सामाजिक अनुसंधान का अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, क्षेत्र एवं उपयोगिता

सामाजिक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषा

अनुसंधान का तात्पर्य बार-बार खोजने से है। किसी भी घटना का उद्देश्यपूर्ण ढंग से देखना अथवा उपलब्ध तथ्यों के आधार पर घटना को समझना तथा उन तथ्यों के अर्थ को जानकर घटना के पीछे छिपे कारणों को समझना ही अनुसंधान कहलाता है।

दी न्यू सेन्चुरी डिक्शनरी (The New Century Dectionary) के अनुसार, "किसी वस्तु या व्यक्ति के सम्बन्ध में सावधानीपूर्वक खोज करना एवं तथ्यों या सिद्धान्तों का पता लगाने के लिए विषय-सामग्री की लगातार सावधानीपूर्वक जाँच-पड़ताल करना ही अनुसंधान है।" स्पष्ट है कि अनुसंधान घटनाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करने और उन घटनाओं के मूल तक पहुँचने एवं कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाने का एक व्यवस्थिति वैज्ञानिक तरीका है।

'अनुसंधान' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Research' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह शब्द Re + Search दो शब्दों से मिलकर बना है। 'Re' शब्द का अर्थ है पुनः एवं 'Search' शब्द का अर्थ है- खोज करना। शाब्दिक अर्थ के अनुसार, हम कह सकते हैं कि अनुसंधान का अर्थ पुनः खोज करना है।

सामाजिक अनुसंधान का अर्थ है, किसी सामाजिक समस्या के सुलझाने या किसी प्राक्कल्पना की परीक्षा करने, नवीन घटनाओं को खोजने या घटनाओं के बीच नवीन सम्बन्धों को ढूँढ़ने के उद्देश्य से किसी यथार्थ विधि का उपयोग है। । इस प्रकार से यह भी कहा जा सकता है सामाजिक घटनाओं या विद्यमान सिद्धान्तों के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयोग में लायी गयी वैज्ञानिक विधि ही सामाजिक अनुसंधान है।

(1) श्रीमती पी. वी. यंग (P. V. Young) के अनुसार- "सामाजिक शोध एक वैज्ञानिक योजना है, जिनका कि उद्देश्य तार्किक तथा क्रमबद्ध पद्धतियों के द्वारा नवीन तथ्यों का अन्वेषण अथवा पुराने तथ्यों की पुनः परीक्षा एवं उनमें पाये जाने वाले अनुक्रमों, अन्तः सम्बन्धों, कारण सहित व्याख्याओं तथा उनको संचालित करने वाले स्वाभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।"

(2) सी. ए. मोजर (C. A. Moser) के अनुसार- "सामाजिक घटनाओं व समस्याओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिये किये गये व्यवस्थित अनुसंधान को हम सामाजिक शोध कहते हैं।"

(3) ई. एस. बोगाईस (E. S. Bogardus) के अनुसार- "एक साथ रहने वाले लोगों के जीवन में क्रियाशील अन्तर्निहित प्रक्रियाओं का अनुसंधान ही सामाजिक शोध है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि सामाजिक अनुसंधान वास्तव में सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों के विषय में अध्ययन करने की एक वैज्ञानिक योजना है। यह तार्किक एवं क्रमबद्ध पद्धतियों पर निर्भर है। इन्हीं पद्धतियों के द्वारा यह सामाजिक जीवन व घटनाओं के विषय में अन्वेषण करता है, पुराने सिद्धान्तों की पुनः परीक्षा करता है तथा नये सिद्धान्तों का निर्माण करता है। सामाजिक अनुसंधान खोज की ऐसी विधि है, जिसमें सामाजिक परिस्थिति के सन्दर्भ में किसी घटना या व्यवहार, सामाजिक जीवन अथवा समस्या के सम्बन्ध में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही इसमें निरीक्षण परीक्षण, तथ्यों के संकलन, वर्गीकरण द्वारा सामाजिक घटनाओं को समझने का प्रयास किया जाता है।

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सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति एवं विशेषताएँ

सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति को निम्नलिखित आधारों पर ज्ञात करते हैं-

(1) सामाजिक अनुसंधान एक व्यापक अध्ययन क्षेत्र- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। इसके साथ ही जो नियम या सिद्धान्त पुराने हैं, उनकी पुनः परीक्षा एवं सत्यापन किया जाता है। सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, क्योंकि सामाजिक घटनाओं में तेजी से परिवर्तन होते हैं।

