पश्चिमीकरण क्या है- अर्थ, परिभाषा एवं प्रभाव | westernization in sociology

पश्चिमीकरण (Westernization)

भारत में अंग्रेजी काल में बुनियादी व स्थायी परिवर्तन हुए जिनका महत्व भारतीय इतिहास के लिए विशेष प्रकार का है। इस काल के परिवर्तनों में पुराने कार्लो के परिवर्तनों से किसी प्रकार की समानता नहीं है। अंग्रेज अपने साथ औद्योगिक तकनीकी की नवीन संस्थाएँ ज्ञान, विश्वास एवं सर्वश्रेष्ठ नवीन मूल्य लेकर आये जिन्होंने भारतीय समाज को एक नयी दिशा प्रदान की। भारत में साम, दाम, दण्ड एवं भेद से राजनैतिक एकीकरण की स्थापना की। इसके साथ-साथ अंग्रेजों ने औद्योगीकरण एवं संचार साधनों में क्रान्ति लाकर जो सामाजिक एकीकरण स्थापित किया वैसा कभी स्थापित नहीं हो पाया था। अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ स्थानीय युद्ध सदैव को समाप्त हो जाये। यह एक अलग बात है कि स्वयं अंग्रेजों ने प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध सक्रियता से लड़ा।

पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Westernization)

पश्चिमीकरण का अर्थ किसी पश्चिमी देश के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क के कारण किसी गैर-पश्चिमी देश में होने वाले परिवर्तनों से है। पश्चिमी देशों में प्रायः अमेरिका और यूरोपीय देशों को सम्मिलित किया जाता है क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय देश अत्यधिक विकसित हैं। इसलिए यहाँ की सामाजिक दशाएँ पूर्वी देशों से भिन्न हैं। पूर्वी देशों में जापान भी अत्यधिक विकसित देश है। इस प्रकार सोवियत रूस भी विकसित देशों की श्रेणी में आता है। संसार के समस्त अविकसित तथा विकासशील देश इन विकसित देशों के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आते हैं। इन दीर्घकालीन सम्पर्कों के कारण इन देशों की सामाजिक दशाओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है परन्तु वर्तमान में कोई अविकसित देश किसी एक ही विकसित देश के सम्पर्क में तो आता नहीं अपितु विभिन्न देशों के साथ उसके सम्पर्क एक साथ चलते रहते हैं। इन समस्त देशों के कारण होने वाले परिवर्तनों को आधुनिकीकरण कहते हैं परन्तु आधुनिकीकरण से भिन्न 'पश्चिमीकरण' शब्द नैतिक दृष्टि से तटस्थ है। इसका प्रयोग अच्छे या बुरे को सूचित नहीं करता जबकि 'आधुनिकीकरण' शब्द का प्रयोग सदैव अच्छे के लिए किया जाता है।

पश्चिमीकरण की परिभाषा एम. एन. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक 'आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन' में इस प्रकार से की है- "पश्चिमीकरण एक अन्तर्भूतकारी संश्लिष्ट और बहुस्तरीय अवधारणा है, जिसमें एक छोर पर औद्योगिकी से लेकर दूसरे छोर पर आधुनिक विज्ञान और आधुनिक इतिहास-लेखन तक विस्तृत क्षेत्र सम्मिलित है। उसकी अविश्वसनीय संश्लिष्टता इस बात में देखी जा सकती है कि पश्चिमीकरण के विभिन्न पक्ष कभी तो एक होकर किसी प्रक्रिया विशेष को पुष्ट करते हैं कभी एक-दूसरे के विपरीत पड़ते हैं और कभी-कभी एक दूसरे से अलग रहते हैं।

पश्चिमीकरण के प्रभाव (Impact of Westernization)

पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन निम्नांकित रूप में किया जा सकता है-

(1) जाति पर प्रभाव (Impact on Caste)- पश्चिमीकरण के साथ औद्योगीकरण और नगरीकरण का विकास जुड़ा हुआ है। भारत में विभिन्न उद्योग-धन्धों का विकास होने से विभिन्न जातियों के सदस्य एक ही स्थान पर कार्य करने लगे और जाति व्यवस्था के कठोर प्रतिबन्धों में स्वाभाविक रूप से ढिलाई आ गयी। नगरीकरण ने भी विभिन्न जातियों के लोगों को पारस्परिक सम्मिलन और सहवास के अवसर की आवश्यकता प्रदान की। अंग्रेजी शिक्षा के कारण एक ओर तो सैद्धान्तिक रूप से जातिगत रूढ़ियों के प्रति उदासीनता का प्रसार हुआ और दूसरी ओर शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेशों या बड़े नगरों में जाने वाली नयी पीढ़ी के लोग जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से मुक्त होने लगे। अनेक शिक्षा संस्थानों की स्थापना से तथा पाश्चात्य सभ्यता के सम्पर्क से नव-जागरण हुआ और रूढ़िग्रस्ता जनता ने करवट ली।

