स्वास्थ्य शिक्षा क्या है | स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य | Svaasthy Shiksha Kya Hai

कोई देश तभी उन्नति और विकास कर सकता है जब वहाँ की जनता स्वस्थ होगी। एक स्वस्थ नागरिक ही अपनी कार्य-कुशलता के द्वारा अपनी और अपने देश की उन्नति कर सकता है। अस्वस्थ व्यक्ति से ऐसी आशा करना व्यर्थ है। आज जो भी देश विकसित हैं उसका मुख्य कारण वहाँ की जनता का स्वस्थ रहना है। वहाँ के लोगों ने अनेक व्याधियों पर विजय प्राप्त कर ली है। वहाँ का प्रत्येक व्यक्ति देश के प्रति और देश की सरकार अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायी और सजग है। इंग्लैण्ड, चीन, जापान और अमेरिका आदि ऐसे देश हैं जहाँ के अधिक आयु वाले व्यक्ति भी चुस्त-फुर्तीले तथा हट्टे-कट्टे होते हैं। इन देशों का स्वास्थ्य- स्तर हमारे देश की अपेक्षा अधिक उच्च है।

    प्राचीन काल के लोग अधिक स्वस्थ होते थे, क्योंकि वे खुले और स्वच्छ वातावरण में रहते थे, शुद्ध भोजन करते थे। सौ वर्ष जीने की कामना करते थे। आज के वैज्ञानिक युग में जीवन जितना अधिक सुविधापूर्ण हो गया है, उतना ही कृत्रिम और जटिल। भोजन-पानी तो दूर की बात है वायु तक शुद्ध नहीं मिलती। मिलावटी वस्तुएँ खाने, दूषित वायु में श्वास लेने से कौन व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है? यह प्रश्न विचार करने योग्य है।

    स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ

    स्वास्थ्य शिक्षा का अभिप्राय उन सब बातों से है जो व्यक्ति को स्वास्थ्य के सम्बन्ध में शिक्षा देती हैं। स्वास्थ्य-शिक्षा का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत तथा व्यापक है। यह न केवल विद्यालय में पढ़ने वाले बालक-बालिकाओं के लिए है बल्कि समाज के हर वर्ग के व्यक्तियों के लिए समान रूप से आवश्यक एवं उपयोगी है। स्वास्थ्य शिक्षा का स्वरूप औपचारिक भी हो सकता है तथा अनौपचारिक भी। स्वास्थ्य-शिक्षा के अनौपचारिक स्वरूप के अन्तर्गत यह शिक्षा किसी भी व्यक्ति को कहीं भी दी जा सकती है। स्वास्थ्य-शिक्षा का सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही दृष्टिकोणों से महत्त्व एवं लाभ है। अन्य विकासशील देशों के ही समान हमारे देश में भी स्वास्थ्य- शिक्षा की अत्यधिक आवश्यकता है। नगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिक्षा की व्यापक व्यवस्था की जानी चाहिए।

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    स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

    भारत सरकार ने अपने देश की जनता के स्वास्थ्य स्तर को सुधारने का उत्तरदायित्व न केवल स्वीकार किया है, बल्कि अनेक कदम उठाये हैं। स्वतन्त्रता के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाया है। अनेक योजनाएँ लागू की गयी हैं जिनमें स्वास्थ्य शिक्षा, स्वास्थ्य-रक्षा एवं रोग प्रतिरक्षा के उपायों के क्रियान्वयन के कार्यक्रम हैं।

    यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ की अधिकांश जनता अज्ञानी और अशिक्षित है, जिन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का कोई ज्ञान नहीं है। उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए पहले उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का ज्ञान कराना होगा। यह कार्य स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

    1. नागरिकों के स्वास्थ्य स्तर को उच्च बनाना।

    2. चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों और लाभ का ज्ञान प्रदान कराना, स्वास्थ्य सुरक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों का प्रचलन करना और उसमें नागरिकों का सहयोग प्राप्त करना।

