विपणन कार्य का अर्थ, परिभाषा एवं विपणन के कार्य

विपणन कार्य का अर्थ

विपणन की समस्त क्रियाओं को विपणन कार्यों के नाम से जाना जाता है। विपणन कार्य एक व्यवहार, क्रिया या सेवा है जिसके द्वारा मौलिक उत्पादक तथा अन्तिम उपभोक्ता एक साथ सम्बद्ध हैं। किसी भी वस्तु के उत्पादन को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते विभिन्न हाथों से गुजरना पड़ता है तथा कई क्रियाओं से निकलना पड़ता है। वस्तुओं की इस यात्रा में जो क्रियाएँ पूरी की जाती हैं वे सभी विपणन क्रियाएँ कहलाती हैं। इन्हीं विपणन क्रियाओं को विपणन कार्य (Marketing Functions) कहा जाता है।

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विपणन कार्य की परिभाषा

 विपणन कार्य की निम्नलिखित परिभाषायें हैं-

टाउसले, क्लार्क एवं क्लार्क के अनुसार- "विपणन कार्य एक बहुत विशेष प्रकार की क्रिया है, जो विपणन में सम्पादित की जाती है ।"

कन्वर्स, ह्युजी एवं मिचेल के अनुसार- "विपणन कार्य एक व्यवहार, क्रिया या सेवा है, जिसको माल और सेवाओं को वितरित करने की क्रिया में पूरा किया जाता है।"

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विपणन के कार्य

विभिन्न विद्वानों ने विपणन के कार्यों का भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णन किया है। जिनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों ने विपणन के कार्यों को अग्र प्रकार स्पष्ट किया है-

टाउसले, क्लार्क एवं क्लार्क (Tousley, Clark and Clark) ने विपणन के आठ कार्यों का वर्णन किया है- 

  • (1) क्रय, 
  • (2) प्रमापीकरण, 
  • (3) संग्रह, 
  • (4) परिवहन, 
  • (5) वित्त, 
  • (6) जोखिम, 
  • (7) बाजार सूचना एवं 
  • (8) विक्रय।

जी. बी. गाइल्स (G. B. Giles) ने विपणन के सात कार्य बताये हैं- 

  • (1) विपणन अनुसन्धान, 
  • (2) उत्पादन नियोजन, 
  • (3) उत्पादन विकास, 
  • (4) विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन, 
  • (5) विक्रय तथा वितरण, 
  • (6) विक्रयोपरान्त सेवाएँ एवं 
  • (7) जन संपर्क तथा कम्पनी छवि । 

कन्डिफ एवं स्टिल (Condiff and Still) ने विपणन के कार्यों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया है-

(I) वाणिज्यिक कार्य,

(II) भौतिक वितरण कार्य,

(III) सहायक कार्य।

इनका वर्णन हम अग्रलिखित प्रकार से कर सकते हैं-

(I)  वाणिज्यिक कार्य 

वाणिज्यिक कार्यों के तहत् वे सभी क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं जो कि ग्राहकों की जरूरत के अनुरूप उत्पाद या सेवा को बाजार में उपलब्ध कराने के लिए की जाती हैं। इसमें निम्न कार्य सम्मिलित किए जाते हैं-

(1) उत्पादक नियोजन एवं विकास करना- प्राचीन समय में उत्पाद नियोजन एवं विकास का कार्य उत्पादन विभाग, इन्जीनियरिंग एवं प्रावैधिक अनुसन्धान विभाग द्वारा किया जाता था लेकिन अब ग्राहकों की जरूरतों को प्राथमिकता एवं अभिरुचियों को अधिक मान्यता मिलने के कारण यह कार्य विपणन विभाग द्वारा किया जाने लगा है। 

विपणन विभाग द्वारा ग्राहकों की जरूरतों एवं रुचियों के आधार पर तथा शोध एवं विकास विभाग और इन्जीनियरिंग विभाग आदि की मदद से वस्तु के डिजाइन, किस्म, वस्तु का निर्माण, ब्राण्ड, पैकिंग एवं परित्याग सम्बन्धी निर्णय लिये जाते हैं और इनके सम्बन्ध में योजनायें तैयार की जाती हैं और उत्पादन विभाग को निर्देश दिये जाते हैं।