(2) विवाह पर प्रभाव (Impact on Marriage)- पाश्चात्य संस्कृति ने हिन्दू विवाह पद्धति को भी प्रभावित किया है। आज का हिन्दू विवाह दो परिवारों का सम्बन्ध न होकर दो व्यक्तियों का जीवन-संघ बन गया है। पति-पत्नी, देवता और पुजारी या मालिक और दासी के रूप में नहीं अपितु मित्रों के रूप में जीवन साथियों के रूप में मिलते हैं। मन की पसन्द ने बड़ों के वायदे का तिरस्कार कर दिया। प्रेम और आनन्द ने धर्म को पीछे धकेल दिया। विवाह की पद्धति में भी परिवर्तन दिखाई देता है।

(3) परिवार पर प्रभाव (Impact on Family)- हिन्दुओं के पारिवारिक जीवन पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा है। पश्चिमी संसार एकाकी प्रणाली में विश्वास करता है। विभिन्न कारणों से भारतीय संयुक्त परिवार की व्यवस्था निर्बल होती जा रही है। समूहवादी दृष्टिकोण का स्थान व्यक्तिवाद ने ले लिया है। नवदम्पत्ति की इच्छा अपना अलग घर बसाने की रहती है। स्वतन्त्रतापूर्वक प्रणय का उपभोग, सास-ससुर की सेवा तथा कहने-सुनने से मुक्त, इच्छानुसार पाकशाला की व्यवस्था और जीवन-यापन आज की पत्नी की स्वाभाविक इच्छाएँ हैं, प्रजातान्त्रिक जीवन परिवार में भी अपना स्थान बना रहा है।

(4) स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव (Impact on the Status of Women)- पाश्चात्य संस्कृति का अत्यन्त महत्वपूर्ण और काफी हद तक उपयोगी प्रभाव भारतीय स्त्री पर पड़ा है। मध्य युग की दासी न केवल पुरुष की मित्र और जीवन-संगिनी ही बन गयी अपितु उसके हृदय और मकान दोनों पर शासन करने लगी है। स्त्री-शिक्षा के प्रसार से हिन्दू नारियों ने अपने अस्तित्व को समझा और समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से तथा औद्योगीकरण तथा नगरीकरण द्वारा उन्हें शिक्षा तथा आर्थिक प्रगति करने के अवसर मिल गये हैं। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वाली युवतियों ने पाश्चात्य नारी की उच्च स्थिति की तुलना में स्वयं को अत्यन्त शोचनीय अवस्था में पाया, उसका हृदय तिलमिला उठा और वह आगे बढ़ी। उसने सार्वजनिक जीवन में जनमत प्राप्त करने के उद्देश्य से और देशभक्ति से प्रेरित होकर भी राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और सिद्ध कर दिया कि वह पुरुष से हीन नहीं है। नवीन सांस्कृतिक सम्पर्क ने हिन्दू नारी को अपनी दासता से मुक्त होकर स्वयं के तथा समाज के उत्थान में सक्रिय तथा स्वतन्त्र योगदान करने को प्रोत्साहन किया।

(5) सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन (Eradication of Social Evils)- पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से हिन्दू समाज में व्याप्त अनेक विषैली प्रथाओं तथा भयंकर कुरीतियों का उन्मूलन सम्भव हुआ है। सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवा-विवाह निषेध, अस्पृश्यता आदि ऐसी प्रथाएँ, जिन्होंने हिन्दू संगठन को खोखला किया है, पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क में धीरे-धीरे कम हो रही हैं। समाज-सुधारकों में ऐसे बहुत से व्यक्ति थे जिन्होंने पश्चिमी जीवन-दर्शन का अनुभव किया था। अनमेल विवाह, बहुपत्नी विवाह, भ्रूण हत्या इत्यादि अनेक कुरीतियाँ पाश्चात्य शिक्षा विधान, प्रौद्योगिकी के प्रभाव से समाप्त होती जा रही हैं।

(6) धर्म पर प्रभाव (Impact on Religion)- भारतीय धर्म में वैदिक काल के बाद जो रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास, जादू-टोना या पूजा-पाठ सम्बन्धी विकृतियाँ समाविष्ट हो गयी थी वे पाश्चात्य शिक्षा तथा विज्ञान के प्रसार के कारण धीरे-धीरे दूर होती जा रही हैं। कर्मकाण्ड का प्रभाव कम हो गया है। बुद्धि और तर्क से अप्रमाणित तथ्यों की अवहेलना की जा रही है। बहुदेववाद के स्थान पर एकेश्वरवाद और साकार भावना के साथ पर निराकार भक्ति में विश्वास बढ़ रहा है। धर्म का सामाजिक महत्व कम हो रहा है। वह व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित घटना बन गया है। सामाजिक प्रतिष्ठा व लोकलाज के लिए ही धार्मिक, आर्थिक विधि-विधानों को सम्पन्न किया जाता है। धर्म जिसका प्रभाव पहले पारिवारिक जीवन, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन पर भी था, अब स्वयं एक पृथक संस्था के रूप में ही प्रचलित है। 'धर्मम् हि एको पुरुषो विशेष, धर्मेण बिनाः पशुभि 'समानः' का समय समाप्त हो चुका है। भारत के काफी हिन्दू जो साम्यवादी हैं, ईश्वर की सत्ता में भी विश्वास नहीं करते। इस प्रकार धर्म के स्वरूप में ही परिवर्तन नहीं हो रहा है अपितु धर्म की मान्यता में भी सन्देह होने लगा है।

