बहुलक किसे कहते हैं (भूयिष्ठक)- अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें एवं गुण-दोष

पदमाला की किन्हीं श्रेणियों में जिस पद की आवृत्ति सबसे अधिक होती है, वह बहुलक कहलाता है। बहुलक किसी पदमाला में वह संख्या होता है, जो सबसे अधिक बार आती है।

बहुलक (भूयिष्ठक) का अर्थ एवं परिभाषा

अंग्रेजी शब्द बहुलक (Mode) की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द 'La Mode' से मानी जाती है, जिसका आशय है- 'सर्वाधिक फैशन" प्रचलन'। भूयिष्ठक अथवा बहुलक किसी श्रेणी का वह मूल्य होता है, जो समंकमाला में सर्वाधिक बार आता हो अर्थात् जिसकी आवृत्ति सर्वाधिक हो तथा जहाँ आवृत्तियों का सर्वाधिक जमाव हो। इस प्रकार बहुलक समंकमाला का सर्वाधिक सामान्य मूल्य होता है। यदि किसी प्रश्न में केवल एक बहुलक हो तो UNI MODEL, श्रेणी, दो बहुलक होने पर BIO MODEL, श्रेणी एवं दो से अधिक बहुलक होने पर MULTI-MODEL बहुलक वाली श्रेणी कहलाता है।

अतः बहुलक को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-

(1) गिल्फोर्ड (Gilford) के अनुसार- "भूयिष्ठक माप के पैमाने पर वह बिन्दु है, जहाँ कि किसी वितरण में सर्वाधिक आवृत्ति होती है।"

(2) क्राक्स्टन एवं काउडेन के अनुसार- "बहुलक एक समंकमाला का वह मूल्य है, जिसके आसपास श्रेणी के अधिक से अधिक पद-मूल्य केन्द्रित होते हैं।"

(3) बार्डिंगटन के अनुसार- "भूयिष्ठक को महत्वपूर्ण प्रकार, रूप या पद का आकार या सबसे अधिक घनत्व की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।"

बहुलक (भूयिष्ठक) की विशेषताएँ

बहुलक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. बहुलक समंकमाला का वह मूल्य होता है, जो उस समंकमाला में सबसे अधिक बार जाता है, अर्थात् जिसकी आवृत्ति सर्वाधिक होती है।
  2. एक समंकमाला में बहुधा अनेक संख्याओं में एकसमान आवृत्ति पाई जाती है। ऐसी समंकमाला में एक से अधिक पद मूल्यों को बहुलक माना जाता है।
  3. बहुलक की विशेषता यह भी है कि यह पद-मूल्यों पर नहीं, अपितु आवृत्ति पर निर्भर करता है।
  4. बहुलक का एक प्रमुख लक्षण है कि अन्य केन्द्रीय प्रवृत्तियों की तुलना में इसकी गणना विधि सरल होती है।
  5. बहुलक समंकमाला के समस्त पद-मूल्यों का अर्थात् समग्र का प्रतिनिधित्व करता है।

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बहुलक अथवा भूयिष्ठक के गुण

भूयिष्ठक के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) सर्वाधिक प्रतिनिधित्व- बहुलक सम्पूर्ण श्रेणी की सबसे अधिक आवृत्ति पर निर्भर होने के कारण केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप की अन्य विधियों की तुलना में श्रेणी का सर्वाधिक प्रतिनिधित्व करता है।

किंग के अनुसार, "बहुलांक की प्रकृति इस प्रकार की है कि इसे आँकड़ों का सर्वोत्तम प्रतिनिधि माना जाता है।"

(2) बिन्दुरेखीय विधि द्वारा निर्धारण- बहुलक का निर्धारण बिन्दुरेखीय विधि तथा ग्राफ की सहायता से बहुत ही सरलता से किया जा सकता है।

(3) बड़े पैमाने के उत्पादन में महत्वपूर्ण- बड़े पैमाने के उत्पादकों हेतु बहुलक अन्तन्त महत्वपूर्ण होता है। उत्पादन के आकार को उत्पादक बहुलक की सहायता से ही निर्धारित किया जाता है।

(4) सरल एवं लोकप्रिय- बहुलक को समझना एवं गणना करना अत्यन्त सरल है।

(5) श्रेणी का महत्वपूर्ण माप- श्रेणी के समस्त मूल्यों में से बहुलक वह अंक है, जो सर्वाधिक मात्रा में एक समंकमाला में विद्यमान होने के कारण वास्तविक एवं महत्वपूर्ण माप है। 

(6) चरम मूल्यों का न्यूनतम प्रभाव- बहुलक पर श्रेणी की बड़ी संख्या अथवा छोटी संख्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बहुलक तो आवृत्ति पर निर्भर करता है।

कहा जा सकता है कि बहुलक (भूयिष्ठक) एक लोकप्रिय माध्य है। इसको सरलता से समझा जा सकता है। इसके साथ ही बिन्दुरेखीय पद्धति द्वारा भी बहुलक आसानी से जाना जा सकता है।

बहुलक अथवा भूयिष्ठक के दोष

बहुलक के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) निश्चितता का अभाव- बहुधा एक श्रेणी में दो अथवा दो से अधिक भूयिष्ठक आ जाते हैं, ऐसी स्थिति में आवृत्ति को देखकर भूयिष्ठक निर्धारित नहीं किया जा सकता है।

(2) अनुपयुक्त माप- बहुधा भूयिष्ठक द्वारा प्राप्त निष्कर्ष वास्तविकता से परे होते हैं, 50 विद्यार्थियों में से 5 विद्यार्थियों के अंक 8-8 हैं तो बहुलक 8 होगा जो शेष 45 छात्रों का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं करेगा।

(3) समस्त मूल्यों पर आधारित नहीं- बहुलक में न्यूनतम तथा अधिकतम पद-मूल्यों की अवहेलना की जाती है। यह तो मात्र अधिकतम आवृत्ति वाले पद-मूल्यों पर निर्भर करता है।

(4) बीजगणितीय विवेचन की असम्भवता- समस्त मूल्यों पर आधारित न होने के कारण, बहुलक की बीजगणितीय विवेचना करना सम्भव नहीं होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)- बहुलक में उपर्युक्त दोष होते हुए भी विभिन्न क्षेत्रों में आज इसका प्रयोग निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है, यथा तापमान, वर्षा तथा वायुगति के आधार पर स्थानों का निर्धारण करने में बहुलक का प्रयोग किया जाता है।

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