अनुसधान कार्य दो पद्धतियों के आधार पर किया जाता है। ये दो पद्धतियाँ निम्न हैं-
(1) जनगणना पद्धति (Census Method)- जनगणना पद्धति में हम अपने अध्ययन विषय के अन्तर्गत आने वाली समस्त इकाइयों का अध्ययन करके ही निष्कर्ष निकालते हैं।
(2) निदर्शन पद्धति (Sampling Method)- निदर्शन पद्धति में हम समग्र में कुछ प्रतिनिधित्वपूर्ण इकाइयाँ चुन लेते हैं और उनके आधार पर अध्ययन करते हैं। इस पद्धति को हम निदर्शन पद्धति कहते हैं।
निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषा
समग्र में से कुछ इकाइयों को अध्ययन हेतु प्रतिनिधि के रूप में चुनना निदर्शन कहलाता है। निदर्शन का सामान्य अर्थ सम्पूर्ण समग्र का प्रतिनिधित्व है। सम्पूर्ण समग्र की छोटी इकाई को निदर्शन कहते हैं।"
(1) पी. वी. यंग (P. V. Young) के अनुसार- "एक सांख्यिकीय निदर्शन सम्पूर्ण समूह अथवा योग का एक अति लघुकृत आकार का चित्र है, जिससे कि निदर्शन लिया गया है।"
(2) गुडे एवं हॉट (Goode and Hatte) के अनुसार- "एक निदर्शन जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है कि एक समूह का सुक्ष्मतम प्रतिनिधित्व है।"
(3) बोगाईस (Bogardus) के अनुसार- "निदर्शन एक निर्धारित योजना के अनुसार इकाइयों के एक समूह में निश्चित प्रतिशत का चयन है।"
(4) सिनपाओ यंग (Hsin Pao Yang) के अनुसार- "एक सांख्यिकीय निदर्शन सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधि अंश है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि निदर्शन बहुत बड़े समूह का एक छोटा प्रतिनिधि होता है, जिसमें समूह के समस्त लक्षण विद्यमान होते हैं।
निदर्शन के आधार
निदर्शन के आधार निम्नलिखित हैं-
(1) समग्र की सजातीयता- निदर्शन विधि इस मान्यता पर आधारित है कि विविधताओं में भी समानताएँ अन्तर्निहित होती हैं। ऊपरी तौर पर हमें व्यक्तियों एवं तथ्यों में बहुत अधिक असमानताएँ दिखाई देती हैं। परन्तु ऊपरी तौर पर दिखाई देने वाली इस विविधता में भी समानताएँ विद्यमान हैं। इसी कारण निदर्शन को समग्र का प्रतिनिधि मान लिया जाता है।
(2) प्रतिनिधित्वपूर्ण चुनाव की सम्भावना- निदर्शन इस मान्यता पर आधारित है कि सम्पूर्ण समूह में से थोड़ी सी इकाइयों का चयन इस प्रकार किया जा सकता है कि वे समग्र का प्रतिनिधित्व कर सकें।
(3) उचित परिशुद्धता- कोई भी निदर्शन सम्पूर्ण रूप से समग्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। फिर भी पर्याप्त मात्रा में परिशुद्धता प्राप्त की जा सकती है। निदर्शन में इकाइयों की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए, जिससे कि निदर्शन प्रतिनिधित्व पूर्ण हो सके और उनके अध्ययन से निकाले गये निष्कर्ष सही स्थिति को प्रस्तुत कर सकें।
निदर्शन पद्धति की विशेषताएँ
निदर्शन पद्धति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) समग्र की एकरूपता- निदर्शन के आधार पर जो इकाइयाँ चुनी जाती हैं, उसमें एकरूपता लाने का प्रयास किया जाता है। समग्र की एकरूपता होने पर सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव हो पाता है।
(2) समय और धन की बचत- निदर्शन पद्धति की सबसे प्रमुख विशेषता समय और धन की बचत होती है। इस पद्धति का प्रयोग तब किया जाता है, जबकि व्यापक क्षेत्र से आँकड़े एकत्रित करने हों।
(3) वैज्ञानिक अध्ययन की सम्भावना- निदर्शन पद्धति के माध्यम से गहन और वैज्ञानिक अध्ययन की सम्भावना होती है। सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में यह कठिनाई विशेष रूप से पायी जाती है क्योंकि सामाजिक घटनाएँ जटिल एवं परिवर्तनशील होती हैं। सामाजिक घटनाओं का वस्तुनिष्ठ अध्ययन तभी सम्भव है, जब व्यक्ति वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करे। निदर्शन पद्धति के माध्यम से वैज्ञानिक अध्ययन की स्म्भावना बढ़ जाती है।
