मानव विकास
मानव विकास से तात्पर्य मनुष्य के व्यक्तिगत विकास से है। मानव विकास की अवधारणा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो समाज एवं व्यक्ति को प्रगतिशीलता की तरफ उन्मुख रखती है।
मानव विकास का उद्देश्य एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जिसमें लोग अपनी क्षमताओं की वृद्धि कर सकें तथा उनके चुनाव का क्षेत्र एवं उनके विकल्पों का क्षेत्र विस्तृत हो सके और राष्ट्र में उपलब्ध साधनों के उपयोग के सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको समान रूप से भागीदार अनुभव कर सके। जब तक भौतिक सुख-सुविधाओं का विस्तार नहीं होगा, लोगों का जीवन-स्तर अच्छा नहीं होगा, तब तक हिंसा, अत्याचार, अपराध तथा अन्य प्रकार की समस्याएँ बनी रहेंगी। इसके लिए आवश्यक हैकि गरीब लोगों के लिए परिसम्पत्तियों का निर्धारण किया जाये। ऐसे गरीब बच्चों हेतु बजीफे की व्यवस्था, अच्छी गुणवत्ता वाली सेवाओं की उपलब्धता, असमानताओं में कमी आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए।
मानव विकास के लिए प्रयत्न
विकासशील देशों में आने वाले 25 वर्षों में जनसंख्या निश्चित रूप से बढ़ती रहेगी तथा यह वृद्धि 1.84 बिलियन की सम्भावित है। इसलिए यदि 2015 तक हम गरीबों का अनुपात घटाना चाहते हैं, तो गरीबी घटाने की चक्रवृद्धि दर 2.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष होनी चाहिए। इसलिए चुनौतियाँ बहुत अधिक हैं। कम से कम तीन क्षेत्रों में सोच-विचार कर प्रयत्न किया जाना चाहिए। तभी विकासशील देशों की मूलभूत समस्याओं से मुक्ति मिल सकेगी तथा वास्तविक मानव विकास प्राप्त किया जा सकता है।
(1) अवसरों को बढ़ाना- जब तक भौतिक सुख-सुविधाओं का विस्तार नहीं होगा, लोगों का जीवन-स्तर बेहतर नहीं होगा तब तक हिंसा, अत्याचार, अपराध एवं अन्य तरह की समस्याएँ बनी रहेंगी। इसके लिए आवश्यक है कि गरीब लोगों के लिए परिसम्पत्तियों का निर्धारण किया जाये। ऐसे गरीब बच्चों हेतु वजीफे की व्यवस्था, अच्छी गुणवत्ता वाली सेवाओं की उपलब्धता, असमानताओं में कमी आदि।
(2) सशक्तिकरण को प्रोत्साहन- इसके लिए राजनैतिक, सामाजिक तथा अन्य संस्थाओं के विकास एवं उनकी प्रक्रियाओं को विकसित करने से लोगों को सशक्त बनाया जा सकता है। वर्तमान में विकासशील देशों में जो गरीब तथा कमजोर हैं वे निरन्तर हाशिये पर डाले जाते रहे हैं। इस प्रवृत्ति को रोके बिना मानव विकास की बात करना व्यर्थ है। इसके लिए राजनैतिक तथा कानूनी रूप से व्यवस्थाएँ बहुत जरूरी हैं। एक ऐसा लोक प्रशासन जो किवास तथा समानता को बढ़ाये। विकेन्द्रीकरण, सामुदायिक विकास के बिना लोगों का सशक्तिकरण सम्भव नहीं है। सामाजिक बुराइयों से तथा बन्धनों से मुक्ति की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण शर्त है एवं इसके लिए सामाजिक पूँजी तथा विकास जरूरी है।
(3) सुरक्षा को बढ़ावा- लोगों को आर्थिक झड़पों, प्राकृतिक विपदाओं, कमजोर स्वास्थ्य, अपमता, निजी हिंसा तथा राज्य के द्वारा की जाने वाली हिंसा से मुक्ति मिलना बहुत आवश्यक है। इसके लिए सतत् प्रयत्न किये जाने चाहिए। व्यक्तिगत हिंसा तथा राज्य के द्वारा हिंसा को रोकने के सोचे समझे प्रयत्न के बिना यह सम्भव नहीं है।
स्थिर विकास
विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निरन्तरता बनी रहती है किन्तु इस निरन्तरता के पश्चात् स्थिर विकास की अवस्था आती है जिसमें कोई प्रयोजना मूर्त रूप ग्रहण कर लेती है। एक उद्देश्य सर्वथा स्थिर दिखाई देता है और उसके लाभों में निरन्तर वृद्धि होती जाती है यही स्थिर विकास है।
हमारा समाज सतत् परिवर्तनशील है। अनेक कारक भी सामाजिक परिवर्तन लाते हैं। हमारा समाज परिवर्तनशील है, इसलिए समाज में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं। समाज में जो कारक परिवर्तन लाते हैं उनका वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
- प्राकृतिक सामाजिक परिवर्तन द्वारा
- मानवगत सामाजिक परिवर्तन।
इस प्रकार से समाज की संस्थाएँ, समुदाय, व्यक्ति सब में बदलाव आता रहता है। समाज की मान्यताएँ भी बदलती रहती हैं। परिवर्तित जटिल व्यवस्था से समाज अनुकूलन व सामंजस्य कर सके इसके लिए स्थिरता की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
