दहेज क्या है | दहेज प्रथा के कारण | दहेज समस्या एवं उपाय | दहेज प्रथा कानून

दहेज़ भारतीय समाज का एक अभिशाप है। इसकी उत्पत्ति कब और कहाँ से हुई यह कहना कठिन है, किन्तु आज दहेज विवाह का एक अंग बन चुका है। प्राचीन काल में माता-पिता अपनी पुत्री को विवाह के समय अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ ऐसा उपहार दिया करते थे, जिसमें नव-विवाहित जोड़े के लिए मंगल कामना निहित होती थी। उपहार देने की इस परम्परा ने ही दहेज का रूप ले लिया।

    समय के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हुए। लोगों के विचार भी बदलते गये। इस परिवर्तन से भारतीय संस्थाएँ भी अछूती नहीं रहीं। परिणामस्वरूप विवाह नामक संस्थाएँ जो धार्मिक और पवित्र मानी जाती थीं वे भी कलुषित हुईं। धर्म व अन्धविश्वास की रूढ़ियाँ भी मजबूत होने लगीं। व्यक्ति आँख मूँदकर उनका अनुकरण करने लगे। मनुष्य विभिन्न सामाजिक समस्याओं से घिरता गया। इसी के साथ विवाह से सम्बन्धित अनेक समस्याओं ने जन्म लिया, जैसे- बाल-विवाह, विधवा-विवाह, विवाह-विच्छेद, अन्तर्जातीय विवाह तथा दहेज प्रथा। वर्तमान समय में दहेज प्रथा भारतीय समाज के लिए न केवल कोढ है, बल्कि नारी जाति के शोषण व उत्पीड़न का सबसे बड़ा कारण भी है।

    दहेज का अर्थ

    दहेज प्रथा के अर्थ को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है-

    चार्ल्स विनिक- "दहेज वह सम्पत्ति (धन, वस्तु) है जो विवाह के समय एक पक्ष दूसरे पक्ष को प्रदान करे।"

    इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका- "दहेज वह सम्पत्ति है जो एक स्त्री विवाह के समय अपने साथ लाती है, अर्थात् उसे दी जाती है। कभी-कभी इसे 'वर-मूल्य' की संज्ञा दी जाती है।"

    मैक्स रेबिन- "दहेज वह सम्पत्ति है जो एक पुरुष अपने विवाह के समय अपनी पत्नी के परिवार से प्राप्त करता है।" 

    अतः उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि विवाह के समय कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष (लड़के के माता-पिता) को कुछ भी दिया जाता है, वह दहेज़ होता है।

    दहेज प्रथा के कारण

    भारतीय समाज में एक कु प्रथा के रूप में समस्या बन चुकी दहेज प्रथा के निम्न प्रमुख कारण हैं-

    1. सामाजिक कुप्रथा- हमारे समाज में दहेज प्रथा एक ऐसी कुप्रथा बन गयी है जिसका पालन करना माता-पिता को आवश्यक हो जाता है।

    2. अनुलोम विवाह प्रथा- प्राचीन समय में सभी व्यक्ति उच्च वर्ग में अपनी कन्या देने का प्रयत्न करते थे, भले ही इस होड़ में उन्हें कितना ही धन क्यों न खर्च करना पड़े। अनुलोम विवाह ने भी दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया।

    3. जीवन-साथी चुनने का सीमित क्षेत्र- विवाह के लिए अनेक जातीय व उपजातीय प्रतिबन्ध होते हैं, जिससे लोगों को अपनी ही जाति व उपजाति में विवाह करना अनिवार्य होता है। फलतः विवाह का क्षेत्र सीमित हो जाता है और योग्य वर प्राप्त करने के लिए दहेज की होड़ लग जाती है।

    4. धन का महत्व- आज भारत जिस गति से भौतिकता की ओर अग्रसर हो रहा है, उसमें धन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। आज धन लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा का माध्यम बन रहा है। न केवल दहेज लेनेवाले की, बल्कि अधिक दहेज देने वाले की भी समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। वह प्रशंसा का पात्र समझा जाता है।