(4) पक्षपात एवं मिथ्या-झुकाव से बचाव- निदर्शन पद्धति के प्रयोग से पक्षपात की सम्भावना कम हो जाती है। इस पद्धति में वैज्ञानिक प्रविधियों के द्वारा इकाइयों का चुनाव किया जाता है। निदर्शन पद्धति में सभी इकाइयों को चुने जाने का समान अवसर प्राप्त होता है। अध्ययनकर्ता को भी यह नहीं मालूम होता है कि निदर्शन के माध्यम से कौन-कौन सी इकाइयाँ चुनी जायेंगी। स्पष्ट है कि निदर्शन से चुनाव करने पर पक्षपात से बचा जा सकता है।
(5) विषय वस्तु के अनुकूल- निदर्शन पद्धति में सदा विषय-वस्तु के अनुकूल इकाइयों का चुनाव किया जाता है। इसमें अध्ययन की जाने वाली समस्या के अनुरूप आँकड़े एकत्रित करने के लिए उसके अनुकूल इकाइयाँ चुनी जाती है। यदि इकाइयों का चुनाव विषय-वस्तु के अनुकूल नहीं होगा तो अध्ययन की वैज्ञानिकता समाप्त हो जायेगी।
(6) लचीलापन- निदर्शन विधि में लचीलापन होना उसकी अपनी एक विशेषता है। यदि निदर्शन के चुनाव में इकाइयाँ कम या अधिक हो जाती हैं, तो उन्हें आवश्यकतानुसार घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यदि कोई इकाई अनुपयोगी होती है, तो दूसरी इकाई का भी चयन किया जा सकता है।
(7) उचित प्रतिनिधित्व सम्भव है- निदर्शन पद्धति के माध्यम से प्रतिनिधित्व इकाइयों का चुनाव सम्भव होता है। निदर्शन में समग्र में से चुनाव किया जाता है। इसलिए प्रतिनिधित्वपूर्ण चुनाव की सम्भावना रहती है।
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एक श्रेष्ठ निदर्शन की विशेषताएँ
सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में हमारे निष्कर्ष उतने ही यथार्थ एवं सार्वभौमिक होंगे, जितना प्रतिनिधित्वपूर्ण हमारा निदर्शन होगा। निदर्शन का उत्तम होना अध्ययन की सके लिए आवश्यक होता है। पी. वी. यंग (P. V. Young) के शब्दों, "निदर्शन का आकार ही उसके प्रतिनिधि होने की गारण्टी होता है। समुचित रूप से चुना गया अपेक्षाकृत छोटे आकार का निदर्शन दोषपूर्ण रूप से चुने गये बड़े आकार के निदर्शन से अधिक विश्वसनीय होता है।" एक श्रेष्ठ निदर्शन की आवश्यक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण हो- निदर्शन को समग्र का उचित व सही प्रतिनिधि होना चाहिए। प्रतिनिधि निदर्शन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम सम्पूर्ण जनसंख्या में पाये जाने वाले भिन्न समूहों का ध्यान रखें।
(2) निदर्शन का पर्याप्त आकार- निदर्शन का आकार इतना होना चाहिए कि उससे यथार्थ परिस्थितियों का सही मूल्यांकन हो सके। इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि निदर्शन का आकार जितना बड़ा होगा, वह उतना ही श्रेष्ठ एवं प्रतिनिधित्वपूर्ण होगा। श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार, "निदर्शन का आकार उसकी प्रतिनिधित्वता की कोई आवश्यक गारण्टी नहीं है। सापेक्षिक रूप में उसी प्रकार से चुने गये छोटे निदर्शन अनुपयुक्त तरीके से चुने हुए बड़े निदर्शनों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय हो सकते हैं।"
(3) सामान्य ज्ञान एवं तर्क पर आधारित- एक श्रेष्ठ निदर्शन को सामान्य ज्ञान एवं तर्क पर आधारित होना चाहिए। नियमों का पालन करके निदर्शन का चुनाव करने से ही वह आदर्श चुनाव नहीं बन सकता है। अनुसंधानकर्ता को निदर्शन के चुनाव में अपने सामान्य ज्ञान को भी प्रयोग में लाना चाहिए।
(4) पक्षपात तथा मिथ्या झुकाव से स्वतन्त्र- श्रेष्ठ निदर्शन के लिए यह आवश्यक है कि वह पक्षपात एवं मिथ्या झुकाव से स्वतन्त्र हो। कई बार हम उन इकाइयों या तथ्यों को चुन लेते हैं, जो हमारे मनोभावों या आदर्शों के अनुरूप हों परन्तु इस प्रकार के निदर्शन को हम प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं कह सकते हैं क्योंकि वह पक्षपात रहित नहीं होता है।
