जैसे जीवित रहने के लिए भोजन प्राप्त करना नितान्त आवश्यक है वैसे ही स्वस्थ व दीर्घ जीवन के लिए सन्तुलितन आहार का महत्व है। पोषण सम्बन्धी सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ है कि विशेष परिस्थितियों वाले व्यक्ति, जैसे-शिशु व बालक और गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली माता के आहार में असन्तुलन तथा महत्वपूर्ण तत्वों की कमी के कारण अत्यधिक दुष्प्रभाव होते हैं। वैसे तो प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन सभी वर्गों के भारतीयें के भोजन में अपर्याप्त रहते हैं परन्तु बालक असन्तोषजनक भोजन से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि हमारे देश के बालकों का शरीर-विकास व स्वास्थ्य बहुधा अत्यन्त निम्न स्तर का पाया जाता है। बहुत-से बालक तो प्रमुख तत्वों के अभाव में अस्वस्थ ही नहीं बल्कि कई रोगों से पीड़ित पाए जाते हैं।
प्रोटीन की कमी का प्रभाव
प्रोटीन की कमी से बालकों का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, यकृत बढ़ जाता है, त्वचा गुन्द तथा पीली हो जाती है, कभी-कभी दस्त भी आने लगते हैं।
विटामिन 'ए' की कमी का प्रभाव
विटामिन की कमी से बालक जीवन-भर के लिए बहुत-से कष्टों के शिकार हो जाते हैं। इसकी कमी का सबसे अधिक कुप्रभाव नेत्रों पर पड़ता है। इसके अभाव से सर्वप्रथम नेत्रों की चमक जाती रहती है। उसे अच्छी तरह दिखाई नहीं देता। वस्तु पकड़ने के लिए हाथ से टटोलता है। धीरे-धीरे दृष्टिदोष बढ़ता है। कभी-कभी तो नेत्रों का प्रकाश सदैव के लिए चला जाता है। स्वस्थ त्वचा के लिए भी यह विटामिन आवश्यक है।
विटामिन 'बी' के अभाव का प्रभाव
इस विटामिन की कमी से बालक पेलॉग्रा, अनीमिया आदि रोगों का शिकार हो जाता है। मुँह के अन्दर की त्वचा में कष्ट होता है और जीभ खरुदरी हो जाती हैं। यह विटामिन तन्त्रिकातन्त्र को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।
विटामिन 'सी' के अभाव का प्रभाव
इस विटामिन के अभाव से बालक स्कर्वी रोग के शिकार हो जाते हैं। साथ ही इसकी कमी से दाँत और मसूड़े अस्वस्थ हो जाते हैं।
विटामिन 'डी' के अभाव का प्रभाव
इसके अभाव में बालकों में अस्थि रोग या रिकेट्स हो जाता है।
खनिज लवणों के अभाव का प्रभाव
कैल्शियम एवं फॉस्फोरस की कमी से बालक का विकास अवरुद्ध हो जाता है। हड्डियाँ और दाँत कमजोर हो जाते हैं। लोहे के अभाव से बालक रक्तहीनता के रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। आयोडीनं के अभाव से थॉयरायड ग्रन्थि अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं कर पाती है।