जनपद का अर्थ
उत्तर वैदिक काल तक आर्य राज्यों का आधार जन या जाति था। ये जन परिवारों के समूह हुआ करते थे। वैदिक युग के प्रारम्भ में ये जन एक स्थान से दूसरे स्थान को घूमते-फिरते थे। उत्तर वैदिक काल के पश्चात् ये जन स्थायी रूप से बसने लगे। अपने निवास के ग्रामों और पार्श्ववर्ती भू-भागों पर इन्होंने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। ये राज्य अब 'जनपद' कहलाने लगे। फिर इन जनपदों में सीमा विस्तार की भावना जगी फलस्वरूप ये पड़ोसी राज्यों से युद्ध करने लगे। इस प्रकार ये जनपद बड़े हो गये और 'महाजनपद' कहलाने लगे।
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते हैं कि "लगभग एक हजार ई. पूर्व से पाँच सौ ई. पूर्व तक के युग का भारतीय इतिहास में महाजनपद युग कहा जा सकता है। समस्त देश में एक सिरे से दूसरे तक जनपदों का तांता फैल गया था। एक प्रकार से जनपद राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की इकाई बन गए थे।"
16 महाजनपदों के नाम और उनकी राजधानी
बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में प्रमुख महाजनपद निम्न प्रकार बताये गये हैं-
(1) अंग
बिहार में आधुनिक भागलपुर और मुंगेर जिले का क्षेत्र अंग महाजनपद में था। चम्मा नगर इसकी राजधानी था। प्रारम्भ में अंग शक्तिशाली जनपद था। ऐत्तरेय ब्राह्मण, महाभारत के शान्तिपर्व, जातक ग्रन्थों में और पुराणों में अंग के राजाओं का उल्लेख है। मगध राज्य की राजधानी राजग्रह अंग राज्य का एक नगर था। राजधानी चम्पा नगर बौद्धकाल में अपने वाणिज्य, वैभव और समृद्धि के लिए प्रख्यात था। यह चम्पा नदी और गंगा के तट पर बसा था। चम्पा नदी अंग और मगध राज्य की सीमा बनाती थी। जब मगध राज्य की शक्ति और सीमा में वृद्धि और प्रसार हुआ तब बिम्बिसार के समय अंग मगध राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।
(2) मगध
यह आधुनिक बिहार के पटना और गया जिले तक व्याप्त था। मगध के सर्वप्रथम राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की थी। प्रारम्भ में इसकी राजधानी गिरिव्रज या राजग्रह थी। धीरे-धीरे मगध राज्य का इतना अधिक विस्तार और उत्थान हुआ कि आस-पास के सभी राज्य इसमें विलीन हो गये।
(3) काशी
आधुनिक वाराणसी के आस-पास इस राज्य का क्षेत्र था। वाराणसी नगर इसकी राजधानी था। बौद्ध और जैन ग्रन्थों में काशी का विशद विवरण है। यह वैभवपूर्ण और धन-सम्पन्न तथा शक्तिशाली राज्य था। जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के सम्राट थे। राजा ब्रह्मदत्त के शासनकाल में काशी की विशेष उन्नति हुई। काशी और कौशल में सीमा विस्तार के लिए परस्पर संघर्ष होते थे। फलतः काशी राज्य की शक्ति क्षीण होने पर वह कौशल राज्य में विलीन कर दिया गया।
(4) कौशल
आधुनिक अवध का क्षेत्र इसमें सम्मिलित था। इसकी राजधानी श्रावस्ती थी। कौशल साम्राज्य सरयू नदी द्वारा दो भागों में विभक्त था उत्तरी कौशल और दक्षिणी कौशल। उत्तर भाग की राजधानी श्रावस्ती थी और दक्षिणी भाग की राजधानी कुशावती। श्रावस्ती प्रसिद्ध व्यापारिक मार्गों पर स्थित होने से वाणिज्य, व्यापार और समृद्धि का केन्द्र था। कौशल और काशी का वैमनस्य और संघर्ष परम्परागत था परिणामस्वरूप कौशल नरेश कंस ने काशी को अपने राज्य में विलीन कर लिया। कौशल राज्य का सीमा विस्तार होता रहता था।
