अंकगणित में जिसे 'औसत' (Average) कहते हैं, सांख्यिकी में उसे ही 'समान्तर माध्य' (Arithmentical Mean) या 'मध्यक' या 'माध्य' (Mean) या 'औसत मान' (Aver- age Mean) कहते हैं। एक अंकों की तालिका अर्थात् समंकमाला की संख्याओं (अंकों) के मूल्यों के जोड़ को, संख्याओं के नम्बर से भार देने पर प्राप्त होने वाली संख्या को समान्तर माध्य कहते हैं।
समान्तर माध्य का अर्थ एवं परिभाषा
समान्तर माध्य सभी सांख्यिकी विधियों का आधार है। प्रायः इसके लिए 'औसत' शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। समान्तर माध्य वह मूल्य है, जो किसी श्रेणी के सभी पदों के मूल्यों के योग में उनकी संख्या का भाग देने से प्राप्त होता है। उदाहरण हेतु यदि 15 छात्रों के प्राप्तांक 35, 20, 25, 22, 28, 22, 18, 16, 28, 24, 20, 12, 21, 34 एवं 20 हैं तो 345 को 15 से भाग देने पर प्राप्त 23 प्राप्तांकों को समान्तर माध्य कहा जायेगा।
(1) किंग (King) के अनुसार- "समंकमाला के पदों के जोड़ में उनकी संख्या के द्वारा भाग देने से जो संख्या प्राप्त होती है, उसे माध्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।"
(2) घोष एवं चौधरी (Ghosh and Chaudhry) के अनुसार- "समान्तर माध्य औसत, जिसे समान्तर माध्य या केवल मध्यक भी कहते हैं, समान्तर माध्य वह परिमाण है, जो किसी चल में पदों के मूल्यों के योग को उनकी संख्या से भाग देकर प्राप्त होता है।"
समान्तर माध्य की विशेषताएँ
समान्तर माध्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप की एक ऐसी सरल विधि है जो कुल पदों के मूल्यों के योग को पदों की कुल संख्या से भाग देने पर ही प्राप्त की जाती है।
- इसमें समस्त पद-मूल्यों को समान महत्व प्रदान किया जाता है।
- समान्तर माध्य में पदों की आवृत्ति की तुलना में पद-मूल्यों को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
- समान्तर माध्य ज्ञात करने हेतु प्रत्येक पद की गणना मात्र एक बार ही की जाती है।
- समान्तर माध्य तथा पदों की संख्या ज्ञात होने पर दोनों के गुणा करने से कुल पदों का योग ज्ञान किया जा सकता है।
समान्तर माध्य के गुण
समान्तर माध्य गणितीय माध्यों में सबसे अधिक उपयोगी समझा जाता है। इसके गुण निम्नलिखित हैं-
(1) स्पष्टतया परिभाषित (Clearly Defined)- समान्तर माध्य स्पष्ट रूप से परिभाषित होता है। इसमें किसी प्रकार की अनिश्चितता नहीं होती है।
(2) श्रेणी के सभी पदों पर आधारित (Based on all items of Series)- समान्तर माध्य की गणना करते समय श्रेणी के किसी भी पद को छोड़ा नहीं जाता है। गणना में सभी पदों का उपयोग किया जाता है।
(3) तुलना में उपयोगी (Useful in Comparison)- समान्तर माध्य निश्चित व स्पष्ट होता है। इस कारण विभिन्न श्रेणियों की तुलना उसके समान्तर माध्यों के आधार पर आसानी से की जा सकती है।
(4) सभी पदों के समान महत्व (Equal Importance to all itens)- समान्तर माध्य की गणना करने में श्रेणी के सभी छोटे एवं बड़े पदों को समान महत्व दिया जाता है।
(5) अंकगणितीय एवं बीजगणितीय उपयोग (Arithmetic and Algebric use is Possible)- समान्तर माध्य निरक्षेप होता है इस कारण इसका अंकगणितीय एवं बीजगणितीय उपयोग सम्भव होता है।
(6) समान्तर माध्य निरक्षेप होता है (Arithmetic mean is absolute)- समान्तर माध्य का यह एक बहुत बड़ा गुण है। इसको निश्चित संख्या में व्यक्त किया जाता है।
(7) सम्पूर्ण श्रेणी के अभाव में माध्य निकाला जा सकता है (Mean can be calculated in the absence of Entire Series)- समान्तर माध्य का एक गुण यह है भी है कि यदि पर्दो का कुल योग और उनकी संख्या मालूम हो तो समान्तर माध्य निकालने के लिए सम्पूर्ण श्रेणी की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
(8) गणना में सरल (Easy in Calculation)- माध्य की गुणना अत्यधिक सरल है। प्रत्येक व्यक्ति जो कि गणितीय योग्यता रखता है, इसे आसानी से समझ सकता है।
यह भी पढ़ें- बिन्दु रेखाचित्र का अर्थ, परिभाषा, तथा गुण दोष एवं उपयोगिता
समान्तर साध्य के दोष
यद्यपि समान्तर माध्य के अनेक गुण हैं, फिर भी इसमें कुछ दोष भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(1) प्रतिनिधित्व का अभाव (Lack of Representation)- समान्तर माध्य में प्रतिनिधित्व का अभाव पाया जाता है। इसमें वह मूल्य आता है, जो श्रेणी में नहीं पाया जाता है। अतः समान्तर माध्य केवल विवरणात्मक ही होता है तथा सम्पूर्ण श्रृंखला का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
(2) निर्धारण करने में असुविधा (Difficulty in Computing)- केवल श्रृंखला को देख लेने मात्र से ही समान्तर माध्य नहीं निकाला जा सकता है। इसे ग्राफ पेपर पर भी प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
(3) घटने-बढ़ने का क्रम स्पष्ट नहीं (Drecreasing and Increasing order is not clear)- समान्तर माध्य का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि श्रेणी में पदों का मूल्य घट रहा है अथवा बढ़ रहा है। समान्तर माध्य से घटने एवं बढ़ने के क्रम का पता नहीं चलता है।
(4) असाधारण मूल्यों का अधिक प्रभाव (More Effect of Extreme Values)- श्रेणी के असाधारण मूल्यों का समान्तर माध्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी समान्तर माध्य श्रेणी का वास्तविक स्वरूप नहीं प्रस्तुत कर पाता है।
(5) श्रेणी की बनावट का ज्ञान नहीं होता है (No Knowledge regarding the construction of series)- समान्तर माध्य के द्वारा श्रेणी की बनावट के बारे में कोई ज्ञान नहीं होता है। इसी कारण से समान्तर माध्य के आधार पर दो श्रेणियों की तुलना नहीं हो सकती है।
(6) गणना में कठिनाई (Diffculty in Calculation)- यदि समंकमाला का एक भी मूल्य ज्ञात न हो तो समान्तर माध्य नहीं निकाला जा सकता है। स्पष्ट है कि समान्तर माध्य की गणना में कठिनाई आती है।
(7) भ्रामक निष्कर्ष (Confusing Results)- कई बार समान्तर माध्य से ऐसे निष्कर्ष निकल आते हैं, जो सामान्यतः नहीं पाये जाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)- यद्यपि समान्तर माध्य में कुछ दोष हैं, परन्तु फिर भी सामाजिक, आर्थिक समस्याओं, आय-व्यय, आयात-निर्यात आदि का औसत ज्ञात करने में समान्तर माध्य का ही प्रयोग किया जाता है। स्पष्ट है कि समान्तर माध्य की अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।