सामाजिक घटना का अर्थ
विज्ञान घटनाओं का अध्ययन है। घटनाओं की प्रकृति वैज्ञानिक अध्ययन के आधारों को प्रभावित करती है। घटनाएँ दो प्रकार की होती हैं- प्राकृतिक घटनाएँ और सामाजिक घटनाएँ। इन दोनों प्रकार की घटनाओं की प्रकृति एक समान नहीं है। प्राकृतिक घटनाओं में नियमितता, निश्चितता, अमूर्तता, समानता, वस्तुनिष्ठता आदि के गुण पाये जाते हैं। सामजिक सम्बन्ध व घटनाएँ जटिलता, विविधता, परिवर्तनशीलता, व्यक्तिनिष्ठता लिए हुए होती हैं। इसलिए ही कह दिया जाता है कि सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव है या नहीं यह जानने के लिए सामाजिक घटनाओं का प्रकृति के बारे में जानना आवश्यक है।
सामाजिक घटनाओं की प्रकृति व समाज विज्ञान
यद्यपि यह सच है कि सामाजिक घटनाओं में जटिलता, विविधता, व्यक्तिनिष्ठता आदि विशेषताएँ पायी जाती हैं। समाजशास्त्र एक प्रगतिशील विज्ञान है और अपनी प्रगति के साथ-साथ कमियों को दूर करना उसके लिए सरल होता जा रहा है। इसी कारण सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव होता जा रहा है।
यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुसंधान का अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, क्षेत्र एवं उपयोगिता
सामाजिक घटनाओं की प्रकृति की विशेषताएँ एवं उनका वैज्ञानिक अध्ययन
सामाजिक घटनाओं की प्रकृति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) सामाजिक घटनाओं की जटिलता- सामाजिक सम्बन्ध व घटनाएँ जटिल हैं। प्रत्येक मानव-व्यवहार या सम्बन्ध अनेक प्रकार के भौतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक आदि कारकों द्वारा निर्धारित एवं प्रभावित होता है परन्तु इन जटिलताओं के बीच भी सत्य का अन्वेषण सम्भव है। श्री लुण्डबर्ग ने लिखा है कि यह सच है कि सामाजिक घटनाएँ जटिल हैं। यदि हम ध्यान से देखें तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक मनुष्य व समूह के व्यवहार में भी नियमितता, व्यवस्थता, क्रमबद्धता और समरूपता का नितान्त अभाव नहीं है। इसलिए एक निश्चित अव्यवस्था के अन्तर्गत उसका व्यवहार किस प्रकार का होगा ? इसका वैज्ञानिक अध्ययन करना और उसके सम्बन्ध में बहुत कुछ निश्चित भविष्यवाणी करना हमारे लिए सम्भव है।
सामाजिक घटनाएँ या समाजिक समूहों का व्यवहार अव्यवस्थित, जटिल तथा अर्थहीन केवल उनके लिए है, जो सामाजिक घटनाओं का अवलोकन केवल ऊपरी तौर पर करते हैं। जितना अधिक हम उसका अध्ययन करते हैं और उसकी गहराई तक पहुँचने का प्रयास करते हैं, उतना ही वह व्यवस्थित, नियमित तथा भविष्यवाणी करने योग्य बन जाता है।
श्री लुण्डबर्ग (Lunderg) ने यह भी लिखा है कि अधिकाधिक गहन अध्ययन से सामाजिक व्यवहार की निराशाजनक जटिलता व अव्यवस्था अपने आप ही समाप्त हो जाती है। उन्होंने यह भी कहा है कि मानव समाज की जटिलता अधिकांशतः उसके सम्बन्ध में हमारी अज्ञानता का ही परिणाम है। यही बात सामाजिक घटनाओं की जटिलता के सम्बन्ध में कही जा सकती है। सामाजिक घटनाएँ या सामाजिक समूहों का व्यवहार अव्यवस्थित, जटिल तथा अर्थहीन उनके लिए विशेषकर है, जो घटनाओं का अवलोकन, केवल ऊपरी तौर पर करते हैं। प्रयास करने से सामाजिक घटनाओं के बारे में भी यथार्थ निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं।
यह भी पढ़ें-वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएँ
(2) सामाजिक घटनाओं की व्यक्तिनिष्ठता व अमूर्तता- भौतिक और सामाजिक घटनाओं के मध्य जो अन्तर पाया जाता है वह यह है कि भौतिक घटनाओं का अवलोकन हम प्रत्यक्ष रूप से अपनी इन्द्रियों के द्वारा कर सकते हैं जबकि सामाजिक घटनाओं का इस प्रकार प्रत्यक्ष निरीक्षण सम्भव नहीं है। मानवीय भावनाएँ, विचार, आदर्श, मूल्य आदि व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) व अमूर्त हैं। इस कारण उन्हें शब्दों के माध्यम से केवल प्रतीकात्मक (Symbolically) रूप से ही समझा जा सकता है। इस अमूर्तता का परिणाम यह होता है कि सामाजिक घटनाओं का कोई निश्चित वस्तुनिष्ठ (Objective) स्वरूप प्रकट नहीं होता है जिसके कारण सामाजिक घटनाओं का दर्शन लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं परिणामस्वरूप वस्तुनिष्ठता नहीं आने पाती है।
