इतिहास नामक ज्ञान की शाखा की उत्पत्ति यूनान में हुयी मानी जाती है। यूनान में 'हिस्टरी' (History) के लिए 'हिस्टोरिया' (Historia) शब्द है, जिसका अर्थ है- जाँच या पूछताछ । अंग्रेजी में इतिहास का समानार्थक शब्द 'History' यूनानी संज्ञा 'Loropla' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- सीखना।
अरस्तू के अनुसार, इतिहास का अर्थ प्राकृतिक आभास के एक सेट का व्यवस्थित लेखा-जोखा है जिसमें कालक्रम की व्यवस्था का होना आवश्यक नहीं है। बाद में इसका समानार्थक शब्द 'Scientia' अधिक नियमित रूप से प्रयुक्त होने लगा। यह प्राकृतिक आभास के गैर-काल क्रमानुगत व्यवस्थित लेखे-जोखे का उल्लेख करने के लिए प्रयुक्त होता था। इतिहास के लिए जर्मन शब्द 'Geschichte' का अर्थ है घटित होना। इस सन्दर्भ में इतिहास भूत की घटनाओं का एक बोधगम्य एवं महत्वपूर्ण वृत्तान्त है। हिन्दी भाषा में 'इतिहास' शब्द इन तीन शब्दों का संश्लिष्ट रूप है 'इति-ह-आस', जिसका अर्थ है 'निश्चित रूप से ऐसा हुआ।' इस व्याख्या के अनुसार अतीत के जिन वृत्तान्तों को हम विश्वास के साथ प्रमाणित कर सकें, उन्हें इतिहास की श्रेणी में रखा जा सकता है। साधारणतया, जनसाधारण घटना सम्बन्धी ज्ञान को ही इतिहास की मान्यता देता है।
झारखण्डे चौबे के अनुसार, आत्म-सन्तोष के लिए अतीत का अध्ययन ही इतिहास है। वास्तव में देखा जाए तो इतिहास ऐतिहासिक स्रोतों, अभिलेखों, संस्मरणों में वर्णित घटनाओं का न तो विवरण है और न ही अतीत तथा वर्तमान के बीच अनवरत परिसंवाद। अधिकांश घटनाएँ मनुष्य की कृतियाँ हैं। उनके पीछे मानवीय मस्तिष्क की भूमिका निर्णायक होती है। इतिहासकार द्वारा इन घटनाओं के अन्तःस्थल में प्रवेश कर क्रिया-कलापों के परिवेश में मानवीय मस्तिष्क को समझना ही इतिहास है।
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इतिहास का अर्थ
पापर (Popper) के अनुसार : मानव जाति का कोई इतिहास नहीं हो सकता। यदि इस प्रकार का कोई इतिहास होना है तो इसे सभी मनुष्यों का इतिहास होना चाहिए। इसे सभी मानव आशाओं, संघर्षों तथा दुःखानुभूतियों का इतिहास होना चाहिए, क्योंकि 'कोई भी मनुष्य किसी दूसरे की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।' इतिहास लेखन में हम कुछ को छोड़ते हैं, कुछ का चयन करते हैं और ऐसा करते हुए हम अतीत के विभिन्न वर्गों का इतिहास लिखते हैं और इसे ही मानव जाति के इतिहास की संत्ता प्रदान करते हैं। यदि इतिहास वस्तुतः शक्ति मात्र का इतिहास होता है जो भारी पैमाने पर हुई हत्याओं तथा अपराधों के इतिहास से भिन्न नहीं है और इस प्रकार पापर (Popper) की यह मान्यता है कि इतिहास का कोई अर्थ नहीं होता, क्योंकि इतिहास का कोई लक्ष्य नहीं होती।
