गन्दी बस्तियों से कोई भी बड़ा नगर अछूता नहीं बचा है। वास्तव में गन्दी बस्तियाँ बड़े नगरों की आवश्यक बुराई हैं। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली तथा अहमदाबाद जैसे आधुनिक नगरों में इनका विकराल रूप दिखायी देता है। इन बस्तियों को मानव जाति के लिए अभिशाप कहना भी अनुचित न होगा।
गन्दी बस्तियों का अर्थ
गन्दी बस्तियों में रहने वाले नारकीय जीवन जीने को विवश होते हैं। समाज इन्हें उपेक्षित और घृणा की निगाहों से देखता है। इनके पास रूखा-सूखा भोजन, पहनने को फटे-गन्दे कपड़े, टूटी-फूटी झोपड़ी या सड़क का किनारा और जीविका के नाम पर भीख तथा चोरी जैसे साधन ही होते हैं।
गन्दी बस्तियों की दूसरे शब्दों में निम्न प्रकार से परिभाषा दी जा सकती है "गन्दी बस्ती ऐसे लोगों का निवास क्षेत्र है, जिनका स्वास्थ्य, रहन-सहन अत्यन्त दूषित तया घृणित व निम्न प्रकार का होता है। गन्दी बस्तियों से न केवल वहाँ के लोगों के बल्कि सम्पूर्ण समाज के स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिकता के लिए खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना होती है।"
गन्दी बस्ती की विशेषताएँ
गन्दी बस्ती की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. इन बस्तियों में जल की समुचित व्यवस्था नहीं होती। पूरी बस्ती में 2-4 नल होते हैं। अक्सर यहाँ के लोग सप्ताह में एक बार स्नान कर लेते हैं और फिर पुराने गन्दे कपड़े पहन लेते हैं क्योंकि साबुन आदि के अभाव में 4-6 माह तक कपड़े साफ न करना उनकी आदत बन जाती है।
2. प्रायः यहाँ की अधिकांश जनता सर्वथा अशिक्षित होती है और वे सार्वजनिक स्वास्थ्य अथवा व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्व ही नहीं समझते।
3. यहाँ की गन्दी नालियों में मक्खी-मच्छर तथा अन्य हानिकारक जीव-जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। अतः यहाँ के लोग प्रायः रोगग्रस्त ही रहते हैं।
4. ये शहर से दूर किसी गन्दे स्थान पर कारखानों या मिलों के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
5. इन बस्तियों की गलियाँ तग और कच्मी होती हैं। वर्षा में इनमें कीचड़ भरने के कारण चलना भी कठिन हो जाता है। कीचड़ के कारण अनेक बीमारियों उत्पत्र हो जाती हैं।
6. शौचालयों तथा नालियों की उचित व्यवस्था नहीं होती, परिणामस्वरूप सब ओर गन्दगी फैल जाती है।
7. मकानों में खिड़की, रोशनदान आदि का अभाव होती है। झोपड़ियों में रहने के स्थान बहुत छोटे प्रायः कच्चे होते हैं। बायु और सूर्य की रोशनी भी इन स्थानों तक नहीं पहुँचती। इस प्रकार यहाँ रहने वाले लोग गन्दी वायु में ही साँस लेते हैं। अतः अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।
गन्दी बस्तियों के विकास के कारण
गन्दी बस्तियों के उत्पन्न तथा विकसित होने के मुख्य तीन कारण होते हैं-
1. नगरीकरण तथा औद्योगिकीकरण
इसमें ऐसे लोगों की भूमिका मुख्य होती है जो ग्रामीण अंचलों से नगरों में काम की तलाश में आते हैं और किसी विशाल भवन स्थल, भवन निर्माण स्थल या झुग्गी-झोपड़ियों में रहने लगते हैं। इन्हें इतना पारिश्रमिक नहीं मिलता कि अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। अभावपूर्ण जीवन जीते हुए ये लोग गन्दी बस्तियों को जन्म देते हैं।
