आधुनिकीकरण क्या है- अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं समस्याएँ

आधुनिकीकरण

उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप जो परिवर्तन हुए हों, उन्होंने आधुनिकीकरण के अध्ययनों को विशेष रूप से प्रोत्साहन दिया है। अतः इसके अध्ययन में रुचि कोई नवीन घटना नहीं है। आधुनिकीकरण एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग सामाजिक परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिये विविध प्रकार से किया गया है। वास्तव में यह एक बहुस्तरीय अवधारणा है तथा इसे कई विद्वान औद्योगीकरण एवं आर्थिक विकास से अथवा वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास से जोड़ने का प्रयास करते हैं। विल्बर्ट ई. मूर (Wilbert E- Moore) ने तो औद्योगीकरण को आधुनिकीकरण की संज्ञा दी है। यद्यपि अर्थशास्त्री इसे आर्थिक विकास एवं प्रकृति पर अधिकाधिक नियन्त्रण के रूप में देखते है, परन्तु समाजशास्त्री तथा सामाजिक मानवशास्त्री इसे विभिन्नीकरण की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। राजनीतिशास्त्रियों ने इसे राजनीतिक आध् गुनिकीकरण के रूप में देखा है।

सामान्य तौर पर आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण को एक ही मान लिया जाता है, लेकिन दोनों प्रक्रियाएँ एक नहीं हैं। हाँ दोनों में सम्बन्ध अवश्य हैं। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया, औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया, सामाजिक गतिशीलता, उच्च जीवन स्तर, सभ्यता का विकास तथा दृष्टिकोण की विशालता आदि से सम्बन्धित है। ये सभी तत्व पश्चिमी जगत् में जन्म लेकर अन्य देशों में फैले हैं, इस कारण आधुनिकीकरण को पश्चिमीकरण का परिणाम कहा जाता है। यन्त्रीकरण, विशाल उद्योगों की स्थापना, प्रौद्योगीकरण तथा प्राविधिक विकास, ज्ञान और विज्ञान का प्रसार, आर्थिक प्रगति, आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण माने जाते हैं, किन्तु यह आधुनिकीकरण का पक्ष कहा जा सकता है। नैतिक या सांस्कृतिक दृष्टि से आधुनिकीकरण विशिष्ट मान्यताओं पर आदर्शों का परिचायक है। विवेकशीलता, उदारता, विविधता, स्वतन्त्रता, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्ति की प्रतिष्ठा आदि आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण हैं। आधुनिकीकरण दूसरे के विचार तथा दृष्टिकोण को सहानुभूतिपूर्वक समझने का भाव तथा अपना विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता का विकास करता है। यह आधुनिकतम जीवन विधि को अपनाने के पक्ष में है।

आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषा

आधुनिकीकरण की परिभाषा करते हुए आइजेन्स्टेड लिखता है, "ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिकीकरण सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्थाओं के उन प्रकारों की दिशा में परिवर्तन की प्रक्रिया है जो सत्रहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में विकसित हुए हैं और उसके पश्चात् जिनका विस्तार अन्य यूरोपीय देशों में और उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दियों में दक्षिणी अमरीका, एशिया और अफ्रीका के महाद्वीपों में हुआ है।" आधुनिक समाजों का विकास परम्परात्मक समाजों में से ही हुआ है। पश्चिमी यूरोप में सामन्तवादी नगरों से, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि देशों में उपनिवेशवादी स्थापनान्तिकरण तथा सम्प्रदायों से, जापान में केन्द्रित सामन्तवादी राज्य से चीन में साम्राज्यवादी व्यवस्था के विघटन से तथा एशिया और अफ्रीका के देशों में राजतन्त्रों से उत्पन्न उपनिवेशवादी संरचनाओं से आधुनिक समाजों का विकास हुआ है।