हम अपने लक्ष्यों को इस पर आरोपित करते हैं तथा यद्यपि इतिहास का कोई अर्थ नहीं होता, हम इसे अर्थ प्रदान करते हैं। न तो प्रकृति और न ही इतिहास हमें यह बता सकता है कि हमें क्या करना चाहिए। चाहे प्राकृतिक तथ्य हो या ऐतिहासिक वे हमारे लिए निर्णय नहीं ले सकते, वे हमारे द्वारा चुने जाने वाले लक्ष्यों का निर्धारण नहीं कर सकते। प्रकृति तथा इतिहास, दोनों में हो इतिहास तथा अर्थ का आरोपण हमारे द्वारा होता है। मनुष्य समान नहीं होते, किन्तु हम समान अधिकारों के लिए लड़ने का निश्चय करते हैं। राज्य जैसी मानवीय संस्थाएँ तर्कशील नहीं होर्ती, किन्तु हम उन्हें तर्कशील बनाने के लिए संघर्ष करने का सोचते हैं। स्वयं इतिहासकार में न तो कोई लक्ष्य है, न कोई अर्थ, किन्तु हम दोनों हो (बातें) देने का निश्चय करते हैं। अन्ततः यही बात जोवन के अर्थ पर लागू होती है। यह निर्णय लेना हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होगा।
पापर (Popper) का यह स्पष्ट विचार है कि तथ्यों तथा निश्चयों की यह द्वैधता (Dualism) मौलिक है। स्वयं तथ्यों का कोई अर्थ नहीं होता, वे हमारे निश्चयों के माध्यम से अर्थ प्रदान करते है। हम जिन प्रतिमानों का चयन करते हैं, उनका भी उत्तरदायित्व हमारे ऊपर रहता है, जहाँ हमने नहीं बोया है, उसे भी काट सकते हैं। इस प्रकार इतिहास नहीं, अपितु इतिहासकार अपने ढंग से अर्थ प्रदान करता है।
तथ्यों तथा निश्चयों को द्वैधता पर बल 'प्रगति' जैसी अवधारणाओं के प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी निर्धारित करता है। यदि हम यह मानते हैं कि इतिहास प्रगति करता है अथवा यह कि हम प्रगति से बंधे हैं, तो हम उन लोगों की तरह उसी प्रकार गलती करते हैं जो यह मानते हैं कि इतिहास में एक अन्वेष्य अर्थ होता है जिसके लिए यह आवश्यकता नहीं कि हम इसे प्रदान करें, क्योंकि प्रगति का अर्थ होता है किसी लक्ष्य ओर बढ़ना। एक ऐसा लक्ष्य जिसका मनुष्यों के रूप में हमारे लिए अस्तित्व है। इतिहास यह नहीं कर सकता। अतः यह स्वयंसिद्ध है कि इतिहास में कोई अर्थ नहीं होता है। इतिहास में एक व्यवस्था का दर्शन होता है और जहाँ व्यवस्था है, वहाँ अर्थ का अस्तित्व नहीं हो सकता।
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आगे भी पापर (Popper) ने यह स्पष्ट लिखा है कि धर्मदूत बनने की अपेक्षा हमें अपने भाग्य का निर्माता बनना चाहिए। अभिप्राय यह है कि इतिहास में अनावश्यक अर्थ की गवेषणा करके उसके प्रचार की आवश्यकता नहीं है। यह धर्मदूत का कार्य है, इतिहासकार का नहीं। हमें यथासम्भव अपने कार्यों को ठीक करना चाहिए तथा अपनी भूलों को समझना चाहिए। जब हम इस विचार से मुक्त हो जाएँगे कि शक्ति का इतिहास हमारा निर्णायक होगा तब हम इसकी चिन्ता छोड़ देंगे कि इतिहास हमारा औचित्य स्थापन करेगा अथवा नहीं और तब हम सम्भवतः एक दिन शक्ति पर नियन्त्रण पाने में सफल हो सकते हैं। इस प्रकार हम इतिहास का भी औचित्य स्थापन कर सकेंगे। इतिहास को बुरी तरह औचित्य स्थापन की आवश्यकता है। अतः इतिहास में अनावश्यक अर्थ के प्रत्यारोपण का प्रयास इतिहासकार को नहीं करना चाहिए।