बुद्ध के समय कौशल का सम्राट प्रसेनजित था। शाक्य राजकन्य से विवाह करने की अपेक्षा धोखे से प्रसेनजित का विवाह शाक्यदासी कन्या वासवखत्तिया से हो गया था और उसकी बहिन का विवाह मगध के सम्राट बिम्बिसार के साथ किया गया था। बिम्बिसार के उत्तराधिकारी अजातशत्रु और प्रसेनजित के पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का वर्णन कई ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। सम्राट प्रसेनजित का पारिवारिक जीवन क्लेशपूर्ण और अशान्तिमय तथा। शान्ति और ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रसेनजित बुद्ध के पास आया-जाया करते थे।
बुद्ध के प्रति प्रसेनजित की अगाध श्रद्धा और भक्ति थी। बौद्ध ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर प्रसेनजित और बुद्ध की चर्चाओं और उपदेशों का उल्लेख है। प्रसेनजित की अनुपस्थिति में कौशल में क्रान्ति हो गयी और वासवखत्तिया से उत्पन्न उसका पुत्र विडूडभ (विरुद्धक) सम्राट घोषित हो गया। इससे विवश होकर प्रसेनजित अजातशत्रु से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए राजग्रह गया, पर नगर के बाहर ही श्रान्त-क्लान्त प्रसेनजित की मृत्यु हो गयी। विडूडभ के पश्चात् कौशल की शक्ति क्षीण हो गयी और मगध ने कौशल को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।
(5) वज्जि
यह आठ गणराज्यों का एक संघ था। यह संघ राज्य आधुनिक बिहार का उत्तरी प्रदेश था। इसमें विदेह, लिच्छवि राज्य की ज्ञात्रिक राज्य मुख्य थे। विदेह की राजधानी मिथिला थी जो राजा जनक के समय उत्तरी भारत में राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का केन्द्र हो गयी थी। लिच्छवि राज्य की राजधानी वैशाली नगर थी और यही समस्त वज्ञ्जि संघ की राजधानी भी था। वैशाली समृद्ध नगर था। इसके तीन नगरकोट, कई सिंहद्वार, मीनार, बुर्ज, क्रीड़ास्थल, उद्यान, गगनचुम्बी भवन आदि अधिक प्रसिद्ध थे। लिच्छवि राज्य के लोग अधिक स्वतन्त्रताप्रिय थे। ज्ञात्रिकों की राजधानी कुण्डग्राम थी। लिच्छवि राज्य और वज्जि संघ की शक्ति दृढ़ थी। महावीर और गौतम बुद्ध के समय वज्जि विद्यमान था। गौतम बुद्ध वैशाली में कई बार धर्मोपदेश के लिए गये थे। वज्जि संघ के राज्य अपने पारस्परिक मतभेदों और फूट के कारण मगध की बढ़ती हुई शक्ति का विरोध न कर सके और अन्त में मगध के अजातशत्रु में वज्जि को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
(6) मल्ल
यह राज्य भी दो जनपदों का संघ था-एक कुशीनारा का मल्ल राज्य और दूसरा पावा का मल्ल राज्य। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में आधुनिक कसिया कुशीनारा था और इससे दक्षिण-पूर्व में आधुनिक फाजलपुर ग्राम पावा नगरी था। प्रारम्भ में मल्ल राज्य राजतन्त्रात्मक थे। इनके सम्राटों का उल्लेख जातक ग्रन्थों में है, परन्तु कालान्तर में यहाँ प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित हो गयी थी। मल्ल और लिच्छवि राज्यों में कभी मित्रता और कभी शत्रुता रहती थी। दोनों में पारस्परिक संघर्ष होते रहते थे। मल्ल लोग बड़े साहसी, वीर और युद्धप्रिय थे। ये बुद्ध के बड़े प्रशंसक और भक्त थे। बुद्ध ने अपना अन्तिम भोजन पावा में ही किया था और उनकी मृत्यु कुशीनारा में ही हुई थी। मगध के बढ़ते हुए विस्तार का प्रतिरोध मल्लों ने किया था परन्तु वे पराजित हो गये और मगध राज्य में मल्ल राज्य विलीन कर लिया गया।
(7) चेदि
मध्य प्रदेश का बुन्देलखण्ड और उसके आसपास का क्षेत्र चेदि राज्य था। शक्तिमति या सोत्थीवती इसकी राजधानी थी। जातक ग्रन्थों और महाभारत में चेदि राज्य और उसके नरेशों का उल्लेख है। शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्ध राजा था। उसके शासन काल में चेदि राज्य की पर्याप्त उन्नति हुई परन्तु उसकी मृत्यु के बाद इस राज्य का पतन हो गया।
(8) वत्स