    5. महंगी शिक्षा- वर्तमान शिक्षा अत्यन्त महंगी है जो लोग अपने लड़कों को उच्च शिक्षा देते हैं उन्हें भरपूर धन व्यय करना पड़ता है। अतः इस धन को वे दहेज से पूरा करना चाहते हैं। कभी-कभी शिक्षा के लिए लोग कर्ज भी यह सोच कर लेते हैं कि दहेज के रूप में उन्हें वापस मिल जायगा। यही कारण है कि इच्छानुसार धन न मिलने पर वे बहुओं की बलि चढ़ा देने में भी नहीं चूकते।

    6. गतिशीलता में वृद्धि-वर्तमान समय में यातायात व संचार साधनों में आशातीत उन्नति के कारण जीविकोपार्जन के उद्देश्य से लोग इतनी दूर-दूर तक फैल गये हैं कि लोगों को योग्य वर ढूँढ़ना कठिन हो गया है। अतः अपनी ही जाति या उपजाति में अधिकाधिक दहेज ही उन्हें योग्य वर प्राप्त कराने का मात्र साधन रह जाता है।

    7. विवाह की अनिवार्यता- हिन्दू समाज में कन्या का विवाह करना अनिवार्य माना गया है। अतः लोग इसका अनुचित लाभ उठाकर अधिक दहेज की माँग करने लगते हैं।

    8. सामाजिक प्रथा- दहेज आजकल एक सामाजिक प्रथा बन गयी है जिसमें दहेज देना व लेना दोनों समान रूप से चल रहे हैं जो दहेज देते समय अनेक कठिनाइयाँ झेलते हैं वे ही अपने अवसर पर दहेज लेने में थोड़ी-सी रियायत नहीं बरतते, बल्कि दहेज लेकर वह अपनी क्षतिपूर्ति करते हैं।

    दहेज का विकृत रूप

    भारतीय समाज में दहेज कोई नयी प्रथा नहीं है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में इसका प्रचलन था। रामायण, महाभारत जैसे ग्रन्थ इसके उदाहरण हैं। रामायण में सीता और महाभारत में द्रौपदी को दहेज में हीरे-जवाहरात, हाथी-घोड़े तथा बहुमूल्य वस्तुएँ देने का वर्णन है, परन्तु तब दहेज अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिया जाता था वह भी स्वेच्छा से।

    आज भारतीय समाज में दहेज की जिस प्रथा का प्रचलन है वह लगभग 13वीं शताब्दी के आरम्भ से हुआ। उस समय के कुलीन परिवार अपनी सामाजिक स्थिति के अनुसार दहेज की माँग किया करते थे। आगे चलकर सभी वर्गों में इसका प्रचलन हो गया। अब तो उच्च शिक्षा प्राप्त, धनी व नौकरी प्राप्त वर के लिए कन्या के पिता द्वारा अच्छी रकम व अन्य वस्तुएँ दहेज में देनी पड़ती हैं।

    वास्तव में दहेज ने अब अत्यधिक विकराल रूप धारण कर लिया है। अब यह सौदेबाजी में बदल चुका है। वर पक्ष के द्वारा दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का इतना शोषण किया जाता है कि उन्हें अपना मकान व जमीन तक बेचना पड़ जाता है, लोगों को कर्जदार बनना पड़ता है। दहेज न दे पाने के कारण बेमेल विवाह करना पड़ता है। लड़कियाँ अविवाहित रहने पर विवश हो जाती हैं। यदि किसी प्रकार दहेज जुटाकर कन्या का विवाह कर दिया जाता है तो भी इस बात से आश्वस्त नहीं होता कि उसकी पुत्री अपने घर में खुश और सुखी रहेगी।

    आज समाज में दहेज के इतने बड़े-बड़े दानव उत्पन्न हो गये हैं कि उन्हें कितना ही दहेज दे दिया जाय, किन्तु उनकी माँग 'सुरसा के मुँह' की भाँति बढ़ती जाती है और प्रायः बहुओं को यातनाएँ देकर तथा उनकी बलि चढ़ाकर ही उन्हें चैन मिलता है, यद्यपि वे भी कन्या वाले होते हैं फिर भी दहेज उनकी आँखों पर ऐसा पर्दा डाल देता है कि दहेज के लिए वह कुछ भी करने में हिचकते नहीं हैं।