2. चॉलों (Chawls) का निर्माण
बड़े नगरों में कुछ व्यक्ति अपने घर से मकानों के नाम पर छोटी-छोटी कोठरियाँ बनवा देते हैं जिसमें न तो पानी की व्यवस्था होती है न ही शौचालय या बिजली की। एक सार्वजनिक नल तथा सार्वजनिक शौचालय पूरे क्षेत्र में लोगों की आवश्यकता के लिए होता है। ऐसे क्षेत्रों में मजदूर वर्ग के लोग ही होते हैं, जिनकी आमदनी का 50% मकान मालिक के ही जेब में चला जाता है जिसके कारण वे कठिनाई से अपना गुजारा कर पाते हैं। ये क्षेत्र भी गन्दी बस्तियों का निर्माण करते हैं।
3. पुराने मुहल्ले
नगरों में कुछ मुहल्ले ऐसे होते हैं, जो पुराने होते हैं, जहाँ के मकान जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आज भी हैं। ऐसे मुहल्लों में सभ्य लोग तो नहीं रहते परन्तु मजदूर वर्ग के परिवार रहते हैं। ये लोग किसी प्रकार इनमें ही अपना गुजारा करते हैं। गन्दी बस्तियों के विकसित होने का यह भी एक कारण होता है।
गन्दी बस्तियों की समस्याएँ
गन्दी बस्तियों में रहनेवालों का जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है। ये लोग सम्पूर्ण समस्याओं से ग्रसित रहते हैं। इनकी समस्याएँ मुख्य रूप से निम्न होती हैं-
1. भौतिक सुविधाओं का अभाव
भोजन, वस्व और रहने के लिए स्थान ये मनुष्य की मौलिक आवश्यकताएँ हैं। गन्दी बस्ती के लोगों के लिए इन आवश्यकताओं को पूरा करना एक अत्यन्त कठिन समस्या है। अन्य भौतिक साधनों का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आज 21वीं सदी में जबकि मानव पृथ्वी पर ही नहीं आसमान तक कुलाँचें भर रहा है, किन्तु इन बस्तियों के लोग एक-एक टुकड़े भोजन तथा शरीर बैंकने के लिए वस्त्रों के लिए तरसते रहते हैं। शुद्ध वायु, स्वच्छ वातावरण, शुद्ध जल तथा स्नान व शौचादि के स्थान पर उन्हें केवल घुटन-भरा गन्दा वातावरण ही नसीब हो पाता है।
2. अस्वस्थता तथा रोग प्रसार
यह तो निश्चित है कि जो लोग ऐसी गन्दी बस्तियों में रहते हैं, उन्हें शुद्ध वातावरण, शुद्ध भोजन शुद्ध जल नसीब नहीं होता, उनका स्वास्थ्य भी निम्न स्तर का ही होगा। आपको विदित होना चाहिए कि जनसंख्या सभ्य व शिक्षित वर्ग की अधिक नहीं बढ़ती। ये गन्दी बस्ती के लोग जनसंख्या वृद्धि भी अधिक करते हैं तथा स्थानाभाव के कारण एक-एक कोठरी में 8-8 व 10-10 लोग रहते हैं। उसी में सभी कार्य करते हैं, कोठरी में चारों ओर टूटी-फूटी सामग्री बिखरी रहती है, जिनसे मक्खी, मच्छर उत्पन्न होते हैं। कोठरियों के बाहर कूड़े की गन्दगी तथा गन्दा पानी जमा रहता है, जिससे वातावरण और भी दूषित हो जाता है। ये सभी बातें विभिन्न रोगाणुओं को अत्यत्र करने में सहायक होते हैं। एक व्यक्ति को यदि कोई बीमारी हो जाती है तो उचित चिकित्सा के अभाव में तथा परस्पर सम्पर्क के कारण अन्य व्यक्ति भी नहीं बच पाते। विभित्र संक्रामक रोग ऐसे क्षेत्रों में ही महामारी ऐसे का रूप धारण करते हैं। रोगी पूर्ण स्वस्थ हुए बिना जब अपनी जीविका की तलाश में अन्य स्थानों पर जाते हैं तो वहाँ भी रोगों का प्रसार करने में सहायता करते हैं।
3. नैतिक पतन
