सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ एवं परिभाषा
शब्द रचना की दृष्टि से अंग्रेजी के 'सर्वे' (Survey) शब्द का हिन्दी रूपान्तर सर्वेक्षण है। सर्वेक्षण से हमारा अभिप्राय किसी घटना को ऊपर से देखना या 'निरीक्षण करना' से होता है। वेबस्टर शब्दकोष में सर्वेक्षण का अर्थ "सही सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गये आलोचनात्मक निरीक्षण अथवा विशेष दशाओं में किसी एक क्षेत्र का अध्ययन करना बताया गया है।"
(1) श्रीमती पी. वी. यंग (Smt. P. V. Young) के अनुसार- " सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध- (i) सामाजिक सुधार की किसी क्रियात्मक योजना के निरूपण तथा (ii) निश्चित भौगोलिक सीमाओं में फैले व निश्चित सामाजिक परिणामों तथा सामाजिक महत्व वाली किसी प्रचलित या तात्कालिक व्याधिकीय अवस्था के सुधार से सम्बन्धित है। (iii) उपर्युक्त स्थितियों को मापकर आदर्श स्थितियों से उनकी तुलना की जा सकती है।"
(2) बोगाईस (Bogardus) के अनुसार- "एक सामाजिक सर्वेक्षण विस्तृत रूप में किसी विशेष समुदाय के आवास एवं कार्य की दशाओं के सम्बन्ध में तथ्यों का संकलन करता है।"
(3) फेयरचाइल्ड (Fairchild) Fairchild) के अनुसार- "सर्वेक्षण एक सहकारी प्रयास से है, जिसमें वैज्ञानिक विधि का प्रयोग विशिष्ट भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध तथा कार्यशील तात्कालिक सामाजिक समस्याओं एवं दशाओं के अध्ययन व समाधान के लिए किया जाता है।"
(4) मार्क एब्राहम्स (Mark Abrahams) के अनुसार- "सामाजिक सर्वेक्षण एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक समुदाय की बनावट एवं क्रियाओं के सामाजिक दक्ष के सन्दर्भ में गणनात्मक तथ्य एकत्रित किये जाते हैं।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत किसी स्थान विशेष की विशिष्ट सामाजिक समस्या अथवा घटना के सम्बन्ध में तथ्यों को इस उद्देश्य से एकत्रित किया जाता है कि उस समस्या को सुधारा जा सके। सामाजिक सर्वेक्षण वह वैज्ञानिक विधि है, जिसके अन्तर्गत सामूहिक घटनाओं अथवा सामाजिक क्षेत्र से सम्बन्धित जीवन दशा का विश्लेषण किया जाता है और सामाजिक समस्याओं का निवारण करने का प्रयास किया जाता है। सामाजिक सर्वेक्षण में पूर्णतया क्रमबद्ध रूप में अध्ययन किया जाता है।
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सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति या विशेषताएँ
सामाजिक सर्वेक्षण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र- सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से केवल उन्हीं समस्याओं एवं घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जो केवल एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से सम्बन्धित है। अध्ययनकर्ता उन क्षेत्रों में जाकर उनसे सम्बन्धित तथ्यों का संकलन करता है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र कोई एक गाँव, नगर, कस्बा, वार्ड या समुदाय हो सकता है।
(2) सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं का अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत एक समूह अथवा समुदाय में पायी जाने वाली सामाजिक घटनाओं, जीवन दशाओं, लोगों की समस्याओं आदि का अध्ययन किया जाता है। सामाजिक घटनाओं के अध्ययन द्वारा सामाजिक जीवन को समझा जा सकता है। इसी के माध्यम से हम सामाजिक घटनाओं की प्रकृति को जान सकते हैं।
(3) वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग- सामाजिक सर्वेक्षण में एक क्षेत्र में रहने वाले लोगों का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से किया जाता है। प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची आदि विधियों का प्रयोग करके अध्ययनकर्ता वैज्ञानिक तथ्यों का संकलन करता है। घटनाओं के बारे में कार्य कारण सम्बन्धों (Casual-Relations) को ज्ञात किया जाता है। निष्कर्षों के आधार पर सामान्यीकरण किया जाता है।
(4) समस्याओं का अध्ययन एवं उपचार- सामाजिक सर्वेक्षण में केवल सामाजिक समस्याओं का अध्ययन ही नहीं किया जाता है, वरन् उनके कारणों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इन्हीं के आधार पर सुधार योजनाएँ बनायी जाती हैं। सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्षों का प्रयोग सामाजिक समस्याओं के निवारण, सुधार एवं प्रगति के लिए किया जाता है।
