सामाजिक अनुसंधान में विषय या समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन ही नहीं किया जाता है, वरन् तथ्यों को सारणी या तालिका के रूप में भी प्रकट किया जाता है। सारणीयन वह विधि या तरीका है, जिसमें संकलित तथ्यों को व्यवस्थित, बोधगम्य एवं संक्षिप्त बनाया जाता है। सारणीयन में एक ही शीर्षक से सम्बन्धित सूचनाओं को एक साथ प्रदर्शित किया जाता है।
सारणीयन का अर्थ एवं परिभाषा
(1) डी. एन. एल्हान्स (D. N. Elhance) के अनुसार- "विस्तृत अर्थ में सारणीयन तथ्यों के स्तम्भों एवं पंक्तियों में व्यवस्थित है। यह एक ओर तथ्यों के संकलन और तथ्यों के अन्तिम विश्लेषण के बीच की एक प्रक्रिया है।"
(2) स्पर व बोनिनि (Spurr and Bonini) के अनुसार- "एक सांख्यिकी-सारणी सम्बन्धित तथ्यों का उदग्र खानों तथा समतल पंक्तियों में किया गया वर्गीकरण होता है।"
(3) घोष एवं चौधरी (Ghosh and Chaudhry) के अनुसार- "सारणीयन द्वारा गणनात्मक तथ्यों का इस प्रकार व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक प्रदर्शन करना है कि विचाराधीन समस्या हल हो जाये।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि "जब एकत्रित तथ्यों का समुचित वर्गीकरण करके, उन वर्गीकृत तथ्यों को एक तालिका के अन्तर्गत कुछ स्तम्भों तथा पंक्तियों में इस प्रकार व्यवस्थित ढंग से सजा दिया जाता है कि तथ्यों की विशेषताएँ व तुलनात्मक महत्व और भी स्पष्ट हो जाता है, तो इस प्रक्रिया को सारणीयन कहते हैं।"
सारणीयन का महत्व
सारणीयन एक महत्वपूर्ण कार्य है। सारणीयन के बिना किसी भी समस्या या अध्ययन विषय का तुलनात्मक और सांख्यिकी विवेचना सम्भव नहीं है। सारणीयन के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
(1) तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study)- सारणीयन में अनेक तथ्यों को एक साथ सारणीबद्ध कर लिया जाता है। इस प्रकार से उनका तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हो जाता है।
(2) सांख्यिकीय विवेचना (Statistical Interpretation)- सारणीयन के अभाव में तथ्यों की सांख्यिकी विवेचना सम्भव नहीं है। वर्तमान समय में सांख्यिकीय विवेचना का महत्व बढ़ता जा रहा है। सारणी के द्वारा तथ्यों को प्रदर्शित करना एक अनिवार्यता बना गया।
(3) उद्देश्यों की स्पष्टता (Clerarity of Objectives)- सारणियों का निर्माण अध्ययन के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। इस कारण अध्ययन से सम्बन्धित सारणियों को देखकर अध्ययन के उद्देश्यों को समझा जा सकता है।
(4) सरलता (Simplicity)- सारणीयन के द्वारा तथ्यों का प्रदर्शन इस प्रकार किया जाता है कि उन्हें सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। सारणीयन के द्वारा संख्यात्मक त्रुटियों को दूर करके अधिक सही निष्कर्ष दिये जा सकते हैं।
(5) वैज्ञानिकता (Scientificess)- सारणी को मनमाने ढंग से नहीं बनाया जाता है। इनको बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया जाता है। एक वैज्ञानिक विधि से निर्मित सारणी को देखने वाले सभी अनुसंधानकर्ता उसका एक जैसा अर्थ निकालते हैं। सारणियों की वैज्ञानिक प्रकृति भी उसके महत्व के लिए आधार प्रदान करती है।
(6) मितव्ययिता (Economy of Time and Space)- सारणीयन के द्वारा विशाल तथ्यों को कम समय में और कम जगह में प्रस्तुत किया जा सकता है। सारणीयन की सहायता से प्रतिवेदन को संक्षिप्त बनाकर कम पृष्ठों में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार से अध्ययनकर्ता के समय की बचत हो जाती है।
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सारणीयन की सीमाएँ
जहाँ एक ओर सारणीयन का महत्व है, वहीं इसमें कई दोष भी हैं। इसकी सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विशेष ज्ञान की आवश्यकता (Need for Special Knowledge)- सारणियों को समझने के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसके बिना सारणियों को समझा नहीं जा सकता है। इसे बनाने और समझने के लिए गणितीय ज्ञान की आवश्यकता होती है। प्रत्येक व्यक्ति इनको नहीं समझ सकता है।
(2) सम्पूर्ण परिशुद्धता असम्भव है (Total Accuracy is Not Possible)- सारणी में तथ्य तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। कोई भी तथ्य पूर्णतया शुद्ध नहीं हो सकता है। महत्वपूर्ण तथ्यों को प्राथमिकता न मिल पाने के कारण पूर्ण परिशुद्धता सम्भव नहीं हो पाती है।
(3) केवल संख्यात्मक सूचनाएँ (Only Quantitative Data) - सारणी के माध्यम से केवल संख्यात्मक तथ्य ही प्रदर्शित किये जा सकते हैं। गुणात्मक तथ्यों को सारणी के माध्यम से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
(4) नीरसता (Monotary)- ये संख्याएँ जटिल होती हैं। इस कारण उन्हें समझने में व्यक्ति को अधिक जोर डालना पड़ता है।
निष्कर्ष- यद्यपि इसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं पर इसका अभिप्रयाय यह नहीं है कि सारणीयन का महत्व नहीं है। वस्तुनिष्ठ अध्ययन तब तक सम्भव नहीं है, जब तक उस अनुसंधान कार्य में सारणीयन को उचित स्थान न प्राप्त हो।