प्रश्नावली का अर्थ
सामाजिक अनुसंधान में प्रश्नावली का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। क्योंकि यह विधि प्राथमिक तथ्यों के संकलन के लिए बहुत उपयुक्त है, साथ ही अन्य विधियों की अपेक्षा सरल एवं सस्ती है। वर्तमान में यातायात के साधनों के विकास के कारण प्रश्नावली विधि द्वारा दूर के क्षेत्रों में बसे लोगों का अध्ययन सरल हो गया है। प्रश्नावली विषय अथवा समस्या से सम्बन्धित अनेक प्रश्नों की एक सूची होती है, जिसे अध्ययनकर्ता सूचनादाताओं के पास डाक द्वारा भेजता है और सूचनादाता उसे स्वयं भरकर वापस भेजता है। चूँकि प्रश्नावली सूचनादाता के पास डाक द्वारा भेजी जाती है। अतः इसे डाक द्वारा प्रेषित प्रश्नावली (Mailed questionnaire) भी कहा जाता है।
प्रश्नावली की परिभाषा
(1) बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार- "प्रश्नावली भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को उत्तर देने के लिए दी गयी प्रश्नों की तालिका है। यह निश्चित प्रमापीकृत परिणामों को प्राप्त करती है, जिनका सारणीयन और सांख्यिकीय उपयोग भी किया जा सकता है।"
(2) गुडे एवं हॉट (Goode and Hatte) के अनुसार- "सामान्यतः प्रश्नावली का अर्थ प्रश्नों के उत्तरों को प्राप्त करने के एक साधन से होता है, जिसे सूचनादाता स्वयं भरता है।"
(3) सिन पाओ यंग (Hsin Pso Yang) के अनुसार- "अपने सरलतम रूप में प्रश्नावली प्रश्नों की एक सूची है, जिसे डाक द्वारा उन व्यक्तियों के पास जिन्हें सूची अथवा निदर्शन सर्वेक्षण के आधार पर चुना जाता है, भेजते हैं।"
स्पष्ट है कि प्रश्नावली एक ऐसा प्रपत्र है, जिसके द्वारा सरलता से अनुसंधान कार्य किया जा सकता है। प्रश्नावली किसी भी विषय से सम्बन्धित प्रश्नों की एक सूची होती है, जिसे डाक द्वारा सूचनादाताओं के पास भेजा जाता है, जिसे सूचनादाता स्वयं भरकर अनुसंधानकर्ता के पास पुनः लौटाता है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि प्रश्नावली के माध्यम से दूर-दूर के क्षेत्र से भी सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं।
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प्रश्नावली की विशेषताएँ
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर प्रश्नावली की निम्नलिखित विशेषताएँ निर्धारित की जा सकती हैं-
- प्रश्नावली प्रश्नों की सूची है, जिसे अनुसंधानकर्ता उत्तरदाता के पास डाक द्वारा भेजता है।
- प्रश्नावली को सूचनादाता स्वयं ही भरता है। इस कार्य में वह किसी की भी सहायता नहीं लेता है।
- प्रश्नावली सूचना संकलित करने की एक अप्रत्यक्ष विधि है।
- प्रश्नावली का प्रयोग विशाल क्षेत्र में फैले हुए सूचनादाताओं के लिए किया जाता है।
- प्रश्नावली को डाक द्वारा एक साथ अनेक उत्तरदाताओं के पास भेजा जाता है।
- प्रश्नावली भरते समय उत्तरदाता के समक्ष प्रश्नकर्ता नहीं होता है। इसलिए वह प्रत्येक प्रश्न का उत्तर बिना किसी संकोच के दे देता है।
- प्रश्नावली का प्रयोग केवल शिक्षित सूचनादाताओं के लिए किया जाता है।
प्रश्नावली की उपयोगिता या महत्व
प्रश्नावली अनुसंधान की एक अत्यन्त लाभकारी प्रविधि है। इसकी उपयोगिता या महत्व निम्नलिखित है-
(1) विस्तृत क्षेत्र का अध्ययन- प्रश्नावली प्रविधि द्वारा सरलता से विस्तृत क्षेत्र का अध्ययन किया जाता है। इस प्रविधि में सूचनादाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क की आवश्यकता नहीं होती है। प्रश्नावली आसानी से डाक द्वारा भेजी जा सकती है। अनुसंधानकर्ता को प्रत्येक सूचनादाता के पास जाना नहीं पड़ता है। इसके द्वारा व्यापक सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती हैं।
(2) धन एवं समय की बचत- प्रश्नावली को डाक के द्वारा भेजा जाता है। अतः इसमें डाक टिकट के अलावा कोई खर्च नहीं होता है, साथ ही समय की भी बचत होती है। यदि कोई जानकारी छूट जाती है, तो पुनः डाक द्वारा भेजकर सूचना प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार से समय की भी बचत होती है और यातायात सम्बन्धी व्यय भी नहीं होता है।