लर्नर ने अपनी पुस्तक 'परम्परागत समाज का प्रचलन' में आधुनिकीकरण की अवधारणा 'की व्याख्या है। आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में लर्नर के विचार उसके लेख 'आधुनिकीकरण के संचार-सिद्धान्त की ओर' में भी मिलते हैं जो पाई के द्वारा सम्पादित पुस्तक 'संचार और राजनैतिक विकास' में संकलित हैं। लर्नर के अनुसार, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का सम्बन्ध उन दशाओं के निर्माण से है जिनमें कोई समाज व्यक्तिगत क्रियाओं और संस्थागत संरचना की दृष्टि से विभेदीकृत हो जाता है और उसमें विशेषीकरण बढ़ जाता है। इन समाजों में विभिन्न पदों की पूर्ति किसी स्थिर, प्रदत्त प्रतिमान के अनुसार या वंश, परिवार अथवा जातिगत आधार पर नहीं की जाती। विशिष्ट पद और भूमिकाएँ स्वतन्त्र रूप से किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं। इसी प्रकार सम्पत्ति और शक्ति का वितरण भी किसी प्रदत्त आधार पर नहीं होता।

लेवी ने आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है, "एक समाज उस सीमा तक कम या अधिक आधुनिक समझा जायेगा जहाँ तक कि उसके सदस्य व्यक्ति के निर्जीव स्रोतों का उपयोग करते हैं तथा अपने प्रयत्नों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए यन्त्रों का उपयोग करते हैं।" इस परिभाषा के अनुसार आधुनिकीकरण के दो मापदण्ड हैं। किसी समाज के आधुनिकीकरण का प्रथम आधार तो यह है कि वह किसी सीमा तक शक्ति के निर्जीव स्रोतों का उपयोग करते हैं तथा अपने प्रयत्नों के प्रभावों को बढ़ाने के लिए यन्त्रों का उपयोग करते हैं। इस आधुनिकता का दूसरा आधार उन यन्त्रों के उपयोग की मात्रा से है जो मनुष्यों के प्रयत्नों के फल को बढ़ा देते हैं। शक्ति के निर्जीव स्रोत और यन्त्र दोनों ही मनुष्य की जैविकीय शक्ति या आन्तरिक शक्ति से पृथक् बाहरी तत्व हैं। शक्ति के निर्जीव स्रोतों का उपयोग एक प्रकार से भौतिक या प्राकृतिक संसार में निहित साधनों का शोषण कहा जा सकता है। मन्त्रों को उन भौतिक साधनों या वस्तुओं के रूप में समझा जा सकता है जिनके प्रयोग से मनुष्य वे फल प्राप्त कर सकता है जिनकी प्राप्ति वह केवल अपने शरीर के अंगों के प्रयोग से प्राप्त नहीं कर सकता। इस प्रकार आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत शक्ति के अजैविक या निर्जीव स्रोर्तों और यन्त्रों का उपयोग होने लगता है। वास्तव में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिकीकरण व नवीनतम यन्त्रों के उच्चतम उपयोग पर आधारित है।

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आधुनिकीकरण की विशेषताएँ

आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) औद्योगीकरण और नगरीकरण- औद्योगीकरण और नगरीकरण आधुनिकीकरण के प्रारम्भिक तत्व हैं। आधुनिक समाजों को औद्योगिक समाज भी कहा जाता है। उद्योगों की स्थापना नये उत्पादन केन्द्रों को जन्म देती है जो नगरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। वास्तव में नगरीकरण को ही लर्नर ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रथम चरण बताया है जो शेष समस्त विशेषताओं को प्रोत्साहित करता है। ग्रामों से नगरों की ओर जनसंख्या का संक्रमण होने से नवीन परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। ये परिस्थितियाँ सहगामी जीवन को प्रेरित करती हैं। शिक्षा, वैज्ञानिक प्रगति, गतिशीलता, जनसंचार का विकास और राजनैतिक चेतना आदि आधुनिकीकरण के अन्य तत्व हैं जो नगरीकरण के पश्चात् विकसित होते हैं।

औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण को प्रायः समानार्थक शब्द समझा जाता है। एप्टर के विचार से ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं, यद्यपि ये परस्पर अनिवार्य रूप से सम्बन्धित है। कुछ लोग यह मानते हैं कि औद्योगीकरण के द्वारा कोई समाज आधुनिक हो जाता है। एप्टर का मत बिल्कुल इसके विपरीत है। एप्टर के विचार से आधुनिकीकरण एक विस्तृत अवधारणा है और औद्योगीकरण इसका एक अंग है, एक विशेष पक्ष है। औद्योगीकरण उन विशिष्ट भूमिकाओं के विकास को प्रकट करता है जो उत्पादन की प्रक्रिया से सम्बन्धित है। ये नवीन भूमिकाएँ तभी विकसित होती है जब समाज के सदस्यों में मानसिक दृष्टि से उन्हें ग्रहण करने की योग्यता और इच्छा या तत्परता आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में जन्म लेती हैं। इस प्रकार औद्योगीकरण को आधुनिकीकरण का परिणाम कहा जा सकता है। वास्तव में पहले कोई सामाजिक संरचना आधुनिकीकरण के व्यवहार से ऐसी विशेषताएँ प्राप्त कर लेती हैं जो औद्योगिक विकास को अनिवार्य बना देती हैं। आधुनिकीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है और औद्योगीकरण उसका आर्थिक पक्ष है।

(2) साक्षरता (Literacy)- नगरीकरण और औद्योगीकरण शिक्षा और विज्ञान के प्रसार में सहायक होते हैं। नगरों में प्रौद्योगिक विकास यह माँग करता है कि नगरवासी शिक्षित और तकनीकी दृष्टि से कुशल हों। उत्पादन के लिए कौशल, प्रशिक्षण और शिक्षा की आवश्यकता होती है। शिक्षा एक ओर तो औद्योगिक उत्पादन में सहायता करती है और दूसरी ओर उपभोग में वृद्धि करती है। शिक्षित मनुष्यों में नवीन आशाएँ और आकांक्षाएँ जन्म लेती हैं। आवागमन और संचार के साधनों का प्रयोग करने के लिए भी प्राविधिक शिक्षा की जरूरत देती है। साक्षरता के द्वारा ही विचारों और पद्धतियों का आदान-प्रदान होता है। लर्नर के शब्दों में साक्षरता, मानसिक गतिशीलता में वृद्धि करती है।

(3) गतिशीलता (Mobility)- आधुनिक समाज गतिशील समाज है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में गतिशीलता के भौतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक, दोनों स्वरूपों का विकास होता है। लोग भौतिक दृष्टि से ग्रामीण जगत् को छोड़कर नगरों तथा औद्योगिक केन्द्रों की और जाने लगते हैं। इन स्थानों में व्यक्तिगत योग्यता और कौशल का महत्व होता है। अर्जित स्थिति का मूल्य होता है। अतः वैयक्तिक गतिशीलता और निरन्तर परिवर्तन आधुनिक समाजों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयी हैं। आधुनिकीकरण समाज के लोगों के दृष्टिकोर्णो और मानसिक प्रवृत्तियों में परिवर्तन कर देता है। लर्नर ने इस परिवर्तन को मानसिक गतिशीलता कहा है। यह मानसिक गतिशीलता हमें अन्य व्यक्तियों के प्रति जागरूक रखती है अर्थात् हम केवल अपने ही विचारों और पद्धतियों के संकुचित दायरे में क्रियाशील नहीं होते बल्कि अन्य व्यक्तियों और समूहों के विचारों और जीवन पद्धतियों के साथ अनुकूलन करने का प्रयत्न करते हैं। लर्नर का विचार है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया उन्नति करने की प्रेरणा देती है। आधुनिक व्यक्ति परानुभूतिशील होता है। वह अन्य मनुष्यों की स्थिति को समझाने का प्रयत्न करता है।

(4) विवेकशीलता (Reasoning)- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में मनुष्यों की विवेकशीलता में वृद्धि हो जाती है। दूसरे शब्दों में, विवेकीकरण भी आधुनिकता का महत्वपूर्ण मापदण्ड है। विवेकीकरण का तात्पर्य सावधानी और सतर्कतापूर्वक विचार करके लक्ष्यों और प्राप्ति के साधनों का निश्चय करना है। परम्परा यदि भाग्य पर भरोसा करती है तो आधुनिकता विवेक पर विश्वास रखती है। मनुष्य की वृद्धि और कर्तव्य को महत्व देना और इसके आधार पर पर्यावरण का नियन्त्रण करके जीवन को अधिक सुविधाजनक और प्रगतिवाद बनाने की इच्छा रखना ही विवेकशीलता है।

