लेखक : एक संक्षिप्त परिचय |
• जन्म स्थान- किरथरा
(मैनपुरी), उ.प्र.। • जन्म-1892 ई.। • भाषा- सहज, सरल, प्रवाहयुक्त
खड़ीबोली। • शैली- चित्रात्मक, आत्मकथात्मक, वर्णनात्मक, विवेचनात्मक। • शुक्ल एवं
शुक्लोत्तर-युग के लेखक। • सम्पादन- विशाल
भारत। • हिन्दी साहित्य
में स्थान- शिकार साहित्य के लेखक के रूप में चर्चित । • मृत्यु-1967 ई.। |
श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय
श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गाँव में 1892 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम रेवतीराम शर्मा था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मक्खनपुर में ही हुई। इसके पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये अपने बाल्यकाल से ही अत्यन्त साहसी एवं आत्मविश्वासी थे। श्रीराम शर्मा छात्र जीवन में स्वतंत्रता आन्दोलन की गतिविधियों से जुड़ गए। गणेशशंकर विद्यार्थी, बालकृष्ण शर्मा नवीन प्रभृति विभूतियों के सम्पर्क ने उनकी दृष्टि और लेखन को धार दी। राष्ट्रीयता की भावना भी इनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। प्रारम्भ में इन्होंने शिक्षण-कार्य भी किया। राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल भी गये। इनका आत्मविश्वास इतना सबल था कि बड़ी-से-बड़ी कठिनाई आने पर भी परेशान नहीं होते थे। इनका विशेष झुकाव लेखन और पत्रकारिता की ओर था। ये लम्बे समय तक 'विशाल भारत' पत्रिका के सम्पादक रहे। इनके जीवन के अन्तिम दिन बड़ी कठिनाई से बीते। लम्बी बीमारी के बाद 1967 ई. में इनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक परिचय
श्रीराम शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से आरम्भ किया। 'विशाल भारत' के सम्पादन के अतिरिक्त इन्होंने गणेशशंकर विद्यार्थी के दैनिक पत्र 'प्रताप' में भी सह-सम्पादक के रूप में कार्य किया। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत एवं जनमानस को झकझोर देनेवाले लेख लिखकर इन्होंने अपार ख्याति अर्जित की। ये शिकार-साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे। हिन्दी साहित्य में शिकार-साहित्य का प्रारम्भ इन्हीं के द्वारा माना जाता है।
इनकी पुस्तक 'शिकार' का प्रकाशन 1932 ई. में हुआ था। 'शिकार साहित्य' एक कथेतर विधा है। श्रीराम शर्मा ने इस कथेतर विधा को अपनी भाषा और वर्णन शैली से लोकप्रिय बनाया। इनके शिकार साहित्य में रोमांच है और पशुओं का मनोविज्ञान भी। सम्पादन एवं शिकार-साहित्य के अतिरिक्त इन्होंने संस्मरण और आत्मकथा आदि विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
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श्रीराम शर्मा की कृतियाँ
शर्मा जी ने संस्मरण, जीवनी, शिकार-साहित्य आदि विविध विधाओं में साहित्य का सृजन किया था। इनकी कृतियों का विवरण इस प्रकार है-
शिकार-साहित्य- 'प्राणों का सौदा', 'जंगल के जीव', 'बोलती प्रतिमा' और 'शिकार'। इन सभी रचनाओं में शिकार का रोमांचकारी वर्णन किया गया है। इसके साथ ही पशुओं के मनोविज्ञान का भी सम्यक् परिचय मिलता है।
संस्मरण-साहित्य- 'सेवा ग्राम की डायरी', 'बयालीस के संस्मरण'। इनमें लेखक ने तत्कालीन समाज की झाँकी बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की है।
जीवनी- 'गंगा मैया' एवं 'नेताजी'। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित फुटकर लेख भी आपकी साहित्य-साधना के ही अंग हैं।
भाषा शैली
शर्मा जी की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग इनके कथन को स्पष्ट एवं प्रभावी बनाता है। 'रोजाना', 'आदत' आदि उर्दू के शब्दों के साथ मृग-शावक जैसे संस्कृत शब्दों का प्रयोग भी इन्होंने किया है, पर कहीं भी भाषा का रूप अस्वाभाविक नहीं होने पाया।
शर्मा जी की रचना-शैली वर्णन-प्रधान है। अपने वर्णन में दृश्य अथवा घटना का ऐसा चित्र खींच देते हैं जिससे पाठक का भावात्मक तादात्म्य स्थापित हो जाता है। इनकी कृतियों में चित्रात्मक, आत्मकथात्मक, वर्णनात्मक एवं विवेचनात्मक शैलियों के दर्शन होते हैं।