ग्रामीण समुदाय
ग्रामीण समुदाय का अर्थ
गाँव वह समुदाय है जहाँ तुलनात्मक दृष्टि से सामाजिक एकरूपता, अनौपचारिकता, प्राथमिक समूहों की प्रधानता और कृषि मुख्य व्यवसाय होता है। ग्रामीण समुदाय से यह प्रतिध्वनित होता है कि ग्रामीण पर्यावरण में स्थित व्यक्तियों का कोई भी छोटा या बड़ा ऐसा समूह जो प्रत्यक्षतः प्रकृति पर निर्भर होता है और उसकी जीविका भी प्रकृति पर ही आधारित रहती है।
समाजशास्त्री सिम्स ने बताया है कि "ग्रामीण पर्यावरण में एक सीमित आकार में सामुदायिक भावना के साथ जीवनयापन करने वाले ग्रामीण समुदाय के सदस्य कहलाते हैं।" 'कल्चर ऑफ सोसाइटी' नामक पुस्तक में मेरिल और एलड्रिज ने लिखा है कि "ग्रामीण समुदाय के अन्तर्गत संस्थाओं और ऐसे व्यक्तियों का समावेश होता है जो एक छोटे से केन्द्र के चारों ओर संगठित हो सामान्य और प्राथमिक हितों द्वारा आपस में बँधे रहते हैं।"
सेण्डरसन ने 'दी रूरल कम्यूनिटी' नामक पुस्तक में ग्रामीण समुदाय की व्याख्या करते हुये लिखा है कि "एक ग्रामीण समुदाय, बिखरे हुए कृषि गृहों, जंगल या गाँव में रहने वाले व्यक्तियों से मिलकर बनता है, जो वहाँ अपनी सामूहिक क्रियाओं को सामुदायिक भावना के साथ करते हैं।"
डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार- "ग्रामीण समुदाय समस्त मनुष्यों की एक सामान्य सभा के रूप में, अपने समस्त सदस्यों के समान अधिकारों के लिये कार्य करता है।"
समाजशास्त्रियों एवं विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गई ग्रामीण समुदाय की उपरोक्त परिभाषाओं से हम कह सकते हैं कि ग्रामीण समुदाय का तात्पर्य एक निश्चित भू-भाग पर रहने वाले किसी भी छोटे या उस बड़े समूह से होता है, जिसमें जनसंख्या की समरूपता, समाज एवं सांस्कृतिक समानता, प्रकृति से सम्बद्धता, सरलता एवं सामुदायिक भावना की प्रधानता होती है। ग्रामीण समुदाय को राष्ट्र की उस लघु इकाई के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जिसमें आत्मनिर्भरता, जनसंख्या की समरूपता, प्रकृति से निकटता और सरलता जैसी विशेषताएँ पाई जाती हैं। गाँव मानव परिवारों का वह समूह है जो एक निश्चित क्षेत्र में स्थापित होता है एवं एक विशिष्ट नाम से जाना जाता है। भारतीय समाजशास्त्री श्री ए. आर. देसाई ने ग्रामीण समुदाय का अर्थ विश्लेषित करते हुए कहा है कि "गाँव, ग्रामीण समाज की एक इकाई है। यह एक रंगशाला के समान है जहाँ ग्रामीण जीवन अपने को प्रकट करता है।" ग्रामीण समुदाय वास्तव में एक ऐसे निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जिसके निवासी कृषि कार्य करते हुए सामुदायिक जीवन व्यतीत करते हैं।
ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ
ग्रामीण समाज के विद्वानों द्वारा ग्रामीण समुदाय की विशेषताओं की निम्नानुसार व्याख्या की गई है-
(1) छोटा/सीमित आकार- ग्रामीण समुदाय जनसंख्यात्मक दृष्टि से छोटा है। उसमें जनसंख्या घनत्व भूमि पर निर्भर होता है एवं प्रकृति पर प्रत्यक्षतः निर्भर होने के कारण ग्रामीण समुदाय का आकार सीमित होता है। यहाँ पर नगरों की तरह बाहरी जनसंख्या का आव्रजन न होने के कारण आकार के बढ़ने की सम्भावना नहीं रहती।
(2) प्रकृति पर निर्भर- ग्रामीण समुदाय पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होता है। ग्रामीण समुदाय कृषि, पशुपालन, शिकार, वनोपज संग्रह करके जीवनयापन करता है जिससे व्यक्ति प्रकृति से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाता है। भौगोलिक परिस्थितियाँ ग्रामीण दिनचर्या को प्रभावित करती हैं। अतः ग्रामीण समुदाय प्रकृति पर ही निर्भर और आश्रित होता है।