एप्टर के विचार से आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ तभी हो सकता है जब समाज के सदस्यों को व्यक्तिगत आधार पर विभिन्न प्रकार के विकल्पों का चुनाव करने की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। आधुनिकीकरण केवल सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया नहीं है। लर्नर की भाँति एप्टर ने भी यह मत प्रकट किया है कि, आधुनिकीकरण मनुष्यों की व्यक्तिगत व्यवस्था में परिवर्तन लाता है। व्यक्तित्व व्यवस्था में नवीनता के प्रति सुझाव और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में निहित अनेक विकल्पों में से चुनाव करने की योग्यता और स्वतन्त्रता मनुष्यों की आधुनिकता की ओर ले जाने वाली मौलिक विशेषताएँ हैं। जब किसी समाज की सांस्कृतिक व्यवस्था अपने सदस्यों को यह अवसर प्रदान करती है कि वे मानवीय प्रकृति और सामाजिक सम्बन्धों के विषय में स्वतन्त्रतापूर्वक आलोचनात्मक दृष्टि से विचार कर सकें और विवेकपूर्ण निर्णय ले सकें तो आधुनिकीकरण के विकास का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

(5) जन-सहभागिता (Participation of the People)- आधुनकिीकरण का अन्तिम किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण मापदण्ड जन-सहभागिता है। जनसंचार के साधन आधुनिक मनुष्यों को सामाजिक जीवन की गतिविधियों में सहभागी बनने की प्रेरणा देते हैं। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में उन मानवीय प्रवृत्तियों का विकास हो जाता है जो व्यक्ति को राजनैतिक जीवन में सहभागी बनाती हैं। वह राजनैतिक मामलों में सक्रिय भाग लेता है। जनसंचार के साधन इस प्रकार की सहभागिता का विकास करने में विशेष सहायता करते हैं। नये अनुभवों और नयी आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति जनसंचार के साधनों के द्वारा होती है। विभिन्न कार्य-क्षेत्रों में पारस्परिक आदान-प्रदान बढ़ जाता है तो लोग एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं, जीवन की सामान्य समस्याओं के विषय में विचारों का विनिमय होता है। लोगों की चेतना में विभिन्न मर्तो की प्राप्ति होती है। 

(6) विभेदीकरण तथा प्राविधिक कुशलता (Differentiation and Technical Efficiency)- सामाजिक विभेदीकरण तथा मनुष्यों में प्राविधि कुशलता ता और अ योग्यता का विकास आधुनिकीकरण का दूसरा मुख्य तत्व है। औद्योगीकरण और विवेकपूर्ण चुनाव की स्वतन्त्रता समाज के सदस्यों का विभिन्न आधारों पर विभेदीकरण कर देते हैं। स्वतन्त्र चुनाव की प्रक्रिया अनेक नयी भूमिकाओं और संस्थाओं को जन्म देती है। नई-नई व्यावसायिक प्रशासनिक और प्राविधिक भूमिकाओं का विकास हो जाता है और स्कूलों, विश्वविद्यालयों, चिकित्सालयों तथा नौकरशाही संस्थाओं का उदय होता है। इस प्रकार अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार नवीनताओं का चुनाव करने की स्वतन्त्रता से उत्पन्न संरचनात्मक विभेदीकरण और औद्योगिक क्षमता आधुनिकीकरण की आवश्यक दशाएँ हैं।

(7) विकास का विशिष्ट स्वरूप (Special forms of Development)- आधुनिकीकरण विकास या उन्नति का पर्यायवाची शब्द नहीं है। एप्टर ने आधुनिकीकरण को विकास प्रक्रिया का एक विशिष्ट स्वरूप माना है। विकास प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार की प्रकार्यात्मक भूमिकाओं का विशेषीकरण हो जाता है। यह विशेषीकरण तभी सम्भव है जब लोगों के मन में नवीन आकांक्षाएँ जाग्रत हो जाएँ और वे अन्धविश्वासों और परम्पराओं की जकड़न से स्वतन्त्र होकर विवेकपूर्ण नवीन परिस्थितियों के साथ अनुकूलन करने के लिए तत्पर हो जाएँ। इस प्रकार विवेकीकरण और लौकिकीकरण आधुनिकीकरण के परिणाम हैं। अतः आधुनिकीकरण को एप्टर ने विकास प्रक्रिया का एक विशिष्ट स्वरूप कहा है। आधुनिकीकरण विकास की प्रक्रिया है जो निश्चित अवस्थाओं में से होकर गुजरती है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ नगरीकरण और औद्योगीकरण से होता है।