    3. स्वास्थ्य संगठनों, संगठनों के कार्यक्रमों से नागरिकों को जानकारी प्रदान करना, जिससे वे उनकी सेवाएँ प्राप्त करके स्वास्थ्य लाभ ले सकें।

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    स्वास्थ्य शिक्षा में परिवार तथा विद्यालय की भूमिका

    परिवार- 

    बच्चों में प्रारम्भ से ही स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने की आदत डालनी चाहिए। इस कार्य में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। परिवार को बालक की पहली पाठशाला कहा जाता है। परिवार में माता-पिता अपने बच्चों में अच्छी आदतें डालते हैं। हमारे देश की प्रामीण जनता को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का ज्ञान नहीं है, अतः उनके बच्चे भी इससे अज्ञान रह जाते हैं।

    विद्यालय- 

    परिवार के बाद बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है। बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं, साथ ही उनकी ग्रहण करने की शक्ति भी अत्यन्त तीव्र होती है। विद्यालय में उन्हें स्वच्छता से रहने, रोगों की रोकथाम, रोगों से बचाव तथा उपचार आदि की शिक्षा दी जाती है। बालकों को इस बात की ओर प्रेरित किया जाता है कि वे अपने शरीर, वस्त्र, स्थान तथा अपनी प्रत्येक वस्तु को स्वच्छ रखें। बाजार की खुली गन्दी वस्तुएँ न खायें क्योंकि इनसे रोग होने का डर रहता है। विद्यालय में प्रहण की हुई व्यवस्था सम्बन्धी बातों को बच्चे अपने परिवार तक पहुँचाते हैं। इसलिए प्रत्येक विद्यालय में स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

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    विभिन्न स्थानीय स्वायत्त संस्थाएँ

    परिवार और विद्यालय स्वास्थ्य शिक्षा के महत्त्वपूर्ण साधन हैं, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में इनसे अधिक लाभ की आशा नहीं की जा सकती क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम संख्या में बच्चे विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं, साथ ही उनके माता-पिता को भी स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का ज्ञान नहीं होता। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश की जनसंख्या का 68.8 प्रतिशत गाँवों में निवास करती हैं। गाँवों में स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए निम्न संस्थाएँ कार्य कर रही हैं-

    चिकित्सालय- 

    विभिन्न नगरों में जन-स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अन्तर्गत एक-एक महिला तथा एक सामान्य चिकित्सालय होते हैं जिसमें प्रशिक्षित डॉक्टर व नसें रोगी की चिकित्सा व देखभाल करती हैं। लोगों की आम धारणा यह है कि डॉक्टर, नर्स रोगी की केवल चिकित्सा व उपचार करते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है। आज चिकित्सालयों में चिकित्सा के अतिरिक्त स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाती है। जैसे- रोग के सम्बन्ध में जानकारी देना, स्वच्छता तथा शुद्ध भोजन का महत्व बताना, टीका लगवाने की प्रेरणा देना, समय-समय पर शारीरिक प्रशिक्षण करवाने की सलाह देना।

    इसके अतिरिक्त चिकित्सालय के वातावरण को भी स्वच्छ रखने का प्रयास किया जाता है, डॉक्टर व नर्स स्वयं भी स्वास्थ्य नियमों का इतना पालन करते हैं कि लोगों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य सुरक्षा सम्बन्धी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालय के अभाव की एक समस्या अवश्य है, किन्तु प्रयास यही किया जा रहा है कि प्राथमिक व उप-प्राथमिक केन्द्रों द्वारा ग्रामीणों को चिकित्सीय सुविधा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान प्रदान किया जाय। यद्यपि इसकी प्रगति अत्यन्त धीमी है जिसे तीव्र करने की आवश्यकता है। चिकित्सालयों के स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी कार्य निम्न प्रकार से हो सकते हैं-