गन्दी बस्ती में रहनेवालों का जीवन अत्यन्त अभावग्रस्त होता है, जिससे वे अत्यन्त दुःखी व कुण्ठित रहते है। अतः पेट की आग बुझाने के लिए इनमें अनैतिकता पनपने लगती है। जिसके फलस्वरूप चोरी करना, जुआ खेलना, शराब पीना, जेब काटना, छीना-झपटी तथा लड़ाई-झगड़ा इसकी दिनचर्या का अंग बन जाता है। ये धनी व सभ्य समाज का विरोधी बनकर कुछ भी गलत कार्य करने में नहीं हिचकते। एक प्रकार से इनका नैतिक पतन हो जाता है। ये किसी समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं।
गन्दी बस्तियों से समाज को हानियाँ
गन्दी बस्तियों को उत्पन्न करने में हमारे समाज का बहुत बड़ा हाथ है। जो समाज इन्हें उत्पन्न करता है, उसी समाज के लिए ये बतियाँ हानिकारक भी सिद्ध होती हैं। गन्दी बस्तियों से समाज को निम्न हानियाँ हैं-
1. गन्दी बस्तियों के लोग इतनी अस्वच्छता व अशोभनीयता से जीवन व्यतीत करते हैं कि ये किसी भी सुन्दर व भव्य नगर के लिए एक गन्दा धब्बा सिद्ध होती हैं अर्थात् गन्दी बस्तियों से सुन्दर नगरों की शोभा मलिन हो जाती है।
2. इन बस्तियों के लोग असंयमित जीवन व्यतीत करने के कारण विभिन्न संक्रामक व संसर्गज रोगों से ग्रस्त रहते हैं। सूखा रोग, हैग, पेचिश, गैस्ट्रो, अनेक त्वचा के रोग फैलना गन्दी बस्ती की सामान्य बात है। अतः ये लोग विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये जाते हैं, रोगों का प्रसार करते हैं।
3. गन्दी बस्तियों में अनेक अपराधी भी फलते-फूलते हैं जो अपने क्षेत्र के अतिरिक्त सम्पूर्ण समाज की सुख-शान्ति भंग करते उते हैं। इसका मुख्य कारण उनकी अभावग्रस्तत्ता तथा समाज विरोधी भावनाएँ हैं जो उनसे विभिन्न प्रकार के अपराध कराती हैं जिसका समाज पर अनिष्टकारी प्रभाव पड़ता है। गैर लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है।
गन्दी बस्तियों के सुधारात्मक उपाय
1. समाज के धनी ठेकेदारों तथा सरकार का यह कर्तव्य है कि अपने विकास कार्यक्रम में गरीब तथा दयनीय स्थिति के लोगों का गैडन स्तर बेहतर बनाने की ओर विशेष प्रावधान करें।
2. जहाँ गन्दी बस्तियाँ आज बड़े-बड़े आलीशान नगरों के लिए एक शोचनीय विषय हैं, वहीं एक हर्ष की बात यह भी है कि हमारी केन्द्रीय व राज्य सरकारों ने इस ओर ध्यान देना आरम्भ कर दिया है।
अब सरकार निम्न स्तर के लोगों को भी आर्थिक सहायता व वैधानिक अधिकार देने के उद्देश्य से इन बस्तियों के सुधार के लिए अनेक योजनाएं बना रही हैं। श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य के अनुकूल कॉलोनियां बनायी जा रही हैं। इन्हें शुद्ध जल व शुद्ध वातावरण देने की ओर प्रयास किया जा रहा है।
3. गन्दी बस्तियों को समाप्त करना सरल है किन्तु उनकी झोपड़ियाँ हटा देना, वहाँ पर कारखाना या इमारतें बना लेना, गन्दी बस्तियों की समस्याओं को समाप्त करने का हल नहीं है। आज बड़े-बड़े महानगरों में गन्दी बस्ती की समस्या जितना उम्र रूप धारण करती जा रही है यह चिन्ता का विषय है।
