नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य किन कारणों से संघर्ष हुआ? (प्लासी के युद्ध के कारण का वर्णन)

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बंगाल में ब्रिटिश शासन की स्थापना

अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत की राजनीतिक स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक थी। मुगल सम्राटों की दुर्बलता और अयोग्यता के कारण बंगाल, अवध तथा दक्षिण के प्रान्त स्वतन्त्र हो गए। 1740 ई. में अलीवर्दी खाँ बंगाल, विहार और उड़ीसा का शासक बन बैठा। वह नाममात्र के लिए मुगल सम्राट् के अधीन था। व्यावहारिक रूप से वह एक स्वतंन्त्र शासक था। उसने 1740 ई. से 1756 ई. तक शासन किया। व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्न को लेकर अलीवर्दी खाँ तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मध्य तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे। 10 अप्रैल, 1756 ई. को अलीवर्दी खाँ की मृत्यु हो गई और उनके पश्चात् उसका दोहिता सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। शीघ्र ही अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच तीव्र मतभेद पैदा हो गए जिसके परिणामस्वरूप 1752 ई. में दोनों पक्षों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया जिसे 'प्लासी का युद्ध' कहते हैं।

नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य किन कारणों से संघर्ष हुआ? (प्लासी के युद्ध के कारण का वर्णन)

प्लासी के युद्ध के कारण

प्लासी का युद्ध भारत के निर्णायक युद्धों में ये एक माना जाता है। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

(1) सिराजुद्दौला के नवाब बनाये जाने का विरोध 

यद्यपि 1756 ई. में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी से अपदस्थ करने के लिये षड्यन्त्र रचने लगे। सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी, बेगम और दीवानी राजवल्लभ, शौकतजंग आदि सिराजुद्दौला को नवाब के पद से हटाने के लिये षड्यन्त्र कर रहे थे। अंग्रेज भी षड्यन्त्रकारियों को प्रोत्साहन प्रदान कर रहे थे क्योंकि वे बंगाल की गद्दी पर ऐसे व्यक्ति को बिठाना चाहते थे जो उनके हाथों में कठपुतली बनकर रहे। इस कारण सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से क्रुद्ध होना स्वाभाविक था।

(2) बंगाल की सम्पन्नता

बंगाल एक धन-सम्पन्न प्रदेश था। अंग्रेज बंगाल की सम्पन्नता के बारे में पहले से ही परिचित थे। अतः वे बंगाल के धन-सम्पन्न एवं उपजाऊ प्रदेश पर आधिपत्य कर लेना चाहते थे। वे बंगाल पर अधिकार कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना चाहते थे। अतः सिराजुद्दौला की आन्तरिक कठिनाइयों का लाभ उठाकर उन्होंने बंगाल की अतुल धन-सम्पत्ति पर अधिकार करने का निर्णय कर लिया।

(3) अंग्रेजों के प्रति सन्देह 

अलीवर्दी खाँ अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की कुटिल चालों से अवगत था। उसने अपनी मृत्यु से पूर्व सिराजुद्दौला को चेतावनी देते हुए कहा था कि "अंग्रेजों की शक्ति बहुत बड़ी है। उन्हें पहले ध्वस्त करो। जब तुम उन्हें ध्वस्त कर लोगे, तब दूसरे लोग तुम्हें बहुत कम कष्ट पहुँचायेंगे। उन्हें किलाबन्दी करने अथवा सैनिक रखेने की आज्ञा मत दो। यदि तुम ऐसा करने दोगे, तो यह देश तुम्हारा नहीं रह जायेगा।" अलीवर्दी खाँ की उस चेतावनी से सिराजुद्दौला सचेत हो गया और नवाब बनने के पश्चात् उसके रवैये में परिवर्तन आ गया और वह अंग्रेजों को शंका की दृष्टि से देखने लगा। उसने उनकी शक्ति तथा प्रभाव पर अंकुश लगाने का प्रयत्न किया जिससे अंग्रेज उसके शत्रु बन गए।