परन्तु पापर (Popper) के विरुद्ध काल्हर (Kalher) लिखता है कि इतिहास अर्थपूर्ण होता है। मनुष्य नामक जीवन विभिन्न मनुष्यों की समष्टि जो अधिक होता है। एक राष्ट्र अपने सदस्यों की सामूहिकता से बढ़कर होता है। उसी प्रकार एक सभ्यता का अपना विशिष्ट स्थान होता है, केवल सामान्य ग्रहण नहीं होता। अतः इस प्रकार की राष्ट्रीयता तथा सभ्यतागत सत्ता के विषय में यह नहीं कहा जा सकता कि 'कोई एक व्यक्ति किसी दूसरे की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता।' कुछ मनुष्य दूसरों की अपेक्षा निश्चितरूपेण अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। न्यूटन तथा आइन्सटीन निःसन्देह वर्तमान और अतीत के भौतिकशास्त्रियों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार जब हम मानव जाति का अध्ययन करते हैं तब इस कुछ युग, कुछ घटनाएँ, कुछ व्यक्ति अन्यों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण तथा प्रभावी होते हैं और इस कारण वे तत्कालीन घटनाओं के केन्द्र बनते हैं। वस्तुतः लोगों के देशों के महत्व अधिक एवं कम होत रहते हैं। कभी एक प्रकार के कार्य-व्यापार तथा अभिरुचि का जोर होता है, कभी दूसरे प्रकार का और यूँ, पापर (Popper) द्वारा प्रस्तुत विभिन्न आपत्तियों के बावजूद मानव इतिहास में एक व्यवस्था का दर्शन होता है और जहाँ व्यवस्था है, वहाँ अर्थ का अनरितत्व नहीं हो सकता। अत: यह पापर (Popper) की 'बौद्धिक गरीबी' (Intellectual pauperism) नजर आती है, जब वह यह कहता है कि इतिहास का कोई अर्थ नहीं।
यदि इतिहास मानव अनुभव को समझने का साधन है तो इतिहासकार द्वारा मानवीय नाटकों में निहित अर्थ को ढूँढ़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं। सामान्यतया, इतिहास को एक बाह्य जगत् के रूप में देखा जा सकता है तथा ऐतिहासिक तथ्य को वास्तविक घटना के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह सत्य है कि वास्तविक अतीत हो चुका है तथा इतिहासकार का जगत् एक अगोचर जगत् है जिसका परिकल्पनात्मक निर्माण है। यदि यह सत्य है तो इसके कई अभिप्रेत अर्थ निकलते हैं।
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इतिहास की परिभाषा
परिभाषा एक शाब्दिक प्रक्रिया है जिसका अभिप्राय किसी विषय के मूल तत्व को स्पष्ट करना है। एच. शिलर (H. Schiller) के अनुसार, परिभाषा दो कील की भाँति है, जिन्हें इतिहासकार किसी मानचित्र पर चुभोकर सर्वमान्य मार्ग को निश्चित करता है। चार्ड और ओगडन (Chard and Ogden) के अनुसार, परिभाषा का मुख्य उद्देश्य किसी विषय को सरल तथा बोधगम्य बनाना है।
दुर्भाग्य से अभी तक इतिहास की कोई भी सर्वमान्य परिभाषा निश्चित नहीं की जा सकी है। विद्वानों में मतैक्य का अभाव देखकर चार्ल्स फर्थ (Charles Firth) ने लिखा है कि इतिहास को परिभाषित करना सरल नहीं है। शायद उतना हो कठिन जितना टी. एस. इलियट (T.S. Eliot) के लिए 'काव्य' परिभाषित करना। जो भी हो, इतिहासकारों ने निम्नानुसार अपने-अपने ढंग से इतिहास को परिभाषित करने के संजीदा प्रयास किये हैं-
(1) इतिहास कहानी है
जी, एम ट्रेविलियन (G. M. Trevelan) के अनुसार, "इतिहास अपने अपरिवर्तनीय अंश में एक कहानी है।" फ्रेंच अकादमी के अनुसार, "इतिहास स्मरण योग्य वस्तुओं की कहानी है।" डच इतिहासकार जॉन हुइजिंगा (John Huizinga) ने इतिहास को अतीत की घटनाओं का उल्लेख स्वीकार किया है। एफ. एस. ऑलिवर (F. S. Oliver) के अनुसार "इतिहास को केवल कहानी बताना चाहिए, इस कहानी के स्वरूप को उपदेश तथा नैतिक विचारों से दुष्कृत नहीं करना चाहिए।"