4. 1958 ई० में बंगाल की राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया कि गन्दी बस्तियाँ समाप्त करने के लिए एक मील क्षेत्र में स्वास्थ्य के नियमानुसार ऐसी आवासीय व्यवस्था की जाय जहाँ श्रमिक जैसे निम्न स्तर के लोग मानवतापूर्ण जीवन बसर कर सकें तथा उनके लिए ऐसे अवसरों को समाप्त करने की ओर कदम उठाया जाय, जो समाज के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है। प्रदेशीय सरकारें भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
5. राज्यों को इस दिशा में कानूनी अधिकार प्राप्त कर लेना पर्याप्त नहीं होगा। 'गन्दी बस्तियाँ' कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं हैं। न ही यह कार्य अकेले राज्य सरकारों द्वारा सम्पत्र किया जा सकता है क्योंकि श्रमिकों आदि की आवासीय समस्या पर जितना धन व्यय हो सकता है, वह राज्य सरकार को ही व्यय करना कठिन होगा।
6. इस समस्या के समाधान के लिए सरकारी, गैरसरकारी संस्थाओं, प्रदेश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों व समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना होगा।
7. कुछ उद्योगपतियों ने अपने-अपने औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए उत्तम आवासीय व्यवस्था करके प्रशंसनीय कार्य भी किया है, किन्तु इनकी गणना इकाइयों में ही की जा सकती है।
8. सरकार ऐसा कानून पारित करे जिससे सभी उद्योगपति अपने श्रमिकों के लिए आवासीय व्यवस्था करने को बाध्य हों।
9. ऐसी आवासीय कालोनियां बनायी जायें जिनमें निम्न आय के लोग रह सकें। उन्हें सभी सुविधाएँ प्राप्त हों।
वर्ष 2012 तक मात्र 24 प्रतिशत नगरीय गन्दी बस्तियों को केन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजना के तहत लाभ पहुँचाया गया। गन्दी बस्तियों के जीवनस्तर सुधार में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM) और राजीव गाँधी आवास योजना (RAY) का विशेष योगदान रहा है। सरकारी अनुदान के अनुसार 33510 गंदी बस्तियाँ देश के नगरीय क्षेत्रों में विद्यमान हैं। इनमें से 41 प्रतिशत नोटीफाइड एरिया में और 59 प्रतिशत नॉट नोटीफाइड एरिया में। महाराष्ट्र में गन्दी बस्तियों की संख्या 7723 है जो कुल गन्दी बस्तियों का 23 प्रतिशत है, जबकि 13.5 प्रतिशत के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे व 12 प्रतिशत के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है। भारत के नोटीफाइड एरिया में स्थित 82 प्रतिशत गन्दी बस्तियों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है, जबकि नॉन- नोटीफाइड एरिया में 64 प्रतिशत आबादी को पेयजल की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। उक्त तथ्य NSSO द्वारा दिसंबर, 2012 में किए गए सर्वे पर आधारित है।
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न- 1 . गन्दी बस्तियों से क्या आशय है?
उत्तर- गन्दी बस्ती एक ऐसा आवासीय क्षेत्र है जहाँ के मकान तथा जीवन की परिस्थितियाँ अत्यधिक दूषित तथा अभावग्रस्त होती हैं।
प्रश्न- 2. गन्दी बस्तियाँ मुख्य रूप से कहाँ विकसित होती हैं?
उत्तर- गन्दी बस्तियाँ मुख्य रूप से बड़े एवं औद्योगिक नगरों में पायी जाती हैं।
प्रश्न- 3. गन्दी बस्तियों से सबसे अधिक खतरा किस बात का होता है?
उत्तर- गन्दी बस्तियों में संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका अधिक रहती है।