शर्तों की पूर्ति पर ध्यान देना चाहिए-

    (1) पहचान (Identity)

    प्रभावी बाजार विभक्तिकरण की प्रथम शर्त उसकी पहचान का होना है। विपणन प्रबन्धक के पास खण्ड के सदस्यों की पहचान करने के कुछ साधनों का होना नितान्त आवश्यक है। विभिन्न खण्डों के मध्य स्पष्ट अन्तर होना चाहिए। ऐसे खण्डों के सदस्यों के कुछ समान लक्षण होने चाहिए जोकि समान व्यवहार का प्रदर्शन करते हों।

    (2) मापन योग्यता (Measurability) 

    द्वितीय शर्त मापन योग्यता है जिसका आशय है विशिष्ट क्रेता विशेषताओं के सम्बन्ध में किस सीमा तक सूचनाएँ विद्यमान हैं अथवा उपलब्ध हैं। दुर्भाग्यवश अनेक सुझावित विशेषताओं (Suggestive Characteristics) को सरलता से मापना सम्भव नहीं होता। उदाहरण के लिए, उन कार विक्रेताओं नाओं की संख्या को या को मापना कठिन होता है जो कि मुख्य रूप से मितव्ययिता बनाम हैसियत या स्तर बनाम किस्म (Economy Vs. Status Vs. Quality) आदि विचारों से अभिप्रेरित होते हैं। इस प्रकार प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता को क्रेता सम्बन्धी विशेषताओं की पर्याप्त सूचना होनी चाहिए और उसे मापना सम्भव होना चाहिए।

    (3) सुगम पहुँच सम्भव (Easy Accessibility)

    बाजार विभक्तिकरण को प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि वह इस प्रकार का हो कि फर्म की समस्त खण्डों तक सुगम पहुँच हो। दूसरे शब्दों में, फर्म अपने विपणन प्रयासों को चुने हुए खण्डों पर प्रभावशाली ढंग से केन्द्रित करने में समर्थ होनी चाहिए।

    (4) पर्याप्त आकार (Sustantiality)

    प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए यह आवश्यक है कि बाजार खण्ड पर्याप्त बड़े होने चाहिए जिससे प्रत्येक बाजार खण्ड के लिए एक पृथक् लाभदायक विपणन योजना बनायी जा सके। उदाहरण के लिए, सस्ती उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माता ऐसे लोगों के मध्य वस्तुओं का विक्रय करेंगे जोकि अधिक संख्या में हैं, यद्यपि तुलनात्मक दृष्टि से गरीब हैं। इसके विपरीत, विलासिता की वस्तुओं के निर्माता ऐसे लोगों में वरतुओं का विक्रय करना पसन्द करेंगे जोकि रईस हैं यद्यपि उनकी संख्या कम है।

    (5) बाजार प्रतिक्रिया (Market Responsiveness) 

    बाजार विभक्तिकरण प्रभावी तभी कहा जा सकता है, जबकि विपणन अन्तर्लय में किये गये परिवर्तनों या विपणन प्रयासों के सम्बन्ध में सम्बन्धित बाजार खण्ड से अनुकूल प्रतिक्रिया प्राप्त हो। उदाहरण के लिए, यदि कोई बाजार खण्ड लागतों के प्रति विशेष संवेदनशील (Conscious) है है तो तो वस्तु के मूल्यों में की गई वृद्धि का ऐसे बाजार खण्ड की माँग पर विपरीत प्रभाव पड़ना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो बाजार खण्ड को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। अन्य शब्दों में कहा जाय तो , बाजार विभक्तिकरण की नीति पर पुनः विचार करना चाहिए।

    (6) माँग की प्रकृति (Nature of Demand)

    माँग की प्रकृति से आशय विभिन्न खण्डों में विभिन्न मात्रा में वस्तुओं की माँग होना। खण्डों की स्थापना के लिए माँग की मात्रा में विभिन्नताएँ होना परम आवश्यक है।

    बाजार विभक्तिकरण के लाभ अथवा महत्व
    (BENEFITS OR IMPORTANCE OF MARKET SEGMENTATION)

    एक विक्रेता को अपने बाजार को अनेक खण्डों एवं उप-खण्डों में विभाजित करने से निम्नांकित लाभ प्राप्त होते हैं-

    (1) सुदृढ़ एवं प्रभावशाली विपणन कार्यक्रम (Sound and Effective Marketing Programme)

    सम्पूर्ण बाजार को विभिन्न खण्डों में विभक्त करके एक विक्रेता अधिक प्रभावशाली एवं सुदृढ़ विपणन कार्यक्रम तैयार करने में सफल हो जाता है। बाजार विभक्तिकरण की अवस्था में पृथक् पृथक् क्रेता समूहों के लिए पृथक् पृथक् सुदृढ़ विपणन कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत सभी सम्भावित क्रेताओं को आकर्षित करने के लिए एक ही विपणन कार्यक्रम (Marketing Programme) का प्रयोग करने के स्थान पर विभिन्न खण्डों की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न विपणन कार्यक्रमों का प्रयोग किया जा सकता है।