    1. रोगी के सम्बन्धियों को रोग से बचाव के उपाय बताना।

    2. रोगी की समस्या को ध्यान व सहानुभूतिपूर्वक सुनना तथा उन्हें उचित चिकित्सा, शिक्षा व सेवा प्रदान करना।

    3. चिकित्सालयों में रेडियो तथा टी०वी० के माध्यम से रोगियों को स्वास्थ्य शिक्षा देने की व्यवस्था करना।

    4. कुछ अनौपचारिक साधनों से भी शिक्षा देना, जैसे- वार्तालाप, पोस्टर, टेलीविजन तथा समाज सेवकों द्वारा घरों में जाकर लोगों से सम्पर्क करना आदि।

    नगरपालिका का स्वास्थ्य केन्द्र- 

    प्रत्येक शहर व कस्बे में एक नगरपालिका का भी स्वास्थ्य विभाग होता है जो अपने-अपने क्षेत्र की स्वच्छता की व्यवस्था करता है। संक्रामक रोग फैलने पर सड़कों, गलियों में चूना व डी०डी०टी० आदि छिड़ककर नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करता है। विभिन्न रोगों की रोकथाम के सार्वजनिक उपाय करना तथा रोगों के टीके लगाना भी इसी विभाग का कार्य है। इसी विभाग द्वारा बाजारों में खुली खाद्य वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगायी जाती है। समय-समय पर यह विभाग, विज्ञापन, पोस्टरों तथा घर-घर जाकर लोगों को स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा प्रदान करने में मुख्य दायित्व का निर्वाह करता है।

    औद्योगिक केन्द्र- 

    भारत में अनेक ऐसे दफ्तर तथा कल-कारखाने हैं जिसमें कर्मचारियों के स्वास्थ्य की देख-रेख करने के लिए समय-समय पर चिकित्सकों नियुक्ति की जाती है जो उन्हें स्वास्थ्य शिक्षा भी देते रहते हैं। इन केन्द्रों में स्वच्छता का वातावरण बनाये रखने पर पूर्ण ध्यान रखा जाता है, जिससे कर्मचारियों को स्वास्थ्य शिक्षा का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता रहता है।

    चलता-फिरता औषधालय- 

    भारत में चिकित्सा विभाग की ओर से ग्रामीणों को चिकित्सीय सुविधा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा प्रदान करने के लिए चलते-फिरते औषधालयों की व्यवस्था की जाती है। इसके अन्तर्गत यह विभाग एक मोटर में चिकित्सा सामग्री तथा औषधियाँ भरकर प्रशिक्षित लोगों द्वारा गाँवों में दवा देने व टीका लगाने, गाँवों में स्वच्छ वातावरण बनाने एवं स्वच्छता के नियमों की जानकारी देने का सराहनीय कार्य किया जाता है।

    प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र- 

    भारत के गाँवों में विद्यालयीय शिक्षा का अभाव है। जो विद्यालय हैं भी वह केवल छोटे बच्चों के लिए ही हैं। प्रौढ़ व्यक्तियों को किसी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर नहीं मिल पाता। अतः वे अपने परम्परागत ढंगों व अन्धविश्वासों के आधार पर अनेक रोगों को देवी-देवताओं का प्रकोप या भूत-प्रेत का चक्कर मानकर उचित चिकित्सा नहीं करवाते। यदि चिकित्सा करवाते भी हैं तो गाँवों के नीम-हकीमों से, जिससे उन्हें लाभ के स्थान पर हानि ही उठानी पड़ती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी अज्ञानता के कारण उनका स्वास्थ्य-स्तर भी बहुत निम्न स्तर का होता है। अतः प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों में साधारण ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य नियमों की भी जानकारी दी जाती है तथा विभिन्न माध्यमों, जैसे- चार्ट्स, भाषण, टी०वी०, पोस्टर आदि के द्वारा उन्हें विभिन्न रोगों के कारण, उपचार तथा रोकथाम आदि का ज्ञान प्राप्त कराया जाता है।

