विपणन मिश्रण क्या है ? विपणन मिश्रण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

विपणन मिश्रण का अर्थ एवं परिभाषाएँ 

विपणन मिश्रण विपणन प्रबन्ध की वह अवस्था है जिसमें विपणन की कुशलता तथा प्रभाविकता को बढ़ाने के लिए, विपणन से सम्बन्धित विभिन्न निर्णयों को इस प्रकार नियोजित, समन्वित एवं नियन्त्रित किया जाता है कि विपणन-संस्था अपने उद्देश्यों को सरलता से प्राप्त कर सके तथा बाजार में अपना एक विशिष्ट स्थान बना सके। 

दूसरे शब्दों में, समस्त विपणन तत्वों एवं साधनों को इस प्रकार से मिलाना जिससे कि उपभोक्ताओं को अधिकत्तम सन्तुष्टि प्रदान करते हुये संस्था के मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके, विपणन मिश्रण कहलाता है। विपणन मिश्रण के तहत् मुख्य रूप से उत्पाद मिश्रण, वितरण मिश्रण, संचार मिश्रण एवं सेवा मिश्रण आदि को सम्मिलित किया जाता है। 

सामान्य शब्दों में विक्रय में सफलता प्राप्त करने के लिए विक्रय की विभिन्न नीतियों का जो सम्मिश्रण किया जाता है, उसे विपणन मिश्रण कहते हैं। 

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कीली एवं लेजर के अनुसार- "विपणन मिश्रण उस बड़ी बैटरी की युक्तियों से बना है जिसकी ग्राहकों उद्देश्य से काम में लाया  जा सकता है।"

फिलिप कोटलर के अनुसार- "किसी विशेष समय पर फर्म जिन विपणन तत्वों का प्रयोग कर रही हो, उनकी मात्राओं और प्रकारों के संयोग को विपणन मिश्रण कहा है।"

रूस्तम एस. डावर के अनुसार- "निर्माताओं द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन मिश्रण का निर्माण करती हैं।"

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विपणन मिश्रण के तत्व या अंग

विपणन मिश्रण किन-किन तत्वों, अंगों या चलों का मिश्रण है, इस सम्बन्ध में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं जैसा कि निम्न विवरण से स्पष्ट है-

(1) अल्बर्ट डब्ल्यू, फ्रे. (Albert W. Frey) ने अपनी पुस्तक 'Advertising' में विपणन मिश्रण के तत्वों को दो भागों में विभाजित किया है- 

  • वे तत्व जो बाजार में बेचे जाने वाली वस्तु से सम्बन्धित हैं; जैसे-वस्तु का मूल्य, ब्राण्ड, सेवा आदि तथा 
  • वे तत्त्व जो उपकरणों एवं विधियों से सम्बन्धित हैं, जैसे- वितरण, वैयक्तिक विक्रय, विज्ञापन, विक्रय सम्वर्द्धन आदि।

(2) लिप्सन एवं डार्लिंग (Lipson and Darling) ने विपणन मिश्रण के चार तत्व बताये हैं- 

  • वस्तु, 
  • विक्रय शर्तें, 
  • वितरण, 
  • संचार।

(3) ई. जी. मैक्कार्थी (E. J. Mc Carthy) ने अपनी पुस्तक 'Basic Marketing' में विपणन मिश्रण के चार तत्वों का उल्लेख किया है- 

  • उत्पाद (Product), 
  • मूल्य (Price), 
  • स्थान (Place) एवं सम्वर्द्धन (Promotion) इन्हें विपणन मिश्रण के चार 'P' के नाम से जाना जाता है।

इस तरह विपणन मिश्रण के अनेक तत्व हैं जिनको मिलाकर सबसे अच्छा विपणन मिश्रण बनाया जा सकता है। प्राय: विपणन मिश्रण में निम्न तत्वों को शामिल किया जाता है-

(1) मूल्य निर्धारण 

मूल्य निर्धारण इस तरह किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को ज्यादा महसूस न हो और संस्था प्रतियोगिता का सामना करते हुए उचित लाभ प्राप्त कर सके। इसमें-