(3) निम्नतम श्रम- प्रश्नावली द्वारा अध्ययन करने में अधिक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि एक ही प्रकार की प्रश्नावली को सभी उत्तरदाताओं के पास भेजा जाता है। उसके पश्चात् निष्कर्ष निकालने एवं प्रतिवेदन तैयार करने में भी अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
(4) विश्वसनीय सूचनाएँ- प्रश्नावली के माध्यम से अनुसंधानकर्ता एवं सूचनादाता के मध्य व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं होता है। इस कारण सामने रहने में जो संकोच अनुभव होता है, प्रश्नावली विधि में उससे बचाव हो जाता है परिणामस्वरूप सूचनादाता बिना किसी संकोच के सभी प्रश्नों के उत्तर देता है। प्रश्नावली से प्राप्त सूचनाएँ विश्वसनीय होती हैं।
(5) वैषयिक सूचनाएँ- व्यक्तिगत सम्पर्क के कारण पक्षपात से बचा जा सकता है। इसमें अनुसंधानकर्ता सूचनादाता को प्रभावित नहीं करता है। इससे अध्ययन में वैषयिकता बनी रहती है। पी. वी. यंग ने लिखा है, "प्रश्नावली वैषयिक परिमाणात्मक एवं गुणात्मक सूचनाओं के संकलन में प्रयोग की जाती है।"
(6) सूचनादाता के ज्ञान में वृद्धि- प्रश्नावली को भरते समय सूचनादाता के पास सहायता के लिए अनुसंधानकर्ता उपस्थित नहीं होता है। उत्तरदाता अपनी स्तन्त्रता एवं ज्ञान के आधार पर प्रश्नावली भरता है। इससे एक ओर उसके ज्ञान में वृद्धि होती है वहीं दूसरी ओर वह बिना संकोच के अपने विचारों को स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकट कर सकता है।
(7) अनावश्यक सूचनाओं से बचाव- अध्ययन को ध्यान में रखकर प्रश्नों का निर्माण किया जाता है। व्यक्तिगत सम्पर्क के अभाव के कारण आवश्यक सूचनाओं का संकलन नहीं किया जाता है। सभी सूचनाएँ लेखनीबद्ध रूप से प्राप्त होती हैं। इस प्रकार अनावश्यक सूचनाओं से बचा जा सकता है।
(8) स्वयं प्रशासित- प्रश्नावली द्वारा सूचना प्राप्त करने के लिए न तो क्षेत्र में जाना पड़ता है और न ही कार्यकर्ताओं के संगठन की आवश्यकता होती है। यह अनुसंधानकर्ता के द्वारा एक स्वयं संगठित एवं प्रशासित प्रविधि है। इसके माध्यम से अनुसंधानकर्ता वांछित सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है।
(9) अध्ययन में सुगमता- प्रश्नावली प्रविधि अन्य प्रविधियों की अपेक्षा अधिक सुगम है। अनुसंधानकर्ता एवं सूचनादाता दोनों को सुविधा रहता है। अनुसंधानकर्ता को सूचना प्राप्त करने के लिए प्रत्येक स्थान पर नहीं जाना पड़ता है। सूचनादाता अपनी स्वतन्त्रता और सुविधा से प्रश्नावली को भर सकता है।
(10) विशाल जनसंख्या का अध्ययन- प्रश्नावली विधि का सबसे बड़ा गुण है कि इसके द्वारा हम दूर-दूर तक फैले हुए क्षेत्र एवं विशाल जनसंख्या का अध्ययन कम समय, धन एवं श्रम खर्च करके कर सकते हैं। अन्य विधियों द्वारा विशाल जनसंख्या हेतु अधिक धन-समय और श्रम की आवश्यकता होती है। यह विस्तृत क्षेत्र में बिखरे हुए व्यक्तियों के समूह में से सूचनाएँ संकलित करने की सरलतम विधि है।
(11) पुनरावृत्ति सम्भव- कुछ अनुसंधान इस प्रकार के होते हैं कि उनके लिए हमें थोड़े समय बाद बार-बार सूचनाएँ एकत्रित करनी होती हैं तब यह विधि बहुत उपयोगी होती है। प्रश्नावली की अनेक प्रतियाँ छपवाकर रख ली जाती हैं, जो समय-समय पर सूचनादाताओं के पास भेज दी जाती हैं।
प्रश्नावली की सीमाएँ
जहाँ एक ओर प्रश्नावली के लाभ या महत्व हैं, वहीं दूसरी ओर प्रश्नावली की कुछ सीमाएँ भी हैं। ये निम्नलिखित हैं-
(1) प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन में कठिनाई- प्रश्नावली विधि द्वारा अध्ययन के लिए चयन किया हुआ निदर्शन सम्पूर्ण का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता है। उसका मुख्य कारण यह है कि क्षेत्र में शिक्षित एवं अशिक्षित दोनों ही प्रकार के व्यक्ति होते हैं। परन्तु प्रश्नावली का उपयोग केवल शिक्षित उत्तरदाता के लिए ही किया जा सकता है। अतः वैषयिकता की कमी बनी रहती है।
