पूँजीवादी व्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता है। व्यक्ति का यह निजी स्वामित्व कानून द्वारा निर्धारित होता है। इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार कर लगा सकती है। इस व्यवस्था में राजे-परिवार की भाँति ही उत्तराधिकार की मान्यता है। पूँजी का स्वामी जिसे भी चाहे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सकता है। फिर, इस पूँजीवादी व्यवस्था में उद्यम की स्वतंत्रता भी होती है। इस व्यवस्था का आधार ही अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का आधार उपभोक्ता है, क्योंकि उत्पादन की मात्रा, गुणवत्ता, खपत, मूल्य और उस उत्पाद पर लाभ-ये सारे तत्व एकमात्र उपभोक्ता द्वारा निर्धारित हैं। पूँजीवाद के विकास के प्रमुख कारण निम्नवत् थे-
(1) सामंतवाद की समाप्ति
सामंतवादी शासन व्यवस्था के पतन के पूर्व ही यूरोपीय देशों के शहर श्रेणी-व्यवस्था (Guild System) में सेंध लगा चुके थे और मुनाफा आधारित व्यवस्था (Putting Out System) को प्रश्रय देने लगे थे। फिर, धीरे-धीरे उन्होंने कच्चे माल और श्रम-साधनों के प्रदाय को भी अपने हाथों में ले लिया और इस प्रकार श्रेणी-सदस्य श्रमिक मात्र बनकर रह गए। अब उद्योग-आधृत व्यवस्था (Factory System) ने पूँजी की महत्ता स्थापित कर दी। वस्तुतः अब उत्पादन के हर क्षेत्र में पूँजी (Capital Factor) सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया था।
(2) भौगोलिक खोजें
भौगोलिक खोजों ने पूँजीवाद के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्वप्रथम तो इसने वाणिज्य-व्यापार को विकसित किया और मौद्रिक अर्थव्यवस्था को स्थापित किया। सुदूर पूर्व के देशों से होने वाले व्यापार में अथाह मुनाफे को देखकर सामान्य शिल्पी भी अपनी सम्पत्ति को पूँजी बनाने में रुचि लेने लगा। इस प्रवृत्ति ने गड़ी हुई और अचल सम्पत्ति की निरर्थकता सिद्ध की और शेयर प्रणाली ने सामान्य से सामान्य आदमी की बचत को पूँजी में रूपांतरित कर दिया।
(3) बैंकों तथा बीमा कम्पनियों की स्थापना
बैंकिंग प्रणाली ने पूँजओवाद के विकास में अग्रणी भूमिका अदा की। बैंकिंग प्रणाली के साथ-ही-साथ यूरोप में बीमा-प्रणाली का भी विकास हुआ। व्यापार-व्यवस्था में जोखिम (Risk) को कम करने के लिए इस प्रणाली का विकास हुआ। बीमा कंपनियों के विकास के बाद यूरोप में लोगों का ध्यान व्यापार की ओर अधिक आकृष्ट हुआ, क्योंकि बीमा के कारण सामुद्रिक मार्ग में या अन्यत्र प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली व्यापारिक हानियों की समस्या अब समाप्त हो गई। बीमा कंपनियों के विकास ने पूँजीवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(4). धातुओं का अधिशेष भण्डारण
अमरीकी व अफ्रीकी खदानों से प्राप्त अथाह सोना-चाँदी ने एक ओर प्रत्यक्ष पूँजी निर्मित की, तो दूसरी ओर इसने अर्थव्यवस्था के मौद्रीकरण की प्रक्रिया को भी तेज किया। अन्य धातुओं-लोहा, कोयला, ताँबा, टिन आदि के भी अपरिमित भंडार यूरोपीय देशों को मिले। इससे मशीनीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई। पूर्व में यूरोपीय देश आयातक थे, परन्तु अब वे सबसे बड़े निर्यातक बन गए। अधिक मात्रा में धातुओं के संग्रह ने सिक्कों के प्रयोग को बढ़ावा दिया। अब वस्तु विनिमय की जगह मुद्रा विनिमय ने ले ली। इसने पूँजी निर्माण की प्रवृत्ति बहुत बढ़ा दी।
(5) तकनीकी विकास
कृषि और उद्योगों से संबंधित नवीनतम उपकरणों के विकास ने पूँजीवाद के उदय में अग्रणी भूमिका निभायी। उन्नत उपकरणों के निर्माण से उत्पादन-प्रक्रिया सरल एवं सुलभ हो गयी। इन उपकरणों से कम समय में अधिक उत्पादन होता था। उन्नत उपकरणों के निर्माण से बाजार में प्रतिस्पर्द्धात्मकता की भावना का विकास हुआ। अब लोग कम-से-कम लागत में अधिक-से-अधिक मुनाफा की बात सोचने लगे। उत्पादन के साधक उपकरणों में निरंतर नवीनता और विशिष्टता के कारण पूँजीवाद विकास की ओर अग्रसर हो सका।
(6) संयुक्त पूँजी कम्पनी
उन्नत उपकरणों के प्रयोग से उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही थी। इस अधिशेष उत्पादन के रखरखाव के लिए विशेष प्रकार के संगठनों की स्थापना हुई। अब राष्ट्रीय और अन्त्रराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करना मध्यकालीन श्रेणियों के वश की बात नहीं थी। जब पुरानी श्रेणी-व्यवस्था कारगर साबित नहीं हुई, तो नवीन व्यावसायिक संगठनों का जन्म हुआ।