    (2) विपणन अवसरों को जानना और उनकी तुलना करना सम्भव (Spotting Marketing Opportunities and their Comparison) 

    बाजार विभक्तिकरण द्वारा विपणन अवसरों के सम्बन्ध में अधिक अच्छी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके द्वारा विक्रेता प्रचलित प्रतिस्पर्द्धा के प्रकाश में प्रत्येक खण्ड की आवश्यकताओं की जाँच कर सकता है और उपभोक्ताओं को प्राप्त सन्तुष्टि का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जिन खण्डों में विक्रेता की मात्रा कम होती है, वहाँ पर विक्रय वृद्धि हेतु विपणन सुविधाओं में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है।

    (3) साधनों का उचित उपयोग (Proper Utilisation of Resources) 

    विभक्तिकरण द्वारा एक विक्रेता अपने साधनों का अधिक अच्छा उपयोग करने में सफल हो जाता है। विभिन्न बाजार खण्डों की आवश्यकताओं के अनुरूप वह अपने वित्तीय एवं विपणन साधनों का प्रयोग कर सकता है। जिन बाजार खण्डों में विपणन सम्भावनाएँ कम होती हैं, वहाँ विपणन बजट भी कम रखा जाता है। इस प्रकार साधनों की व्यर्थ बर्बादी से बचा जा सकता है।

    (4) प्रतियोगिता का अधिक प्रभावशाली ढंग से सामना करना सम्भव (Mecting the Competition Effectively)

    बाजार विभक्तिकरण द्वारा विभिन्न बाजार खण्डों के लिए प्रतिस्पर्द्धा के अनुरूप भिन्न-भिन्न विपणन रीति-नीति (Strategy) का प्रयोग करके प्रतिस्पर्द्धा का प्रभावशाली ढंग से सामना किया जा सकता है। 

    (5) उपयुक्त विज्ञापन अपील (Suitable Market Appeal) 

    अलग-अलग बाजार खण्डों के लिए अलग-अलग विज्ञापन माध्यमों का प्रयोग करके विज्ञापन अपील को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

    (6) विपणन बजट का बँटवारा (Allocation of Market Budget) 

    एक निर्माता बाजार विभक्तिकरण के आधार पर अपने विपणन बजट का बंटवारा करके समुचित लाभ कमा सकता है। जिन स्थानों पर विक्रय की सम्भावनाएँ कम हों, उन स्थानों में विपणन बजट में कमी करके विक्रय बजट में वृद्धि की जा सकती है जहाँ विक्रय की सम्भावनाएँ अधिक हों।

    (7) एक लघु फर्म को लाभ (Advantage to a Small Firm)

    बाजार विभक्तिकरण की संकेन्द्रित विपणन रीति-रिवाज का प्रयोग करके एक छोटी फर्म भी बाजार में सफलता प्राप्त कर सकती है।

    (8) उपयुक्त उत्पाद पंक्ति का त्तयन (Selection of Suitable Product Line)

    विक्रेता ऐसी उत्पाद पंक्ति का रूपांकन करना चाहता है जो सभी ग्राहक समूहों की माँग को पूरा कर सके। बाजार विभक्तिकरण के विश्लेषण के बिना यह सम्भव नहीं होता। कई बार विक्रेता ऐसी वस्तु बाजार में ले आते हैं जो कुछ ग्राहक-समूहों की तो आवश्यकता पूर्ति करती है परन्तु अन्य ग्राहकों को उनकी आवश्यकता पूर्ति से वंचित रखती है। इस प्रकार पाहक सन्तुष्टि का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। बाजार खण्डों के विश्लेषण से प्रत्येक पाहक समूह वस्तु सम्बन्धी आवश्यकता का पता लग जाता है और उत्पाद पंक्ति में उन वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा प्रत्येक ग्राहक समूहों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती हो।

    (9) विक्रय संवर्द्धन में सहायक (Assists in Sales Promotion) 

    बाजार विभक्तिकरण उपयुक्त विक्रय संवर्द्धन विधि के चुनाव में सहायता प्रदान करता है। सही विक्रय संवर्द्धन कार्य-कलापों की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।

    (10) उत्पाद-निष्ठा (Product Loyalty)

    विपणक जो किसी बाजार-खण्ड की आवश्यकतानुसार विपणन मिश्रण (Marketing Mix) तैयार करते हैं, वे ग्राहकों में उत्पाद-निष्ठा उत्पन्न करने में सफल होने हैं। वे इस प्रकार प्रतिस्पद्धर्डी उत्पादों के सामने भी ठहर पाते हैं।

    (11) अन्य लाभ (Other Advantages) 

    • ग्राहक सन्तुष्टि, 
    • विपणन अनुसन्धान का प्रभावी मूल्यांकन, 
    • वितरण साधनों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन आदि।

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