प्राक्कल्पना का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें

प्राक्कल्पना का अर्थ एवं परिभाषा

वैज्ञानिक शोध का प्रारम्भ किन्हीं विचारों से होता है। इन विचारों की उत्पत्ति किन्ही घटनाओं के अवलोकल, चिन्तन एवं मनन, साहित्य का अध्ययन आदि अनेक साधनों से हो सकती है। 'प्राक्कल्पना' ज्ञात घटनाओं के सम्बन्धों के आधार पर नवीन सम्भावनाओं की दिशा में उत्पन्न एक ऐसा विचार है जिसमें भावी अर्थ संकेतों को यथार्थ परीक्षण की कसौटी पर कसने का उचित प्रयास किया जाता है।

अतः शोध प्रक्रिया में अनुसन्धान की समस्या के निर्धारण के बाद प्राक्कल्पना की रचना की जाती है। अनुसन्धान समस्या सामान्य अर्थ में एक अभिव्यक्त विचार है, जिसका अभी कोई निश्चित रूप नहीं है। नेकमियाज एवं नेकमियाज ने लिखा है कि "ऐसी प्रेरणाएँ जो अत्यधिक सामान्य अथवा अत्यधिक अमूर्त होती हैं, वे शोध में कठिनाइयाँ उत्पन्न करती हैं। अतः सामान्यतः उन्हें मूर्त स्वरूप दिया जाता है। यह मूर्तिकरण प्राक्कल्पनाओं द्वारा सम्पन्न किया जाता है। प्राक्कल्पनाएँ शोध योग्य समस्याओं के सम्भावित उत्तर होती हैं।"

प्राक्कल्पना वास्तव में समस्या के रूप में उत्पन्न हुए प्रारम्भिक विचार का वैज्ञानिक स्वरूप है, जिसको सम्भवतः 'अगर' (If) तथा तब (Then) के अर्थपूर्ण कथन के रूप में प्रकट किया जाता है या जिसकी अभिव्यक्ति' कारण प्रभाव' (cause-effect) के रूप में की जाती है।

वेबस्टर शब्दकोश के अनुसार- "एक प्राक्कल्पना एक प्रस्थापना, शर्त अथवा सिद्धान्त है जिसे सम्भवतः बिना किसी विश्वास के मान लिया जाता है, ताकि उसके तार्किक परिणाम निकाले जा सकें और इस विधि द्वारा यह परीक्षण किया जा सके कि यह प्राक्कल्पना उन तथ्यों के साथ मेल खाती है अथवा नहीं जिनके बारे में हमें ज्ञान है अथवा जिन्हें निश्चित किया जा सकता है।" अतः हम कह सकते हैं कि प्राक्कल्पना सामाजिक अनुसंधान की प्रारम्भिक सीढ़ी है। इसे 'उपकल्पना' के नाम से भी जाता है।

इस प्रकार प्राक्कल्पनाएँ किसी वस्तु, व्यक्ति घटना अथवा दशा की विशेषताओं को प्रकट करने वाली हो सकती हैं। जैसे फ्रायड की पुस्तक 'मोजेज एण्ड मोनोथिज्म' की शुरुआत इस प्राक्कल्पना से होती है कि यहूदियों के पैगम्बर 'मूसा' वास्तव में एक यहूदी न होकर मिस्रवासी थे। डॉ. आई. पी. देसाई ने गुजरात के एक गाँव 'महुआ' के अपने अध्ययन द्वारा इस प्राक्कल्पना का परीक्षण किया है कि भारतीय गाँवों में एकाकी परिवारों की अपेक्षा संयुक्त परिवार अधिक हैं।

यह भी पढ़ें- सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए 

प्राक्कल्पना की विशेषताएँ

एक अच्छी प्राक्कल्पना से तात्पर्य यहाँ एक ऐसी प्राक्कल्पना से है जिसका शोध हेतु प्रयोग किया जा सके। किसी भी शोध में प्रयोग की जाने वाली प्राक्कल्पना में कुछ विशेषताओं का होना आवश्यक है। इन विशेषताओं की कसौटी पर जो प्राक्कल्पा खरी उतरती हो, उसे हम शोध हेतु प्रयोग की जाने वाली एक अच्छी अथवा उपयोगी उपकल्पना कह सकते हैं।

(1) स्पष्टता (Clarity)- प्राक्कल्पनाएँ दो दृष्टि से स्पष्ट होनी चाहिए- एक भाषा की दृष्टि से तथा दूसरी अवधारणा की दृष्टि से। प्राक्कल्पना में प्रयुक्त शब्द और उनके कार्य तथा विचार स्पष्ट तथा भ्रमरहित होने चाहिए। जहाँ सम्भव हो विशिष्ट शब्दों की परिभाषा और व्याख्या भी दी जानी चाहिए। प्राक्कल्पना में प्रयुक्त शब्द ऐसे हों कि दूसरे लोग भी इनका सही अर्थ समझ सकें। प्राक्कल्पना की स्पष्टता अनुसंधानकर्ता की सूझ-बूझ और अनुभव पर भी निर्भर करती है।