    दहेज समस्या 

    दहेज प्रथा का समाज पर कुप्रभाव

    दहेज के कारण समाज में अनेक कुप्रथाएँ तथा विषमताएँ पैदा हो रही हैं। वास्तव में दहेज एक कलंक है, जिसके कारण एक नवविवाहिता का भविष्य असुरक्षित रहता है। दहेज का समाज पर निम्न कुप्रभाव पड़ता है-

    1. वधुओं के साथ दुर्व्यवहार- जिन लड़कियों को अधिक दहेज नहीं मिल पाता यदि वे किसी 'दहेज दानव' के साथ व्याही जाती हैं तो ससुराल में न तो उन्हें सम्मान दिया जाता है और न ही अच्छा व्यवहार। दहेज के कारण बहुओं के सभी गुण व योग्यताओं को भी हेय दृष्टि से देखा जाने लगता है। इस पर भी जब उनको शान्ति नहीं मिलती तो बहुओं को मायके से अधिक धन लाने के लिए तरह-तरह से परेशान करते हैं और उन्हें जलाकर मार देने में अपनी बहादुरी समझते हैं जो उनकी दानवता का प्रमाण होती है।

    2. आत्महत्या- अधिक दहेज के माँग के कारण कभी-कभी लड़कियों तथा उनके माता-पिता को इतनी परेशानी होती है कि वे आत्महत्या कर लेते हैं।

    3. पारिवारिक संघर्ष- दहेज न लाने पर बहू की सास व ननदें ताने दे-देकर उसे अपमानित करती हैं, तरह-तरह से परेशान करती हैं। अपने लड़के द्वारा बहू का पक्ष लेने पर उसे भी खरी-खोटी सुनाती हैं। परिणामस्वरूप परिवार में संघर्ष शुरू हो जाता है।

    4. बेमेल विवाह- दहेज के अभाव में कभी-कभी लोग कन्या का विवाह अनपढ़, अपाहिज, बूढ़े, कुरूप अथवा बेरोजगार के साथ भी कर देते हैं। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवनभर अपनी इच्छाओं व रुचियों का दमन करना तथा कष्ट उठाना पड़ता है।

    5. अपराधों को प्रोत्साहन- दहेज लोगों को अनेक अपराध करने के लिए विवश कर देता है जैसे- रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार व गबन आदि।

    6. वैवाहिक संघर्ष- दहेज लोभी माता-पिता अधिक दहेज के लिए अपने लड़के को भी उकसाते रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कम दहेज मिलने पर या तो लड़का बारात वापस ले जाता है अथवा विवाह कर लेने पर वह अपनी पत्नी को भिन्न-भिन्न यातनाएँ देता है अथवा उसे मायके छोड़कर उस पर चरित्र का झूठा कलंक लगाकर उसे तलाक के द्वार पर खड़ा करके दूसरा विवाह रचा लेता है। 

    7. निम्न जीवन स्तर- कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए माता-पिता जन्म से ही प्रयास करने लगते हैं। अतः बचत के चक्कर में उनका जीवन स्तर स्वाभाविक रूप से निम्न हो जाता है। सम्पन्न व धनाक्य व्यक्ति इसके अपवाद अवश्य हैं।

    8. शारीरिक- मानसिक अस्वस्थता कम दहेज लाने वाली बहुओं को इतनी यातनाएँ दी जाती हैं कि विवशता में उनका शारीरिक व मानसिक रूप से अस्वस्थ होना स्वाभाविक है। कभी-कभी तो उन्हें असाध्य रोग व पागलपन का भी शिकार होना पड़ता है। केवल वधू को ही नहीं माता-पिता भी अधिक धन जुटाने के कारण इतना अधिक परिश्रम करने को बाध्य हो जाते हैं कि उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है। फिर भी कन्या के भविष्य की आशंका उन्हें मानसिक रूप से ग्रस्त करने लगती है।

    9. स्त्रियों की निम्न स्थिति- दहेज के कारण स्त्रियों की पारिवारिक व सामाजिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो जाती है। कन्या के जन्म को अपशकुन के समान मानने लगते हैं क्योंकि उन्हें भावी विपत्ति का सूचक समझा जाता है। कितने ही माता-पिता कन्या को इसी कारण जन्म लेते ही मार डालते हैं। राजस्थान में इसका खूब प्रचलन रहा है।