    परिवार नियोजन केन्द्र- 

    देश की जनसंख्या वृद्धि की गति को देखते हुए सरकार ने देश भर में परिवार नियोजन केन्द्रों का जाल-सा बिछा दिया है, जिससे नागरिकों व परिवारों के सुखी भविष्य के लिए अधिक से अधिक दम्पति परिवार नियोजन विधियों को अपनायें ताकि उनके बच्चों की संख्या कम हो। कम बच्चे तथा दो बच्चों के मध्य अधिक समय के अन्तर से माता-शिशु दोनों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है तथा उनका भविष्य भी उज्ज्वल रहता है। निम्न स्तर के लोगों में परिवार नियोजन सम्बन्धी कार्य का प्रसार करने तथा अधिक-से-अधिक व्यक्तियों को लाभान्वित होने की दृष्टि से इस केन्द्र में परिवार नियोजन सम्बन्धी ज्ञान तथा साधनों का निःशुल्क लाभ प्रदान किया जाता है।

    मातृ-शिशु कल्याण संस्थाएँ- 

    ये संस्थाएँ शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी कार्यरत हैं जो माताओं व शिशुओं को सुरक्षा प्रदान करती है, साथ ही परिवार नियोजन की सलाह व सुविधा भी प्रदान करती हैं।

    प्रसूति रक्षा केन्द्र- 

    आजकल नगरों में अनेक समाजसेवी संस्थाओं ने ऐसे केन्द्रों की स्थापना की है जहाँ गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य सुरक्षा की व्यवस्था होती है। समय-समय पर गर्भवती महिलाएँ इस केन्द्र में आकर अपने स्वास्थ्य तथा भावी शिशु की सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करती हैं। सरकार का कर्तव्य है कि गाँवों में भी ऐसे केन्द्रों की स्थापना की व्यवस्था करें जहाँ अज्ञानतावश कितनी ही माताएँ व शिशुओं को अपने स्वास्थ्य से हाथ धोना पड़ता है तथा अनेक शिशु अपंग, अपाहिज या रोगग्रस्त उत्पन्न होते रहते हैं।

    बाल रक्षा केन्द्र- 

    ये केन्द्र, राज्य सरकार या नगरपालिका द्वारा संचालित होते हैं। इस केन्द्र में विशेष रूप से 10-12 वर्ष के बालकों के स्वास्थ्य का निरीक्षण व परीक्षण किया जाता है। शिशु विशेषज्ञों द्वारा रोगी बालकों को चिकित्सा सुविधा भी प्रदान करते हैं । वे उनके माता-पिता को स्वास्थ्य सम्बन्धी विशेष निर्देश देकर उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा करते हैं।

    अन्ध विद्यालय- 

    भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी अज्ञानता के कारण लाखों-करोड़ों लोग असमय ही अपनी आँखें खो बैठते हैं या अनेक असाध्य रोगों से पीड़ित रहते हैं जिनमें रतौंधी, रोहे, आँखें दुःखना, मोतियाबिन्द आदि रोग प्रमुख हैं। इस समस्या को सुलझाने के लिए भारत सरकार तथा कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने अन्ध विद्यालयों की स्थापना की है, जहाँ अन्धे बालकों व वयस्कों को स्वास्थ्य शिक्षा के साथ-साथ ब्रेल विधि से पढ़ाई-लिखाई तथा विभिन्न हस्तकला, संगीत कला आदि की शिक्षा देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता है।

