समुद्रगुप्त की दिग्विजय
उत्तराधिकार युद्ध से निवृत्त होकर समुद्रगुप्त ने अपनी शक्ति को संगठित किया और दिग्विजय का बीड़ा उठाया। समुद्रगुप्त दिग्विजय की भावना से परिपूर्ण था और अपने साम्राज्य का अधिकतम विस्तार करना चाहता था। वह इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त था। समुद्रगुप्त एक सफल सेनापति था। वह अपने जीवन में कभी परास्त नहीं हुआ। उसकी सैन्य सफलताओं के कारण विद्वान् लेखक डॉ.वी.ए. स्मिथ ने उसे 'भारतीय नेपोलियन' के नाम से पुकारा है।
प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार, समुद्रगुप्त की दिग्विजय योजना का ध्येय 'धरणि-बन्ध' (भू-मण्डल को बाँधना) था। जिस समय समुद्रगुप्त शासक बना थ, उस समय सम्पूर्ण भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। समुद्रगुप्त इन राज्यों पर विजय प्राप्त करना तथा भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में बाँधना चाहता था। समुद्रगुप्त की इस दिग्विजय का विवेचन निम्नांकित क्रम में किया जा सकता है-
(1) आर्यावर्त का प्रथम अभियान
समुद्रगुप्त ने अपनी दिग्विजय का प्रारम्भ उत्तरी भारत राजाओं पर विजय प्राप्त करके किया। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में आर्यावर्त के प्रथम भयान का वर्णन किया गया है। प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त द्वारा इस अभियान में विजित राजाओं केवल नाम ही दिये गये हैं, इसमें न तो लड़ाइयों का वर्णन है और न राजाओं के राज्यों की स्थिति का ही ठीक पता चलता है। प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के प्रथम अभियान के दौरान अच्युत, नागसेन, गणपतिनाग और कोटकुलज पर विजय प्राप्त की थी।
(2) दक्षिणापथ का अभियान
उत्तर-भारत के प्रमुख राजाओं को विजित कर समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत का अभियान शुरू किया। दक्षिण भारत के अपने अभियान में समुद्रगुप्त ने 12 राज्यों पर विजय प्राप्त की। समुद्रगुप्त द्वारा विजित राज्य निम्नांकित थे-
- कौशल- कौशल राज्य के अन्तर्गत मध्य प्रदेश के विलासपुर, रायपुर और सम्भलपुर जिले थे। यहाँ के शासक का नाम महेन्द्र था।
- महाकान्तार- महाकान्तार राज्य मध्य प्रदेश का वन्य प्रदेश था। यहाँ के शासक का नाम व्याघ्रराज था।
- कोराल- कोराल राज्य उड़ीसा और मद्रास के मध्य में स्थित था। यहाँ के शासक का नाम मण्टराज था।
- पिष्टपुर-पिष्टपुर राज्य गोदावरी जिले में स्थित था। यहाँ के शासक का नाम महेन्द्रगिरि था।
- कोड्डूर- कोहूर गंजाम जिले में स्थित था। यहाँ के शासक का नाम स्वामिदत्त था।
- एरण्डपल्ल- एरण्डपल्ल सम्भवतः उड़ीसा के समुद्र तट पर स्थित था। यहाँ के शासक का नाम दमन था।
- कांची- कांची राज्य आधुनिक कांजीवरम् नामक स्थान पर स्थित था। यहाँ के शासक का नाम विष्णुगोप था।
- अवमुक्त- अवमुक्त राज्य की भौगोलिक स्थिति निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। यहाँ के शासक का नाम नीलराज था।
- पालक्क- पालक्क राज्य सम्भवतः गोदावरी नदी के तट पर पालकोल्लू नामक स्थान पर स्थित था। यहाँ के शासक का नाम उग्रसेन था।
- देवराष्ट्र- देवराष्ट्र, विशाखापट्टनम् के समीप एलामांचिली नामक स्थान पर था। यहाँ के शासक का नाम कुबेर था।
- कुस्थलपुर- कुस्थलपुर, अरकाट में स्थित कुट्टलुर नामक स्थान पर स्थित था। यहाँ के शासक का नाम धनंजय था।
प्रयोग प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्त दक्षिण के शासकों से केवल अपना प्रभुत्व स्वीकार कराना चाहता था। अतः समुद्रगुप्त ने सभी शासकों को विजित करने के पश्चात् उन्हें अपने-अपने राज्य का शासन करने के लिए पुनः नियुक्त कर दिया और उनमें भेंट व राजस्व लेकर समुद्रगुप्त सन्तुष्ट हो गया।
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(3) आर्यावर्त का द्वितीय अभियान
समुद्रगुप्त ने अपने आर्यावर्त के प्रथम अभियान के दौरान अच्युत, नागसेन, गणपतिनाग और कोटकुलज को परास्त किया था, किन्तु उनका उन्मूलन नहीं किया था। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि जब समुद्रगुप्त दक्षिण के अभियान पर था, तभी उत्तर-भारत के इन राजाओं ने पुनः अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी तथा गुप्तों की बढ़ती हुई शक्ति से आतंकित होकर उत्तर भारत के अन्य शासक भी समुद्रगुप्त का विरोध करने के उद्देश्य से सिर उठाने लगे थे। अतः समुद्रगुप्त ने इन शासकों को सबक सिखाने के लिए आर्यावर्त का द्वितीय अभियान प्रारम्भ किया। आर्यावर्त के द्वितीय अभियान के दौरान समुद्रगुप्त ने रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चन्द्रवर्मा, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नन्दि और बलवर्मा नामक शासकों को पराजित किया।
समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के इन राजाओं से नाराज होकर उन्हें परास्त ही नहीं किया, अपितु शक्ति के द्वारा उनका विनाश भी किया तथा उनको राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
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(4) आटविक राज्यों पर विजय
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के अनुसार, समुद्रगुप्त ने आटविक राज्यों के शासकों को अपना दास बना लिया था। इस तथ्य से ऐसा प्रतीत होता है कि समुद्रगुप्त ने आटविक राज्यों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लियां था। ये आटविक राज्य उत्तर में गाजीपुर से लेकर जबलपुर तक फैले हुए थे।
(5) पूर्वी सीमान्त राज्यों पर आधिपत्य
समुद्रगुप्त की इन विजयों से समस्त भारत में इसकी धाक जम गयी। उसके साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं पर अनेक राज्य विद्यमान थे, जिन्होंने भयभीत होकर बिना लड़े ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी और उसे राजस्व देकर सम्मानित भी किया था। पूर्वी सीमाओं पर स्थित जिन प्रमुख राज्यों ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की थी, उनके नाम थे-
- समतट,
- ड्वाक,
- कामरूप,
- नेपाल और
- कर्तृपुर।
(6) पश्चिमी सीमान्त राज्यों पर आधिपत्य
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के वर्णन से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्त के साम्राज्य की पश्चिमी सीमाओं पर नौ गणराज्य विद्यमान थे। इन राज्यों ने समुद्रगुप्त से भयभीत होकर स्वयं ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। पश्चिमी सीमाओं पर स्थित जिन राज्यों ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की थी, उनके नाम थे-
- मालव,
- अर्जुनायन,
- यौधेय,
- मद्रक,
- आभीर,
- प्रार्जुन,
- सनकानिक,
- काक और
- खरपरिक।
(7) विदेशी राज्यों से सम्बन्ध
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से कुछ विदेशी शक्तियों की जानकारी प्राप्त होती है, जिन्होंने समुद्रगुप्त को आत्मसमर्पण करना, कन्याओं का उपहार देना तथा गुप्तों की राजकीय मुद्रा से अंकित उसके आदेशों को अपने-अपने शासन क्षेत्रों में प्रचलित करना स्वीकार किया था। इस वर्णन से स्पष्ट है कि विदेशी राज्यों ने समुद्रगुप्त के साथ मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये थे। समुद्रगुप्त से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने वाले विदेशी राज्य थे देवपुत्र षाहि-पाहानुषाहि, शक, मुरुदण्ड, सँहल और सर्वदीपवासी।
(8) अश्वमेघ यज्ञ
समुद्रगुप्त ने दिग्विजय के उपलक्ष्य में एक अश्वमेघ का भी आयोजन कराया था। इस अवसर पर उसने विशेष प्रकार की मुद्राएँ भी ढलवाई थीं। ये मुद्राएँ सोने की थीं, जिनके एक ओर थोड़े की आकृति उत्कीर्ण थी तथा दूसरी ओर चैंवर लिए प्रधान राजमहिषी की मूर्ति अंकित थी और उस पर 'अश्वमेघ पराक्रम' उत्कीर्ण था।
(9) साम्राज्य विस्तार
समुद्रगुप्त को अपने पिता से विरासत में एक छोटा-सा राज्य प्राप्त हुआ था। समुद्रगुप्त ने अपने बाहुबल से अनेकानेक विजयें प्राप्त कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। समुद्रगुप्त की दिग्विजय के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल का कुछ भाग तथा मालवा का कुछ भाग गुप्त साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था। समुद्रगुप्त के इस साम्राज्य की पूर्वी सीमा पर विद्यमान पाँच राज्य और पश्चिमी सीमा पर विद्यमान नौ राज्य उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के विजित बारह राज्य भी उसके प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव रखते थे। इन अधीन राज्यों के अतिरिक्त अनेक विदेशी राज्य भी समुद्रगुप्त के प्रभाव क्षेत्र में थे। प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा मालूम होता है कि कश्मीर, सिन्ध, गुजरात और काठियावाड़ के साथ समुद्रगुप्त का कोई सम्बन्ध नहीं था।