    10. स्त्रियों की प्रगति में बाधा- दहेज के कारण कितने ही माता-पिता लड़कियों को शिक्षित नहीं करते, क्योंकि शिक्षित कन्या के लिए उन्हें अधिक शिक्षित वर की खोज करनी पड़ेगी, जिसे अत्यधिक दहेज देना होगा।

    यह भी पढ़ें-  बाल्यकाल का व्यक्तित्व पर प्रभाव | Baalyakaal ka vyaktitv par prabhaav

    दहेज समस्या के उपाय 

    दहेज उन्मूलन के उपाय

    दहेज एक घृणित व कष्टदायी प्रथा है। इसके उन्मूलन के लिए सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं होंगे, बल्कि इसके खिलाफ समाज में जनमत तैयार करना होगा। दहेज प्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए निम्न उपाय उचित हो सकते हैं-

    1. स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहन- दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए स्त्री शिक्षा का प्रसार इतना प्रभावी कदम है, जिससे दहेज उन्मूलन अत्यन्त सरल हो जायगा। लड़कियाँ पढ़-लिखकर जब आत्मनिर्भर बनने लगेंगी तो उनकी आत्मनिर्भरता भी दहेज लोभियों का मुँह स्वतः ही बन्द करने लगेंगी।

    2. जीवन साथी के चुनाव की स्वतन्त्रता- जब माता-पिता लड़के का विवाह करते हैं तो वे अपने खर्चे की भी भरपाई दहेज से निकालना चाहते हैं, किन्तु लड़के-लड़कियां जब स्वयं अपनी पसंद से विवाह करेंगी तो दहेज की समस्या स्वतः ही हल हो जायगी। 

    3. प्रेम विवाह- प्रेम विवाह त्याग की वेदी पर पनपता है। यह एक प्रभावी कदम है जो दहेज की सीमा भी क्षण भर में नष्ट कर देगा। 

    4. अन्तर्जातीय विवाह- अन्तर्जातीय विवाह से विवाह का क्षेत्र विस्तृत होगा, लोगों को अपनी पसन्द की लड़की या लड़का सरलता से मिलने लगेगा, अतः संकुचित क्षेत्र का अनुचित लाभ उठाकर जो लोग अधिक दहेज की माँग करते हैं वह स्वयं ही शान्त हो जायेंगे।

    5. लड़कों को अधिकाधिक स्वावलम्बी बनाना- सरकार की ओर से ऐसे प्रयास होने चाहिए जिससे लड़कों को ऐसी शिक्षा दी जाय कि अधिक से अधिक स्वावलम्बी बनें। अधिक लड़कों को स्वावलम्बी बनने से स्वाभाविक रूप से उनकी मार्केट में उनका रेट कम हो जायगा।

    6. युवा आन्दोलन- कभी-कभी देखने में आता है कि अपने स्तर को ऊँचा उठाने के लिए लड़की या लड़के दोनों दहेज की प्रबल इच्छा रखते हैं। अतः यदि युवक व युवतियाँ स्वयं भी इस ओर आगे आयें और दहेज लेने व देने दोनों का खुले हृदय से बहिष्कार करें, संगठित होकर दहेज लेनेवाले के विरोध में अपनी आवाज उठायें तो इस प्रकार के उन्मूलन में पर्याप्त सहायता मिल सकती है।

    यह भी पढ़ें-  सामाजिक विषमताओं तथा विच्छेदों (विघटन) का निराकरण

    7. नारी आन्दोलन- यदि इतिहास के पन्ने खोलकर देखा जाय तो स्पष्ट होगा कि जब किसी समस्या के विरुद्ध नारी आन्दोलन हुए हैं, उसमें आशातीत सफलता मिली है। अतः लड़कियों को भी दृढ़ प्रतिज्ञ होना होगा कि दहेज लोभी से कदापि विवाह नहीं करेंगी न किसी को करने देंगी। इस प्रकार नारी अपने शोषण को स्वंय भी समाप्त करके समाज में एक नया वातावरण बना सकती है।