यदि इतिहास को मात्र कहानी ही स्वीकार किया जाए तो उसका स्वरूप और उद्देश्य क्या होने चाहिए। रेनियर (Renier), यार्क पावेल (York Powell) व सीले (Sheley) के विचारों का निचोड़ यह है कि इतिहास समाज तथा राज्य के नेतृत्व करने वाले मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों की कहानी है।
(2) इतिहास समाज का वर्णन है
चाल्सं फर्थ (Charles Firth) के अनुसार, इतिहास मानवीय सामाजिक जीवन का वर्णन है। इसका उद्देश्य सामाजिक परिवर्तनों को प्रभावित करने वाले उन सक्रिय विचारों का अन्वेषण है जो समाज के विकास में बाधक अथवा सहायक सिद्ध हुए हैं। इन सभी तथ्यों का उल्लेख इतिहास में होना चाहिए। ए. एल. राउज (A. L. Rowse) ने भी इस तथ्य को मान्यता प्रदान करते हुए कहा है कि इतिहास भौगोलिक वातावरण के परिवेश में समाज में रहने वाले मनुष्यों का उल्लख है। सामाजिक तथा सास्कृतिक उद्भव एवं विकास मनुष्य तथा पर्यावरण की अन्तः क्रिया की प्रक्रिया होते हैं। भौगोलिक परिस्थितियों ने समाज तथा संस्कृति को काफी प्रभावित किया है।
इतिहास की सामाजिक विज्ञान का उद्गम स्थल है। इसका अभिप्राय यह है कि इतिहास में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास का उल्लख अपरिहार्य है। इसलिए हेनरी पिरेन (Henry Pirenne) ने कहां है कि इतिहास अतीत में स्थित मानवीय समाज के विकास का व्याख्यात्मक विवरण है।
(3) इतिहास ज्ञान है
इतिहास एक प्रकार का ज्ञान है। यह वह दर्शन है जो उदाहरणों द्वारा ज्ञान प्रदान करता है। चार्ल्स फर्थ (Charles Firth) के अनुसार, इतिहास ज्ञान की एक शाखा ही नहीं, अपितु एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो मनुष्य के दैनिक जीवन में उपयोगी है। मनुष्य इतिहास का अध्ययन अतीत के उदाहरणों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए करता है। इतिहास का उद्देश्य अतीत के उदाहरणों से ऐसी शिक्षा प्रदान करना है जो मनुष्य की इच्छाओं और कार्यों का मार्गदर्शन कर सके।
कालिंगवुड तथा कोचे (Collingwood and Croce) ने भी इस तथ्य को मान्यता प्रदान करते हुए कहा है कि ऐतिहासिक ज्ञान मानव सम्बन्धी ज्ञान का स्रोत है। विको (Vico) और डिल्वे (Dilthey) का अनुकरण करते हुए क्रोचे (Croce) कहता है कि मनुष्य प्रकृति के परिमण्डल की अपेक्षा स्वयं अपने परिमण्डल को अधिक गहरायी से समझ सकता है। कालिंगवुड (Collingwood) की भी यही अवधारणा है। इतिहास एक अद्वितीय प्रकार का ज्ञान है तथा यह मानव के सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। इस प्रकार इतिहास को ज्ञान की मान्यता प्रदान की गयी है, ऐसे ज्ञान को जो मनुष्य को जैसा कि फ्रांसिस बेकन (Francis Bacon) का मानना है, बुद्धिमान बनाता है। बर्क (Burke) ने भी इतिहास को बुद्धिमानी का गुरु माना है। वस्तुतः इतिहास एक ऐसी दुकान है, जहाँ सारी किस्म का बौद्धिक सौदा मिल जाता है।
(4) सम्पूर्ण इतिहास विचार का इतिहास है
