इतिहास और भूगोल
मानव की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है कि वह जिस स्थान पर रहता है, उसकी वह जानकारी करे, उसे यदि वह घूम-फिरकर देख सकता है तो देखे, उसके पश्चात् अपने और अपने परिवार, समाज, जाति आदि उसके साथ वास्तविक सम्बन्धों की जानकारी करे। स्वाभाविक रूप से इन कारणों से उसका उस स्थान से लगाव हो जाता है और उसके हृदय पर स्थानीय इतिहास के साथ अपने परिवार आदि के इतिहास का छाप अंकित हो जाती है।
अतः मानव स्वभाव का अपने भौगोलिक जीवन से संयुक्त रहना एक प्राकृतिक क्रिया है। वह वहीं रहने वाले समाज तथा इतिहास का स्वयंमेव अंग हो जाता है। उसके लिए वहाँ की परम्पराएँ, रीति-रिवाज और संस्कृति प्रिय होती है और वहाँ के इतिहास को वह इतिहास मानने लगता है। इस प्रकार इतिहास तथा भूगोल का एक अटूट सम्बन्ध होता है।
भौगोलिक स्थिति और वातावरण ही किसी स्थान की संस्कृति को एक विशेष रूप से सृजित करते हैं और संस्कृति की परम्पराएँ बनती हैं, उन्हीं के आधार पर व्यक्ति के कार्य-व्यवहार विकसित होते हैं, जिनसे वहाँ का इतिहास बनता है। इसी कारण किसी देश या राष्ट्र का भूगोल समझे बिना उसके इतिहास का यथार्थ ज्ञान नहीं होता।
पुरा-विज्ञान जिसकी उपलब्धियों का सीधा सम्पर्क भूगोल से होता है, व्यक्ति के अनुमानों को तभी यथार्थ के निकट पहुँचा सकती है, जब हमें जहाँ से उपलब्धियाँ होती हैं, उस स्थान के यथार्थ भूगोल का ज्ञान हो। वस्तुतः प्रत्येक स्थान के भूगोल में वहाँ का इतिहास छिपा होता है। सभ्यता का जन्म सबसे पहले किन स्थानों पर होना सम्भव था, उसका ज्ञान हमें भूगोल ही करा सकता है।
जहाँ की भौगोलिक स्थिति मानव सभ्यता के विकास के अनुकूल होगी, वहीं उनका विकसित होना सम्भव माना जायेगा। किसी भी स्थान और वहाँ की संस्कृति का जब कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता, तब तो हमें वहाँ के भूगोल से ही उसका ज्ञान करना होता है और यदि कोई दस्तावेज हो भी, तब भी ऐसे उपलब्ध दस्तावेजों को वहाँ का भूगोल ही प्रमाणित कर सकता है।
अतः यदि ऐसे साक्ष्य प्राप्त होते हैं तो प्रासंगिक दस्तावेज के आलेख से मेल नहीं खाते तो हमें दस्तावेज द्वारा दिये गये साधनों को संदिग्ध दृष्टि से देखने के अतिरिक्त कोई उपाय शेष नहीं बचता है। इससे दस्तावेजी साक्ष्य का महत्व कम हो जाता है।
भूगोल एक प्राकृतिक विषय है, जिससे पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर विकसित होने वाली सभ्यताएँ जुड़ी होती हैं। किसी एक स्थान के लोग चमड़े के वस्त्र क्यों धारण करते हैं या दूसरे स्थान के लोग कपास द्वारा निर्मित वस्त्र क्यों धारण करते हैं। इसका स्तर हमें भूगोल में ही मिल सकता है। किसी स्थान के लोगों के खान-पान में मछलियों को मुख्य स्थान क्यों प्राप्त रहता है या दूसरे स्थान पर लोग माँसाहारी क्यों नहीं होते, इसका उत्तर भी हमें भूगोल में ही प्राप्त हो सकता है।
तथा जो तथ्य सीधे इस बात की ओर संकेत करते हैं कि किसी स्थान की भौगोलिक आवागमनीय सुविधाएँ वहाँ के बाहरी प्रवेश की सरलता की ओर भी संकेत करती है, तो दूसरी ओर यदि वहाँ की भौगोलिक स्थिति में वहाँ किसी विशेष उत्पादन सम्भावनाओं को प्रकट करती हैं तो हमें वहाँ के इतिहास में ऐसे विशेष उत्पादन का वहाँ की सभ्यता पर क्या आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव रहा होगा, इसका अनुमान लगाना सरल होता है। अतः स्वाभाविक है कि भौगोलिक यथार्थ का प्रत्येक देश के यथार्थ से सीधा सम्बन्ध होता है।