(3) मुख्य व्यवसाय कृषि- ग्रामीण समुदाय के प्रकृति पर निर्भर होने के कारण यहाँ मुख्य व्यवसाय (Agriculture) है। कृषि कार्य में रक्षता के कारण ग्रामीण समुदाय अन्य किसी कार्य पर ध्यान नहीं देता। यहाँ पर श्रम का विशेषीकरण न होने के कारण भी कृषि कार्य को ही प्राथमिकता दी जाती है।
(4) सरल और सादा जीवन- ग्रामीण समुदाय का जीवनयापन सामान्य होता है। समुदाय का निर्माण जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होने के कारण ग्रामीणों का जीवन सदैव सरल (Simple) और साधारण रहता है।
(5) समरूप सामाजिक जीवन- ग्रामीण समुदाय को एक सामाजिक प्रारूप (Social Type) के रूप में देखने पर इसकी स्थिति जनजाति समाज (Primitive Tribe) के समान होती है। अतः ग्रामीण समुदाय के जीवन में समांगता या समरूपता (Homogeneity) अधिक होती है। ग्रामीण समुदाय में अलग-अलग सामाजिक समूहों का अभाव होता है एवं जीवन निर्वाह के साधन लगभग एक समान और परस्पर सम्बन्धित होते हैं। ग्रामीण समुदाय के परम्परागत होने के कारण इनका सामाजिक जीवन समांगी (Homogeneous) होने से सभी व्यक्ति एक भाषा, त्यौहार, प्रथा, व्यवसाय और जीवन पद्धति का प्रयोग करते हैं।
(6) जाति तथा जजमानी प्रथा का महत्व- ग्रामीण समुदाय की प्रमुख पहचान जाति प्रथा और जजमानी प्रथा से होती है। भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता जाति प्रथा है और इसके आधार पर ही ग्रामीण समुदाय में सामाजिक संस्तरण होता है। जाति के नियम, कार्य-पद्धति आदि ग्रामीण समुदाय की पहचान होती है।
जाति प्रथा में प्रत्येक जाति के व्यवसाय निश्चित होते हैं। सभी जातियाँ एक-दूसरे की मदद करती हैं। विभिन्न जातियों के परस्पर सहयोग करने का अनुपम उदाहरण जजमानी प्रथा है। जजमानी प्रथा में सेवा को प्रमुखता दी जाती है एवं सभी जातियाँ अपनी-अपनी सेवाएँ प्रदान करती हैं।
(7) भाग्यवादी दृष्टिकोण- ग्रामीण समुदाय भाग्यवादी दृष्टिकोण वाला होता है। परम्परागत जीवन एवं धर्म पर आस्था के फलस्वरूप ग्रामीण समुदाय भाग्य पर आश्रित होता है। जीवन की प्रत्येक घटना को ग्रामीण भाग्य से सम्बन्धि मानते हैं। वर्षा का होना या न होना, अकाल, सूखा, दूर्घटना आदि घटनाएँ ग्रामीण समुदाय में भाग्य के कारण ही होती हैं, ऐसा इनका विश्वास है। शिक्षा के अभाव में ग्रामीण अन्धविश्वासी और भाग्यवादी होते हैं।
(8) धर्म का महत्व- ग्रामीण समुदाय में सामाजिक नियन्त्रण के साधन परम्परागत और अनौपचारिक होते हैं। ग्रामीण समुदाय में धर्म को विशेष महत्व दिया जाता है। ग्रामीण समुदाय विविध कर्मकाण्डों से परिपूर्ण जीवनयापन करता है। धर्म ग्रामीण समुदाय का आधार एवं जीवन का केन्द्र होता है। ईश्वरीय शक्ति के प्रति आदर, श्रद्धा, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक की अवधारणा से ग्रामीण समुदाय बँधा रहता है। ग्रामीणों के प्रत्येक क्रिया कलाप-जन्म, मृत्यु, विवाह, खेतों में बुआई, कटाई आदि सभी धार्मिक क्रियाओं के साथ सम्पन्न होते हैं।
(9) अशिक्षा- भारतीय ग्रामीण समुदाय की अधिकांश आबादी अशिक्षित है। यह एक विडम्बना ही है कि भारत की आजादी के लगभग 6 दशक बाद भी ग्रामीण समुदाय में अशिक्षा की भरमार है। शिक्षा के प्रति ग्रामीण समुदाय में विशेष रुझान नहीं पाया जाता है।
(10) प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता- ग्रामीण समुदाय सीमित आकार के होते हैं। समुदाय के छोटे आकार का होने के कारण इसका प्रत्येक व्यक्ति आपस में परिचित और सम्बन्धित होता है। परिवार, पड़ोस और नातेदारी सम्बन्धों की यहाँ पर प्रधानता होती है। ग्रामीण समुदाय में अनौपचारिक सम्बन्ध और पारस्परिक सहयोग की प्रमुखता पाई जाती है।