हमारे समाज में सामाजिक परिवर्तन व्यक्तियों के कल्याण में वृद्धि कर रहा है। सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक प्रगति के रूप में भी हम देख सकते हैं। समाज में जब किसी काम को योजनाबद्ध ढंग से किया जाता है तो सामाजिक परिवर्तन में भी सुधार आता है। अतः हम स्पष्टतः कह सकते हैं कि अगर समाज में योजना बनाकर परिवर्तन की दिशा निश्चित कर दी जाए तो इसे नियोजित सामाजिक परिवर्तन कहा जायेगा, इसी से स्थिरता आती है। एण्डरसन के अनुसार, नियोजित परिवर्तन एक ऐसी योजना है जिसके द्वारा सुनिश्चित मान्यता प्राप्त उद्देश्यों को निश्चित अवधि में प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। सामाजिक नियोजित परिवर्तन से हमारे घनिष्ठ परिवर्तन के सम्बन्ध हैं। अतः स्पष्ट है कि नियोजित परिवर्तन परिभाषित सामाजिक उद्देश्यों के बारे में साधनों को संगठित एवं एकत्रित कर अधिकतम लाभ उठाने की एक प्रणाली है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जब समूह या व्यक्ति समूह योजनाबद्ध तरीके से कार्यरत रहकर सतत् प्रयत्न द्वारा परिवर्तन करते हैं तो उसे नियोजित परिवर्तन कहते हैं। नियोजित परिवर्तन को समझने के लिए नियोजन की परिभाषाएँ विद्वानों ने निम्न प्रकार दी हैं-
डिफेन्स- "नियोजन सामाजिक, आर्थिक प्रणाली के विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर अधिकारियों के सावधानीपूर्वक निर्णयों के द्वारा व्यापक निर्णय लेना और क्या कितना, किस प्रकार से, कब, कहाँ तक किसके द्वारा पुनः निश्चित करना है।"
लाविन- "नियोजन का अर्थ एक ऐसे सामाजिक-आर्थिक संगठन से है जिसमें व्यक्तिगत और सार्वजनिक साधनों को निर्धारित अवधि में सामाजिक इकाई की तरह स्वीकार किया जाये।"
कार्ल मैनहीम- "हम नियोजन तथा नियोजित चिन्तन से मानव और समाज के उस विकास को समझते हैं जो इन वस्तुओं के मध्य सम्बन्धों को जान-बूझकर नियन्त्रित तथा स्वामित्व प्राप्त करते हैं।"
अतः स्पष्ट है कि नियोजन का अर्थ उन निर्णयों से है जो किसी कार्य को करने से पूर्व लिए जाते हैं। नियोजित परिवर्तन के डॉ. बुद्धसेन चतुर्वेदी ने चार तत्व स्पष्ट किये हैं-
- आदर्श या मूल्य के अनुसार सामाजिक उद्देश्यों को निर्धारित करना।
- उपलब्ध साधनों पर चिन्तन करना।
- उद्देश्यों की अधिकतम पूर्ति करना।
- उपलब्ध साधनों को इकट्ठा, संगठित तथा व्यवस्थित करना।
उपर्युक्त तत्वों को देखते हुए स्पष्ट है कि नियोजित परिवर्तन किसी व्यक्ति विशेष से सम्बद्ध न होकर समूह या समाज से सम्बद्ध होता है।
नियोजित परिवर्तन की विशेषताएँ
नियोजित परिवर्तन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- नियोजित परिवर्तन में एक निश्चित समय में सुनिश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सफलतापूर्वक प्रयत्न किया जाता है।
- नियोजित परिवर्तन में सचेत रूप से सोच-समझकर योजना प्रस्तुत करते हैं।
- नियोजित परिवर्तन सर्वांगीण विकास आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक आदि से सम्बन्धित होता है।
- नियोजित परिवर्तन किसी व्यक्ति विशेष से सम्बद्ध न होकर समूह या समाज से सम्बद्ध होता है।
- नियोजित परिवर्तन से लोगों को अधिक लाभ होता है।
- नियोजित परिवर्तन में भविष्य की सम्भावनाओं पर अधिक जोर दिया जाता है।
- सामाजिक प्रक्रियाओं को हिंसक होने से रोकना तथा उन्हें शान्तिपूर्ण तरीके से सामाजिक हित में बदलना है।
- नियोजित परिवर्तन में स्वाभाविक परिवर्तन की प्रक्रिया को सामाजिक मूल्यों के समान मोड़ा जाता है।
- नियोजित परिवर्तन का सम्बन्ध सदा हमारे विकास तथा प्रगति से होता है।
- नियोजित परिवर्तन सामाजिक समस्याओं पर नियन्त्रण करता है।
- नियोजित परिवर्तन राजनैतिक संस्था, राज्य अथवा सरकार की नीति का एक अंग होता है।
- नियोजित परिवर्तन सामाजिक समस्याओं पर नियन्त्रण करता है।
- नियोजित परिवर्तन अनेक चरणों में क्रमिक परिवर्तन तथा विकास की प्रक्रिया है जिसको हम योजनाबद्ध तरीके से रखते हैं। अतः नियोजित परिवर्तन एक वैज्ञानिक प्रविधि एवं प्रक्रिया है।
अतः स्पष्ट है कि सामाजिक नियोजन तथा नियोजित परिवर्तन का सामाजिक जीवन में अत्यधिक महत्व है।