    8. जनमत जागृत करना- जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि समाज में दहेज प्रथा के विभिन्न कारण तो हैं ही, इसके साथ दहेज के साथ लोगों की मानसिकता भी इतनी गहरी जुड़ी हुई है कि जब तक इसके विरोध में जनमत तैयार नहीं होता तब तक इसके उन्मूलन की कल्पना करना ही व्यर्थ है। एक समय था लोग सती प्रथा के प्रति अपनी मानसिकता बनाये हुए थे। सती प्रथा विविध गति से चल रही थी, किन्तु जब लोगों ने स्वयं ही इसे एक अमानुषिक व घृणित कार्य समझा और इसका एक स्वर में विरोध किया तो परिणाम यह हुआ कि आज सती प्रथा के दर्शन भी दुर्लभ हैं।

    स्वतन्त्रता के पश्चात् विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत दहेज निरोध अधिनियम भी बनाया गया जो 1961 ई० से प्रभावित हुआ। इस अधिनियम की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

    • विवाह से पहले या बाद में विवाह की शर्त के रूप में एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गयी कोई भी सम्पत्ति या मूल्यवान वस्तु 'दहेज' कहलायेगी।
    • विवाह के अवसर पर दी जानेवाली भेंट या उपहार को दहेज नहीं माना जायगा।
    • दहेज लेने व देनेवाले तथा इस कार्य में मदद करनेवाले व्यक्ति को छह माह का कारावास तथा 5,000 रुपये तक दण्ड दिया जा सकता है।
    • दहेज लेने व देने सम्बन्धी किया गया कोई भी समझौता गैरकानूनी होगा।
    • दहेज में दी गयी वस्तुओं पर पत्नी का अधिकार होगा।
    • अधिनियम की धारा 7 के अनुसार दहेज सम्बन्धी अपराध की सुनवायी प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ही कर सकता है और ऐसी शिकायत लिखित रूप में एक वर्ष की अवधि में ही की जानी चाहिए।

    उपर्युक्त प्रकार से इस अधिनियम में वह सभी विशेषताएँ हैं जो सामान्य रूप से दहेज विरोधी हैं फिर इसमें इतनी कमी व लचीलापन है कि लोग कानून के शिकंजे से साफ बच निकलते हैं और यह अधिनियम-अधिनियम ही बनकर ही रह जाता है। इसकी कमी को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

    • इस अधिनियम में दहेज लेने व देने पर रोक अवश्य लगायी गयी है। विवाह के अवसर पर दिये जाने वाले उपहारों को दहेज नहीं माना है।

    अतः यह सिद्ध होने में कठिनाई होती है कि कौन-सी वस्तु उपहार है और कौन-सी दहेज? अतः वर पक्ष सभी वस्तुओं को उपहार की संज्ञा देकर कानून से बच जाता है।

    • इस अधिनियम के अन्तर्गत दहेज के विरुद्ध तभी कार्यवाही हो सकती है, जबकि वह लिखित रूप में हो। किन्तु कोई व्यक्ति दहेज लेने या देनेवाले के विरुद्ध इसलिए आगे आने से डरता है कि उसकी विपक्ष से सदा के लिए शत्रुता हो सकती है।

    आज दहेज ने जो विकराल रूप धारण कर लिया है, उसका उन्मूलन केवल कानून बना देने से नहीं हो सकता। यह तभी सम्भव है जब कानूनों का कड़ाई से पालन हो, शिकायत करने की विधि सरल व सुलभ हो, दहेज लेने व देनेवालों के लिए कठोर दण्ड व्यवस्था हो, साथ ही समाज का जनमत इसके साथ हो अन्यथा यह समस्या न जाने कितनों के घर उजाड़ेगी, कितनी बहुएँ जलायी जायेंगी, कहा नहीं जा सकता।

    Also Read...