इसकी राजधानी कौशाम्बी थी जो आधुनिक प्रयाग से लगभग 38 मील दूर थी। कौशाम्बी संस्कृति और व्यापार का प्रसिद्ध नगर था, क्योंकि यह नगर उस व्यापारिक मार्ग पर था जो विदिशा व उज्जैन होते हुए दक्षिण भारत को जाता था। ईसा पूर्व की छठी सदी में बुद्ध के समय वत्स का प्रसिद्ध राजा उदयन था। उदयन को मगध के राजा अजातशत्रु और अवन्ति के राजा चण्ड प्रद्योत से संघर्ष करना पड़ा।
अजातशत्रु से उसने वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लिये थे। चण्ड प्रद्योत ने उसे बन्दी बना लिया, लेकिन उदयन वहाँ से भाग निकला। बाद में प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता और उदयन का विवाह हो गया। उदयन ने इस प्रकार के विवाहों से मगध और अवन्ती के बढ़ते हुए साम्राज्यों के सामने अपने कौशाम्बी या वत्स राज्य को रखा। उदयन कुशल सेनापति और युद्धप्रिय नरेश था। उसने अपने राज्य की सीमाओं पर कई दृढ़ दुर्ग बनाये थे। उसे आखेट में अधिक रुचि थी। प्रारम्भ में वह बौद्ध धर्म का विरोधी था, पर बाद में भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज के उपदेश के कारण उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था। वह बुद्ध का समकालीन था। उदयन का उत्तराधिकारी बोधिक था। बोधिक के बाद वत्स राज्य का पतन हो गया।
(9) कुरु
यह राज्य वर्तमान दिल्ली और मेरठ के समीपवर्ती प्रदेश तक विस्तृत था। इन्द्रप्रस्थ इसकी राजधानी थी। इस समय कुरु राज्य का इतना मान, प्रतिष्ठा और महत्व नहीं था जितना वैदिक युग में था। यह राज्य अपने आचार, सदाचार और शील के लिए प्रसिद्ध था। प्रारम्भ में कुरु में राजतन्त्र शासन था, पर कालान्तर में यहाँ प्रजातन्त्रात्मक शासन स्थापित हो गया। बौद्ध युग में यह गणराज्य था यहाँ के एक समान्त पुत्र ने गौतम बुद्ध से दीक्षा ली थी।
(10) पांचाल
आधुनिक रुहेलखण्ड और गंगा-यमुना के बीच का दोआब का क्षेत्र पांचाल राज्य में सम्मिलित था। वह राज्य दो भागों में विभक्त था-उत्तर पांचाल और दक्षिण पांचाल। उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी और दक्षिण पांचाल की राजधानी काम्पिल्य। उत्तर पांचाल पर आधिपत्य स्थापित करने के लिये दक्षिण पांचाल और कुरु दोनों मिलकर संघर्ष करते थे। ब्रह्मदत्त पांचाल देश का एक प्रसिद्ध राजा था। इसने विदेह को जीता था और कन्नौज की स्थापना की थी। संजय नामक एक अन्य पांचाल शासक ने जैन धर्म स्वीकार किया था। प्रारम्भ में राजतन्त्रात्मक शासन प्रणाली थी, पर बाद में यहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन स्थापित हो गया और बौद्ध काल में यह एक गणतन्त्र राज्य था।
(11) मत्स्य
यह राज्य यमुना नदी के पश्चिम में तथा कुरु देश के दक्षिण में था। आधुनिक राजस्थान में जयपुर, अलवर और भरतपुर के क्षेत्र इसमें सम्मिलित थे। इसकी राजधानी विराटनगर थी। तम्स्य प्रबल और शक्तिशाली नहीं था। दुर्बल और पराधीन होने के कारण बौद्ध ग्रन्थों में मत्स्य राज्य का उल्लेख नहीं है। सम्भव है यहाँ राजतन्त्रात्मक व्यवस्था रही थी। कालान्तर में यह मगध के अधीन हो गया।
(12) सूरसेन
यह राज्य कुरु राज्य के दक्षिण में और चेदि के पश्चिम-उत्तर में स्थित था और मथुरा इसकी राजधानी थी। मथुरा अपने वैभव समृद्धि और ज्ञान-विज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। बौद्ध जातक ग्रन्थ में सूरसेन के शासक अवन्ति पुत्र का उल्लेख है जो बौद्ध का समकालीन था। इसके शासन काल में सूरसेन में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ। "काव्य मीमांसा" में कुविंद नामक एक अन्य सूरसेन सम्राट का उल्लेख है। यूनानी राजदूत मैगस्थनीज के समय भी सूरसेन प्रसिद्ध राज्य रहा। सूरसेन सम्राट श्रेष्ठ और उच्चकोटि के थे। कालान्तर में यह मगध साम्राज्य का एक अंग बन गया।