(8) इकाइयों की पारस्परिक आश्रितता (Interdependence of the Units)- उपर्युक्त आधुनिक समाजों की दूसरी प्रमुख विशेषता उपर्युक्त सामाजिक इकाइयाँ अर्थात् संगठनों की पारस्परिक निर्भरता है। आधुनिक प्राचीन समाजों में सामाजिक इकाइयाँ आत्मनिर्भर होती है अर्थात् वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं अपने साधनों और प्रक्रियाओं के द्वारा ही कर लेती हैं। वे अन्य संगठनों या इकाइयों की सहायता के बिना अपने अस्तित्व की रक्षा करने में समर्थ होती हैं। उनकी आत्मनिर्भरता उन्हें इस योग्य बना देती है कि वे स्थायित्व और निरन्तरता प्राप्त कर लें। इन समाजों में परिवार, धर्म आदि आत्मनिर्भर इकाइयाँ हैं। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया सामाजिक इकाइयों की आत्मनिर्भरता को कम कर देती है। भिन्न-भिन्न कार्यों की पूर्ति के लिए समाज में विशिष्ट संगठनों का विकास हो जाता है।

(9) सार्वभौमिक नैतिकता की वृद्धि (Rise in Universal Morality)- लेवी के अनुसार, अपेक्षाकृत आधुनिक समाजों में नैतिकता का एक सामान्य प्रतिमान विकसित हो जाता है। सार्वभौमिक नैतिकता का अर्थ है व्यक्तियों की प्रकार्यात्मक योग्यता को महत्व देना। इसके विपरीत विशिष्ट नैतिकता का अर्थ है व्यक्ति के विशिष्ट गुर्णो अर्थात् धर्म, परिवार या जाति आदि को महत्व देना। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया समाज के सार्वभौमिक नैतिकता के क्षेत्र में वृद्धि करती है और सामाजिक सम्बन्धों में विस्तार कर देती है। आधुनिक समाजों में सबके लिए समान नियम होते हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आधुनिक समाजों में सामान्य नैतिकता का अभाव होता है या आधुनिक समाजों में नैतिकता बिल्कुल समाप्त हो जाती है। आधुनिक समाजों में नैतिक सम्बन्धों का विस्तार अनेक कारणों से हो जाता है। मनुष्यों के पारस्परिक सम्बन्धों की संख्या में वृद्धि, विभिन्न विशेषीकृत समूहों और भूमिकाओं के समन्वय की समस्या, इकाइयों की आत्मर्भिरता का ह्रास, सामाजिक सम्बन्धों में जटिलता उत्पन्न कर देते हैं।

(10) मानवीय सम्बन्धों की कुशलता (Efficiency of Human Relation)- लेवी ने यह स्पष्ट किया है कि आधुनिक समाजों में मानवीय सम्बन्धों की अभिव्यक्ति, विवेकशीलता, सार्वभौमिक नैतिकता, प्रकार्यात्मक विशिष्टता और रागात्मक तटस्थता के आधार पर होती है। इसका कारण यह है कि आधुनिकीकरण शक्ति के निर्जीव स्रोतों और यन्त्रों के प्रयोग से वृद्धि करता है। इस कार्य के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्यों में वैज्ञानिकता और विवेकशीलता का विकास हो। यन्त्रों और निर्जीव स्रोतों का प्रयोग जटिल संगठनों की स्थापना में सहायक होता है। इन संगठनों अथवा इकाइयों के सदस्यों को विशिष्ट कार्य सम्पादित करने पड़ते हैं जिनके लिए विशेष क्षमता और योग्यता की आवश्यकता होती है। अतः सदस्यों की भर्ती या चुनाव प्रकार्यात्मक कुशलता के आधार पर सार्वभौमिक नियमों के अन्तर्गत किया जाता है। वंश, जाति, धर्म या व्यक्तिगत विशिष्टता के आधार पर नहीं। इन संगठनों में प्रकार्यात्मक व्यवस्था रखने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि प्रकार्यात्मक विशिष्टता के आधार पर विभिन्न सदस्यों के पदों और भूमिकाओं का स्पष्ट विभाजन और व्याख्या की जाये और अधिकारों और कर्त्तव्यों की निश्चित परिभाषा की जाये।