(4) सिराजुद्दौला का अनादर

अंग्रेजों में सिराजुद्दौला के प्रति सम्मान की भावना नहीं थी। जब 1756 ई. में सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना तो अंग्रेजों ने उसे बहुमूल्य उपहार, भेटें आदि नहीं प्रदान कीं। उनकी यह कार्यवाही एक प्रकार से नवाब के प्रति धृष्टता थी। जब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों से उनके व्यापार के विषय में जानकारी चाही, तो अंग्रेजों ने जानकारी देने से मना कर दिया। अतः अंग्रेजों के इस अशिष्ट व्यवहार से सिराजुद्दौला के सम्मान को चोट पहुँची।

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(5) अंग्रेजों द्वारा नवाब के शत्रुओं को शरण देना 

अंग्रेज कम्पनी सिराजुद्दौला के शत्रुओं को अपनी कलकत्ता की बस्ती में शरण प्रदान कर रही थी। जब सिराजुद्दौला ने अपनी मौसी घसीटी बेगम को बन्दी बना लिया, तो उसके दीवान राजवल्लभ ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति अपने पुत्र कृष्णा वल्लभ के साथ कलकत्ता भिजवा दी। यद्यपि सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों से कृष्णा वल्लभ को लौटाने की माँग की, लेकिन अंग्रेजों ने उस माँग को अस्वीकार कर दिया। इसी प्रकार अमीचन्द नामक एक व्यापारी सिराजुद्दौला को पर्याप्त आर्थिक हानि पहुँचाकर अपनी सम्पत्ति लेकर अंग्रेजों की शरण में चला गया तथा लगातार अनुरोध करने पर भी अंग्रेजों ने उसे लौटाने से इन्कार कर दिया। इस कारण भी अंग्रेजों तथा सिराजुद्दौला के बीच शत्रुता बढ़ती गई।

(6) अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग

1717 ई. में गुगल सम्राट् फर्रुखसियर ने अंग्रेजी कम्पनी को 3000 रुपये वार्षिक के बदले में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में बगैर चुंगी दिए व्यापार करने का अधिकार प्रदान कर दिया। लेकिन अंग्रेजों ने इन व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना आरम्भ कर दिया। वे अपने दस्तक (अनुमति-पत्र) भारतीय व्यापारियों को बेचकर स्वयं धन अर्जित करने लगे तथा नवाब के राजकोष को क्षति पहुँचाने लगे। इसके अतिरिक्त कम्पनी के कर्मचारी निजी व्यापार में भी दस्तक का उपयोग करने लगे। इस प्रकार के लोग व्यापार के सामान को भी कम्पनी का सामान बताकर चुंगी बा इससे बंगाल की सरकार को भारी हानि उठानी पड़ती थी। अतः इस कारण भी दोनों पक्षों में कटुता बढ़ती गई।

(7) अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता की किलेबन्दी करना 

सिराजुद्दौला के नवाब बनते ही यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य युद्ध की आशंका उत्पन्न हो गई। अतः भारत में भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को आदेश दिया कि वे अपनी-अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करना आरम्भ कर दिया। इस पर सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों को आदेश दिया कि वे अपनी-अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करना बन्द करें। उसने कासिम बाजार की अंग्रेज कोठी के अध्यक्ष वाटसन को चेतावनी देते हुए कहा कि "मैं अंग्रेजों को केवल व्यापारी समझता हूँ और इस रूप में उनका स्वागत करता हूँ। लेकिन इन दिनों उन्होंने जो किलेवन्दी का कार्य आरम्भ कर दिया है, उसको मैं सहन नहीं कर सकता और मैं चाहता हूँ कि शीघ्र ही उसे नष्ट कर दिया जाए।" 

यद्यपि फ्रांसीसियों ने नवाब की आज्ञा का पालन करना स्वीकार कर लिया, किन्तु अंग्रेजों ने उसकी आज्ञा का पालन करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कलकत्ता दुर्ग की मरम्मत कर दी और उसके चारों ओर एक खाई खोदना आरम्भ कर दिया। जब नवाब के अधिकारियों ने उन्हें खाई को भरने का आदेश दिया तो एक अहंकारी अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें उत्तर दिया, "यह खाई अवश्य भर दी जायेगी, परन्तु मसलमानों के सिरों से।" इस पर सिराजुद्दौला अत्यधिक कुद्ध हुआ और उसने अंग्रेजों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया। 