    विकलांग केन्द्र- 

    विकलांग व्यक्ति अपने परिवार व समाज के लिए तो बोझ होता ही है वह स्वयं भी हीनता से अस्त हो जाता है। अधिकांश स्वास्थ्य सम्बन्धी अज्ञानता के कारण ही ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। अतः इन केन्द्रों में उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर समाज मे सम्मानपूर्वक जीने के लिए विभिन्न दस्तकारियाँ सिखाने की व्यवस्था की जाती है। नोबुल पुरस्कार विजेता 'मदर टेरेसा' ने कलकत्ता में विकलांग व अपाहिजों के लिए प्रशंसनीय कार्य किया है।

    स्वास्थ्य शिक्षा के सरकारी संगठन

    व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वयं तो उत्तरदायी होता है, किन्तु देश व समाज के स्वास्थ्य की सुरक्षा की समस्या को हल करना सरकार का उत्तरदायित्व होता है।

    जन स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अनुभव की गयी। इसे हल करने के लिए सरकार ने 1956 ई० में केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय स्वास्थ्य शिक्षा ब्यूरो की की स्थापना की तथा स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य संस्थाओं का गठन किया। सभी स्तर की संस्थाओं को अपने-अपने पृथक् पृथक् उत्तरदायित्व सौंपे गये, जो जनता को अधिक से अधिक स्वास्थ्य लाभ के अवसर प्रदान करें। इन स्वास्थ्य संस्थाओं की सेवाएँ निम्न हैं

    1. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय- 

    सरकार ने स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों को पंचवर्षीय योजनाओं में मुख्य स्थान दिया जिसका पूर्ण उत्तरदायित्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय को दिया गया। इस मंत्रालय के अन्तर्गत अनेक उपविभाग होते हैं, केन्द्रीय मन्त्रालय इस विभाग तथा उपविभागों का संचालन करता है तथा देश भर की जनस्वास्थ्य नीतियों का निर्माण करता है। केन्द्रीय मन्त्रालय के अधीन केन्द्रीय स्वास्थ्य ब्यूरो विशेष रूप से विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा के प्रचार व प्रसार की व्यवस्था करता है, जिसके माध्यम फिल्म, पोस्टर, वित्र आदि होते हैं। इसके अतिरिक्त देशी-विदेशी स्वास्थ्य संस्थानों, निकायों तथा संगठनों के कार्यों में सहायता प्रदान करने का कार्य भी सौपा गया। ब्यूरो ने 1957 ई० में 'स्कूल स्वास्थ्य शिक्षा विभाग' का भी गठन किया जिसके मुख्य तीन उपविभाग हैं-

    (i) अध्यापकों के लिए शिक्षक प्रशिक्षण विभाग।

    (ii) माध्यमिक विद्यालयों से सम्बन्धित स्वास्थ्य विभाग।

    (iii) प्राथमिक विद्यालयों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा विभाग।

    2. राज्य स्वास्थ्य विभाग- 

    सन् 1959 ई० में केन्द्रीय मंत्रालय की सलाह से देश के मुख्य 13 राज्यों में राज्य स्वास्थ्य शिक्षा ब्यूरो का गठन किया गया। इसके मुख्य कार्यक्रम निम्न प्रकार निश्चित किये गये-

    (i) क्षेत्र विकास खण्डों में स्वास्थ्य केन्द्र खोलना।

    (ii) स्थानीय संस्थाओं द्वारा प्रचार कार्य करना।

    (iii) परिवार नियोजन तथा मलेरिया व चेचक उन्मूलन अभियान चलाना।

    इस प्रकार प्रत्येक राज्यों पर वहाँ की जनता के स्वास्थ्य सुरक्षा तथा स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्रदान करने का भार सौंपा गया। उनके कार्यों में केन्द्रीय सरकार की सहायता प्रदान करती है।

    3. जिला स्वास्थ्य विभाग- 

    राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से उस राज्य के प्रत्येक जिले में महिला तथा सामान्य स्वास्थ्य विभाग होता है, जिसे चिकित्सालय कहते हैं। इसका प्रशासक जिला स्वास्थ्य अधिकारी कहलाता है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी 'सिविल सर्जन' तथा प्रत्येक चिकित्सालय का इन्चार्ज 'सुपरिन्टेन्डेन्ट' कहलाता है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी के अधीन निम्न अधिकारी होते हैं-