(2) अनुभवाश्रितता (Empirical Referent)- प्राक्कल्पनाएँ ऐसी होनी चाहिए जिनका आनुभविक रूप में परीक्षण किया जा सके। प्राक्कल्पनाओं में प्रयुक्त अवधारणाओं की दूसरी प्रमुख विशेषता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि एक व्यावहारिक प्राक्कल्पना नैतिक निर्णयों अथवा आदर्शात्मकता के तत्व से मुक्त हो। मूल्य-निर्णयों से ग्रस्त प्राक्कल्पना दिखने में एक अच्छी प्राक्कल्पना हो सकती है, किन्तु वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से ऐसी प्राक्कल्पनाओं का कोई महत्व नहीं होता, क्योंकि इनका परीक्षण नहीं किया जा सकता है। 'स्त्रियों को नौकरी करनी चाहिए', 'दहेज प्रथा भारतीय समाज का एक कलंक है', 'जाति प्रथा को समाप्त कर दिया जाना चाहिए' आदि आदर्शात्मक प्राक्कल्पनाएँ हैं जिनका परीक्षण सम्भव नहीं है। शोध प्राक्कल्पनाओं के लिए यह आवश्यक है कि उनमें 'अच्छा', 'बुरा', 'चाहिए' जैसे शब्दों का प्रयोग न हो।

(3) विशिष्टता (Specificity)- एक प्राक्कल्पना को अध्ययन विषय के किसी विशिष्ट पहलू से सम्बन्धित होना चाहिए। सामान्य शब्दों में व्यक्त की गई प्राक्कल्पना का परीक्षण करना कठिन होता है एवं उसका क्षेत्र भी विस्तृत एवं अनिश्चित होता है। ऐसी प्राक्कल्पनाएँ तथ्य संकलन की दृष्टि से अनुपयोगी होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि उपयोगी अध्ययन के लिए हम विशिष्ट और छोटी-छोटी प्राक्कल्पनाएँ बनायें जो हमें तथ्यों के संकलन में, शोध को व्यवस्थित करने में एवं निष्कर्ष निकालने में सहायता प्रदान कर सकें।

(4) उपलब्ध प्रविधियों से सम्बद्ध (Related with Available Techniques)- प्राक्कल्पना की रचना करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उसकी सत्यता की परीक्षा के लिए उपयुक्त विधियाँ उपलब्ध हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि शोधकर्ता को उपलब्ध विधियों का ज्ञान हो। एक प्राक्कल्पना अत्यन्त महत्वपूर्ण दिखाई दे सकती है, किन्तु यदि उसे परीक्षण करने के लिए आवश्यक प्रविधियाँ तथा उपकरुण नहीं हैं, तो ऐसी महत्वपूर्ण प्राक्कल्पना भी शोध की दृष्टि से कमजोर मानी जाती है। उदाहरणार्थ शिक्षा तथा राजनैतिक सहभागिता से सम्बन्धित किसी भी प्राक्कल्पना का परीक्षण तभी सम्भव होगा जब इन दोनों अवधारणाओं को स्पष्ट रूप में मापने के लिए हमारे पास माप की विधियाँ उपलब्ध हों। किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि हम प्राक्कल्पनाओं की जाँच के लिए नवीन प्रविधियों का निर्माण नहीं कर सकते। वर्तमान में विभिन्न समस्याओं एवं प्राक्कल्पनाओं के अध्ययन हेतु वैज्ञानिकों ने अनेक नवीन प्रविधियों को जन्म दिया है।

(5) सिद्धान्त से सम्बद्धता (Related with Theory)- किसी प्राक्कल्पना की उपादेयता इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह किसी सिद्धान्त से सम्बद्ध है अथवा नहीं। ऐसा देखा गया है कि नौसिखिया शोधार्थी बहुधा प्राक्कल्पना की व्यावहारिकता के इस मापदण्ड की उपेक्षा करता है। अधिकांशतः वह 'रुचिकर' दिखने वाले विषयों का चुनाव कर लेता है। वह यह भी नहीं देखता कि क्या उसकी यह शोध किसी प्रकार पूर्व स्थापित किन्हीं सिद्धान्तों के खण्डन-मण्डन करने, उनमें संशोधन करने अथवा उनमें कुछ और जोड़ने में सहायता कर सकेगी। जब शोध किसी मौजूदा सिद्धान्त पर व्यवस्थित रूप में आधारित होती है; तभी ज्ञान के विकास में कोई वास्तविक योगदान सम्भव ही सकता है।

(6) सरलता (Simplicity)- एक प्रयोगशील प्राक्कल्पना में सरलता का गुण भी होना चाहिए। प्राक्कल्पना की सरलता का तात्पर्य यह नहीं है कि वह जनसाधारण के लिए बोधगम्य हो। जहाँ तक सम्भव हो एक प्राक्कल्पना में अधिक कारकों का प्रयोग न किया गया हो। अधिक कारकों को लेकर बनाई गई प्राक्कल्पना जहाँ एक ओर जटिल होती है, वहाँ ऐसी प्राक्कल्पना का परीक्षण करना भी दुष्कर होता है। अतः सांख्यिकीय दृष्टि से एक ऐसी प्राक्कल्पना को सरल कहा जायेगा, जिसमें अधिक तथा उलझे हुए कारकों का प्रयोग न किया गया हो।

इस प्रकार एक अच्छी प्राक्कल्पना में उपर्युक्त सभी विशेषताओं का समावेश होना चाहिए तभी हम अनुसंधान कार्य को गतिशीलता प्रदान कर सकते हैं।

Post a Comment

Previous Post Next Post