विपणन संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं सिद्धान्त- 2024

विपणन संगठन का अर्थ एवं परिभाषा

विपणन संगठन से आशय व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो उपक्रम की नीतियों को क्रियान्वित करता है, व्यावसायिक क्रियाओं को बाजार दशाओं के अनुरूप डालता है तथा उत्पादन, ब्राण्ड, ट्रेडमार्क, वितरण माध्यम, विज्ञापन, विक्रय सम्वर्द्धन आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेता है। दूसरे शब्दों में विपणन संगठन से आशय विपणन क्रियाओं में लगे हुए कर्मचारियों का पहचान योग्य समूह है जो कि विपणन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयासों में योगदान देता है।

विपणन संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं सिद्धान्त

कण्डिफ, स्टिल एवं गोबानी के अनुसार- "विपणन संगठन वस्तु, विपणन वाहिका, भौतिक वितरण, सम्वर्द्धन एवं मूल्यों के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए साधन (Vehicle) उपलब्ध करता है।"

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विपणन संगठन की आवश्यकता

आधुनिक विपणन विचार की प्रमुख मान्यता यह है कि 'ग्राहक राजा है' (Customer is king) । इसलिए प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम का मुख्य उद्देश्य ग्राहक की सेवा करना है। व्यवसाय की समस्त विपणन क्रियाएँ उपभोक्ताओं की आवश्यकता से ही आरम्भ होती हैं और मितव्ययितापूर्वक एवं प्रभावशाली ढंग से उपभोक्ताओं की जरूरतों की सन्तुष्टि के साथ ही क्रियाओं का अन्त होता है। कोई भी उपक्रम अपने ग्राहकों को तब तक सन्तुष्ट नहीं कर सकता जब तक कि एक अच्छे विपणन संगठन द्वारा ग्राहकों को पर्याप्त मात्रा में श्रेष्ठ किस्म की वस्तुएँ अथवा सेवाएँ, उचित वितरण माध्यम से, उचित समय और उचित मूल्य पर उपलब्ध न करायी जाएँ।

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एक अच्छे विपणन संगठन की आवश्यकता एवं महत्ता के सम्बन्ध में सी. केनेथ (C. Kenneth) ने अपने विचार इस प्रकार स्पष्ट किये हैं, "एक कमजोर विपणन संगठन अच्छे उत्पाद (Product) को मिट्टी में मिला सकता है, परन्तु एक अच्छा विपणन संगठन, जिसके पास कमजोर उत्पाद है, अच्छे उत्पाद को बाजार से भगा सकता है।" अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम को ग्राहकों की सन्तुष्टि के लिए एक स्वस्थ विपणन संगठन की आवश्यकता होती है। 

प्रत्येक व्यवसायी अपने व्यवसाय में वस्तुओं अथवा सेवाओं के विपणन के लिए एक संगठन बनाता है जिसको विपणन संगठन कहते हैं। विपणन संगठन व्यवसाय की विपणन नीतियों को क्रियान्वित करता है और व्यावसायिक क्रियाओं को बाजार की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित करने के लिए प्रयास करता है।

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सार रूप में कहा जा सकता है कि "विपणन संगठन स्वयं में कोई लक्ष्य नहीं है अपितु यह विपणन क्रियाओं के निष्पादन और विपणन परिणामों के लक्ष्यों की प्राप्ति का एक साधन है।" इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन संगठन के द्वारा विपणन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास किये जाते हैं। विपणन संगठन की आवश्यकता को निम्न शीर्षकों द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) ग्राहकों की अधिकतम सन्तुष्टि सम्भव,

(2) विपणन लागत में कमी करना,

(3) विक्रय परिमाण में वृद्धि सम्भव,

(4) विपणन क्रियाओं में निरन्तर सम्भव,

(5) बाजार अनुसंधान को प्रोत्साहन, 

(6) कार्यकुशलता बढ़ाने में सहायक,

(7) विभिन्न विभागों की क्रियाओं में समन्वय करने में सहायता,

(8) अधिकार उत्तरदायित्वों के निर्धारण में सुविधा,

(9) विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन देना,

(10) निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव ।

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विपणन संगठन के सिद्धान्त

किसी भी व्यावसायिक उपक्रम को सफलता उसके विपणन संगठन पर निर्भर करती है। अतः विपणन संगठन उपक्रम की जरूरतों के अनुरूप होना चाहिए जिससे कि विपणन प्रबन्ध पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो सके। एक स्वस्थ कुशल एक प्रभावी विपणन के लिए निम्नलिखित विपणन संगठन के सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए-

