उच्च मुद्रा शक्ति से आप क्या समझते हैं | uchch mudra shakti se aap kya samajhate hain

उच्च मुद्रा शक्ति या रिजर्व मुद्रा

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा देश की मुद्रा व्यवस्था के नियमन हेतु मौद्रिक नीति का निर्धारण किया जाता है और इन मौद्रिक नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति एवं भावी मुद्रा की माँग पूर्वानुमान पर आधारित होती है। इस मौद्रिक नीतियों के आधार पर मुद्रा की पूर्ति के निर्धारक तत्वों की व्याख्या की जाती है। इन्हीं मौद्रिक आधारों को उच्च मुद्रा शक्ति या शक्तिशाली मुद्रा कहा जाता है। उच्च स्तरीय मुद्रा शक्ति का आशय व्यापारिक बैंकों के पास सुरक्षित कोष और जनता के पास नकद करेन्सी के योग से होता है। बैंकों द्वारा अपनी जमाओं का एक निश्चित भाग वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सुरक्षित रखा जाता है जिन्हें नकद कोषानुपात (CRR) तथा वैधानिक तरल कोषानुपात (SLR) कहते हैं। इन्हीं सुरक्षित कोषों के कारण बैंक नवीन जमा राशि के सृजन में गुणक प्रक्रिया का आधार होते हैं, जो गुणक प्रक्रिया के कारण स्वतः बढ़ते हैं। उच्च मुद्रा शक्ति को निम्न समीकरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

H=C+R+OD

H = उच्च मुद्रा शक्ति

C = जनता के पास एकत्रित करेन्सी

R = बैंक के पास नकद सुरक्षित कोष

OD = केन्द्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ।

उच्च मुद्रा शक्ति के संघटक

इन आधुनिकतम देश की अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रा शक्ति के द्वारा ही साख तथा मुद्रा की पूर्ति का निर्माण किया जाता है। उच्च मुद्रा शक्ति के तीन संघटक हैं जो निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किये जा सकते हैं-

H=C+R+OD

इन संघटकों का वर्णन निम्न प्रकार है-

(1) बैंक के पास नकद सुरक्षित कोष (R)- न्यूनतम एवं आवश्यक बैंकों द्वारा रखे जाने वाले सुरक्षित कोष वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने पास रखती है जिन्हें नकद कोषानुपात (C.R.R.) तथा वैधानिक तरल कोषानुपात (SLR) कहते हैं। उच्च मुद्रा शक्ति की मात्रा के निर्धारण के लिए अतिरेक रिजर्व ही अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि वाणिज्यिक बैंक के अतिरेक रिजर्व ही उसकी जमा देयताओं के आधार को प्रभावित करते हैं।

(2) जनता के पास सुरक्षित नकद करेंसी (C)- उच्च मुद्रा शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण संघटक नोट या करेंसी है जिसे शब्द C से सम्बोधित किया गया है। भारत में नोट या करेंसी के निर्गमन का अधिकार देश की सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक को प्राप्त है। इस प्रकार के नोटों/करेन्सी के निर्गमन हेतु भारत सरकार या R.B.I. कुछ सुरक्षित कोष अपने पास जमा करती है। अतः इस सुरक्षित कोष के कारण मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है और साख का निर्माण पूँजी के निर्माण से अपेक्षाकृत कम ही रहता है। क्योंकि देश की जनता अपने मुद्राधारणों को नकद रूप में अपने पास तिजोरी में रखना अच्छा समझती है।

(3) केन्द्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ (OD)- यह उच्च मुद्रा शक्ति का तीसरा और आखिरी संघटक है। जिसके अनुसार देश की अन्य गैर-व्यापारिक संस्थाएँ अपना धन केन्द्रीय बैंक के पास सुरक्षित रखती हैं। केन्द्रीय बैंक की अन्य जमाएँ भी, बैंकों की माँग के अनुसार बहुगुणी सृजन के आधार मानकर कार्य करती हैं। अतः ये भी उच्च मुद्रा शक्ति का एक संघटक हैं क्योंकि ऐसी अन्य जमाओं की मात्रा बहुत अधिक नहीं होती है और न ही मुद्रा की पूर्ति पर कोई खास प्रभाव पड़ता है।

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भारत में उच्च शक्ति मुद्रा के स्रोत

भारंत में उच्च शक्ति मुद्रा के प्रमुख स्रोतों को निम्न सात भागों में बाँटा गया है-

(i) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा सरकार को शुद्ध उधार।

(ii) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा व्यापारिक एवं सहकारी बैंकों को उधार।

(iii) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) को उधार ।

(iv) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा व्यापारिक क्षेत्र को उधार जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा वित्तीय संस्थाओं के अंशों (Shares) अथवा बॉण्डों (Bonds) में निवेश, वित्तीय संस्थाओं को दिये गये ऋण तथा देश के आन्तरिक बिलों के क्रय पर व्यय सम्मिलित हैं।