(13) अश्मक
अवन्ती राज्य के दक्षिण में भारत का यह राज्य था। गोदावरी नदी इस राज्य में थी। इसकी राजधानी पोतन, पोटली या पोदाना थी। वायुपुराण के अनुसार यहाँ के राजा इक्ष्वाकुवंशीय थे। बौद्ध जातक ग्रन्थों में अश्मक सम्राटों का उल्लेख है। अश्मक देश के राजा प्रवार अरुण ने कलिंग देश को जीत कर उसे अपने अधीन कर लिया था। प्राग् बौद्धकाल में अश्मक नरेशों और अवन्ती के नृपतियों में सीमा विस्तार के लिए संघर्ष होते रहे, जिसका फल यह हुआ कि कुछ समय के लिए अश्मक राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।
(14) अवन्ति
यह मालवा में था और इसके दो भाग थे-एक उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयनी या उज्जैन थी और दूसरे दक्षिणी अवन्ति जिसकी राजधानी माहिष्मती या माहेश्वर थी। ये दोनों ही नगर आज भी विद्यमान हैं। विन्ध्याचल पर्वत अवन्ति राज्य को दो भागों में बाँटता था। बौद्ध धर्म के जातक ग्रन्थों और पुराणों में अवन्ति का अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अवन्ति का सबसे प्रसिद्ध शासक महासेन चण्ड प्रद्योत था। प्रद्योत बड़ा पराक्रमी, धूर्त और क्रूर शासक था। उसने अवन्ति के पार्श्ववर्ती प्रदेशों को जीत कर अपने अधीन कर लिया था। मथुरा के सूरसेन नरेश से उसने अपना वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर मित्रता कर ली थी। कौशाम्बी के वत्स नरेश उदयन और प्रद्योत का परस्पर संघर्ष था। मगध का सम्राट अजातशत्रु भी प्रद्योत के आक्रमण से भयभीत था। इसलिए उसने प्रद्योत के अभियानों से रक्षा करने के लिए राजगृह का दुर्ग निर्मित करवाया था। पुराणों के अनुसार प्रद्योत ने तेईस वर्ष तक राज्य किया। वह बुद्ध का समकालीन था और उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था। फलतः उज्जैन बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र बन गया। प्रद्योत के दो पुत्र थे- गोपाल और पालक। गोपाल ने अपने लघु भ्राता पालक के पक्ष में अवन्ति का राजा सिंहासन त्याग दिया था।
(15) गांधार
इस राज्य में कश्मीर, पश्चिमोत्तर प्रदेश पेशावर और तक्षशिला का प्रदेश था। यह आजकल पाकिस्तान में है। तक्षशिला इस राज्य की राजधानी थी। सीमान्त प्रदेश में स्थित होने के कारण यह व्यापार एवं ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र था। गांधार के शासक द्रुह्य वंशी थे। ईसा पूर्व छठी सदी में इसका सम्राट पुक्कुसाति मगध सम्राट बिम्बिसार और बुद्ध का समकालीन था। उसने बिम्बिसार के पास अपना राजदूत भेजा था। अवन्तिराज प्रद्योत के साथ पुक्कुसाति ने कई युद्ध किये थे और उसे परास्त भी किया था।
(16) कम्बोज
यह गांधार राज्य का पड़ोसी राज्य था, क्योंकि बौद्ध ग्रन्थों में गांधार और कम्बोज का उल्लेख साथ-साथ किया गया है। यह सुदूर उत्तर-पश्चिमी प्रदेश में था जो आजकल पाकिस्तान में है। सम्भवतः इसमें कश्मीर का उत्तरी भाग, गांधार का उत्तरी-प्रदेश, पामीर और बदख्शाँ प्रदेश सम्मिलिति थे। उत्तर वैदिक युब में कम्बोज ब्राह्मण विद्या और धर्म का केन्द्र था। इसकी राजधानी राजपुर थी। महाभारत में कम्बोज के चन्द्रवर्मन और सुदक्षिण नामक दो नरेशों का वर्णन है। प्रारम्भ में यहाँ राजतन्त्रात्मक व्यवस्था थी किन्तु बाद में गणराज्य स्थापित हो गया था।
अतः इस प्रकार बौद्ध धर्म ग्रन्थों में इन उपर्युक्त 16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है।