किशोरावस्था के लिए आवश्यक आहार का वर्णन कीजिये

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किशोरावस्था के लिए आवश्यक आहार

बाल्यावस्था के बाद किशोरवस्था द्रुत गति से विकास की अवधि होती है। 13 से 18 वर्ष की आयु के लड़के-लड़‌कियों के शारीरिक विकास की दर अपने शिखर पर पहुँच जाती है। किशोरावस्था में आन्तरिक गतिविधियाँ (स्त्राष, हार्मोनल स्त्राव, आधारीय चयापचय, जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएँ) अधिक होती हैं। तरुणाई के विकास हेतु शरीर निर्माणक तत्वों की माँग बढ़ जाती है तथा आधारीय चयापचय की दर बढ़ने के कारण अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होता है। चूँकि किशोरास्था के दौरान होने वाले शारीरिक-मानसिक परिवर्तनों के कारण दबाव काफी बढ़ जाता है, अतः किशोर-किशोरियों में आहार के प्रति दृष्टिकोण विकृत हो जाता है। इस आयु में लड़के सामान्यतः लम्बे और सुगठित बनने के लिए सुदृढ़ माँसपेशियों को प्राथमिकता देते हैं, अतः वे अच्छी आहारीय आदतों को प्राथमिकता देते हैं। लड़कियाँ अपने आकार को लेकर चिंतित रहती हैं, अतः वे ऐसे विभिन्न भोज्य पदार्थों से बचाव करती हैं, जो उन्हें मोटा बनाता हो। रंग, रूप, कील, मुँहासे, झाईयाँ, आदि बहुत कुछ आहार तथा उसके पाचन से सम्बन्धित हैं। अतः अपने पोषण का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है।

अनुपयुक्त तथा घटिया आहार कैलोरी और कैल्शियम दोनों ही दृष्टियों से प्रायः अपर्याप्त होता है। किशोरावस्था में कैल्शियम की कमी विकास को अवरुद्ध करती है। भोजन से जी चुराने, सॉफ्ट पेय पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने से, नमकीन और चटपटी चीजों के अधिक उपभोग से भूख कम होती जाती है। किशोर, वयस्कों की तुलना में शारीरिक दृष्टि से अधिक सक्रिय होता है तथा उनकी चयापचय दर भी अधिक होती है, अतः वे प्रत्येक समय भूख महसूस करते हैं। वे जो हल्का-सा नाश्ता लेते हैं, वह प्रायः वसा, कार्बोज और शर्करा से भरपूर होता है तथा अधिक कैलोरी प्रदायक भी होता है। उनकी दोषपूर्ण खानों की आदतों से उनके दाँतों को भी हानि पहुँचती है।

किशोरावस्था की अवधि शारीरिक विकास एवं वृद्धि, हारमोनल परिवर्तनों तथा भावात्मक दबाव की दृष्टि से अत्यन्त तनाव और संघर्षपूर्ण होती है। इस आयु में प्रोटीन और कैल्शियमयुक्त आहारों की आवश्यकता विशेष तौर पर बढ़ जाती है। लड़कों में इस अवधि में 20 सेंटीमीटर के लगभग ऊँचाई तथा 18 किलोग्राम के लगभग भार बढ़ जाता है। अतः प्रोटीन एवं कैल्शियम की आवश्यकता को भोजन में उचित मात्रा में उपलब्ध होना अत्यावश्यक है। कुपोषण इस अवधि में शरीर के कायों, कार्यक्षमता तथा शारीरिक विकास को प्रभावित करता है, अतः शरीर के कार्य व्यापार को सुरक्षित बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी होनी आवश्यक है। 

लड़कियों के शरीर का वजन कम होना अवांछनीय है, क्योंकि इससे भविष्य में संक्रामण का खतरा पैदा हो सकता है। कुपोधित गर्भवतो किशोर माताओं में एवलेम्पिया, रक्त विषाक्तता, गर्भस्राव और अपरिपक्वता के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही उनके आहार को नियोजित करना आवश्यक है।

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