    (i) एक उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी।

    (ii) एक मुख्य खाद्य निरीक्षक।

    (iii) सहायक स्वास्थ्य निरीक्षक।

    (iv) जिला स्वास्थ्य एवं सूचना अधिकारी।

    (v) एक जिला स्वास्थ्य प्रसार शिक्षक।

    जिला स्वास्थ्य विभाग इन अधिकारियों की सहायता से जिले भर में मुख्यतः निम्न कार्य सम्पन्न करता है-

    (i) जिले भर में चिकित्सा की व्यवस्था करना।

    (ii) परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाना।

    (iii) गरीबों को मुफ्त दवा व भोजन का प्रबंध करना।

    (v) बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों तथा मेलों आदि में कैम्प लगाकर संक्रामक रोगों की रोकथाम करना, टीके लगाना तथा स्वच्छता का प्रबन्ध करना।

    (iv) खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम करना तथा दोषी व्यक्तियों को दण्ड दिलवाना।

    (vi) जिले में फैलनेवाली बीमारियों की रोकथाम का प्रबन्ध करना।

    (vii) परिवार कल्याण कार्यक्रमों का प्रचार व प्रसार करना।

    4. नगरपालिका का स्वास्थ्य विभाग- 

    प्रत्येक नगरपालिका का भी एक स्वास्थ्य विभाग होता है, जिसका अध्यक्ष 'हेल्थ सुपरिन्टेन्डेन्ट' कहलाता है। यह विभाग जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों के अन्तर्गत अपने कर्मचारियों की सहायता से निम्न प्रकार कार्य करते हैं-

    1. नगर की सफाई।

    2. शुद्ध जल की व्यवस्था।

    3. विभिन्न क्षेत्रों में डिस्पेन्सरी खोलना।

    4. संक्रामक रोगों की रोकथाम।

    5. हानिकारक खाद्य व पेय पदार्थों की बिक्री पर रोक।

    6. होटलों, रेस्टोरेन्ट व खाद्य पदार्थ बेचने वालों को लाइसेन्स देना।

    7. छूत की बीमारियों के लिए पृथक् अस्पताल खोलना।

    8. नगर में उद्यान व बालोद्यान की व्यवस्था करना।

    9. बड़े-बड़े मेले आदि में रोग प्रतिरक्षण टीके लगाने की व्यवस्था करना।

    10. पोस्टर, विज्ञापन आदि के द्वारा जनता को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करने की शिक्षा प्रदान करना।

    इस प्रकार इस विभाग पर जनसाधारण को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने तथा जनस्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न कार्यक्रमों को व्यावहारिक रूप देने का बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है।

    राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय एवं गैर सरकारी संगठन

    1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation)- 

    इस संगठन को संक्षेप में W.H.O. कहां जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत विश्वभर में विश्व स्वास्थ्य संगठन का गठन किया गया है। इस संगठन के विभित्र। कार्य हैं। विश्व भर में चिकित्मा विशेषज्ञ इस संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनस्वास्थ्य शिक्षा के प्रचार व प्रसार कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए यह संगठन विशेष व्यक्तियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करता है। कुपोषण व रोग निवारण की नयी-नयी खोज व नीतियों का निर्धारण करता है। इसके अतिरिक्त यह संगठन विकासशील देशों में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक सहायता भी प्रदान करता है। इस प्रकार W.H.O. ने इस दिशा में प्रशंसनीय योगदान देकर मानव का कल्याण किया है।

    2. UNICEF-

    इस संस्था की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ ने की है। माताओं व शिशुओं को रोग से बचाने के लिए इस संस्था ने विभित्र कार्यक्रम आयोजित किये हैं जो स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा संचालित किये जाते हैं।

