सम्राट अशोक के उत्तराधिकारियों के शासनकाल का वर्णन।Details of the reign of Ashoka's successors in hindi

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

अशोक के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में ठीक और प्रामाणिक रूप से अभी तक कोई पता नहीं चला और इस सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कह सकता है भी कठिन। इस सम्बन्ध में कालक्रम के अनुसार कुछ कह सकना है भी कठिन यह तो बताया जाता है कि अशोक के कई पुत्र थे, किन्तु यह रहस्य अभी तक खुल नहीं सका कि उनमें से कौन अशोक के पश्चात् गद्दी पर बैठा। 

सम्राट अशोक के उत्तराधिकारियों के शासनकाल का वर्णन।Details of the reign of Ashoka's successors in hindi

इतना तो ठीक है कि तीवर, जिसका जन्म अशोक की कारूवाकी नाम की रानी से हुआ था, गद्दी पर बिल्कुल नहीं बैठा, किन्तु उसके अन्य तीन पुत्रों, महेन्द्र, कुणाल और जलौक का नाम साहित्य में आता है। कहीं महेन्द्र को अशोक का पुत्र बताया है और कहीं उसे अशोक का भाई। अतः यह मालूम करना अति कठिन है कि वास्तव में उसका अशोक से कौन-सा सम्बन्ध था।

यह भी पढ़ें- समुद्रगुप्त की विजयों पर प्रकाश डालिए। Throw light on the Victories of Samudra Gupta in hindi

अशोक के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक विवरण मिलते हैं। विष्णु पुराण ने उनके नाम इस प्रकार दिये हैं- सुयशस, दशरथ, संगत, शालिशूक, सोमशर्मा, शतधन्वन और बृहद्रथ। इसी प्रकार इसी दिशा में उसके नाम मत्स्य पुराण ने इस प्रकार दिये हैं- दशरथ, सम्प्रति, शतधन्वन और बृहद्रथ। वायु पुराण के अनुसार, अशोक की मृत्यु के आठ वर्ष पश्चात् तथा कुणाल ने राज्य किया। कुणाल के पश्चात् बन्धुपालित और बन्धुपालित के पश्चात् इन्द्रपालित गद्दी पर बैठा। इसके बाद देववर्मा, शतधनुष और बृहद्रथ की बारी आती है। राजतरंगिणी के लेखक कल्हण के अनुसार, अशोक के पश्चात् कश्मीर में जलौक ने गद्दी संभाली थी। इतिहासज्ञ तारानाथ का कथन है कि गांधार में वीरसेन ही अशोक का उत्तराधिकारी बना था। दिव्यावदान में अशोक के उत्तराधिकारियों की सूची इस प्रकार मिलती है- सम्पदि, बृहस्पति, वृषसेन, पुष्यधर्मा और पुष्यमित्र।

यह भी पढ़ें-अशोक का धम्म क्या था ? और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए क्या- क्या उपाय किये गये ?  (Dhamma of Ashoka)

विभिन्न इतिहासज्ञों का सदा से यही प्रयत्न रहा है कि वे अशोक के उत्तराधिकारियों का युक्तियुक्त या सही कालक्रम दे सकें। कई पुस्तकों में कुणाल को ही उसका उत्तराधिकारी स्वीकार किया गया है, किन्तु साथ ही यह भी पता चलता है कि वह अन्धा था। अतः हो सकता है कि वास्तव में कुणाल राजा हो और राज्य कार्य का भार सम्प्रति (सम्पदि) के कन्धों पर रहा हो। सम्प्रति के सम्बन्ध में कुछ पुस्तकों में कहा गया है कि वह अशोक के तुरन्त बाद का उत्तराधिकारी था।

कुणाल के पुत्र को प्रायः बन्धुपालित, सम्पदि और विगताशोक भी कहा गया है। या तो यह हो सकता है कि शायद इन तीन नामों वाला एक ही व्यक्ति रहा हो या फिर वे तीनों भाई थे। यदि उन्हें भाई समझ लिया जाये तो बन्धुपालित सम्भवतः दशरथ था, जो अशोक का पोता और सम्प्रति का पूर्वाधिकारी था। डॉ. रायचौधरी का विचार है कि इन्द्रपालित का सम्प्रति या शालिशूक से उसी प्रकार ऐकात्म्य होगा, जिस प्रकार बन्धुपालित का दशरंथ या सम्प्रति से था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जैन पुस्तकें सम्प्रति को उतना ही ऊँचा स्थान देती हैं जितना ऊँचा स्थान बौद्ध ग्रन्थ अशोक को देते हैं। 'पाटलिपुत्र कल्प' में लिखा है कि 'पाटलिपुत्र' में कुणाल के पुत्र - भारत के महाराज सम्प्रति का राज्य था। इसने श्रमणों के लिए अनार्य राष्ट्रों में भी मठ बनवाये। डॉ. बी. ए. स्मिथ का कथन है कि सम्प्रति का राज्य अवन्ति से लेकर पश्चिमी भारत तक फैला हुआ था। जैन पुस्तकें बतलाती हैं कि सम्प्रति का राज्ये केवल पाटिलपुत्र पर न होंकर उज्जैन पर भी था।

विष्णु पुराण, वायु पुराण और गार्गी संहिता से शालिशूक के अस्तित्व की पुष्टि होती है। डॉ. रायचौधरी को विचार है कि शालिशूक का तादात्म्य (identification) सम्प्रति के पुत्र बृहस्पति के साथ किया जा सकता है यदि बृहस्पति राजवंश की किसी अन्य शाखां का प्रतिनिधि न हो।

डॉ. रायचौधरी का कथन है कि देववर्मा और सोमशर्मा एक व्यक्ति के दो नाम हैं। ठीक यही बात सत्यधनुष और सत्वधन्वन के विषय में भी कही जा सकती है। इसी लेखक का विचार है कि वृषसेन और पुष्यधन्वन में मेल करना कठिन है। हो सकता है कि ये दोनों नाम क्रमशः देववर्मा और सत्यधन्वन के ही दूसरे नाम हों। यह भी सम्भव है कि वे मौर्यवंश की एक नई शाखा के प्रतिनिधि हॉ।

पुराणों और बाण कवि के 'हर्षचरित' में तो यही पढ़ने को मिलता है कि बृहद्रथ मौर्यवंश का अन्तिम राजा और मगध का सम्राट् था। साथ यह भी कहा जाता है कि वह अपने सेनापति पुष्यमित्र के हाथों मारा गया था। कुछ अन्य छोटे-मोटे मौर्य राजा मगध और पश्चिमी भारत में हुए हैं, किन्तु उनका वर्णन अनावश्यक प्रतीत होता है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Post a Comment

Previous Post Next Post