(11) निम्न जीवन स्तर- ग्रामीण समाज में आजीविका का एकमात्र साधन कृषि है। वर्तमान में कृषि व्यवसाय में लागत अधिक और उत्पादन कम होने एवं मौसम की प्रतिकूलता के कारण कृषक दिन-प्रतिदिन ऋणग्रस्त होते जा रहे हैं जिससे ग्रामीण समुदायों का जीवन स्तर निम्न स्तरीय होता है।
(12) सामुदायिक भावना- प्रत्येक समुदाय की आन्तरिक संरचना का निर्माण सामुदायिक भावना के फलस्वरूप होता है। ग्रामीण समुदाय के सदस्य एक-दूसरे को भली-भाँति जानते हैं। इनमें परस्पर प्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं। ग्रामीण व्यक्ति एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बनते हैं और परस्पर सहयोग करते हैं। इसलिए कहा गया है कि ग्रामीण समुदाय का निर्माण सामुदायिक भावना के कारण होता है।
नगरीय समुदाय
नगरीय समुदाय का अर्थ
"नगरीय समुदाय" अध्ययन की दृष्टि से नगरीय समाजशास्त्र का एक नया क्षेत्र है, लेकिन इसकी स्थापना काफी पुरानी है। ग्रामीण समुदाय के पश्चात् नगरीय समुदाय की सीमा प्रारम्भ होती है अर्थात् सभ्यता के विकास क्रम में मनुष्य ने गाँवों के पश्चात् नगरों में सामुदायिक जीवनयापन प्रारम्भ किया, जो बाद में नगरीय समुदाय (Urban Community) के नाम से जाना जाने लगा। नगरीय समुदाय का अध्ययन करते हुये साधारण रूप से कहा जा सकता है कि "ग्रामीण समुदाय का विपरीत ही नगरीय समुदाय होता है।"
नगरीय समुदाय के प्रति विद्वानों की अलग-अलग धारणायें प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों ने जनसंख्या घनत्व के आधार पर नगरीय समुदाय की व्याख्या की है। समाजशास्त्री किंग्सले डेविस का कहना था कि "सामाजिक दृष्टि से नगरीय समुदाय परिस्थितियों की उपज होती है।" डेविस इसे परिभाषित करते हुए कहते हैं कि, "नगर एक ऐसा समुदाय है जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विषमतायें होती हैं। नगरीय समुदाय कृत्रिमता, व्यक्तिवादी, प्रतियोगिता एवं जनसंख्या से घिरा क्षेत्र है।"
लुईस बिर्थ (Louis Birth) ने नगरीय समुदाय की विवेचना करते हुए बताया है कि "नगरीय समुदाय अपेक्षाकृत एक व्यापक, घना और सामाजिक दृष्टि से विजातीय मनुष्यों का स्थायी निवास है। नगरीय समुदाय द्वितीयक सम्बन्धों वाला सामाजिक और व्यावसायिक गतिशीलता वाला समुदाय है, जिसमें विस्तृत सामाजिक अन्तक्रियायें और विजातीयता होती है।" नगर में एक विस्तृत क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति विशेषीकरण के साथ जीवनयापन करते हैं अर्थात् नगरीय समुदाय का अर्थ है- "एक विस्तृत क्षेत्र में विशेषीकरण के साथ जीवनयापन करना।" नगरीय समुदाय एक विस्तृत अवधारणा है। औद्योगीकरण के पश्चात् समाज में नगरीय समुदाय में तीव्रता से वृद्धि हुई है। नगर न सिर्फ निवास का स्थान है बल्कि एक विशिष्ट पर्यावरण का सूचक भी है। नगर अत्यधिक जनाधिक्य, औपचारिक एवं द्वैतीयक सम्बन्धों वाले व्यक्तिवादी एवं भौतिकवादी संस्कृति के रूप में जाने जाते हैं।
कानूनी दृष्टि से उच्च सत्ता के चार्टर द्वारा नगर घोषित किया जाता है। शाब्दिक दृष्टि से 'नगर' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'सिटी' (City) शब्द का हिन्दी अनुवाद है। 'सिटी' शब्द लैटिन के सिविटाज (Civitas) से बना है, जिसका अर्थ होता है- नागरिकता। नगरीय समाजशास्त्र के विद्वानों द्वारा नगरीय समुदाय को उसकी विशेषताओं के साथ विश्लेषित किया है। कुछ विद्वानों ने नगरीय समुदाय का आधार जनसंख्या निश्चित किया है जबकि अन्य ने शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार-व्यवसाय, आवागमन, संचार, मनोरंजन आदि के उन्नत सुविधाओं वाले समुदाय को नगरीय समुदाय सम्बोधित किया है।