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(8) सिराजुद्दौला का कलकत्ता और कासिम बाजार पर आक्रमण

4 जून, 1756 ई. को सिराजुद्दौला की सेना ने मुर्शिदाबाद के समीप अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया। फैक्ट्री के अंग्रेज अधिकारी वाटसन ने आत्म समर्पण कर दिया। इसके बाद नवाब की सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने फोर्ट विलियम के दुर्ग को घेर लिया। कलकत्ता का गवर्नर ड्रेक जान बचाकर भाग निकला और 20 जून, 1756 ई. को कलकत्ता पर भी नवाब का अधिकार हो गया। 

(9) काल कोठरी की दुर्घटना

फोर्ट विलियम के पतन के पश्चात् दुर्ग में स्थित अंग्रेजों को बन्दी बना लिया गया। कहा जाता है कि 20 जून की रात्रि को नवाब के आदेश से 146 अंग्रेज बन्दियों को एक 18 फुट लम्बी तथा 14 फुट 10 इंच चौड़ी कोठरी में बन्द कर दिया गया। जून मास की भीषण गर्मी के कारण उनमें से 123 व्यक्ति मर गए और केवल 23 व्यक्ति की जीवित रह पाये, जिनमें हालवैल नामक एक व्यक्ति भी था। इतिहास में यह घटना 'ब्लैकहोल' अथवा 'काल कोठरी की दुर्घटना' कहलाती है। इस दुर्घटना का विवरण हालवैल द्वारा लिखे गए एक पत्र से प्राप्त होता है।

(10) अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता पर पुनः अधिकार करना

जब कलकत्ता तथा कासिम बाजार के पतन का समाचार मद्रास पहुँचा, तो वहाँ के अंग्रेज अधिकारी अत्यधिक चिन्तित हुए और उन्होंने कलकत्ता पर पुनः अपना अधिकार स्थापित करने का निश्चय कर लिया। अतः क्लाइव 800 अंग्रेज तथा 1000 भारतीय सैनिकों को लेकर दिसम्बर 1756 ई. में स्थल मार्ग से कलकत्ता की ओर रवाना हुआ। इसके अतिरिक्त एडमिरल वाटसन को 5 जहाजों के साथ जलमार्गसे कलकत्ता की ओर भेजा गया। 28 दिसम्बर, 1756 ई. को अंग्रेजी सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। राजा मानिकचन्द जिसे सिराजुद्दौला ने कलकत्ता का शासक नियुक्त किया था विश्वासघाती निकला और विशाल राशि लेकर अंग्रेजों के पक्ष में जा मिला। इस प्रकार 2 जनवरा, 1757 ई. को अंग्रेजों ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने हुगली तथा उसके आस-पास के क्षेत्रों को जमकर लूटा।

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(11) अलीनगर की सन्धि

जब सिराजुद्दौला को कलकत्ता के पतन का समाचार मिला, तो वह 40,000 सैनिकों के साथ कलकत्ता की ओर रवाना हुआ। 6 फरवरी, 1757 ई. को नवाब और क्लाइव की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमें नवाब को पराजय का मुँह देखना पड़ा। अन्त में 9 फरवरी, 1757 ई. को सिराजुद्दौला को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी, जिसे अलीनगर की सन्धि कहते हैं। इस सन्धि की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थीं- 