(3) सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती- सामाजिक घटनाओं की जटिलता, गतिशीलता, परिवर्तनशीलता, अमूर्तता, गुणात्मकता आदि विशेषताओं के कारण भविष्यवाणी करना सम्भव नहीं हो पाता है। सामाजिक घटनाएँ अति जटिल होती हैं। मानवीय व्यवहार पर उसके वास्तविक प्रभाव को जानना कठिन होता है। इस प्रकार ये विभिन्न तथ्यों के बीच में सन्तुलन कर सामाजिक घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी करना कठिन कार्य है। परन्तु वास्तविकता यह भी है कि भविष्यवाणी करने की शक्ति विज्ञान की अध्ययन वस्तु की प्रकृति पर नहीं, वरन् इस बात पर निर्भर करती है कि वह विज्ञान घटनाओं का अध्ययन करने के लिए कितनी प्रविधियों को विकसित करने में सफल हो पाता है। वर्तमान में इस प्रकार के प्रयास किये जा रहे हैं कि सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी करना सम्भव हो सके।
(4) सामाजिक घटनाओं में सार्वभौमिकता का अभाव- वैज्ञानिक अध्ययन के दृष्टिकोण से सामाजिक घटनाओं की एक कमी है कि उनमें सार्वभौमिकता का अभाव है पर यह कहना भी गलत है कि सामाजिक घटनाओं से सम्बन्धित नियम सार्वभौमिक नहीं हो सकते हैं। वैज्ञानिक नियम का अभिप्राय यह नहीं है कि वह सभी अवस्थाओं में और सभी स्थानों में समान रूप से लागू होगा ही। इस प्रकार सार्वभौम व अन्तिम (absolute) वैज्ञानिक नियम की कल्पना शायद ही की जा सकती है। वैज्ञानिक नियम सदैव कुछ निर्दिष्ट अवस्थाओं में (Under Certain Given Condition) ही लागू होता है। ऐसा माना जाता है कि सार्वभौमिकता केवल भौतिक विज्ञानों की ही विशेषता है। परन्तु यदि उचित प्रयास किया जाये तो सामाजिक घटनाओं के आधार पर भी सार्वभौमिक नियमों का प्रतिपादन किया जा सकता है।
(5) सामाजिक घटनाओं की गतिशील प्रगति- सामाजिक घटनाओं की एक विशेषता यह भी है कि यह परिवर्तनशील होती है। सामाजिक घटनाओं की इस अस्थिरता के कारण ही इनके विषय में निरीक्षण-परीक्षण करना या निकालना यदि असम्भव नहीं, तो कठिन अवश्य ही है। यदि हम गहनता से अध्ययन करें तो स्पष्ट है कि परिवर्तनशीलता का गुण तो भौतिक और प्राकृतिक घटनाओं में भी देखने को मिलता है। परिवर्तनशीलता का अभिप्राय यह नहीं है कि सामाजिक घटनाएँ सदैव ही अव्यवस्थित और अनियमित रूप से घटित होती हैं। थोड़ा-सा सतर्क निरीक्षण करने पर यह स्पष्ट होता है कि परिवर्तनशीलता के बीच भी सामाजिक घटनाओं में निश्चिता, क्रमबद्धता व नियमितता होती है, जिसके कारण इनका वैज्ञानिक अध्ययन ठीक उसी प्रकार से सम्भव है, जिस प्रकार से भौतिक या प्राकृतिक घटनाओं का। इसके साथ ही परिवर्तनशीलता का गुण तो भौतिक और प्राकृतिक घटनाओं में भी देखने को मिलता है।
(6) सामाजिक घटनाओं की गुणात्मकता- भौतिक घटनाएँ परिमाणात्मक (Quantitative) होती हैं जबकि सामाजिक घटनाएँ गुणात्मक (Qualitative) होती हैं। घटनाओं की गुणात्मकता वैज्ञानिक अध्ययन के पथ पर एक बाधा बन जाती है। भौतिक घटनाओं की तरह सामाजिक घटनाओं को परिमाणात्मक रूप से नापा नहीं जा सकता। घटनाओं की गणनात्मक अभिव्यक्ति प्रयोगसिद्ध (Empirical) अध्ययन के लिए आवश्यक है। समाजशास्त्री को मूल्य, आदर्श, परम्परा, विचार आदि गुणात्मक विषयों का अध्ययन करना पड़ता है और उनका परिमाणात्मक माप सम्भव नहीं होता है। गुणात्मक घटनाओं की एक कमी यह है कि उसे प्रत्येक व्यक्ति अपने निजी दृष्टिकोण से देखता है परिणामस्वरूप वास्तविकता का पता लगाना कठिन होता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव ही नहीं है। अनुसंधान की प्रविधियाँ यदि उत्तम हैं तो सभी सामाजिक घटनाओं का गणनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करना हमारे लिए सम्भव हो जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)- सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों को लागू करना एक समस्या अवश्य है परन्तु ऐसा करना असम्भव नहीं है।