अतः प्रतिदिन कुछ न कुछ शारीरिक कार्य या थोड़े बहुत खेलकूद वाले व्यायाम, टहलना या योगासन अवश्य करना चाहिए।
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व्यायाम के प्रभाव
व्यायाम का शरीर पर निम्न प्रभाव पड़ता है-
(1) पुष्टकारक प्रभाव-
व्यायाम से मांसपेशियाँ दृढ़ होती हैं जिनसे शरीर के समस्त अंग समान रूप से पुष्ट होते हैं और व्यक्ति का शरीर सुडौल बनता है। इससे समस्त शरीर में रक्त परिभ्रमण की क्रिया सुचारु रूप से होती है तथा पुष्टिकारक भोजन, जो हम ग्रहण करते हैं उसका भी पूर्ण उपयोग हो जाता है।
2. सुधारात्मक प्रभाव-
व्यायाम न करने से मांसपेशियाँ दुर्बल हो जाती है जिनसे शरीर का सन्तुलित विकास नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप कन्धे झुक जाते हैं, रीढ़ की हड्डी तिरछी हो जाती है, हाथ पैर शिथिल पड़ जाते हैं, शरीर स्थूल हो जाता है और विभिन्न अंगों की लचक समाप्त हो जाती है। अतः व्यायाम करने से शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के दोषों में सुधार होने लगता है।
3. विकासात्मक प्रभाव-
शारीरिक परिश्रम न करने से शरीर के विभिन्न अंगों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप मांसपेशियाँ कमजोर एवं अविकसित रहती हैं और तनिक-सा कार्य करने पर शरीर थकावट का अनुभव करने लगता है। पेशियों के विकास के विषय में यह नियम है कि पेशियाँ जितनी अधिक कार्यशील रहेंगी उतनी ही अधिक विकसित होंगी। अतः प्रतिदिन ऐसा व्यायाम करना चाहिए जिससे शरीर की समस्त पेशियाँ क्रियाशील रहें और उनका पूर्ण विकास हो सके।
4. निपुणतादायक प्रभाव-
व्यायाम करने से मांसपेशियों पर इच्छा-शक्ति का नियन्त्रण बढ़ जाता है जिससे मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। जब व्यायाम का स्तर और उसकी सीमाएँ धीरे-धीरे बढ़ायी जाती हैं तो कार्यक्षमता में निरन्तर वृद्धि होती है और कार्य-शक्ति प्रबल हो जाती है। मनुष्य के स्वास्थ्य पर व्यायाम का प्रभाव पड़ता है जिससे शरीर के समस्त अंगों का सम्पूर्ण विकास होता है और उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। अतः उत्तम स्वास्थ्य हेतु व्यायाम नितान्त आवश्यक है।
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व्यायाम के लाभ
व्यायाम करने से निम्न लाभ होते हैं-
1. भूख लगना-
यह एक तथ्य है कि व्यायाम करनेवालों को खूब भूख लगती है। इसका कारण यह है कि व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियाँ खूब क्रियाशील रहती हैं जिससे शरीर की ऊर्जा की अधिक क्षति होती है। यह ऊर्जा हमें भोजन से प्राप्त होती है, अतः शरीर भूख द्वारा ऊर्जा की माँग करता है। फिर हम जो भोजन करते हैं शरीर में उसका उचित उपयोग होता है तथा पुनः ऊर्जा प्राप्त होती है। शरीर पुनः कार्य करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
2. रक्त-प्रवाह की गति में वृद्धि-
व्यायाम करते समय हृदय की गति में वृद्धि हो जाती है। इसका अर्थ यह है कि शरीर में रक्त-प्रवाह तीव्र गति से होने लगता है क्योंकि व्यायाम से शरीर की मांसपेशियों को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति के लिए रक्त को जल्दी-जल्दी पोषक तत्त्व देना पड़ता है। अतः ऊतकों में जितना अधिक पोषक तत्व पहुँचता है, उतना ही अधिक उनके अन्दर रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप विजातीय द्रव्य रक्त द्वारा शोषित होकर बाहर निकलते हैं।