  • कीमतों का स्तर और मनोवैज्ञानिक पहलू,
  • उचित लाभ सीमा,
  • पुनः विक्रय कीमत अनुरक्षण,
  • सरकारी नियन्त्रण आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(2) उत्पादक नियोजन एवं विकास

विपणन मिश्रण के तत्वों में वस्तु नियोजन एवं विकास बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है। इसमें वस्तु का नाम, रंग, डिजाइन, ब्राण्ड, पैकिंग, लेबिल, वस्तु का प्रयोग, वस्तु की गारण्टी आदि पर ध्यान दिया जाता है।

(3) विक्रय शक्ति

इसमें- 

  • व्यक्तिगत विक्रय की सीमा, फुटकर विक्रेताओं के समीप जाने की सीमा, 
  • थोक विक्रेताओं और 
  • उपभोक्ताओं तक प्रत्यक्ष रूप से जाने की सीमा आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(4) वितरण मार्ग

विपणन मिश्रण के तत्वों में वितरण मार्ग एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें- 

  • थोक व्यापारियों द्वारा विक्रय, 
  • अधिकृत विक्रय एजेन्सियों की नियुक्ति, 
  • स्वयं के विक्रेताओं द्वारा प्रत्यक्ष विक्रय आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(5) विपणन अनुसन्धान

इसमें- 

  • विक्रय विश्लेषण, 
  • क्षेत्र सर्वेक्षण,
  • बाहरी एजेन्सियों का उपयोग आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(6) भौतिक वितरण

वस्तुओं का उत्पादन होने के बाद जब एक उत्पादक वितरण के माध्यम का चयन कर लेता है तो उसके समक्ष यह समस्या उत्पन्न होती है कि किस प्रकार आदेशित माल कम से कम समय में निर्धारित स्थान पर एवं कम यातायात लागत पर भेजा जायें। इस क्रिया को ही विपणन प्रबन्ध में भौतिक वितरण कहते हैं। इसमें- 

  • परिवहन, 
  • भण्डारण, 
  • स्कन्ध नीतियाँ आदि को सम्मिलित किया जाता है।
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विपणन मिश्रण को निर्धारित करने वाले तत्व या घटक

विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्व या घटक निम्न हैं-

(1) उपभोक्ता व्यवहार 

सभी उत्पादों और सेवाओं की माँग उपभोक्ताओं की इच्छाओं, जरूरतों एवं उनकी पसन्दगी पर निर्भर करती है। उपभोक्ताओं की इच्छाएँ, जरूरतें एवं पसन्दगी काफी मात्रा में उनके जीवन स्तर पर निर्भर करती है। इसीलिए उपभोक्ताओं के जीवन-स्तर पर होने वाले भावी परिवर्तन ही उत्पादों एवं सेवाओं की भावी माँग निर्धारित करते हैं। 

एक विपणन प्रबन्धक को उपभोक्ता वर्ग के जीवन स्तर के सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करनी चाहिये और उसको उन शक्तियों या तत्वों का भी अध्ययन करना चाहिये जो कि उनके रहन-सहन के स्तर को प्रभावित करते हैं। अतः एक विपणन प्रबन्धक को चाहिए कि वह विपणन कार्यक्रम बनाने से पहले उपभोक्ता सम्बन्धी व्यवहारों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करें।

(2) विज्ञापन नीति

विपणन के क्षेत्र में विज्ञापन के महत्व को भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि इसके द्वारा उत्पादों के सम्बन्ध में ग्राहकों को जानकारी दी जाती है और उन्हें उत्पाद क्रय करने के लिये आकर्षित किया जाता है। विपणन प्रबन्ध को विज्ञापन के उद्देश्य, क्षेत्र, विज्ञापन के माध्यस एवं विज्ञापन प्रति के सम्बन्ध में नीति निर्धारित करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त विज्ञापन व्ययों का पूर्वानुमान लगाना एवं विज्ञापन व्ययों पर नियन्त्रण रखने से सम्बन्धित निर्णय भी विज्ञापन नीति में ही शामिल किये जाते हैं।