(5) सहकारी प्रक्रिया- कुछ वैज्ञानिकों ने सामाजिक सर्वेक्षण को एक सहकारी प्रक्रिया माना है। ऐसा देखा जाता है कि सीमित समस्या का अध्ययन तो अकेला व्यक्ति कर सकता है पर बड़े पैमाने पर समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए एक अध्ययन दल बनाना होता है। इसमें विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ मिलकर सामूहिक रूप से समस्या का अध्ययन करते हैं। इसीलिए सामाजिक सर्वेक्षण को सहकारी प्रक्रिया माना गया है।
(6) परिमाणात्मक पक्ष- सामाजिक सर्वेक्षणों द्वारा संकलित किये तथ्यों को परिमाणात्मक रूप में प्रकट किया जाता है। वर्तमान समय में सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग अधिक प्रचलन में है। सामाजिक सर्वेक्षण को परिमाणात्मक तथ्यों से सम्बन्धित माना गया है।
(7) तुलनात्मक अध्ययन- वर्तमान समय में सामाजिक सर्वेक्षण तुलनात्मक अध्ययन पर बल देता है। तुलनात्मक अध्ययन का उद्देश्य किसी विशेष मनोवृत्ति, विचार अथवा समस्या की प्रकृति को दूसरे तथ्यों की तुलना में ज्ञात करना होता है। तुलनात्मक प्रकार से किये जाने वाले सामाजिक सर्वेक्षण को उपयोगी माना जाता है।
सामाजिक सर्वेक्षण के गुण एवं दोष
सामाजिक सर्वेक्षण के गुण
वर्तमान समय में सामाजिक सर्वेक्षण विधि सामाजिक अनुसंधान की एक प्रमुख विधि मानी जाती है। इसके गुण निम्नलिखित हैं-
(1) समस्या का अनुभवात्मक अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से अध्ययन करते समय अनुसंधानकर्ता समस्या के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आता है। इसका एक कारण स्पष्ट है कि वह क्षेत्र में जाकर अध्ययन करता है। सर्वेक्षण कार्य के अन्तर्गत व्यक्ति को समस्या के बारे में व्यक्तिगत सम्पर्क के माध्यम से प्राथमिक तथ्यों का संकलन करना होता है। सर्वेक्षण के माध्यम से ही अध्ययनकर्ता को सभी परिस्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हो सकता है और प्राप्त निष्कर्ष भी अधिक विश्वसनीय होते हैं।
(2) वैषयिक अध्ययन- सर्वेक्षण में व्यक्तिग पक्षपात की सम्भावना समाप्त हो जाती है और अध्ययन समस्या के बारे में वैषयिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में संकलित तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। वैषयिकता की प्राप्ति के लिए सर्वेक्षण विधि एक उत्तम विधि है।
(3) प्रामाणिक एवं विश्वसनीय निष्कर्ष- इस विधि में समस्याओं से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन अध्ययनकर्ता स्वयं ही क्षेत्र में जाकर करता है। इसी कारण प्राप्त तथ्य विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होते हैं। अनुसंधानकर्ता आँकड़ों को स्वयं एकत्र करता है। इसलिए वे प्रामाणिक होते हैं।
(4) प्राक्कल्पना के निर्माण में सहायक- सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर नवीन प्राक्कल्पनाओं का निर्माण किया जाता है एवं स्थापित प्राक्कल्पनाओं का पुनर्परीक्षण किया जाता है। वैध प्राक्कल्पनाओं के आधार ही नये अनुसंधानों को आरम्भ किया जाता है।
(5) समस्याओं का समाधान एवं सामाजिक पुनर्निर्माण- सामाजिक सर्वेक्षण के साध्यम से हमें एक विशेष समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्रदान करते हैं जिसकी सहायता से सामाजिक समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है। वर्तमान समय में परिवर्तन की तेज गति के कारण सामाजिक दशाएँ बदल रही हैं। सर्वेक्षण के बिना परिवर्तन के कारणों का पता नहीं लगाया जा सकता है।
(6) व्यावहारिक उपयोगिता- सामाजिक सर्वेक्षण विधि का उपयोग अनेक समस्याओं के व्यावहारिक समाधान निकालने के लिए भी किया जाता है। श्रमिकों की समस्याओं का हल ढूँढ़ने वे उनका व्यावहारिक हल प्रस्तुत करने के लिए भी सर्वेक्षणों का आयोजन किया जाता है।
(7) विज्ञान की उन्नति में सहायक- सर्वेक्षण के माध्यम से अनुसंधान की विधियों को और अधिक उपयोगी व विश्वसनीय बनाया जाता है। सर्वेक्षण के द्वारा खोजपूर्ण निष्कर्षों के आधार पर विभिन्न अध्ययन विधियों में सुधार परिवर्तन तथा परिमार्जन किया जाता है, जिससे वह अधिक उपयोगी व वैज्ञानिक बन सकें।
(8) वैज्ञानिक परिशुद्धता- सामाजिक सर्वेक्षण में वैज्ञानिक नियमों, यन्त्रों तथा विधियों का प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त निष्कर्षों में वैज्ञानिक परिशुद्धता पायी जाती है। वर्तमान में सर्वेक्षण में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है।
