ऐतिहासिक दृष्टिकोण से तो सिन्धु घाटी की सभ्यता महत्वपूर्ण है ही, परन्तु खुदाइयों के फलस्वरूप जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उनके माध्यम से एक अत्यधिक विकसित और शहरी सभ्यता प्रकाश में आई है। इन खुदाइयों ने यह स्पष्ट कर दिया कि आर्य सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नगर-निर्माण योजना
सिन्धु घाटी सभ्यता की सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि यह वैदिक सभ्यता की भाँति ग्राम्य सभ्यता न होकर नगर सभ्यता है। सिन्धु घाटी सभ्यता भी मेसोपोटामिया की सभ्यता के ही समान एक नगरीय सभ्यता भी। प्रस्तर धातुयुगीन इस सभ्यता के अन्तर्गत अनेक शहरों के भग्नावशेष मिले हैं जिनमें हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, लोथल, कालीबंगा और बनवी आदि प्रमुख हैं। इन स्थानों से प्राप्त भग्नावशेषों का देखने से ज्ञात होता है कि इस काल के नगरों का निर्माण एक सुनिश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन सभी नगरों की योजना में हमें एक अद्भुत समानता दिखाई पड़ती है।
अतः कोई भी मकान ऐसा नहीं था जो सार्वजनिक सड़कों में रुकावट डालता। किसी भी मकान का कोई भी भाग अन्य मकानों से आगे बढ़ा हुआ नहीं है, जिससे यह आभास मिलता है कि मकान बनवाते समय मकान मालिक को नगर के अधिकारियों से नक्शा पास कराना पड़ता होगा। गली अथवा सड़क के दोनों ओर के मकानों की पंक्तियाँ दूर तक देखने पर एकदम सीधी प्रतीत होती हैं। नगर-निर्माण योजना में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सुन्दरता एवं सुनिश्चित योजना के साथ-साथ उपयोगिता को भी अत्यधिक महत्व दिया गया है।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में दो स्तर के शहर पाये गए हैं दुर्ग अथवा ऊपरी शहर और निचला शहर। दुर्ग में सम्भवतः शासक वर्ग का निवास होता था जबकि दुर्ग के बाहर स्थित निचले शहर में सामान्यजन रहा करते होंगे। शत्रुओं से रक्षा करने के इन नगरों की घेराबन्दी की भी व्यवस्था थी।
नगर की व्यवस्था निश्चित रूप से प्रभावित करने वाली है और इसे देखकर यह सिद्ध होता है कि नगर की व्यवस्था अत्यन्त कुशल और प्रवीण व्यक्तियों के हाथों में सौंपी गई थी।
(2) भवन-निर्माण
सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों में विभिन्न प्रकार के भवन प्राप्त हुए है जिनसे इस सभ्यता के निर्माताओं की भवन निर्माण योजना पर यथेष्ट प्रकाश पड़ता है। ये भवन छोटे-बड़े, कच्चे पक्के सभी प्रकार के हैं और इन भवनों का निर्माण इतनी सावधानी, स्वच्छता और सुन्दरता से हुआ था जिसे देखकर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इनका निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर हुआ होगा।
भवनों का निर्माण सड़कों और गलियों के दोनों ओर होता था। इन भवनों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है इनके निर्माण में पक्की ईंटों को जोड़ने के लिए मिट्टी के गारे का प्रयोग किया जाता था। ईंटों को पकाने के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। किसी-किसी घर में कच्ची-पक्की दोनों ईंटों से भी निर्माण किया जाता था। मिट्टी के गारे के साथ-साथ कुछ मकानों में चूने का प्रयोग भी होता था।
कुछ मकानों में जीनों के निशान भी प्राप्त हुए हैं। अधिकतर जीने मकानों के अन्दर ही बने हुए हैं जिनसे आभास होता है कि नीचे और ऊपर दो अलग-अलग परिवार स्वतन्त्र रूप से रहते होंगे।
नगरों के उत्खनन में विभिन्न प्रकार के भवन मिले हैं जिनमें से कुछ छोटे और कुछ काफी बड़े हैं। छोटे अथवा साधारण मकान 30 फुट लम्बे और 27 फुट चौड़े हैं जिनमें 4-5 कमरे बने हैं। बड़े भवनों का माप इनसे लगभग दुगुना है और कमरों की संख्या 30 तक पाई गई है, परन्तु इन मकानों की संख्या बहुत कम है। कुछ बड़े मकानों की दीवारें 25-30 फुट ऊँची मिली है जिनसे आभास मिलता है कि यहाँ दो मंजिलें और तिमंजिले मकान भी बनाए जाते रहे होंगे।
सभी घरों में चौकोर स्नानागार बने होते थे जिनका फर्श पक्की ईंटों का होता था जिसे चिकना रखा जाता था। नहाने का पानी रखने के लिए एक बड़ा पात्र होता था। स्नानागार के पास ही शौचालय बनाया जाता था।