(11) विनिमय के सामान्य माध्यम और बाजार (Common Means and Markets of Exchange)- प्रत्येक समाज में किसी न किसी माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है। वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय को सुविधा प्रदान करने वाले क्षेत्र या व्यवस्था का बाजार कहा जाता है। माध्यम दो प्रकार के हो सकते हैं- विशेषज्ञ और सामान्य। विशेष माध्यम से कुछ विशेष वस्तुओं को प्राप्त किया जा सकता है जबकि सामान्य माध्यम से लगभग सभी वस्तुओं का विनिमय किया जा सकता है। मुद्रा विनिमय का सर्वमान्य माध्यम है। आधुनिक समाजों में मुद्रा विनिमय का सर्वाधिक प्रचलित माध्यम है, इसी प्रकार विशेष बाजार में कुछ वस्तुओं का विनिमय किया जा सकता है, जबकि सामान्य बाजार में किसी वस्तु का विनिमय किया जा सकता है।

(12) अधिकारीतन्त्र का विकास (Development of Official Formalities)- अपेक्षाकृत आधुनिक समाज में अधिकारी तन्त्र के आधार पर विभिन्न इकाइयों का संगठन होता है। यह अधिकारीतन्त्र या नौकरशाही सरकार में पनपती है और गैर-सरकारी संगठनों में भी। राज्य व्यवस्था भी अधिकारीतन्त्र पर आधारित हो जाती है और आर्थिक या धार्मिक व्यवस्था भी। अधिकारीतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताते हुए लेवी ने स्पष्ट किया है कि अधिकारीतन्त्र ऐसा संगठन होता है जिसका निर्माण कई छोटे संगठनों से होता है। इसमें कार्य करने वाले लोगों के पद और भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से निश्चित और परिभाषित होती है। अधिकारीतन्त्र में सत्ता का श्रेणीबद्ध (ऊँचा-नीचा) विभाजन होता हैं जहाँ लोग अवैयक्तिक उद्देश्य से कार्य करते हैं तथा कार्य के स्थान से सम्बन्धित वस्तुओं और पैसे का कार्य करने वाले व्यक्ति के निजी पैसे और वस्तुओं से कोई सम्बन्ध नहीं होता। संगठन में वह अनेक वस्तुओं और धन का प्रयोग भूमिका के निर्वाह की दृष्टि से करता है किन्तु इन पर निजी अधिकार नहीं होता। आधुनिकीकरण में जटिल संगठनों की स्थापना होती है, केन्द्रीकरण बढ़ता है और भावात्मक तटस्थता के सम्बन्धों का विकास हो जाता है।

(13) एकाकी परिवार (Nuclear Family)- लेवी के अनुसार, आधुनिक समाजों में विस्तृत या संयुक्त परिवार के स्थान पर ऐसे परिवार का विकास हो जाता है जिनमें पति, पत्नी और उनकी सन्तान रहती है। दूसरे शब्दों में इन समाजों में एकाकी परिवार पाये जाते हैं जिनके ऊपर पति या पत्नी दोनों में से किसी के भी पैतृक परिवार का प्रभाव नहीं होता है। ये स्वतन्त्र रूप से अपने पारिवारिक जीवन की व्यवस्था करते हैं उनकी सन्तान भी विवाह के बाद इसी प्रकार पृथक् परिवार की व्यवस्था कर लेती है। आधुनिक समाजों में परिवार के कार्य सीमित हो जाते हैं।