(2) सामाजिक अध्ययन एक वैज्ञानिक प्रयास- सामाजिक अनुसंधान अपने अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करता है।

ये पद्धतियाँ प्रयोगसिद्ध व तर्कपूर्ण सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं। सामाजिक अनुसंधान अनुमान एवं कल्पना पर आधारित नहीं होता है। इसमें वस्तुनिष्ठता, प्रामाणिकता, विश्वसनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(3) सामाजिक अनुसंधान सामाजिक जीवन से सम्बन्धित- सामाजिक अनुसंधान मनुष्य के व्यवहार, सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। ये सभी पहलू व्यक्ति के, जीवन से सम्बन्ध रखते हैं। इनका गहन अध्ययन अनुसंधान की अपनी एक विशिष्ट विशेषता है।

(4) सामाजिक अनुसंधान अनुसंधान पद्धतियों की खोज- सामाजिक अनुसंधान की एक विशेषता यह भी है कि यह तथ्यों की खोज के साथ-साथ नयी अध्ययन पद्धतियों की भी खोज करता है। सामाजिक अनुसंधान नयी पद्धतियों की खोज के साथ-साथ उनका विकास भी करता है।

(5) सामाजिक अनुसंधान इसकी विशुद्ध तथा व्यावहारिक प्रकृति- सामाजिक अनुसंधान सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार के उद्देश्यों के सम्बन्ध में अध्ययन करता है। सामाजिक अनुसंधान की एक विशेषता यह भी है कि यह अनुसंधान के विभिन्न उपकरणों, यन्त्रों तथा प्रणालियों आदि को विकसित करता है। सामाजिक अनुसंधान सिद्धान्तों की खोज के साथ-साथ व्यावहारिक समस्याओं के समाधान के उपाय भी ढूँढ़ता है।

(6) सामाजिक अनुसंधान सामाजिक घटनाओं पर नियन्त्रण- सामाजिक अनुसंधान सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन करता है। अध्ययन के आधार पर जो निष्कर्ष निकलते हैं, उन्हीं की सहायता से सामाजिक घटनाओं पर नियन्त्रण कर सामाजिक समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

(7) सामाजिक अनुसंधान तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों की खोज करना- सामाजिक तथ्यों के सम्बन्ध में कार्य-कारण सम्बन्धों की खोज करना भी सामाजिक अनुसंधान की अपनी एक विशेषता है। कार्य-कारण सम्बन्धों पर ही अनेक सामाजिक नियम एवं सिद्धान्त आधारित हैं। सामाजिक तथ्यों की खोज करना और कार्य कारण सम्बन्धों की खोज करना एक महत्वपूर्ण विशेषता है।

सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र

सामाजिक अनुसंधान का अध्ययन क्षेत्र सम्पूर्ण सामाजिक जीवन और उससे सम्बद्ध सामाजिक प्रक्रियाओं (Social Processes) व नियमों तक विस्तृत है। सामाजिक अनुसंधान अपने अनुसंधान के विषय के रूप में सामाजिक जीवन की किसी भी सामान्य घटना को चुन सकता है। सामाजिक अनुसंधान नये तथ्यों के अनुसंधान के साथ ही पुराने तथ्यों की पुनः परीक्षा भी करता है।

इसके साथ ही सामाजिक समस्याओं की प्रकृति व कारणों का अनुसंधान भी सामाजिक शोध अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। सामाजिक अनुसंधान सामाजिक समस्याओं को अपने अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत इस उद्देश्य से शामिल नहीं करता है है कि कि उनके उपचारों या सुधार के लिए वह उपायों को सुझायेगा या सामाजिक समस्याओं को हल करने की व्यावहारिक योजना प्रस्तुत करेगा। सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य तो सामाजिक समस्याओं के कार्य कारण सम्बन्धों को ढूँढ़ निकालना है।

श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार, "सामाजिक शोध व्याधिकीय समस्याओं से केवल वहीं तक सम्बद्ध है जहाँ तक वे आधारभूत सामाजिक प्रक्रियाओं, मानव-व्यवहार तथा व्यक्तित्व के विकास अथवा विघटन पर प्रकाश डालते हैं।" इसके अतिरिक्त सामाजिक अनुसंधान में क्रायोगिक प्रकृति (Experimental nature) के अनुसंधान भी किये जाते हैं। वर्तमान समय में यह माना जाता है कि भौतिक विज्ञानों की तरह सामाजिक विज्ञानों में भी प्रयोगात्मक अनुसंधान सम्भव है। समाज व सामाजिक जीवन एवं घटनाओं के सम्बन्ध में यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना भी सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में आता है।

सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र के सम्बन्ध में अमेरिकन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी (American Sociological Society) ने स्पष्ट तौर पर लिखा है कि निम्नलिखित अध्ययन विषयों को सामाजिक अनुसंधान के अध्ययन विषय के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए। ये विषय निम्नलिखित हैं-

  • मानव-प्रकृति तथा व्यवहार का अध्ययन।
  • जन-समूह तथा सांस्कृतिक समूह का अध्ययन ।
  • परिवार की प्रकृति, संगठन व विघटन का अध्ययन।
  • जनसंख्या तथा प्रादेशिक समूहों का अध्ययन।
  • ग्रामीण समुदाय का अध्ययन।
  • सामूहिक व्यवहारों का अध्ययन।
  • सामाजिक समस्याओं, सामाजिक व्याधिकी (Social Pathology) तथा सामाजिक अनुकूलन (Social Adjustment) का अध्ययन ।
  • सिद्धान्त तथा पद्धतियों में नवीन सामाजिक नियमों की खोज आदि।

सामाजिक अनुसंधान की उपयोगिता

एक व्यवस्थित वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में संसार ने सामाजिक अनुसंधान के महत्व को स्वीकार किया है। इतना ही नहीं, मानवीय क्रियाओं के विभिन्न क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता निर्विवाद रूप से सिद्ध होती है। सामाजिक अनुसंधान की उपयोगिता निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) सामाजिक समस्याओं का निष्पक्ष विश्लेषण- सामाजिक अनुसंधान ने विभिन्न महत्वपूर्ण सामाजिक समस्यओं का निष्पक्ष विश्लेषण (Dispassionate analysis) प्रस्तुत किया है। जैसे- प्रजाति सम्बन्धों के अध्ययन के द्वारा श्वेत प्रजाति की उच्चता की मान्यता को निर्मूल सिद्ध कर दिया है। इस प्रकार सामाजिक अनुसंधानकर्ता सत्य चीज का अन्वेषण कर गलत धारणाओं को समाप्त करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

(2) विश्वसनीय ज्ञान की प्राप्ति- सामाजिक अनुसंधान ने घृणित एवं अस्पष्ट विवादों को समाप्त कर स्पष्ट, सही एवं विश्वसनीय ज्ञान प्रस्तुत करने का कार्य किया है। सामाजिक अनुसंधान के द्वारा किये गये अध्ययन से विवाद समाप्त होकर सत्य एवं विश्वसनीय चीज स्पष्ट हो जाती है। उदाहरण के लिए कितने व्यक्ति प्रति वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्र में प्रवास करते है। विभिन्न वर्ग के लोगों के जीवन का स्तर क्या है। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर साधारणतया विवादग्रस्त होते हैं। लेकिन यदि इन आर्थिक विषयों पर अनुसंधान द्वारा निष्कर्ष प्राप्त किया जाये तो उनमें विवाद समाप्त होकर सही वस्तुस्थिति का ज्ञान हो जायेगा। इस प्रकार से प्राप्त किया गया ज्ञान अधिक विश्वसनीय होता है।

(3) समाज का वैज्ञानिक अध्ययन- सामाजिक अनुसंधान की उपयोगिता इससे भी अत्यधिक बढ़ जाती है कि यह समाज के विश्लेषण में नवीन एवं शुद्ध दृष्टिकोण को लेकर चलता है। समाज के बारे में सामाजिक अनुसंधानकर्ता किसी भी प्रकार की पूर्व धारणा नहीं बनाता। समाज के बारे में किसी भी प्रकार का निर्णय करने से पहले उसको तथ्यों के द्वारा पुष्टि कर लेना आवश्यक समझता है। तथ्यों के द्वारा पुष्टि किये बिना वह किसी भी निर्णय या सत्यता सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता। इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान के द्वारा समाज के अध्ययन को अत्याधिक वैज्ञानिक बना दिया गया है।