  • मुगल सम्राट् ने अंग्रेजों को जो व्यापारिक सुविधाएँ तथा विशेषाधिकार प्रदान किए नवाब ने उनको मान्यता प्रदान कर दी। 
  • अंग्रेज बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में बिना चुंगी दिए व्यापार कर सकेंगे। 
  • जिन फैक्ट्रियों पर नवाब ने अधिकार कर लिया था, वे वापस कम्पनी को लौटा दी जायेंगी तथा नवाब अंग्रेजों को हुई क्षति के बदले में उनको धन भी देगा। 
  • अंग्रेज इच्छानुसार कलकत्ते की किलाबन्दी कर सकेंगे। 
  • अंग्रेजों को अपने सिक्के ढालने का अधिकार प्रदान किया गया। 
  • उपर्युक्त सुविधाओं के बदले में कम्पनी ने नवाब को उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया। वास्तव में अलीनगर की सन्धि को दोनों पक्षों ने परिस्थितियों से विवश होकर स्वीकार किया था। अतः इस स्थिति में दोनों में युद्ध होना अनिवार्य था।

(12) अलीनगर की सन्धि की शर्तों का पालन न करना 

अंग्रेज ओर नवाब दोनों ही अलीनगर की सन्धि की शर्तों का पालन करने के लिए तैयार नहीं थे। सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को मुआवजा देने का वचन दिया था, लेकिन उसने किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया। रेन्जेम्योर का कथन है कि "नवाब सन्धि की शर्तों को पूरा करने के लिए तैयार न था। इस कारण युद्ध अपरिहार्य हो गया।" दूसरी ओर कम्पनी ने नवाब से पूर्व ही युद्ध की तैयारी करना आरम्भ कर दिया था।

(13) अंग्रेजों द्वारा नवाब पर दोषारोपण

कुछ अंग्रेज विद्वानों का मानना है कि सिराजुद्दौला ने अपने कुछ व्यक्तिगत पत्रों में अंग्रेजों को यह आश्वासन दिया था कि वह अंग्रेजों के शत्रुओं से मित्रता नहीं करेगा। अंग्रेजों ने इस प्रकार के आश्वासन को भी सन्धि की शर्तों के समान मान लिया। परन्तु वास्तव में नवाब ने इस प्रकार की किसी शतं को स्वीकार नहीं किया था। इसी समय बंगाल के फ्रांसीसी सिराजुद्दौला से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर रहे थे जिससे क्लाइव अत्यधिक चिन्तित हुआ। वह सिराजुद्दौला तथा फ्रांसीसियों के गठबन्धन को घातक मानता था। अतः उसने फ्रांसीसियों की बस्ती चन्द्रनगर पर आक्रमण करने के लिए नवाब की अनुमति माँगी लेकिन नवाब ने क्लाइव को अस्पष्ट उत्तर भेज दिया क्योंकि वह फ्रांसीसियों को अपना शत्रु नहीं बनाना चाहता था। अतः क्लाइव ने 14 मार्च, 1757 ई. को चन्द्रनगर की फ्रांसीसी वस्ती पर अधिकार कर लिया। इस पर अंग्रेजों ने नवाब पर अलीनगर की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया परन्तु नवाब ने इस आरोप को स्वीकार नहीं किया। इस घटना से भी दोनों पक्षों के बीच कटुता बढ़ गई।

(14) सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र

अनेक मुस्लिम सरदार तथा धनवान हिन्दू सिराजुद्दौला की नीतियों से सन्तुष्ट नहीं थे। मुस्लिम सरदारों में मीर जाफर, मिर्जा अमीर बेग आदि प्रमुख थे। जगत सेठ बन्धु भी नवाब से रुष्ट थे क्योंकि उन्हें नवाब ने अपमानित किया था। राजबल्लभ को दीवान के पद से हटा दिया गया था; अतः वह भी नवाब से नाराज था। दूसरी ओर अंग्रेज सिराजुद्दौला को बंगाल की गद्दी से हटाकर किसी ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाना चाहते थे जोकि उनके हाथों की कठपुतली बनकर रहे। अतः क्लाइव ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना आरम्भ कर दिया। उसने सिराजुद्दौला के प्रधान सेनापति मीर जाफर को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। मीर जाफर के अतिरिक्त इस षड्यन्त्र में अमीरचन्द, यारलुत्फ, जगत सेठ बन्धु, राय दुर्लभ आदि भी सम्मिलित थे। 10 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों और मीर जाफर के बीच एक गुप्त सन्धि हुई जिसकी प्रमुख शर्तें इस प्रकार थीं-