नगरीय समुदाय की विशेषताएँ
नगरीय समाज के विद्वानों ने नगरीय समुदाय की विशेषताओं की व्याख्या की है। किंग्सले डेविस, पार्क, बर्गेस, नेल्स एण्डरसन, रोनाल्ड फ्रीडमैन, जिम्मरमैन और सोरोकिन आदि ने नगरीय समुदाय की निम्नानुसार विशेषताएँ व्यक्त की हैं-
(1) जनसंख्या बाहुल्य- जनसंख्या बाहुल्य/जनाधिक्य, नगरीय समुदाय की प्रमुख विशेषता है। नगरीय समुदाय में सीमित क्षेत्र में अधिक जनसंख्या के निवास करने के कारण जनसंख्या घनत्व अधिक होता है। जनसंख्या की अधिकता के कारण ही नगरीय समुदाय को नगर, महानगर में बाँटा गया है। जनाधिक्य होने से नगरीय समुदाय भीड़-भाड़, प्रदूषण, अपराध, बेरोजगारी से ग्रसित हैं।
(2) जनसंख्या में असमानता- नगरीय समुदाय की जनसंख्या में समरूपता नहीं पाई जाती है। नगरीय समुदाय में विभिन्न स्थानों से व्यक्तियों के आने-जाने के कारण यहाँ पर अलग-अलग धर्म, जाति, सम्प्रदाय, वर्गों, प्रजातियों के मानने वाले व्यक्तियों की जनसंख्या होती है। विविध जनसंख्या होने के कारण ही नगरीय समुदाय में असमान जीवनचर्या होती है।
(3) द्वितीयक सम्बन्ध- नगरीय समुदाय में जनाधिक्य और असमान जनसंख्या के निवास करने के कारण व्यक्तियों के मध्य द्वितीयक सम्बन्ध होते हैं। यह कई खण्डों में विभक्त होता है जिससे यहाँ पर द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता रहती है।
(4) व्यवसायों की बहुलता एवं विभिन्नता- ग्रामीण समुदाय की तरह, नगरीय समुदाय में एक ही व्यवसाय नहीं होता। नगरीय समुदाय में आजीविका निर्वाह के विभिन्न प्रकार के व्यवसाय होते हैं। नगरों में व्यवसायों की बहुलता के साथ ही साथ विभिन्नता भी पाई जाती है।
(5) श्रम विभाजन- नगरीय समुदाय में एक ही व्यक्ति सभी कार्य नहीं करता। यहाँ पर कार्यों का बँटवारा रहता है और प्रशिक्षित व्यक्ति ही कार्य करते हैं। अतः नगरीय समुदाय में श्रम विभाजन और विशेषीकरण महत्वपूर्ण होते हैं।
(6) कृत्रिम जीवन- नगरीय समुदाय का जीवन जटिल होता है। इसमें दिखावे और आडम्बर का महत्व होता है। इसलिये नगरीय समुदाय की दिनचर्या को कृत्रिम जीवन भी कहा जाता है।
(7) सामाजिक अस्थिरता- नगरीय समुदाय में सामाजिक अस्थिरता देखने की मिलती है। व्यक्ति एक कार्य से दूसरे कार्य में एवं एक स्थान से दूसरे स्थान में आते-जाते रहते हैं जिससे व्यक्तियों का सामाजिक स्तर सदैव परिवर्तित होता रहता है।
(8) प्रतिस्पर्द्धा- नगरीय समुदाय में प्रतिस्पर्द्धा का विशिष्ट महत्व है। जीवन के सभी क्षेत्रों- आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, व्यावसायिक आदि में प्रतिस्पर्द्धा के महत्वपूर्ण होने के कारण नगरीय जीवन दिन-प्रतिदिन प्रतिस्पर्द्धात्मक होता जा रहा है।
(9) राजनीतिक केन्द्र- नगरीय समुदाय राजनैतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। नगरों में शासकीय कार्यालयों के साथ ही साथ राजनैतिक दलों के कार्यालय भी होते हैं। अतः नगरीय समुदाय राजनीति के केन्द्र के रूप में जाने जाते हैं।
(10) सामाजिक समस्याओं के केन्द्र- नगरीय समुदाय सामाजिक समस्याओं के केन्द्र होते हैं। जनाधिक्य एवं व्यावसायिक बहुलता के कारण नगरों में गन्दी बस्ती, अपराध, प्रदूषण, बाल-श्रम, महिला शोषण जैसी सामाजिक समस्याओं का जन्म हुआ है और दिन-प्रतिदिन नई-नई समस्याएँ यहाँ पर उदित हो रही हैं।
(11) शिक्षा एवं संस्कृति के केन्द्र- नगरीय समुदाय शिक्षा और संस्कृति के केन्द्र होते हैं। नगरों में विभिन्न शिक्षा संस्थान, भाषा, साहित्य, ज्ञान की संस्थाओं के कारण नगरीय समुदायों को शिक्षा पूर्व संस्कृति के केन्द्र माना जाता है।