कालिंगवुड (Collingwood) ने सम्भवतः अपने सर्वाधिक प्रसिद्ध वाक्यांश में कहा है, "सम्पूर्ण इतिहास विचारधारा का इतिहास होता है।" परन्तु बाल्श (Walsh) ने इसकी आलोचना की है। उसके अनुसार इतिहास विचार प्रधान नहीं होती। प्राय: दैवी प्रकोप, बाढ़, भूकम्प, अनावृष्टि तथा अतिवृष्टि मानवीय विचार के विपरीत परिणाम देते हैं। इस प्रकार दैवी प्रकोप के समक्ष मानवीय विचार प्रधान न होकर अस्तित्वहीन होने लगता है। हींगेल (Hegal) तथा कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अन्तर्निहित शक्तियाँ प्रायः मानवीय इच्छा के विपरीत परिणाम देती हैं। यदि इतिहास में विचार ही प्रधान होता तो सम्भवतः असफलताओं का इतिहास नहीं होता।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विचार मानवीय क्रियाओं को उत्प्रेरक शक्ति होता है। फिर भी अदृश्य दैवी शक्तियों और प्राकृतिक प्रकोपों के समक्ष विचार नगण्य तथा अस्तित्वहीन हो जाता है। अतः सभी इतिहास को विचार का इतिहास नहीं कहा जा सकता है। ऐतिहासिक अध्ययन वस्तुत: आत्म-गवेषणा की प्रक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिगम आत्म-बोध की सहायता से मनुष्य अपने वर्तमानकालिक जीवन को सुचारुरूपेण नियन्त्रित कर सकता है।
(5) सम्पूर्ण इतिहास समसामयिक इतिहास है
क्रोचे (Croce) की अभिव्यक्ति है कि "सम्पूर्ण इतिहास समाययिक इतिहास होता है।" क्रोचे (Croce) के इस वाक्यांश का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्तमान इतिहास अतीत का अपनी दृष्टि से अवलोकन करता है। अतीत को उस रूप में नहीं देखता जिस रूप में वह था। अतीत का निर्माण इतिहासकार के मस्तिष्क में होता है।
समसामयिक इतिहास अनतिदूर अतीती के रूप में देखे जाने वाले कालान्तराल का इतिहास कहा जा सकता है। यह कालान्तराल पिछले पचास वर्षों, एक दशक, एक वर्ष, एक मास, एक दिन अथवा पिछले एक घण्टे अथवा एक क्षण का भी हो सकता है, किन्तु उपयुक्ततः केवल उसी इतिहास को 'समसामयिक' शब्द से विशेषित किया जाता है जो विवेचनीय कार्य के तुरन्त पश्चात् अस्तित्व में आये तथा जिसमें उस कार्य की चेतना विद्यमान हो। इसके विपरीत 'अतीतकालिक' इतिहास वह है जो पहले से ही स्थित इतिहास के सन्दर्भ में उपस्थित होता है और इस प्रकार उस इतिहास की समीक्षा के रूप में अस्तित्व में आता है चाहे वह इतिहास एक हजार वर्ष पुराना हो या केवल एक घण्टा पुराना हो।
किन्तु निकट से देखने पर यह इतिहास भी जिसे हम असमसामयिक अथवा अतीतकालिक कहते हैं, यदि वस्तुतः यह शुद्ध रूप में इतिहास है तो समसामयिक होता तथा इस प्रकार तथाकथित समसामयिक इतिहास से भिन्न नहीं होता। अतीतकालिक इतिहास को भी पहली अपेक्षा है कि इसमें कथ्य कार्य इतिहासकार के चित्त को उद्वेलित करता हो तथाकथित समसामयिक इतिहास के समान वह इतिहास भी सजीव होता है, क्योंकि यह एक स्पष्ट तथ्य है कि केवल वर्तमानकालिक जीवन में अभिरुचि ही अतीत के अनुसन्धान के लिए प्रेरित करती है और इस कारण अतीतकालिक तथ्य, जहाँ तक कि यह वर्तमानकालिक जीवन के हितों के साथ संयुक्त होता है। वस्तुतः अतीत के कौतूहलों अथवा स्वार्थों का नहीं, अपितु वर्तमानकालिक जीवन के कौतूहलों अथवा स्वार्थों का समाधान प्रस्तुत करता है।