  • सिराजुद्दौला के स्थान पर अंग्रेजी कम्पनी मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना देगी। 
  • मीर जाफर अंग्रेज कम्पनी को एक करोड़ रुपये युद्ध के हर्जाने के रूप में देगा। इसके अतिरिक्त वह अंग्रेज व्यापारियों को क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपये तथा हिन्दू व्यापारियों की क्षति के लिए 20 लाख रुपये देगा।
  • सिराजुद्दौला के समय में अंग्रेजों को जो व्यापारिक सुविधाएँ तथा विशेषाधिकार प्राप्त थे, वे मीर जाफर के नवाब बनने पर यथावत् बने रहेंगे।
  • अंग्रेजों को कलकत्ता कासिम बाजार की किलेबन्दी करने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • जब कभी नवाब को अपनी रक्षा के लिए अंग्रेजी सेना की जरूरत हो तो वह उसका खर्चा वहन करेगा। 
  • हुगली नदी के दक्षिण में नवाब किलेबन्दी नहीं करेगा।
  • नवाब बनने के 30 दिन के अन्दर मीर जाफर इन सभी शर्तों को पूरा कर देगा।
  • जब तक नवाब सन्धि की शर्तों को भंग न करेगा, जब तक कम्पनी उसके शत्रुओं के विरुद्ध उसकी सहायता करेगी।

जब षड्‌यन्त्र की योजना पूरी हो गई तथा मीर जाफर के साथ उपयुक्त सन्धि हो गई तो अमीरचन्द ने अंग्रेजों को धमकी दी कि यदि उसे 30 लाख रुपये तथा नवाब के कोष का 5 प्रतिशत धन नहीं दिया गया तो वह पूरे षड्यन्त्र का पर्दाफाश कर देगा। लेकिन इस अवसर पर क्लाइव ने छल-कपट का सहारा लिया। उसने दो सन्धि-पत्र तैयार करवाए। एक सफेद कागत पर जो सही था और दूसरा लाल कागत पर जो झूठा था और जिसमें अमीरचन्द की शर्तों को भी स्वीकार किया गया था। वाट्सन ने झूठे सन्धि पत्र पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। अतः क्लाइव ने वाटसन के जाली हस्ताक्षर कर दिए। इस प्रकार अमीरचन्द को जाली सन्धि-पत्र दिखाकर सन्तुष्ट कर दिया गया।

षड्यन्त्र पूर्ण हो जाने पर क्लाइव ने सिराजुद्दौला से युद्ध छेड़ने का बहाना ढूँढ़ना आरम्भ कर दिया। उसने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की सन्धि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। यद्यपि सिराजुद्दौला ने इस आरोप का खण्डन किया, लेकिन नवाब का उत्तर आने के पूर्व ही क्लाइव ने एक सेना लेकर मुर्शिदाबाद की ओर कूच कर दिया।

प्लासी के युद्ध की घटनाएँ

दोनों पक्षों की सेनाएँ प्लासी के मैदान में आमने-सामने आ डर्टी। क्लाइव की सेना में 3,000 सैनिक थे, जबकि सिराजुद्दौला की सेना में 50,000 सैनिक थे। 23 जून, 1757 ई. को प्रात: 9 बजे दोनों पक्षों के बीच युद्ध आरम्भ हुआ। युद्ध शुरू होने पर मीर जाफर, रायदुर्लभ, यारलुत्फ आदि सेनापति अपनी-अपनी सेनाओं को लेकर चुपचाप युद्ध का तमाशा देखते रहे लेकिन मीर दर्शन तथा मोहनलाल नामक स्वामिभक्त सरदारों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना किया और लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। सिराजुद्दौला ने मीर जाफर के चरणों में अपनी पगड़ी रखते हुए कहा था कि "मीर जाफर, इस पगड़ी की लाज तुम्हारे हाथों में है।" 