3. गहरी श्वास-
रक्त की शुद्धि का श्वास से गहरा सम्बन्ध है (जैसा कि आपको बताया जा चुका है), अतः व्यायाम करने से रक्त-प्रवाह की गति की तीव्रता के साथ श्वास गति में भी तीव्रता आ जाती है और श्वास गहरी आने लगती है। साधारण अवस्था में व्यक्ति हल्की श्वास ही लेता है, अतः वह अधिक ऑक्सीजन के लाभ से वंचित रह जाता है। इसलिए गहरी श्वास का लाभ उठाने के लिए शारीरिक परिश्रम व व्यायाम करना अति आवश्यक है।
4. पसीना अधिक निकलता है-
व्यायाम करते समय पसीना अधिक निकलता है। इससे शरीर में उत्पन्न विजातीय द्रव्य सरलता से बाहर निकल जाते हैं अन्यथा ये शरीर में रहकर स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं।
5. फुर्तीलापन-
व्यायाम करने से एक ओर तो शरीर की समस्त कोशिकाओं को पर्याप्त रक्त मिलने से उनका भली-भाँति पोषण हो जाता है जिससे शरीर में फुर्तीलापन आता है, साथ ही मानसिक कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है। इसके विपरीत शरीर में आलस्य होने से मानसिक रूप से भी व्यक्ति निचेष्ट सा रहता है, अतः व्यायाम शरीर व मस्तिष्क दोनों की स्फूर्ति के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इससे मानसिक तनाव होकर मस्तिष्क की कार्य शक्ति में सन्तुलन व वृद्धि हो जाती है।
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व्यायाम के नियम
व्यायाम शारीरिक क्षमता के अनुरूप ही करना चाहिए। मानसिक परिश्रम करनेवालों को हल्का व्यायाम, शारीरिक परिश्रम करने वालों को कठोर व्यायाम, स्त्रीयों को गृहकार्य जैसे- पीसना तथा बालकों को खेल आदि करने चाहिए। प्रतिदिन व्यायाम करते समय निम्नांकित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. व्यायाम ऐसा होना चाहिए जिससे शरीर के समस्त अंग सुचारु रूप से लाभान्वित हों।
2 नियम से व्यायाम का समय बढ़ाना चाहिए। एक ही समय में अधिक व्यायाम करना हानिप्रद होता है। अतः व्यायाम को सरल से कठिन की ओर बढ़ाना ही लाभप्रद होगा।
3. आयु, शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार ही व्यायाम किया जाय अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी।
4. जो व्यक्ति रोगग्रस्त हों उन्हें व्यायाम कदापि नहीं करना चाहिए।
5. स्वच्छ वायुयुक्त स्थान पर ही व्यायाम करना चाहिए जिससे शुद्ध वायु की प्राप्ति अधिक मात्रा में मिल सके।
6. व्यायाम करने के लिए सुबह का समय ही सर्वोत्तम। होता है। संध्या समय तो खेलकूद के लिए पर्याप्त रहता है।
7. व्यायाम करते समय शरीर पर कम तथा ढीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
8. भोजन व्यायाम के अनुरूप ही लेना चाहिए।
9. मानसिक परिश्रम करनेवालों को हल्का व्यायाम करना चाहिए। उदाहरणार्थ- टेनिस, वॉलीबाल आदि ही खेलना पर्याप्त होगा।
10. व्यायाम के तुरन्त बाद ही जल नहीं पीना चाहिए, बरन् पौष्टिक नाश्ते का सेवन करना लाभकारी होगा।
11. व्यायाम सीमा से परे न हो। अतः उतना ही किया जाय जिससे अधिक थकावट का अनुभव न हो।
व्यायाम के विभिन्न रूप
व्यायाम के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
1. बालकों के लिए दौड़ना, भागना तथा खेलकूद आदि।
2. बालिकाओं के लिए दौड़ना, रस्सी कूदना, नृत्य करना, पी०टी० करना।
3. प्रौढ़ पुरुषों के लिए टहलना, तेज चलना, बागवानी करना।
4. प्रौढ़ महिलाओं के लिए हल्के योगासन, टहलना, झुककर झाडू-पोंछा करना, हल्के कार्य करना।