प्रत्येक विशुद्ध इतिहास समसामयिक होता है। किसी भी अतीतकालिक घटना व्यापार का इतिहास केवल इसके विवरण के रूप में हमारे लिए कोई विशेष महत्व नहीं रखता, पैलिपोनेशियन युद्ध, मैक्सिको की कला अथवा अरबी-दर्शन का इतिहास वर्तमान में क्या अभिरुचि दे सकता है, यदि वर्तमान को इसमें कोई अभिरुचि नहीं है। इतिहासकार अतीत का अध्ययन समसामयिक सामाजिक उपयोगिता के लिए करता है और अतीत उस क्षण वर्तमान हो जाता है जब हम वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुरूप उसका पुनर्विस्तरण करते हैं। रेनियर (Renier), डीवी (Dewy), ओकशाट (Oakehott) आदि ने भी अपने-अपने तरीके से इतिहास की समसामयिकता कबूल की है। मैंडेलबम (Mandelbaum) ने भी अतीत में वर्तमान रुचि को प्रधानता दी है। गालब्रेथ (Galbraith) के अनुसार अतीतकालिक घटनाओं के प्रस्तुतीकरण में इतिहास वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्तमान में सामाजिकं रुचि तथा उपादेयता को प्रधानता देने का अभिप्राय इतिहास को समसामयिक मान्यता प्रदान करना है।
(6) इतिहास अतीत तथा वर्तमान के बीच सेतु है
इतिहास के इतिहास की सामग्री अतिकालिक ऐतिहासिक तथ्य होते हैं तथा इतिहासकार वर्तमान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी ऐतिहासिक तथ्य (इतिहास की रीढ़) अपने युग के प्रतिमानों द्वारा प्रभावित इतिहासकार का व्याख्यात्मक विवरण होता है। चयन तथा व्याख्या की अन्तर्प्रक्रिया का स्वरूप अतीत तथा वर्तमान है। यदि तथ्य अतीत का प्रतिनिधित्व करता है तो इतिहासकार वर्तमान का। कार (Carr) ने उचित ही कहा है कि "वस्तुतः इतिहास, इतिहासकार तथा तथ्यों के बीच अन्तक्रिया की अविच्छिन्न प्रक्रिया तथा वर्तमान और अतीत के बीच अनवरत् परिसंवाद है" और यह एकाकी व्यक्तियों के बीच परिसंवाद नहीं अपितु अतीतकालिक तथा वर्तमानकालिक समाज के बीच संवाद है। इस प्रकार -अतीत, तथा वर्तमन इतिहास में एक-दूसरे से सम्पृक्त हैं।
परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इतिहास भविष्य से सरोकार नहीं रखता। वास्तविकता यह है कि इतिहास में अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का समानरूपेण महत्व है। वर्तमान में रुचि इतिहासकार को अतीत के अवलोकन के लिए प्रेरित करती है, भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य की कल्पना उसके मस्तिष्क में रहती है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि इतिहास अतीत और वर्तमान को सम्पृक्त करने वाला एक सेतु है। इतिहासकार इस सेतु के माध्यम से समसामयिक समाज को अतीत के उन तथ्यों का अवलोकन कराता है जो बर्तमान के लिए रुचिकर एवं उपयोगी हो। इतिहासकार इस सेतु का प्रकाश स्तम्भ होता है। उसका कार्य अतीत के उद्धरणों द्वारा वर्तमान पर प्रकाश डालना तथा सुखद भविष्य का मार्गदर्शन करना होता है। गैरोन्सकी (Gawronski) कहता है, "इतिहास विगत मानवीय समाज का मानवतावादी एवं व्याख्यात्मक अध्ययन है जिसका उद्देश्य वर्तमान के बारे में अन्तर्दृष्टि प्राप्त करना तथा भविष्य को प्रभावित करने की आशा जाग्रत करता है।"