(5) निदर्शन अध्ययन विषय के उद्देश्य के अनुकूल हो- एक श्रेष्ठ निदर्शन की यह भी आवश्यकता है कि वह अध्ययन विषय के उद्देश्य के अनुकूल हो। इस अनुकूलता के आधार पर ही निदर्शन की विश्वसनीयत की नाप की जा सकती है। यदि निदर्शन अध्ययन विषय के अनुकूल होता है, तो अनुसंधानकर्ता का ध्यान इधर-उधर नहीं भटकता है और निष्कर्षों के यथार्थ होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
(6) व्यावहारिक अनुभवों पर आधारित- एक श्रेष्ठ निदर्शन सदैव व्यावहारिक अनुभवों पर आधारित होता है। इसके बिना वह प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं हो सकता है। व्यावहारिक ज्ञान के बिना कोई भी अनुसंधानकर्ता प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन का चुनाव नहीं कर सकता है। निदर्शन के चुनाव में कभी-कभी इस प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिनका समाधान व्यावहारिक ज्ञान के ही आधार पर किया जा सकता है।
(7) सजातीयता- एक श्रेष्ठ निदर्शन में सजातीयता से हमारा अभिप्राय यह है कि निदर्शन में चुनी हुई इकाइयों में बहुत अधिक विरोधी विशेषताएँ नहीं पायी जाती हैं क्योंकि सजातीय इकाइयों वाले निदर्शन से अधिक वैज्ञानिक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।
अतः स्पष्ट है कि निदर्शन पद्धति वह पद्धति है जिसमें किसी समय में कुछ प्रतिनिधित्व इकाइयों को चुनकर अध्ययन किया जाता है। निदर्शन के लिए चुनी गई इकाइयों में समय के सभी गुण होने चाहिए।
निदर्शन पद्धति के गुण एवं दोष
आधुनिक समय में निदर्शन पद्धति का प्रयोग दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। निदर्शन के गुणों का वर्णन करते हुए गुडे एवं हॉट (Goode and Hatte) लिखते हैं, "निदर्शन वैज्ञानिक कार्यकर्ता के समय की बचत करके कार्य को अधिक वैज्ञानिक रूप प्रदान करता है।
किसी एक दृष्टिकोण से एकत्रित सामग्री के विश्लेषण का अधिक घण्टे व्यय करने की अपेक्षा वह समय को विभिन्न दृष्टिकोणों से परीक्षा करने में प्रयोग कर सकता है। दूसरे शब्दों में, वह थोड़े मामलों का गहन अध्ययन कर सकता है।"
निदर्शन पद्धति के गुण अथवा महत्व
निदर्शन पद्धति के गुणों को निम्न प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है-
(1) समय की बचत- इस प्रणाली में समग्र में से कुछ इकाइयों का चयन किया जाता है फिर उन चयनित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। इससे समय की बचत होती है। कम समय में अधिक काम निदर्शन पद्धति को अपनाने से ही सम्भव है।
(2) धन की बचत- प्रतिनिधित्वपूर्ण इकाइयाँ ही निदर्शन कहलाती हैं। अतः निदर्शन के माध्यम से अध्ययन करने में जहाँ एक ओर समय की बचत होती है, वहीं धन की भी बचत होती है। धन की बचत होने के कारण अनुसंधान कार्य निर्धारित समय में ही पूरा हो जाता है।
(3) श्रम की बचत- निदर्शन पद्धति के माध्यम से अनुसंधान कार्य करने में श्रम की भी अत्यधिक बचत होती है क्योंकि इसमें कुछ चुनी हुई इकाइयों का ही अध्ययन करना पड़ता है। इसी के साथ ही कम कार्यकर्ताओं के होने पर भी अनुसंधान कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है।
(4) गहन अध्ययन- संगणना विधि की तुलना में निदर्शन के द्वारा अध्ययन करने से अध्ययन गहराई से किया जा सकता है। क्योंकि निदर्शन में कम इकाइयों का अध्ययन करना पड़ता है। अतः उनके बारे में सूक्ष्म एवं विस्तृत जानकारी प्राप्त करना सम्भव हो जाता है।
(5) तथ्यों की पुनर्परीक्षा- किसी भी अनुसंधान में प्राप्त निष्कर्षों की विश्वसनीयता को ज्ञात करने के लिए उनकी पुनर्परीक्षा की जाती है। निदर्शन में कम इकाइयों का अध्ययन किया जाता है और पुनः परीक्षा करने के लिए उनमें से ही कुछ इकाइयों को चुना जाता है। इस प्रकार से तथ्यों की पुनः परीक्षा भी निदर्शन प्रणाली में सम्भव है।