    दहेज प्रथा कानून 

    दहेज निरोधक अधिनियम, 1961

    भारत सरकार ने दहेज प्रथा को कानूनी रूप से रोकने के लिए सन् 1961 ई. में एक दहेज निरोधक अधिनियम पारित किया। वैसे समय-समय पर समाज सुधार आन्दोलनों में इस बुराई के विरुद्ध आवाज उठायी जाती रही है। जब दहेज निरोधक अधिनियम पेश किया गया तो इसकी कुछ धाराओं के बारे में मतभेद पैदा हो गया, अतः 9 मई, सन् 1961 ई. को लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक आमन्त्रित की गयी। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि विवाह के अवसर पर स्वेच्छा से दिये गये उपहार दहेज नहीं माने जाएँगे, परन्तु विवाह निश्चित करते समय उपहारों की मात्रा निश्चित करना तथा इसकी माँग करना दण्डनीय अपराध होगा और नियम का उल्लंघन करके जो भी उपहार या वस्तु दी जाएगी, वह पत्नी की सम्पत्ति होगी। 22 मई, सन् 1961 ई. को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद 1 जुलाई, सन् 1961 ई. को यह अधिनियम लागू किया गया। यह अधिनियम मुख्य रूप से दहेज माँगने और देने पर रोक लगाता है और ऐसा करने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था करता है। इसके अन्तर्गत 6 महीने का कारावास का दण्ड तथा रु. 5,000 जुर्माने की अथवा दोनों दण्ड एक साथ देने की व्यवस्था भी रखी गयी है।

    सन् 1986 ई. में दहेज निषेध अधिनियम में संशोधन किया गया और इसकी धाराओं को और कठोर एवं कारगर बनाया गया। इस संशोधन के अनुसार न्यूनतम सजा बढ़ाकर 5 वर्ष कैद और रु. 5,000 जुर्माना की गयी है। इस कानून के अन्तर्गत अपराधों को गैर-जमानती बनाने का प्रस्ताव भी है तथा राज्य सरकारों द्वारा सलाहकार बोर्ड और दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति के लिए भी व्यवस्था की गयी है। दहेज-मृत्यु को भी दण्डनीय अपराध घोषित करके इस अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है। इस विधेयक की महत्ता तत्कालीन कानून मन्त्री श्री ए.के. सेन ने इन शब्दों में व्यक्त की थी, "यह मानव आचरण का एक मानदण्ड प्रमाणित होगा। यही मार्गदर्शन करेगा और घृणित दहेज प्रथा सम्बन्धी सामाजिक विचारधारा में परिवर्तन लाएगा। कानून बनाने से दहेज प्रथा की पुरानी ताकत खत्म हो जाएगी।"

    अतः इस संशोधन द्वारा निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान किये गये हैं-

    1. दहेज की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है। इसके अनुसार, "विवाह के पहले या बाद में विवाह की एक शर्त के रूप में एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गयी कोई भी सम्पत्ति या मूल्यवान वस्तु दहेज कहलाएगी।" 
    2. दहेज लेने और देने या ऐसे कार्य में मदद करने वाले व्यक्ति को 5 वर्ष की कैद और रु. 5,000 के जुर्माने का दण्ड दिया जाएगा।
    3. दहेज लेने या देने के सम्बन्ध में किया गया कोई भी समझौता गैरकानूनी होगा।
    4. विवाह में भेंट की गयी वस्तुओं पर वधू अर्थात् कन्या का अधिकार होगा।
    5. दहेज सम्बन्धी अपराध की सुनवाई प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ही करेगा। इस सम्बन्ध में शिकायत एक साल की अवधि में की जानी चाहिए।

    महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 

    प्रश्न- हिन्दू समाज में दहेज प्रथा के प्रचलन के मुख्य कारण क्या हैं?

    उत्तर- दहेज प्रथा के प्रचलन के निम्न कारण हैं-

    (i) अनुलोम विवाह का नियम (ii) अन्तर्विवाह का नियम (iii) स्त्रियों का निम्न स्थान (iv) विवाह की अनिवार्यता।

    प्रश्न- दहेज प्रथा से आप क्या समझती हैं?

    उत्तर- दहेज वह सम्पत्ति है जो कि एक स्त्री अपने साथ लाती है अथवा जो उसे विवाह के समय दी जाती है।

    प्रश्न- बालिकाओं को शिक्षित करना क्यों आवश्यक है?

    उत्तर- बालिकाओं को शिक्षित करना इसलिए आवश्यक है जिससे वे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बन सकें और अपने अधिकारों से भली-भाँति अवगत हो सकें।

    प्रश्न- दहेज प्रथा की समाप्ति हेतु दो सुझाव दीजिए।

    उत्तर- (1) स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन, (2) अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन।

    Post a Comment

    Previous Post Next Post