यद्यपि मीर जाफर ने नवाब के प्रति स्वामिभक्त बने रहने की शपथ खाई, परन्तु वह नवाब के साथ विश्वासघात करने पर तुला हुआ था। अतः मीर जाफर का इशारा पाकर अंग्रेजों ने नवाब की सेना पर तीव्रता से धावा बोल दिया। नवाब अपने सरदारों के विश्वासघात से घबरा गया और अपने प्राण बचाने के लिए युद्ध-क्षेत्र से भाग निकला परन्तु राजमहल क निकट उसे पकड़ लिया गया और 2 जुलाई, 1757 ई. को मीर जाफर के पुत्र मीरन ने सिराजुद्दौला का वध कर दिया। इस प्रकार क्लाइव ने छल-कपट से प्लासी का युद्ध जीत लिया।

प्लासी के युद्ध का महत्व एवं परिणाम

सैनिक दृष्टि से प्लासी का युद्ध कोई महान् युद्ध नहीं था। इस युद्ध में अंग्रेजों के केवल 65 सैनिक तथा नवाब की सेना के 500 सैनिक मारे गए। इस युद्ध में दोनों पक्षों की ओर से युद्ध के दाव-पेंचों अथवा युद्ध-कौशल का प्रदर्शन नहीं किया गया। इस युद्ध को क्लाइव ने केवल छल-कपट के आधार पर जीता था। 

डॉ. ईश्वरीप्रसाद का कथन है कि "अंग्रेजों की यह विजय न तो अंग्रेजों की वीरता का परिणाम थी और न क्लाइव की श्रेष्ठ सेनानायकता, यह विश्वासघात का फल थी।" 

डॉ. के. एम. पन्निकर का कथन है कि "प्लासी की घटना एक हुल्लड़ तथा भगदड़ थी, युद्ध नहीं।" फिर भी प्लासी के युद्ध के परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। अतः इस युद्ध की गणना भारत के निर्णायक युद्धों में की जाती है।

संक्षेप में, प्लासी के युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए- 

(1) राजनीतिक महत्व एवं परिणाम 

(1) बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। यद्यपि मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया, लेकिन वह नाममात्र का शासक था। वह केवल अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली था और शासन की वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथों में थी।

(2) प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। अब अंग्रेजी कम्पनी केवल एक व्यापारिक कम्पनी न रहकर राजनीतिक सत्ता हो गई। अब नवाब पर अंग्रेजी कम्पनी का नियन्त्रण स्थापित हो गया। कम्पनी की कृपा प्राप्त कर कोई भी व्यक्ति प्रशासन में उच्च पद प्राप्त कर सकता था। अंग्रेजों का राजनीतिक प्रभुत्व इस बात से स्पष्ट होता है कि मीर जाफर को बंगाल की गद्दी से अपदस्थ करने में अंग्रेजों को जरा-सी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।

(3) प्लासी की विजय से अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गईं। अब वे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने लगे। बंगाल को आधार बनाकर वे शेष भारत पर भी अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करने लगे।

(4) बंगाल की राजनीति में अन्य यूरोपियन शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो गया। फ्रांसीसी फिर कभी बंगाल में अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सके। डों ने जब अंग्रेजों को चुनौती दी तो उन्हें असफलता का मुँह देखना पड़ा। इस प्रकार बंगाल में अंग्रेजों की सर्वोच्चता स्थापित हो गई। 

(5) प्लासी के युद्ध ने मुगल सम्राट् की शक्ति तथा प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचाया।

मुगल सम्राट् ने जिस व्यक्ति को बंगाल का नवाब अधिकृत किया था, उसे अंग्रेजों ने हटा दिया और उसके स्थान पर दूसरे को नवाब बना दिया। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को मुगल सम्राट् मूकदर्शक की भाँति देखता रहा। इससे बंगाल का प्रान्त मुगल सम्राट् के हाथों से निकल गया तथा इससे मुगल सम्राट् की दुर्बलता उजागर हो गयी। प्रो. जे. एन. सरकार का कथन है कि "23 जून, 1757 ई. को भारत में मुगलकाल का अवसान हो गया तथा आधुनिक काल का प्रादुर्भाव हुआ।" 