(6) परिणामों की परिशुद्धता- निदर्शन विधि की सहायता से अनुसंधान कार्य करने में विश्वसनीय एवं प्रामाणिक निष्कर्ष प्राप्त करने की सम्भावना रहती है। अनुसंधानकर्ता का ध्यान कुछ निश्चित इकाइयों पर ही रहता है। इस कारण प्राप्त निष्कर्ष यथार्थ एवं वैज्ञानिक होते हैं।
(7) प्रशासनिक सुविधा- निदर्शन में इकाइयाँ कम होने के कारण अनुसंधानकर्ता को प्रशासन एवं संगठन में सुविधा रहती है। कम कार्यकर्ताओं से ही अनुसंधान कार्य पूरा हो जाता है। इसके साथ ही सूचनाएँ संकलित करने से सम्बन्धित परेशानी भी कम हो जाती है। अनुसंधानकर्ता कम साधनों में काम करने में सफल हो जा जाता है।
(8) निदर्शन की अनिवार्यता- कुछ सामाजिक घटनओं के अनुसंधान कार्य में निदर्शन विधि का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि अनुसंधान का क्षेत्र दूर-दूर तक फैला हुआ हो या किसी क्षेत्र में इकाइयों की संख्या अधिक हो। इसके साथ ही प्रत्येक इकाई से सम्पर्क करना भी सम्भव नहीं होता है। समग्र के बारे में जानकारी प्राप्त करना भी यदि सम्भव न हो, तो ऐसी स्थिति में निदर्शन पद्धति के माध्यम से ही अनुसंधान कार्य सम्भव होता है।
निदर्शन पद्धति (प्रणाली) के दोष (सीमाएँ)
निदर्शन पद्धति में जहाँ एक ओर कुछ लाभ हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ हानियाँ भी हैं। स्टीफेन (Stephen) के अनुसार, "निदर्शन औषधियों की भाँति होते हैं। जब उनका चयन असावधानी से किया जाता है, तो हानिकारक हो सकते हैं।" निदर्शन पद्धति के दोष निम्नलिखित हैं-
(1) पक्षपात की सम्भावना- निदर्शन विधि का एक बहुत बड़ा दोष यह है कि इसमें पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है। पक्षपातपूर्ण परिस्थितियों के कारण निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाता है। इकाइयों का चुनाव करते समय अनुसंधानकर्ता का पक्षपात आ ही जाता है और निदर्शन द्वारा प्राप्त निष्कर्ष विश्वसनीय एवं प्रामाणिक नहीं रह जाते हैं।
(2) विशेष ज्ञान की आवश्यकता- निदर्शन का चुनाव करना एक तकनीकी कार्य है। प्रत्येक व्यक्ति सही निदर्शन का चुनाव नहीं कर सकता है। अनुसंधानकर्ता का प्रशिक्षित एवं अनुभवी होना आवश्यक है। पर्याप्त सूझबूझ के बिना अनुसंधानकर्ता सही निदर्शन का चुनाव नहीं कर सकता है। अतः यह आवश्यक है कि अनुसंधानकर्ता अपने विषय का विशेषज्ञ हो।
(3) निदर्शन की असम्भावना- किसी-किसी अनुसंधान कार्य में निदर्शन पद्धति से कार्य करना असम्भव होता है। यदि समग्र बहुत छोटा हो तथा विविधता लिए हुए हो और उसमें सजातीयता का अभाव हो, तब ऐसी स्थिति में निदर्शन विधि उपयुक्त नहीं होती है। निदर्शन विधि के स्थान पर संगणना विधि का ही प्रयोग करना पड़ता है।
(4) प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन के चुनाव में कठिनाई- कोई भी निदर्शन तभी उचित माना जाता है, जब वह प्रतिनिधित्वपूर्ण हो। यदि किसी क्षेत्र में अधिक विविधताएँ होती हैं और अनुसंधान का विषय भी जटिल होता है, तो प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन का चुनाव अत्यधिक कठिन हो जाता है। प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन का चुनाव न हो पाना निदर्शन की एक बहुत बड़ी कमी है।
(5) निदर्शन पर कायम रखने में कठिनाई- निदर्शन में इकाइयों की संख्या कम होती है। फिर भी चुनी हुई इकाइयों के अनुसार ही कार्य करना कठिन हो जाता है। कभी-कभी उन इकाइयों का चयन हो जाता है, जो दूर-दूर के क्षेत्र में बिखरी हुई होती हैं और उनसे सम्पर्क करना असम्भव हो जाता है। ऐसी स्थिति में दूसरी इकाइयों का चुनाव करना पड़ता है। इस परिवर्तन से निदर्शन में पक्षपात आने की सम्भावना बनी रहती है।
यद्यपि निदर्शन विधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं फिर भी इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण विधि है।