5. सामान्य महिलाओं के लिए घर के विभिन्न कार्य-कपड़े धोना, कूटना, पीसना, चक्की चलाना, पैदल चलना।
6. वृद्ध के लिए-खुली हवा में प्रातः तथा सार्यकाल टहलना, अपने कार्य स्वयं करना, बच्चों के साथ थोड़ा खेलना-कूदना तथा हल्के कार्य करना।
विभिन्न अवस्थाओं में उपयोगी व्यायाम
यह सत्य है कि प्रत्येक आयु एवं अवस्था के व्यक्ति के लिए व्यायाम आवश्यक एवं लाभकारी होता है परन्तु विभिन्न अवस्थाओं में व्यायाम का स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। विभिन्न अवस्थाओं के लिए उपयोगी व्यायाम के स्वरूप का विवरण निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत है-
अवस्था |
व्यायाम का स्वरूप |
शैशवावस्था- |
|
प्रथम 6 माह |
बहुत हल्के हाथों से शिशु के हाथ-पैर सहलाना। |
6 माह से 1 वर्ष |
शरीर की मालिश करना तथा मुक्त रूप से हाथ-पैर चलाने की सुविधा। |
बाल्यावस्था-1 से 5 वर्ष |
विभिन्न खिलौनों से खेलना, तीन
पहिए वाली साइकिल चलाना, गेंद आदि से
खेलना। |
किशोरावस्था |
हर प्रकार का खेल खेलना, दौड़ना, तैरना, मलखम्भ, रस्सी कूदना, नृत्य
करना, जिम में कसरत करना आदि।
|
वयस्कावस्था |
खेल खेलना, साइकिल चलाना, तैरना, मशीनों
द्वारा कसरत करना, योगासन करना, दौड़ना आदि। |
प्रौढ़ावस्था |
अपने स्वास्थ्य एवं व्यवसाय को ध्यान में रखकर नियमित व्यायाम करना, प्रातः घूमना तथा आसन करना। |
वृद्धावस्था |
हल्के शारीरिक कार्य करना, सुबह-शाम
घूमना, हल्के खेल खेलना। |
गर्भावस्था |
घरेलू कार्य करना, सुबह-शाम
खुली हवा में घूमना, हल्के योगाभ्यास
करना। |
व्यायाम न करने के दुष्परिणाम
नियमित रूप से व्यायाम न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। व्यायाम न करने वाले व्यक्ति के चेहरे का तेज मन्द पड़ जाता है तथा उसके शरीर की स्फूर्ति कम हो जाती है। शरीर ही नहीं, स्वभाव पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यायाम न करने वाले व्यक्ति का स्वभाव कुछ-कुछ चिड़चिड़ा हो जाता है। व्यायाम के अभाव में पौष्टिक आहार ग्रहण करने से हमारे शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है। वसा के बढ़ने तथा अन्य कुछ सहकारी कारकों से हम अनेक रोगों के शिकार हो सकते हैं। हृदय रोग तथा रक्त-चाप सम्बन्धी रोग भी हो सकते हैं। व्यायाम न करने से हमारी पाचन क्रिया मन्द पड़ जाती है तथा निरन्तर भूख घटने लगती है। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि व्यायाम न करना हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न- 1. शारीरिक व्यायाम से क्या मानसिक लाभ होता है?
उत्तर - शारीरिक व्यायाम से मानसिक कार्यक्षमता में वृद्धि होती है एवं मन प्रसन्न रहता है।
प्रश्न- 2. व्यायाम किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर- व्यायाम सीमा से परे न हो। अतः उतना ही किया जाय जिससे अधिक थकावट का अनुभव न हो।
प्रश्न- 3. क्या नियमित व्यायाम करना आवश्यक है?
उत्तर- हाँ, नियमित व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
प्रश्न- 4 . व्यायाम न करने से क्या-क्या हानियाँ होती हैं?
उत्तर- नियमित व्यायाम न करने से शरीर की गतिशीलता में कमी आती है तथा शरीर रोगग्रस्त हो जाता है।
प्रश्न- 5. व्यायाम के क्या लाभ हैं? अथवा स्वास्थ्य के लिए व्यायाम का क्या महत्त्व है?
उत्तर- व्यायाम से निम्न लाभ हैं- भूख लगना, रक्त प्रवाह की गति में वृद्धि, गहरी श्वास, पसीना अधिक निकलना एवं फुर्तीलापन आदि।