(3) प्रतिस्पर्धा

विपणन प्रबन्धक को विपणन मिश्रण का निर्धारण करने से पहले प्रतिस्पर्धा के सम्बन्ध में विशेष रूप से अध्ययन करना चाहिये, क्योंकि प्रतिस्पर्धियों पर संस्था का कोई नियन्त्रण नहीं होता। विपणन प्रबन्धकों के प्रतिस्पर्धा का आधार, उपभोक्ता के साथ प्रतिस्पर्धियों का सम्भावित दृष्टिकोण, उनकी वस्तुओं की विशेषताएँ, विपणन की रीति-नीति आदि का अध्ययन करके अपनी संस्था के विपणन मिश्रण में समायोजन करने चाहिये।

(4) सरकारी नियन्त्रण 

सरकारी नियन्त्रण का विपणन मिश्रण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अतः विपणन प्रबन्धक को विपणन मिश्रण निश्चित करने से पूर्व सरकारी हस्तक्षेप का अध्ययन अवश्य कर लेना चाहिए। सरकार का यह हस्तक्षेप वस्तु के मूल्य, वस्तु की किस्म एवं वस्तु के वितरण के सम्बन्ध में हो सकता है।

(5) उत्पाद नियन्त्रण

किसी संस्था के उत्पादों को ग्राहक इसलिए क्रय करते हैं क्योंकि उनसे उनकी आवश्यकता को सन्तुष्टि होती है। अतः संस्था को चाहिये कि अपने उत्पाद में उन गुणों का समावेश करे जिनसे ग्राहक सन्तुष्ट हो सकें। इसके लिए उत्पाद नियोजन किया जाता है।

(6) ब्राण्ड नीति

आधुनिक युग में प्रतिष्ठित संस्थाएँ अपने उत्पादों के लिये एक विशेष ब्राण्ड या चिन्ह निर्धारित करती हैं। उत्पाद के विक्रय पर ब्राण्ड का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विपणन प्रबन्धक ब्राण्ड के सम्बन्ध में वैकल्पिक नीति अपना सकते हैं या अनेक उत्पादों के लिये एक ही ब्राण्ड का निर्धारण कर सकते हैं या एक ही उत्पाद की विभिन्न किस्मों के लिये अलग-अलग ब्राण्ड निश्चित कर सकते हैं।

(7) संवेष्ठन नीति

उत्पाद की बिक्री पर उसके संवेष्ठन (पैकिंग) का प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी ग्राहक उत्पाद के पैकिंग से प्रभावित होकर उत्पाद को खरीद लेते हैं। इसीलिए विपणन प्रबन्धक को उत्पादन के संवेष्टन के लिये विचार करके निर्णय लेना चाहिये।

(8) वैयक्तिक विक्रय

विपणन प्रबन्धक यदि आवश्यक समझे तो वैयक्तिक विक्रय पद्धति निश्चित कर सकता है। इसके तहत् विक्रेताओं की भर्ती, प्रशिक्षण, उनके संगठन आदि व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में निर्णय लिये जाते हैं।

(9) विक्रय संवर्धन नीति 

विपणन प्रबन्धक को नियमित विज्ञापन के अतिरिक्त समय-समय पर विशेष विक्रय संवर्धन कार्यक्रा आयोजित करने चाहिये। जिससे संस्था द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग में वृद्धि हो सके।

(10) वितरण व्यवस्था 

विपणन प्रबन्धक को विपणन मिश्रण करने के पहले वितरण व्यवस्था के स्वरूप, वितरकों के स्वभाव तथा उनके व्यवहार का भली-भाँति अध्ययन कर लेना चाहिये क्योंकि वितरक और उपभोक्ता के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है। अतः उनके मनोबल, व्यवहार वस्तु के प्रति दृष्टिकोण एवं उनकी कार्य विधि का उपभोक्ता वर्ग का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसलिए विपणन प्रबन्धक को अपनी संस्था के वितरण मिश्रण पर भली-भाँति विचार करना चाहिये।

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