(4) भविष्यवाणी करने में सहायक- सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान की इस रूप में विशेष उपयोगिता है कि इसके आधार पर वर्तमान को समझकर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है, भविष्य की सामाजिक घटनाओं के बारे में बताया जा सकता है। जब अनुसंधान द्वारा भविष्य में उत्पन्न होने वाली दशाओं का पता लगा लिया जाता है, तो उनके साथ सफलतापूर्वक समायोजन और सामाजिक जीवन में सन्तुलन स्थापित किया जा सकता है।

(5) नवीन ज्ञान प्रदान करने में सहायक- सामाजिक अनुसंधान का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है कि मानव उन्नति का आधार समझा जाता है। अनुसंधान के द्वारा नवीन ज्ञान एवं विचारों की उत्पत्ति होती है जिसके आधार पर ही मानव की प्रगति निर्भर है। अनुसंधान मानव मस्तिष्क का, अन्य मानसिक गुणों की अपेक्षा सर्वाधिक निर्माणात्मक पक्ष है जिसने मनुष्य को सर्वाधिक विकसित प्राणी बनाने में योग दिया है। इसी अनुसंधान की वैज्ञानिक भावना ने मानव को भूत के अन्धकार में से निकालकर वर्तमान का प्रकाश उपलब्ध कराया है और भविष्य में भी यह वर्तमान से अधिक व्यवस्था प्राप्त करने में मानव की सहायता करता रहेगा।

(6) अज्ञानता को दूर करने में सहायक- सामाजिक अनुसंधान के द्वारा प्राप्त नवीन ज्ञान से अज्ञानता को मिटाकर कई वर्तमान समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। आज जिन अधिकांश समस्याओं का हमें सामना करना पड़ता है, उसका कारण अज्ञानता है। अज्ञानता की स्थिति में सदा से ही मानव के सामने समस्याएँ भीषण रूप धारण करती आ रही हैं। इनसे तभी छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है जब सामाजिक अनुसंधान के द्वारा अज्ञानता को दूर किया जाये।

(7) अन्धविश्वासों को समाप्त करने में सहायता देता है- सामाजिक अनुसंधान ने अपने अन्वेषणों के द्वारा संसार में रूढ़िवदिता के प्रभाव को विनष्ट कर दिया है। उन्होंने अपने अन्वेषणों के द्वारा सिद्ध कर दिया है कि रूढ़िवादिता गलत एवं असत्य आधार पर टिका हुआ है, उसमें कुछ भी सत्यता का ठोस आधार नहीं है। इसी का परिणाम यह है कि आज मनुष्य अधिक से अधिक बौद्धिक प्राणी बन रहा है। परिणामस्वरूप आज मानव की योग्यता का सही आंकलन अथवा मूल्यांकन प्रारम्भ हुआ है एवं मानव अधिकाधिक प्रगति करने में समर्थ हो रहा है। सामाजिक अनुसंधान में कोई भी चीज तथ्यों के आधार पर स्वीकार की जाती है। अन्धविश्वास तथ्यों पर आधारित नहीं होने के कारण मान्य नहीं हैं।

(8) सैद्धान्तिक महत्व- सामाजिक अनुसंधान वास्तव में समाज विज्ञानों का आधार है। आज विभिन्न विज्ञानों के लिए अधिकाधिक प्रामाणिम सामग्री सामाजिक अनुसंधान के द्वारा प्राप्त होती है। अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान समाज एवं सामाजिक जीवन के सम्बन्ध में हमारी जानकारी में उत्तरोत्तर वृद्धि करता है जिससे सामाजिक क्रियाओं को समझने में सहायता मिलती है। साथ ही इससे नवीन ज्ञान की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं।

अतः इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक अनुसंधान सैद्धान्तिक ज्ञान में वृद्धि करने के साथ-साथ मानवीय समस्याओं के हल खोजने में भी अत्यन्त सहायक है।

निष्कर्ष (Conclusion)- उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि सामाजिक अनुसंधान का विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसके अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करना और उनके कारणों का पता लगाना, समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना आदि आते हैं। वास्तविकता तो यह है कि सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र अति व्यापक है। इसकी कोई सीमा रेखा खींचना न तो सम्भव है और न ही व्यावहारिक। सामाजिक अनुसंधान में सहायक होने वाली नई प्रविधियों एवं पद्धतियों का जैसे-जैसे विकास होता जायेगा वैसे-वैसे ही सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में भी विस्तार होता जायेगा।

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