मोहनजोदड़ो में मकानों के बीच में एक चौक होता था जिसमें एक तरफ रसोईघर बना होता था। पानी के लिए व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों प्रकार के कुएँ होते थे। मकानों की नींव काफी गहरी होती थी और मोहनजोदड़ो में बाढ़ों के डर के कारण मकान मिट्टी के ऊँचे चबूतरों पर बनाए जाते थे।
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(3) सड़कें, गलियाँ और नालियाँ
नगर-निर्माण योजना में सड़कों, गलियों तथा नालियों के प्रबन्ध पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सम्पूर्ण नगर में छोटी-बड़ी सड़कों, गलियों और 'नालियों का एक वृहत् जाल-सा बिछा हुआ था जिससे आवागमन में सुविधा होती थी। सड़कों का निर्माण इतना योजनाबद्ध था कि किसी भी सड़क पर चलकर कोई भी व्यक्ति नगर के एक किनारे से दूसरे किनारे तक बिना मुड़े पहुँच सकता था। नगरों की सड़कें उत्तर से दक्षिण तथां पूर्व से पश्चिम की ओर एक-दूसरे को सीधे समकोण पर काटती जाती थीं।
अतः इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण नगर कई वर्गाकार आयतों में विभक्त हो जाता था। सड़कें काफी चौड़ी होती थीं और वे छोटी-छोटी उपसड़कों और गलियों से जुड़ी होती थीं। नगरों में सड़कों में चौराहे और तिराहे भी दिखाई देते हैं। इन सड़कों के किनारे कूड़ा फेंकने के लिए बर्तन रखे जाते थे और कहीं-कहीं गड्ढे भी खुदे हुए थे। गॉर्डन चाइल्ड ने लिखा है कि "गलियों की सुन्दर पंक्तियाँ तथा प्रणालिकाओं की उत्तम व्यवस्था एवं सतत् स्वच्छता से इस बात का संकेत मिलता है कि यहाँ कोई नियमित नगर शासन था जो अपना कार्य सावधानी से सम्पन्न करता था।"
सिन्धु घाटी सभ्यता में नालियों तथा जल-निकासी की व्यवस्था इतनी अच्छी थी जितनी आधुनिक युग के अधिकांश शहरों में भी नहीं होगी। डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि "इस प्रकार की सुव्यवस्था अठारहवीं शताब्दी तक पेरिस और लंदन के प्रसिद्ध नगरों में भी न थी।" प्रत्येक भवन, पाठशाला एवं सार्वजनिक भवनों में पक्की ईंटों से बनी नालियाँ होती थीं जो बाहर को बड़ी नाली से मिल जाती थीं।
(4) प्रकाश की व्यवस्था
इस सभ्यता में बिजली की समुचित व्यवस्था का भी आभास मिलता है। माहनजोदड़ो में सड़कों और गलियों के किनारे बने हुए खम्भों से यह अनुमान लगाया गया है कि इनका प्रयोग विद्युत व्यवस्था के लिए किया जाता रहा होगा। रोशनी के लिए मोमबत्तियों का प्रयोग होता था या तेल इत्यादि का, इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।
(5) सार्वजनिक भवन
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई में कुछ विशाल सार्वजनिक भवन भी प्राप्त हुए हैं जिन्हें देखकर इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि इस सभ्यता के निवासी एकत्रित होकर राजनीति एवं शासन-व्यवस्था के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करते रहे होंगे या सार्वजनिक सभाएँ एवं धार्मिक तथा अन्य उत्सवों के लिए इनका प्रयोग करते रहे होंगे।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में कुछ विशिष्ट भवन भी मिले हैं जिनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार (The Great Bath) सबसे प्रमुख है और इस खुदाई में मिले सुन्दरतम भ नों में से है। इसकी लम्बाई 11.88 मीटर, चौड़ाई 7.01 मीटर तथा गहराई 2.5 मीटर थी। इसका 'फर्श पक्की ईंटों से निर्मित था। इस जलाशय में उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इसके निकट एक हम्माम भी बना हुआ था जिसमें सम्भवतः गर्म पानी का प्रबन्ध रहता होगा पूरे स्नानागार में 6 प्रवेश द्वार हैं।
खुदाइयों में कुछ विशाल अन्नागार (Granary) भी प्राप्त हुए हैं जिनको अन्न भण्डारण के लिए प्रयोग किया जाता होगा। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में विशाल अन्नागार प्राप्त हुए हैं, जो आधुनिक गोदामों के समान थे जिनमें उपज का संग्रह किया जाता रहा होगा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नगर निर्माण की सुन्दर योजना थी, मकान एक निश्चित प्रणाली पर बनाए गए थे, पानी और सफाई का समुचित प्रबन्ध था, जिन सबको देखकर ऐसा आभास होता है कि उस समय आधुनिक म्यूनिसपैलिटी के समान कोई स्थान संस्था रही होगी जो इन सब बातों का प्रबन्ध करती होगी। उपर्युक्त व्यवस्थ को देखकर पता चलता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता एक अत्यन्त उन्नत शहरी सभ्यता थी।