(v) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की विशुद्ध विदेशी विनिमय परिसम्पत्तियाँ।

(vi) सरकार की जनता के प्रति करेन्सी देयताएँ।

(vii) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की विशुद्ध गैर मौद्रिक देयताएँ जिनमें रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की पूँजी, रिजर्व कोष राष्ट्रीय कोषों में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के अंशदान की राशियाँ + जनता की अनिवार्य जमा राशियाँ सम्मिलित हैं। किन्तु यह मद ऋणात्मक (Negative) रूप में दिखाई जाती है क्योंकि इस मद में अधिक राशि होने पर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की नई रिजर्व मुद्रा सृजन पर कम मात्रा में निर्भर रहना पड़ता है।

इस प्रकार उच्च शक्ति मुद्रा अथवा रिजर्व मुद्रा को ज्ञात करने का सूत्र है-

रिजर्व मुद्रा (Reserve Money)-(i) + (ii) + (iii) + (iv) + (v) + (vi) + (vii)

अर्थात् उपर्युक्त (i) से (vi) तक मदों के योग में से मद संख्या (vii) को घटाने पर रिजर्व मुद्रा ज्ञात की जा सकती है। उच्च्च शक्ति मुद्रा अथवा रिजर्व मुद्रा (H) में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा सरकार को दी जाने वाली शुद्ध उधार का प्रमुख स्थान लगभग 80 से 95 प्रतिशत रहता है।

उच्च मुद्रा शक्ति का महत्व या उपयोग

वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उच्च मुद्रा शक्ति का बहुत महत्व है तथा मुद्रा की पूर्ति में भी इसका उपयोग किया गया है, जिसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) मुद्रा गुणक- देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च मुद्रा शक्ति के अनुपात का विश्लेषण भी आवश्यक एवं उपयोगी है। इस तथ्य के समर्थक प्रो. एच. एल. आहूजा ने मुद्रा की पूर्ति की M1 व M3 अवधारणाओं का उपयोग करते हुए मुद्रा गुणक की गणना की है। विश्लेषण द्वारा यह तथ्य स्पष्ट होता है कि उच्च मुद्रा शक्ति, मुद्रा की पूर्ति की कई गुना कम होती है। अतः उच्च मुद्रा शक्ति में वृद्धि या कमी होने से मुद्रा की पूर्ति में कितने गुना कमी या वृद्धि होगी? यह मुद्रा गुणक पर आधारित है और इसका निर्धारण भी स्वयं उच्च मुद्रा शक्ति पर निर्भर है।

(2) आधार मुद्रा- व्यापारिक बैंकों में जमा राशियों के विस्तार के लिए तथा मुदा की पूर्ति के निर्माण का मुख्य आधार उच्च मुद्रा शक्ति है। इसीलिए कुछ विद्वान इसे 'आधार मुदा' के नाम से भी पुकारते हैं।

(3) मौद्रिक नीति निर्धाण में- भारत सरकार तथा RBI द्वारा देश की मुद्रा पूर्ति की व्यवस्था के नियन्त्रण एवं नियमन हेतु मौद्रिक नीतियों का निर्धारण किया जाता है। किसी भी देश में उसकी मौद्रिक नीतियाँ देश की अर्थव्यवस्था तथा भविष्य में उत्पन्न होने वाली मुद्रा की माँग पर आधारित होती हैं। इसी मुद्रा में उच्च स्तरीय मुद्रा के निर्धारण के फलस्वरूप उपलब्ध मुद्रा के कोष का पता लगाया जाता है और मुद्रा की मात्रा में होने वाली कमी या वृद्धि का पता लगाने के लिए भी उच्च मुद्रा शक्ति का प्रयोग आवश्यक हैं। अतः मौद्रिक नीतियों के निर्धारण में उच्च मुद्रा शक्ति का निर्धारण करना अत्यन्त आवश्यक है।

(4) राजकोषीय नीति- देश की सरकार आर्थिक विकास के लिए राजकोषीय नीतियों का निर्धारण करती है और उन्हें लागू करती है, जिनका मुख्य आधार उच्च स्तरीय मुद्रा का निर्धारण ही है। देश की राजकोषीय नीतियाँ RBI में सुरक्षित कोष, उपलब्ध मुद्रा भण्डार एवं भविष्य में उत्पन्न होने वाली मुद्रा की माँग को ध्यान में रखते हुए निर्धारित करती है। अतः हम कह सकते हैं कि उच्च स्तरीय मुद्रा देश में लागू राजकोषीय नीतियों के निर्धारण का आधार है।

(5) अन्य महत्व-

  • परिवर्तन का मुख्य स्रोत,
  • मौद्रिक नियन्त्रण,
  • मौद्रिक विस्तार की दर का निर्धारक,
  • आर्थिक विकास का आधार।

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