(14) जन-प्रवृत्तियों का विकास (Rise of Mass Tendencies)- सामान्य जनता का केन्द्रीय व्यवस्था पर प्रभाव तथा जन-सहभागिता के फलस्वरूप आधुनिक समाज में जन-प्रवृत्तियों का विकास हो गया है जिसके कारण आधुनिक समाज को जन-समाज का नाम दिया जाता है। जन-प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति सब आधुनिक समाों में और सब स्तरों पर समान रूप से नहीं होती। प्रारम्भिक अवस्था में यह यदा-कदा होती है। सर्वसत्तावादी तथा अधिनायकवादी राज्यों में इस अभिव्यक्ति का पूर्ण दमन करने का प्रयत्न किया जाता है। जन-प्रवृत्तियों के विकास में आधुनिक समाज सामाजिक, राजनैतिक इकाइयों के रूप में राष्ट्र या राज्य बन गये हैं।

(15) अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष (International Aspect)- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ पश्चिमी यूरोप के उन समाजों में हुआ जो राजनैतिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न इकाइयाँ होते हुए भी समान सांस्कृतिक विरासत रखते थे जिसके कारण उनके पारस्परिक सम्बन्ध नवीन राजनैतिक व्यवस्था में बने रहे। आर्थिक प्रवृत्तियाँ और विकास तथा सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलन भी राष्ट्रीय या राजनैतिक सीमाओं में बँधे रहे। इस प्रकार विशिष्ट आधुनिक और श्रेष्ठ वर्गों के सम्बन्ध इन सीमाओं को पार कर गये, चाहे ये आर्थिक समूह हर्हो अथवा बौद्धिक वर्ग। विभिन्न देशों में श्रेष्ठ वर्गों और समूहों के पारस्परिक सम्बन्धों में वृद्धि होने से एक नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का विकास हुआ जो निरन्तर प्रत्येक क्षेत्र में वृद्धि कर रही है।

(16) आर्थिक विकास (Economic Development)- संचार व्यवस्था आधुनिकीकरण के विकास में प्रमुख सहायक कारक है। समाचार पत्र, रेडियो आदि संचार के अनेक साधनों के विकास से विचारों का आदान-प्रदान होता है। विभिन्न समूहों और वर्गों की समस्याओं के सम्बन्ध में व्यवस्थित और उपयोगी विचार-विमर्श के साधनों के द्वारा सामाजिक समस्याओं के निराकरण और सामाजिक नीतियों के निर्धारण में विशेष सहायता मिलती है। आधुनिकीकरण में कार्य-कुशलता, क्षमता तथा मानवीय शक्ति के उपयोग का विशेष महत्व है। आर्थिक उन्नति और जीवन-स्तर का विकास आधुनिकीकरण के केन्द्रीय तत्व माने जाते हैं।

(17) वैचारिक परिवर्तन (Change in Thinking)- हालांकि आर्थिक प्रगति और भौतिक सम्पन्नता आधुनिकीकरण की मुख्य विशेषताएँ हैं परन्तु लर्नर के विचार से आधुनिकीकरण का वास्तविक आधार वैचारिक है। आधुनिकीकरण का मौलिक सम्बन्ध मनुष्यों के दृष्टिकोण और व्यवहार से है। आर्थिक उन्नति आधुनिकीकरण का एक भाग मात्र है। यह सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नवीन प्रणाली को प्रोत्साहित करती है। लर्नर के शब्दों में, "आधुनिकीकरण में जीवन शैलियों के व्यवस्थित परिवर्तन की आवश्यकता होती है।" लर्नर के विचार से आधुनिकीकरण का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यवहार प्रतिमान से है। यह सामाजिक संस्थाओं की अपेक्षा व्यक्तित्व व्यवस्था और मानवीय आचरण में मुख्य रूप से प्रकट होने वाली प्रक्रिया है। 