    3. CARE- 

    यह संस्था भी संयुक्त राष्ट्र संघ की एक शाखा है जो मुख्य रूप से बालकों की पोषण सम्बन्धी समस्याओं व आवश्यकताओं में सहायता प्रदान करती है।

    4. रेडक्रॉस सोसाइटी (Red Cross Society)- 

    रेडक्रॉस सोसाइटी एक ऐसा सामाजिक संगठन है जिसकी शाखाएँ विश्वभर में फैली हैं। एक प्रकार से यह स्वास्थ्य सम्बन्धी स्वतन्त्र संगठन है, जो मानव कल्याण के लिए अपनी निःस्वार्थ सेवाएँ प्रदान करने के लिए निरन्तर कार्यरत हैं। प्रत्येक जिले में इसकी एक शाखा अवश्य होती है। यह संस्था राष्ट्रव्यापी महामारी, युद्ध व बाढ़ प्रकोप के समय घायलों की चिकित्सा व सेवा का कार्य करती है। इसने विशेष रूप से स्कूल-कालेजों में प्राथमिक चिकित्सा, गृह-परिचर्या व स्वास्थ्य रहा के नियमों की शिक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये हैं, जो विद्यार्थियों और जनता को विभिन्न प्रकार से स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान तथा सहायता प्रदान करके अपना अमूल्य योगदान दे रही है।

    जन स्वास्थ्य के मार्ग में बाधक तत्व

    भारत सरकार, अन्तर्राष्ट्रीय व सामाजिक संस्थाओं ने समय की आवश्यकता के अनुसार जनस्वास्थ्य स्तर को उन्नत बनाने के लिए अनेक सक्रिय कदम उठाये, जिससे भारत के अधिक से अधिक नागरिक लाभान्वित हो सकें। किन्तु खेद का विषय है कि व्यावहारिक रूप से ऐसा अनुभव किया गया है कि जन स्वास्थ्य के कार्यक्रम तथा जनस्वास्थ्य शिक्षा में उतनी सफलता नहीं मिली जितनी आशाएँ की गयी थीं। जनस्वास्थ्य के मार्ग में कुछ ऐसे बाधक तत्व हैं जो इस कार्यक्रम की असफलता का मुख्य कारण है। ये कारण निम्न प्रकार हैं

    1. शिक्षा का अभाव- 

    जन स्वास्थ्य शिक्षा के मार्ग में शिक्षा का अभाव बहुत बड़ा बाधक है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति को स्वास्थ्य नियमों की जानकारी, रोगों से बचने के उपाय, पौष्टिक तत्त्वों की जानकारी, प्राथमिक चिकित्सा, गृह-परिचर्चा आदि का समुचित ज्ञान प्राप्त हो सकता है। भारत की अधिकांश जनता अशिक्षा के कारण अज्ञान है। अतः उन्हें जनस्वास्थ्य शिक्षा व सेवाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

    2. रूढ़िवादिता- 

    आज विज्ञान का युग है, जिसमें मानव को चिकित्सा क्षेत्र में नयी-नयी औषधियाँ तथा आधुनिक चिकित्सा पद्धति की भी विशेष उपलब्धियाँ हुई हैं, जिसके फलस्वरूप अनेक असाध्य रोगों पर काबू पा लिया गया तथा चेचक जैसे भयंकर संक्रामक रोग का उन्मूलन हो चुका है, किन्तु गाँवों व शहरों की अधिकांश जनता अपनी अशिक्षा व अज्ञानता के कारण स्वास्थ सम्बन्धी नवीन सुविधाओं व चिकित्सा से परहेज करती है तथा अपनी पुरानी व दकियानूसी भावनाओं के कारण चिकित्सा के लिए झाड़- फूंक व टोने-टोटके का सहारा लेती है अथवा भूत-प्रेत का चक्कर मान कर रोगी को ओझा-मुल्लाओं का शिकार बना देती है। गाँवों में अब भी नीम-हकीमों से चिकित्सा कराने तथा अप्रशिक्षित दाइयों से प्रसव कराने की परम्परा चली आ रही है। प्रायः जिसका परिणाम माताओं व शिशुओं दोनों को भुगतना पड़ता है।

