विपणन वातावरण क्या है | Viparan Vatavaran Kya Hai

विपणन वातावरण

विपणन वातावरण दो शब्दों से मिलकर बना है। विपणन वातावरण। फिलिप कोटलर के अनुसार, "विपणन से अर्थ उपभोक्ता की आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन करने एवं उसे उपभोग के लिए समर्पित करने से है।" जबकि वातावरण से अर्थ उपस्थित परिस्थितियों से है। इस वातावरण में दो प्रकार का वातावरण शामिल है एक को कार्य वातावरण (Task Environment) या सूक्ष्म वातावरण (Micro Environment) व दूसरे को व्यापक वातावरण (Broad Environment) कहते हैं।

विपणन वातावरण क्या है | Viparan Vatavaran Kya Hai

कार्य वातावरण या सूक्ष्म वातावरण (Task or Micro Environment) में कम्पनी का स्वयं का वातावरण होता है। जिसमें वस्तु का उत्पादन, वितरण व प्रवर्तन शामिल है। इसमें कम्पनी के डीलर वितरक, विक्रेता कम्पनी के स्वयं के कर्मचारी तथा विज्ञापन व प्रवर्तन के साधन शामिल हैं।

जबकि व्यापक या वृहत् वातावरण (Broad or Macro Environment) में देश व विदेश की परिस्थितियाँ शामिल होती हैं, जैसे जनांकिकी विशेषताएँ, देश की आर्थिक परिस्थिति, प्राकृतिक परिस्थिति, तकनीकी परिस्थिति, राजनीतिक त्र कानूनी परिस्थिति तथा सामाजिक- सांस्कृतिक परिस्थिति आदि ।

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सूक्ष्म घटक तथा उनका विपणन निर्णयों पर प्रभाव 

यहाँ सूक्ष्म घटक से अर्थ विपणनकर्ता के स्वयं के साधनों से है। कोई भी विपणन योजना बनाते समय कम्पनी को अपने साधनों को ध्यान में रखना होगा। साधन निम्न प्रकार हैं-

(1) कम्पनी का भीतरी वातावरण-

कम्पनी के भीतरी वातावरण से अर्थ है कि कम्पनी के सभी विभाग जैसे अनुसन्धान एवं विकास, क्रय विभाग, लेखा विभाग एवं वित्त आदि सभी को मिलकर कार्य करने पर ही विपणन योजना सफल हो सकती है। यदि इनमें से किसी एक ने भी साथ नहीं दिया तो विपणन निर्णय अपेक्षित लाभ नहीं दे पायेंगे।

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(2) माल देने वाले- 

कोई भी निर्माता वस्तु या सेवा की पूर्ति उस समय तक कर सकता है जब तक कि उसको समय पर व उचित मात्रा में कच्चा माल मिलता रहे। यदि इसमें अवरोध आ गया तो विपणन निर्णय प्रभावित हो जायेंगे। इस प्रकार विपणन निर्णयों पर माल की पूर्ति करने वालों का भी प्रभाव पड़ता है।

(3) विपणन मध्यस्थ-

विपणन मध्यस्थ संस्था के माल को अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। इसमें थोक व्यापारी व फुटकर व्यापारी शामिल हैं। साथ ही माल की भौतिक अदला-बदली के लिए भण्डार गृह व परिवहन साधन भी इसी में शामिल किये जाते हैं। यदि समय पर माल नहीं पहुँचेगा तो इससे उपभोक्ता सन्तुष्टि में कमी एवं ग्राहक-विपणनकर्ता सम्बन्धों में दरार पड़ जायेगी। इसीलिए आजकल यह व्यापार के महत्वपूर्ण साझेदार माने जाते हैं। भारत में इण्डियन ऑयल जब पेट्रोल व गैस आदि ट्रक टैंकर से भेजती है तो यह आपूर्ति Time Bound होती है। ट्रक के मालिकों को निश्चित समय सीमा में वह टैंकर गन्तव्य स्थान पर पहुँचाना होता है।

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(4) ग्राहक-

एक कम्पनी को अपने ग्राहकों को अच्छी प्रकार से समझ लेना चाहिए। यह ग्राहक सामान्य उपभोक्ता, सरकार, व्यापारी व अन्तर्राष्ट्रीय ग्राहक हो सकते हैं। इन ग्राहकों का भी विपणन निर्णयों पर प्रभाव पड़ता है।

(5) प्रतियोगी संस्थाएँ- 

व्यापार का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि सफलता के लिए ग्राहक सन्तुष्टि उस सन्तुष्टि से अधिक होनी चाहिए जो एक प्रतियोगी संस्था दे रही है। इसके लिए विपणन-निर्णय समयानुसार व कारगर होने चाहिए।

वृहत् घटक तथा उनका विपणन निर्णयों पर प्रभाव

बृहत् घटक वे हैं जो एक विपणनकर्ता के हाथ में नहीं है। इसलिए इन्हें अनियन्त्रण योग्य (Non-Controllables) कहा जाता है। ये घटक है-जनांकिकी वातावरण, आर्थिक वातावरण, प्राकृतिक वातावरण, तकनीकी वातावरण, राजनैतिक एवं कानूनी वातावरण, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण।