1. उद्देश्यों का सिद्धान्त (Principles of Objectives)- इस सिद्धान्त के अनुसार विपणन संगठन तथा उपक्रम दोनों के उद्देश्यों में एकरूपता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, विपणन संगठन का प्रत्येक भाग तथा उप-विभाग व्यावसायिक उपक्रम के उद्देश्य से मिलता हुआ होना चाहिए।

2. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त (Principle of Specialisation)- यह सिद्धान्त विपणन संगठन का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार विपणन के सम्पूर्ण कार्यों को संस्था के कर्मचारियों में इस प्रकार विभाजित करना चाहिए कि प्रत्येक कर्मचारी को उसके अनुभव, चातुर्य एवं योग्यता के अनुसार ही कार्य मिल सके।

3. सरलीकरण का सिद्धान्त (Principle of Simplification)- यह सिद्धान्त इस बात की व्याख्या करता है कि विपणन संगठन इस प्रकार से बनाया जाना चाहिए जिससे क्रियाओं में सरलता आ सके तथा बदलती परिस्थितियों का सामना किया जा सके।

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4. कार्यकुशलता का सिद्धान्त (Principle of Efficiency)- इस सिद्धान्त के अनुसार विपणन संगठन इस प्रकार से बनाया जाय, जिससे प्रत्येक अधिकार और कर्मचारी की कार्यकुशलता में वृद्धि सम्भव हो सके।

5. शासनतन्त्र का सिद्धान्त (Principle of Leadership)- विपणन संगठन इस प्रकार का होना चाहिए कि विपणन प्रबन्धक उत्साह, लगन तथा अभिप्रेरणा के साथ व्यवसाय को आगे बढ़ा सके और उपक्रम का नेतृत्व कर सके।

6. संगठन के प्रभावी होने का सिद्धान्त (Principle of Organisation Effetiveness)- उस उपक्रम में विपणन संगठन प्रभावी माना जाएगा जिसमें वातावरण स्वस्थ बना रहता है, कर्मचारियों में परस्पर सहयोग पाया जाता है तथा विपणन द्वारा प्रतिपादित नीतियों का अक्षरश: पालन होता है।

7. निरन्तरता का सिद्धान्त (Principle of Continuity)- विपणन संगठन ऐसा होना चाहिए जो व्यवसाय की जरूरतों को निरन्तर पूरा कर सके। पीटर एफ. डूकर के शब्दों में, "संगठन ढाँचा इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि वह पाँच, दस अथवा पन्द्रह वर्षों के पश्चात् भी व्यवसाय के उद्देश्य की उपलब्धि को सम्भव बना सके।"

8. लोच का सिद्धान्त (Principle of Flexibility)- विपणन संगठन के तहत् समय एवं जरूरत के अनुसार परिवर्तन करने तथा उसे पुनर्संगठित करने के लिए पर्याप्त लोच होनी चाहिए।

9. निर्देश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Direction)- प्रत्येक उपक्रम की विशिष्ट एवं स्पष्ट योजना होनी चाहिए और प्रत्येक विभाग को इसी योजना के अनुसार कार्य करना चाहिए।

10. आदेशों की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command)- विपणन संगठन का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार एक कर्मचारी को आदेश देने वाला एक ही अधिकारी होना चाहिए, क्योंकि अनेक अधिकारियों द्वारा दिये गये आदेश एक-दूसरे के प्रतिकूल भी हो सकते हैं।

11. समन्वय का सिद्धान्त (Principle of Co-ordination)- इस सिद्धान्त के अनुसार विपणन संगठन के विभिन्न विभागों एवं विभिन्न अधिकारियों की क्रियाओं में समन्वय होना चाहिए।

12. उत्तरदायित्वों का सिद्धान्त (Principles of Responsibilities)- यह सिद्धान्त इस बात की विवेचना करता है कि प्रत्येक कर्मचारी का उत्तरदायित्व क्या होगा ? यह स्वयं कर्मचारी व अधिकारी को स्पष्ट रूप से ज्ञात होना चाहिए जिसमें प्रत्येक अधिकारी उसी के अनुरूप कार्य ले सके तथा कर्मचारी अपने उत्तरदायित्वों को भली प्रकार पूरा कर सकें।

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