(2) सार्वभौमिक प्रश्नों का निर्माण असम्भव है- प्रश्नावली में ऐसे प्रामाणिक, सार्वभौमिक प्रश्नों का निर्माण सम्भव नहीं होता है, जो प्रत्येक प्रकार के समूह और संस्कृति में पलने वाले लोगों के लिए उपयुक्त हों। साथ ही सभी, प्रकार के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के व्यक्तियों से एक ही प्रकार के प्रश्नों से सही उत्तर पाना कठिन है क्योंकि सभी व्यक्ति एक प्रश्न का अर्थ अपने-अपने दृष्टिकोण से लगाते हैं। अतः सार्वभौमिक प्रश्नों का निर्माण सम्भव नहीं होता है।
(3) गहन अध्ययन असम्भव है- प्रश्नावली द्वारा विषय का गहन अध्ययन नहीं किया जा सकता है क्योंकि एक एक तो समय का अभाव होता है, दूसरा अनुसंधानकर्ता की अनुपस्थिति के कारण सूचनाएँ नहीं पूछी जा सकर्ती और न ही भावात्मक प्रेरणा दी जा सकती है। अतः इसके द्वारा केवल मोटी-मोटी सूचनाएँ ही एकत्रित की जा सकती हैं, गहन नहीं।
(4) अपूर्ण सूचनाएँ- कई बार प्रश्नावलियों में मुख्य प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता। जब सूचनादाता प्रश्नों को नहीं समझ पाते हैं या गुप्त सूचनाएँ नहीं देना चाहते हैं, तो जानबूझकर वे ऐसे प्रश्नों को टाल जाते हैं। इस प्रकार प्रश्नावली विधि द्वारा संकलित सूचनाएँ अपूर्ण होती हैं।
(5) अशिक्षितों के लिए अनुपयुक्त- प्रश्नावली का प्रयोग शिक्षित लोगों के लिए ही हो सकता है क्योंकि सूचनादाता को स्वयं उन्हें पढ़कर भरना होता है। हमारे देश में जहाँ अशिक्षा का प्रतिशत अधिक है, वहाँ इसका प्रयोग सीमित मात्रा में ही हो सकता है।
(6) अस्वच्छ एवं अस्पष्ट लेख- प्रश्नावलियों को सूचनादाता स्वयं भरते हैं और सभी लोगों का लेख सुन्दर नहीं होता। ऐसी स्थिति में प्राप्त उत्तरों को पढ़ना एवं समझना एक समस्या बन जाती है। कुछ सूचनाएँ पढ़ी ही नहीं जा सकती हैं। अतः कई प्राप्त सूचनाएँ उपयोगी नहीं हो पाती हैं।
(7) विश्वसनीयता का अभाव- प्रश्नावली द्वारा प्राप्त सूचनाएँ पूर्ण विश्वसनीय नहीं मानी जा सकर्ती क्योंकि अनुसंधानकर्ता की अनुपस्थिति के कारण कई बार सूचनादाता प्रश्नों को समझ ही नहीं पाते या उनका गलत अर्थ लगाते हैं। ऐसी स्थित में प्राप्त उत्तर प्रामाणिक एवं विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते हैं।
(8) प्रत्युत्तर की समस्या- प्रश्नावलियाँ कम संख्या में लौटकर आती हैं। कभी-कभी यह भी देखा जाता है कि उत्तरदाता उन्हें लौटने में तत्परता नहीं बरतते। अधिकतर सूचनादाता लापरवाह होते हैं। कुछ सर्वेक्षण के उद्देश्य को ही नहीं समझ पाते हैं अथवा प्रश्नों का उत्तर नहीं देना जानते हैं या व्यक्तिगत तथ्यों को स्वयं लिखना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में कम प्रश्नावलियाँ पुनः प्राप्त होती हैं।
(9) भावात्मक प्रेरणा का अभाव- प्रश्नावली विधि में सूचनादाताओं और अनुसंधानकर्ताओं में आमने-सामने का सम्पर्क नहीं हो पाता है। अतः वे एक-दूसरे के विचारों को अच्छी तरह नहीं समझ सकते और न ही अनुसंधानकर्ता सूचनादाता को प्रश्नावली भरने के लिए भावात्मक प्रेरणा ही दे सकता है। अतः यह एक औपचारिक विधि मात्र रह जाती है।
(10) उत्तर लिखने में अनुसंधानकर्ता की सहायता का अभाव- प्रश्नावली विधि में सूचनादाता कई बार कुछ प्रश्नों को समझने में असमर्थ रहता है, जिसे समझाने के लिए अनुसंधानकर्ता वहाँ नहीं होता है। ऐसी स्थिति में उन प्रश्नों के उत्तर या तो छोड़ दिये जाते हैं या गलत लिख दिये जाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)- गुडे एवं हॉट ने लिखा है, "अनेक कमियों के होते हुए भी स्वयं प्रशासित डाक प्रेषित प्रश्नावली अनुसंधान में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है। यदि प्रश्नावली में प्रश्नों का निर्माण तथा निदर्शन का चुनाव उपयुक्त रूप से किया जाये तो इसके द्वारा प्राप्त सूचनाएँ निश्चय ही प्रामाणिक एवं विश्वसनीय होंगी।"