(1) जनांकिकी वातावरण-

जनांकिकी वातावरण विपणन निर्णयों पर प्रभाव डालता है। जैसे जनसंख्या बढ़ रही है। इसमें जलाने वाले पदार्थ, खाद्य पदार्थ एवं खनिजों की कमी होना स्वाभाविक है। इसी प्रकार अविकसित देश में मृत्यु दर गिर रही हैं, लेकिन जन्म-दर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हो रहा है। इससे इन देशों में खाने, कपड़े व शिक्षा आदि की समस्याएँ हैं। यदि इन देशों में क्रय शक्ति बढ़ रही है तब तो ठीक है अन्यथा इससे बाजारों का विकास नहीं होगा। अतः एक विपणनकर्ता को अपने देश व विदेश में व्यापार करने के लिए जनांकिकी वातावरण को अवश्य ही ध्यान में रखना होगा अन्यथा वह हानि में परिणित हो जायेगा।

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(2) आर्थिक वातावरण-

विपणन के लिए दो बातें आवश्यक हैं- एक तो क्रेता में क्रय शक्ति (Purchasing Power) व् दूसरे जन समुदाय - क्रय शक्ति, आय, मूल्य, बचत, ऋण व साख पर निर्भर करती है। एक विपणनकर्ता को अपने देश की जनता की खर्च करने की शक्ति का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए जो क्रय शक्ति पर निर्भर करता है।

यह क्रय शक्ति समय-समय पर बदलती रहती है। अतः एक विपणनकर्ता को बदलती हुई क्रय शक्ति का अनुमान होना चाहिए जिससे कि वह अपने विपणन कार्यक्रम में उसी अनुरूप परिवर्तन कर सके।

(3) प्राकृतिक वातावरण

प्राकृतिक वातावरण भी विपणन निर्णयों पर प्रभाव डालता है। आजकल सभी देशों में प्राकृतिक वातावरण को बनाए रखने पर काफी जोर दिया जा रहा है, क्योंकि प्रकृति से मिलने वाली वस्तुओं की कमी हो रही है और जिनके आगे चलकर और कम होने की सम्भावनाएँ हैं। अतः एक विपणनकर्त्ता को विपणन कार्यक्रम बनाते समय इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए।

आजकल देश की सरकारें प्राकृतिक वातावरण को बनाये रखने के लिए अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगा रही हैं। यह प्रतिबन्ध व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं। इनसे शक्ति की लागत (Cost of energy) बढ़ सकती है या प्रदूषण रहित उत्पादन करने में लागत बढ़ सकती है। इस प्रकार प्राकृतिक वातावरण भी विपणन निर्णयों को प्रभावित करता है।

(4) तकनीकी वातावरण-

आजकल तकनीक प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर रही है। यह तकनीक चाहे खुला हृदय, शल्य चिकित्सा (Opern heart surgery) की हो या वीडियो खेलों की। जब फोटोकॉपी तकनीक आ गयी तो कार्बन प्रतिलिपि उसके आगे नहीं टिक सकी। जब टेलीविजन तकनीक आ गयी तो रेडियो तकनीक पुरानी पड़ गयी। यदि कोई व्यवसायी इन पुराने व्यवसायों में लागू था और उसने इन नयी तकनीकों की ओर ध्यान नहीं दिया तो वह व्यवसाय अवनति की ओर चला गया।

अतः यह आवश्यक है कि तकनीक में परिवर्तन को अवश्य ही ध्यान में रखा जाये और उसी अनुरूप अपने विपणन सम्बन्धी निर्णय लिये जायें। इसके लिए वस्त्र में नवाचार (Innovation) किया जा सकती है, अनुसंधान बाजार में वृद्धि की जा सकती है आदि।

(5) राजनीतिक कानूनी वातावरण-

विपणन निर्णय राजनीति एवं कानूनी वातावरण से होने वाले परिवर्तनों से भारी मात्रा में प्रभावित होते हैं जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ या तो विकसित होने लगती हैं या फिर उनमें संकुचन प्रारम्भ हो जाता है। जैसे- आजकल ऐसे कानून बना दिये हैं जिनके अनुसार औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste) को रिसाइकिल (Re-cycle) करना आवश्यक है। इससे रिसाइकिल करने वाली मशीनों की माँग बढ़ रही है और यह उद्योग तेजी से पनपने लगा है।

(6) सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण-

समाज लोगों के विश्वास मूल्य व मानक निर्धारण करता है। सामान्यतया लोग उन मूल्यों व मानकों पर विश्वास करते हैं। अतः एक विपणनकर्त्ता को वस्तु इस प्रकार की बनानी चाहिए जो सामाजिक मूल्य एवं मानकों के अनुरूप हो तभी वह अपने इरादे में सफल हो सकता है अन्यथा उसको अपने व्यापार में सफलता नहीं मिलेगी।

भारतीय संस्कृति कुछ इस प्रकार की है कि इसमें सभी के लिए उचित स्थान है। यहाँ भगवान व भाग्य पर भरोसा है। जीओ और जीने दो का सिद्धान्त अपनाया जाता है। यह बातें माता-पिता से बच्चों तक पहुँचती हैं और जो सामाजिक संस्थाओं द्वारा सुदृढ़ की जाती हैं। एक विपणनकर्ता इन बातों में कोई संशोधन नहीं कर सकता है। अतः उसको ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो इन बातों पर चोट करता हो। यदि उसने ऐसा किया तो उसका व्यवसाय नहीं चल पायेगा। इस प्रकार सामाजिक वातावरण व सांस्कृतिक वातावरण विपणन सम्बन्धी निर्णयों पर प्रभाव डालता है।

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