(7) भाषा पर प्रभाव (Impact on Language)- भाषा पर तो पश्चिम का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। अंग्रेज 57 वर्ष पूर्व जा चुके हैं। हम स्वतन्त्र हैं किन्तु आज भी जो अंग्रेजी भाषा को अमरता देने के लिए, भारत की सर्वोच्च भाषा बनाने के लिए, एक प्रकार से इस देश की पराधीनता को चिरस्मरणीय स्वरूप प्रदान करने के लिए अधिकांशतया वे भारतवासी प्रयत्न और आन्दोलन कर रहे हैं जो स्वयं अंग्रेजी का अक्षर नहीं जानते। भाषा के प्रभाव का इससे भयंकर उदाहरण अन्यत्र कहीं पर नहीं मिलेगा। भारत में अंग्रेजी शब्द सामान्य रूप से प्रचलित है। अनपढ़ ग्रामीण भी स्टेशन, ट्रेन, पैन आदि हजारों अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं। भाषा के सौष्ठव की दृष्टि से, भारतीय लेखकों ने भी पाश्चात्य शैली को अपनाया है।

(8) रीति-रिवाजों पर प्रभाव (Impact on Customs)- पाश्चात्य रीति-रिवाजों को बड़े चाव से भारतीय जनता ने अपनाया है। फैशन चाहे वस्त्रों में हो अथवा बोल-चाल में या आभूषणों में, एक समस्या ही बन गई है। लिपिस्टिक, पाउडर, ऊँची ऐड़ी का जूता (सैंडल), बॉब्ड हेयर, अर्धनग्न पोशाक स्त्रियों के लिए आकर्षण और प्रिय बन गये हैं। घर की सजावट, खाने-पीने का सामान, बर्तन आदि सभी पर पश्चिमी प्रभाव दिखाई देता है। अभिवादन के तरीके भी बिल्कुल पाश्चात्य ही हो गये हैं। हाथ मिलाने की प्रथा गाँव-गाँव में चल गयी है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में रीति-रिवाजों पर पाश्चात्य प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है।

(9) कला और साहित्य पर प्रभाव (Impact on Art and Literature)- भारतीय साहित्य भी पश्चिम से प्रभावित हुआ है। पश्चिमी साहित्य का रोमान्टिकवाद तथा मनोविश्लेषणवाद भारतीय साहित्य की प्रत्येक विधा में दिखाई देता है। छायावाद, प्रयोगवाद, भोगवाद आदि के दर्शन भारतीय काव्य में होते हैं। नागरिक पर्यावरण, होटल, जासूसी, घटनाएँ, समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक पर्यावरण इत्यादि से सम्बन्धित विषयों और घटनाओं का चित्रण ही कलाओं में रहता है। भावना और कलापक्ष दोनों पर ही पश्चिमी प्रभाव पड़ा है। अंग्रेजी लेखकों की शैली बंगाल, मराठी और हिन्दी में विशेष रूप से अपनायी गयी है।

(10) शिक्षा का प्रसार (Spread of Education)- भारतीय शिक्षा पर भी पश्चिम का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। वास्तविकता तो यह है कि शिक्षा पर सर्वप्रथम पश्चिम का प्रभाव हुआ और उसके पश्चात् वह सामाजिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में प्रसारित हुआ। अंग्रेजी भाषा के प्रारम्भ से वह प्रभाव शुरू हुआ। भारतीय विद्यालयों में अंग्रेजी आयी। प्राचीन विद्या मन्दिरों का स्थान नवीन स्कूलों ने ले लिया। भवन आदि का महत्व शिक्षा संस्थाओं में बढ़ गया। नये-नये उपकरण, नयी-नयी शिक्षा प्रणालियाँ, नये-नये पाश्चात्य प्रभाव का ही फल है। आज शिक्षा का माध्यम ही बदल गया है।

(11) कृषि तथा उद्योग (Agriculture and Industry)- पश्चिम जगत् से निकट सम्पर्क होने के कारण और विशेष रूप से अंग्रेजों का शासन भारत पर होने के कारण विदेशी लोगों ने भारत में अनेकों उद्योग स्थापित किये। इस प्रकार हमारा कृषि प्रधान देश उद्योगों का विकास करने लगा और औद्योगिक अर्थव्यवस्था पनपने लगी। कृषि में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ।

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