(9) सामाजिक परिवर्तन एवं समस्याओं का अध्ययन- समाज एक गतिशील अवधारणा है। समाज में होने वाले सभी परिवर्तनों की प्रकृति एवं कारणों की जानकारी हमें सामाजिक सर्वेक्षणों के द्वारा ही प्राप्त होती है। बेकारी, निर्धनता, अपराध, अशिक्षा, अनुशासनहीनता आदि के विषय में जानकारी के लिए सर्वेक्षणों का आयोजन किया जाता है।
(10) मनोवैज्ञानिक तथ्यों का अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा लोगों के मानसिक पक्षों, मूल्यों या दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है, जो कि प्रयोगशाला प्रद्धति के द्वारा सम्भव नहीं है। इसके साथ ही व्यक्ति के विचारों, मनोवृत्तियों आदि का भी अध्ययन किया जाता है।
सामाजिक सर्वेक्षण के दोष या सीमाएँ
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) सीमित क्षेत्र- सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा व्यापक और बहुपक्षीय आधार पर सामाजिक घटनाओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। कुछ घटनाएँ इस प्रकार की होती हैं, जिनका सर्वेक्षण के माध्यम से अध्ययन नहीं हो सकता है।
(2) अमूर्त घटनाओं के अध्ययन में कठिनाई- इसके आधार पर घटनाओं का ही अध्ययन किया जा सकता है, जो मूल तथा स्थूल प्रकृति की हों। सामाजिक घटनाएँ अमूर्त एवं जटिल होती हैं। उनका अध्ययन करना कठिन होता है।
(3) अधिक समय व धन की आवश्यकता- सर्वेक्षण विधि समय व धन की दृष्टि से एक खर्चीली प्रणाली है। सर्वेक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया में बहुत समय लगता है। कुछ सर्वेक्षण कार्य तो वर्षों तक चलते ही रहते हैं। कभी-कभी धन की कमी के कारण भी सर्वेक्षण कार्य बीच में छोड़ देना पड़ता है।
(4) विश्वसनीयता सन्देहपूर्ण- सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा एकत्रित तथ्य सदैव ही विश्वसनीय नहीं होते हैं। अनुसंधानकर्ता घटनाओं को अपने विचारों से प्रभावित होकर देखता है। परिणामतः एकत्रित तथ्य विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं।
(5) प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का अभाव- सर्वेक्षण कार्य तभी सफल होता है जब सभी कार्यकर्ता प्रशिक्षित हों। धन के अभाव तथा अध्ययन की शीघ्रता के कारण कार्यकर्ताओं को उचित प्रकार से प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है।
(6) सिद्धान्तों के निर्माण में अपर्याप्तता- अधिकांशतः सर्वेक्षणों से सम्बन्धित अध्ययन योजनाबद्ध नहीं होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इसके आधार पर दिये गये निष्कर्षों से सिद्धान्तों का निर्माण नहीं हो सकता है।
(7) तात्कालिक समस्याओं के अध्ययन तक सीमित- सामाजिक सर्वेक्षण का प्रयोग तात्कालिक सामाजिक समस्याओं के अध्ययन के लिए ही किया जाता है। एक स्थान व समय पर किये गये सर्वेक्षण अन्य स्थान व समय के लिए उपयोगी नहीं होते हैं।
(8) गहन अध्ययन असम्भव- सर्वेक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का गहन अध्ययन सम्भव नहीं है। क्योंकि इसमें सही प्रकार से उत्तर प्राप्त नहीं होते हैं। सर्वेक्षण के द्वारा विषय के बारे में केवल सही सूचनाएँ ही संकलित की जा सकती हैं।
(9) अभिमति की सम्भावना- सर्वेक्षण कार्य एक जटिल प्रक्रिया है। निदर्शन का चुनाव करने, प्रश्नावली का निर्माण करने, साक्षात्कार लेने आदि में अध्ययनकर्ता के स्वयं के पूर्वाग्रहों के कारण पक्षपात आने की सम्भावना रहती है।
निष्कर्ष (Conclusion)- सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा विभिन्न सामाजिक समस्याओं की प्रकृति, सामाजिक परिवर्तन, समूहों, संस्थाओं एवं समितियों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस ज्ञान के आधार पर सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जाता है। साथ ही सामाजिक सर्वेक्षण की कुछ सीमाएँ भी हैं, लेकिन इन विभिन्न सीमाओं के होते हुए भी आज सामाजिक सर्वेक्षण का सामाजिक जीवन में प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।
अतः स्पष्ट है कि सामाजिक सर्वेक्षणकर्ता का कार्य केवल क्षेत्र जाकर तथ्यों का संकलन करना ही नहीं होता, वरन् सामाजिक घटनाओं की प्रकृति के द्वारा तथ्यों का संकलन करना भी होता है।