    3. जन स्वास्थ्य के प्रति अरुचि- 

    भारत की जनता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए तो थोड़ी रुचि रखती भी है, किन्तु जन स्वास्थ्य के प्रति इनका पूर्ण उपेक्षा का भाव रहता है। यही कारण है कि लोग अपने घर की तो सफाई कर लेते हैं, किन्तु कूड़ा-करकट सड़को पर बिखरने, इधर-उधर थूकने व मूत्र त्याग करने अथवा बच्चों को गलियों की नाली पर शौच कराने में तनिक भी संकोच नहीं करते। वह इस ओर बिल्कुल रुचि नहीं रखते कि ऐसा करने से वातावरण दूषित होकर अन्य लोगों के स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुंचा सकता है।

    4. स्वास्थ्य संगठनों की निष्क्रियता- 

    आज भारत में अनेक स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न कार्यक्रमों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की ओर अग्रसर हैं, जैसे- जन स्वास्थ्य की व्यावहारिकता का ज्ञान कराना, स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों का प्रचार व प्रसार, टीके लगाना, परिवार नियोजन की सेवाएँ प्रदान करना व माता-शिशु कल्याण कार्य आदि। किन्तु स्वास्थ्य विभाग के कार्यकर्ता विशेष रूप से ग्रामीण अज्ञान जनता को इन सेवाओं का लाभ पहुंचाने में रुचि नहीं लेते, न ही उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते हैं। सरकार गरीबों को जितनी चिकित्सीय सुविधाएँ व आर्थिक सहायता देती है, स्वास्थ्य विभाग के कार्यकर्ता उसमें भी भारी कटौती कर लेते हैं। इन कारणों से गरीब जनता सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग व स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ से वंचित रह जाती है।

    ** महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर **

    प्रश्न- 1. व्यक्ति के समाज के प्रति कर्तव्यों का क्या महत्त्व है?

    उत्तर- व्यक्ति के समाज के प्रति निम्न कर्तव्य हैं-

    (i) समाज के बनाये हुए सड़क के नियमों का पालन करके दुर्घटनाओं का बचाव करें।

    (ii) प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने क्षेत्र में टूटी सड़कों की सूचना नगर महापालिका को अवश्य दें।

    प्रश्न- 2. किसी संक्रामक रोग के फैलने पर नागरिकों का सर्वप्रथम कर्तव्य क्या है?

    उत्तर- किसी संक्रामक रोग के फैलने पर नागरिकों का सर्वप्रथम कर्तव्य यह है कि इसकी सूचना तुरन्त स्वास्थ्य विभाग को दें। 

    प्रश्न- 3. जहाँ-तहाँ थूकना क्यों हानिकारक माना जाता है? 

    उत्तर- जन स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है कि जहाँ-तहाँ थूकना नहीं चाहिए। यदि थूकना आवश्यक हो तो स्थान-स्थान पर रखे हुए थूकदान या पीकदान में ही थूकना चाहिए।

    प्रश्न- 4. W.H.O. का पूर्ण रूप क्या है?

    उत्तर- W.H.O. का पूर्ण रूप है-World Health Organization

    प्रश्न- 5. यूनिसेफ का मुख्य कार्य क्या है?

    उत्तर- यूनिसेफ का मुख्य कार्य माताओं एवं शिशुओं का कल्याण करना है।

    प्रश्न- 6. विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या है?

    उत्तर- विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य करने वाली विश्व स्तरीय संस्था है। इसके अतिरिक्त यह संगठन विकासशील देशों में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक सहायता भी प्रदान करता है।

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