आधुनिकीकरण का अर्थ आधुनिकता का विकास है और आधुनिकता मानसिक व्यवस्था से सम्बन्धित तथ्य है। परम्परागत जीवन-शैली को बदलकर नवीन विचार, नवीन पद्धति से विकास की इच्छा और नवीन आकांक्षाओं के सन्दर्भ में प्रगति की अभिलाषा, आधुनिकता के निर्देशांक हैं। लर्नर ने आधुनिकता की परिभाषा करते हुए कहा है, "आधुनिकता प्राथमिक रूप में एक मानसिक अवस्था है- प्रगति की आशा, वृद्धि के सुझाव, परिवर्तन के साथ स्वयं का अनुकूलन करने की तैयारी।" इस प्रकार लर्नर ने परम्परागत जीवन-शैली की श्रृंखलाओं से मुक्त होकर नवीन विचारों और विश्वासों को मन में सजाने, नवीन नवीन आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील व्यक्तियों की गतिशीलता और पारस्परिक सहभागिता के विकास को आधुनिकीकरण की आवश्यक दशा बताया है।

(18) पश्चिमीकरण (Westernization)- लर्नर के विचारों से आधुनिकता पश्चिमी जगत् की देन है। उसके अनुसार पश्चिमीकरण को ही एक प्रकार से आधुनिकीकरण कहा जा सकता है। आधुनिकीकरण के पश्चिमी स्वरूप को एक सार्वभौमिक स्वरूप माना जा सकता है। आधुनिकीकरण की समाजशास्त्रीय व्यवस्था इसी प्रारूप को आदर्श मानकर की जा सकती है। आधुनिकीकरण के विकास में सहायक औद्योगीकरण, नगरीकरण, जनसंचार और सहभागिता आदि की प्रक्रियाएँ पश्चिमी जगत् में ही विकसित हुई हैं।

भारत में आधुनिकीकरण की समस्याएँ

आधुनिकीकरण समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है तथा इनमें परिवर्तन लाता है। भारत में आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप यहाँ एक तरफ धर्म निरपेक्षीकरण तथा विवेकीकरण में वृद्धि गैर-कृषि व्यवसायों में लगे लोगों में बढोत्तरी, नगरीकरण तथा औद्योगीकरण में वृद्धि, मृत्यु दर में कमी, परिवार नियोजन की प्रवृत्तियाँ, आवागमन तथा संचार साधनों का विकास, शिक्षा का विकास तथा राष्ट्रीयता और राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि हुई है वहीं पर दूसरी तरफ जन-साधारण में एक नयी चेतना आयी है। आशाएँ और माँग इतनी बढ़ गई है कि जानसाधारण को वर्तमान स्थिति से असन्तोष हो गया है। तीन परिवर्तनों से कुछ लोग ठीक तरह से समायोजन नहीं कर पाते जिससे सामाजिक विघटन बढ़ता है तथा प्राचीन और नवीन मान्यताओं में पारस्परिक संघर्ष के परिणामस्वरूप समन्वय और नियन्त्रण की समस्या उत्पन्न हो गयी है। विभिन्न इकाइयों के विकेन्द्रीकरण तथा विशेषीकरण से भारत में नियन्त्रण की समस्या और अधिक गहरी हो गई है।

आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में व्यक्तिवादिता में वृद्धि हुई है जिससे व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सांस्कृतिक विघटन शुरू हो जाता है। संयुक्त परिवार का विघटन इसी का एक परिणाम है क्योंकि आज आधुनिक पढ़े लिखे युवक और युवतियाँ, संयुक्त परिवार को निरंकुश सत्ता में नहीं रहना चाहते तथा एकाकी परिवार में ही रहना चाहते हैं।

आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप औद्योगी एण का विकास होता है जिससे परम्परात व्यवसाय प्रभावित होते हैं। अनेक व्यक्ति बेरोजगार हो जाते हैं क्योंकि मानवीय कार्यों को अमानवीय शक्तियाँ (मशीनें) करने लगती हैं। आर्थिक विकास के साथ-साथ असमान्यता बढ़ती जाती है जो कि समाज के लिए नई समस्याएँ पैदा कार देती है।

इस प्रकार आधुनिकीकरण सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा व्यक्तित्व व्यवस्थाओं को प्रभावित करके नयी समस्याएँ पैदा कर देता है तथा प्राचीन मूल्यों तथा संस्थाओं और आधुनिक मूल्यों व संस्थाओं में संघर्ष सामाजिक नीति द्वारा टाला जा सकता है। नियोजित परिवर्तन द्वारा धीरे-धीरे संस्थाओं और मूल्यों में परिवर्तन किया जा सकता है।

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