(2) आर्थिक महत्व एवं परिणाम 

(1) प्लासी की विजय के परिणामस्वरूप अंग्रेजी कम्पनी की मीर जाफर से, 1,73,96,761 रुपये प्राप्त हुए। कुछ विद्वानों के अनुसार 1757 ई. से 1760 ई. के मध्य मीर जाफर ने लगभग तीन करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में कम्पनी को दिए। 

(2) प्लासी के युद्ध के पश्चात् कम्पनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भी विशाल धनराशि प्राप्त हुई। मीर जाफर ने कम्पनी के अधिकारियों को 12,50,000 पौंड दिए। इसमें से क्लाइव को 2,24,000 पौड तथा वाटसन को 1,17,000 पौंड प्राप्त हुए। 

(3) अंग्रेजों को बंगाल में 24 परगनों की जागीर प्राप्त हुई जिनकी वार्षिक आय 15 लाख रुपये थी। 

(4) कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में कर-मुक्त व्यापार करने की स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। कम्पनी को पान, सुपारी, तम्बाकू आदि के व्यापार को एकाधिकार भी प्राप्त हुआ। 

(5) कम्पनी को अपने सिक्के ढालने का भी अधिकार प्रदान कर दिया गया।

(3) सैनिक महत्व और परिणाम 

(1) प्लासी के युद्ध ने भारतीय सैन्य संगठन की दुर्बलता प्रदर्शित कर दी। क्लाइव के पास केवल तीन हजार सैनिक थे, जबकि सिराजुद्दौला की सेना में 50,000 सैनिक थे। इसके बावजूद नवाब की सेना को पराजय क सामना करना पड़ा। इससे साबित हो गया कि भारतीय सेना युद्ध कला में अंग्रेजों के समान निपुण नहीं थी। 

(2) बंगाल में बारूद की खानों पर भी अंग्रेजों का एकाधिकार स्थापित हो गया। इससे कम्पनी का तोपखाना शक्तिशाली हो गया। 

(3) अब बंगाल के नबाव मीर जाफर की सैन्य-शक्ति अत्यधिक कमजोर हो गई। अब बंगाल की सेना अंग्रेजी सेना का मुकाबला करने में असमर्थ थी।

(4) नैतिक महत्व और परिणाम 

(1) प्लासी के युद्ध से भारतीयों का नैतिक पतन उजागर हो गया। मीर जाफर, रायदुर्लभ, अमीचन्द आदि के चारित्रिक पतन और विश्वासघात से अंग्रेजों को ज्ञात हो गया कि कुछ स्वार्थी भारतीय लोग सोने-चाँदी के टुकड़ों में अपनी मातृभूमि के साथ विश्वासघात कर सकते हैं। 

(2) अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को सृदृढ़ बनाने के लिए और अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 'फूट डालो और शासन करो' की नीति का अनुसरण करने का निश्चय किया। 

(3) अंग्रेजों ने उचित एवं अनुचित सभी तरीकों से बंगाल का धन प्राप्त करना आरम्भ कर दिया। बंगाल में भ्रष्टाचार व्यापक हो गया तथा नवाब और कम्पनी दोनों बंगाल के लोगों का आर्थिक शोषण करने लगे। 

(4) अंग्रेजों को अपने उद्देश्य प्राप्त करने के लिए षड्यन्त्र एवं कुचक्र रचने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

निष्कर्ष:

यद्यपि प्लासी के युद्ध का सैनिक दृष्टि से कोई विषेष महत्व नहीं है, लेकिन परिणामों की दृष्टि से यह युद्ध अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी भारत के निर्णायक युद्धों में गणना की जाती है। इसी युद्ध ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली। इस युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया और अंग्रेज कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 

मेलीसन का कथन है कि "इतना तात्कालिक, स्थायी और प्रभावशाली परिणामों वाला कोई युद्ध नहीं हुआ।" एल्फ्रेड लायल का कथन है कि "प्लासी में क्लाइव की सफलता ने बंगाल में युद्ध तथा राजनीति का एक अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र अंग्रेजों के लिए खोल दिया।"

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