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(2) प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन करना- वस्तुओं के सफल एवं कुशल विपणन के लिये उनका प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन जरूरी है। वस्तुओं के गुण, आकार, किस्म एवं रंग के आधार पर वस्तु के प्रमाप या मानक निर्धारित किए जाते हैं और फिर इन मानकों के आधार पर उनका उपविभाजन करके इन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। वस्तुओं के प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन से न केवल वस्तु के उत्पादन में एकरूपता, कीमतों में समानता, विक्रय में सुगमता एवं बाजार को विस्तृत करने में मदद मिलती है वरन् ग्राहकों को वस्तुओं का वास्तविक निरीक्षण किए बिना हो केवल विवरण, ब्राण्ड आदि के आधार पर क्रय करने में सुविधा होती है। 

इस प्रकार प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन की क्रियाएँ उत्पादक और ग्राहक दोनों के लिए ही लाभदायक हैं। इसी कारण आजकल अधिकांश वस्तुएँ विभिन्न ब्राण्डों एवं श्रेणियों में विक्रय हेतु बाजार में प्रस्तुत की जाती हैं जैसे-फिलिप्स टी. वी. एवं डी. वी. डी. प्लेयर, एवरेडी सेल, टाइटन घड़ियाँ, एक्शन के जूते एवं चप्पल, सिबाका टूथपेस्ट एवं टूथ ब्रुश आदि वस्तुएँ इस विश्वास के आधार पर खरीदी जाती हैं कि इनके सम्बन्ध में प्रस्तुत विवरण सही है। 

(3) क्रय एवं संकलन करना- विपणन कार्य में क्रय से तात्पर्य औद्योगिक प्रयोगकर्ताओं द्वारा पुनः विक्रय हेतु उत्पाद या सेवाओं की प्राप्ति से है। उत्पादकों द्वारा क्रय की जाने वाली वस्तुएँ निर्माण प्रक्रिया में प्रयोग करके परिवर्तित रूप में ग्राहकों तक पहुँचायी जाती हैं। मध्यस्थों, धोक व्यापारी और फुटकर व्यापारियों द्वारा वस्तुएँ पुनः विक्रय करने हेतु क्रय की जाती हैं। 

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संकलन से आशय एक व्यापारी द्वारा विभिन्न किस्मों की वस्तुओं को पुनः विक्रय करने के लिए एकत्रित करना है। संकलन क्रिया प्रायः मध्यस्थों द्वारा की जाती है। उदाहरण के लिये अनाज के थोक व्यापारी विभिन्न कृषकों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अनाज क्रय करके संकलित कर लेते हैं और फिर फुटकर व्यापारियों को उनकी जरूरत के अनुसार विक्रय करते रहते हैं। औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में भी बड़े व्यवसायी (थोक व्यापारी, विभागीय भण्डार एवं सुपर बाजार आदि) विभिन्न उत्पादकों की वस्तुओं को क्रय और संकलित करके पुनः उसी रूप में उपभोक्ताओं को बेच देते हैं।

(4) विक्रय करना- विक्रय विपणन का एक महत्वपूर्ण अंग है। व्यापारिक जगत में व्यापारिक क्रिया तब तक तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि वस्तुओं या सेवाओं का वास्तविक विक्रय न हो। विक्रय के तहत सिर्फ विक्रय करना ही नहीं बल्कि ग्राहकों का पता लगाना, प्राथमिक माँग उत्पन्न करना, ग्राहकों को सलाह एवं विक्रयोपरान्त सेवा प्रदान करना आदि क्रियायें भी करनी पड़ती हैं। एक विक्रेता विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, विक्रयोपरान्त सेवाएँ एवं व्यक्तिगत विक्रय आदि क्रियाओं की मदद से विक्रय कार्य को सम्पन्न करता है।

(II) भौतिक वितरण कार्य

भौतिक वितरण सम्बन्धी क्रियाओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित दो क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है-

(1) भण्डारण की व्यवस्था करना- प्राचीन समय में छोटे पैमाने पर उत्पादन किया जाता था और प्रायः वस्तु का उत्पादन आदेश प्राप्ति के बाद किया जाता था, अतः निर्मित माल का स्टाक रखने की जरूरत नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान समय में अनुमानित माँग के आधार पर ही वस्तु का उत्पादन कर लिया जाता है और फिर माँग उत्पन्न होने पर विक्रय कार्य प्रारम्भ होता है इस प्रकार भविष्य में उत्पन्न होने वाली माँग की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में भण्डार होना चाहिए। 

(2) परिवहन के साधनों की व्यवस्था करना- वस्तुओं को उत्पादन क्षेत्र से उपभोग क्षेत्र तक भेजने के लिए परिवहन साधनों की जरूरत होती है। वर्तमान में उत्पादन किसी एक स्थान पर होता है तो उपभोग किसी दूसरे स्थान पर, स्थान केवल अपना देश ही नहीं विदेश भी हो सकता है। आधुनिक युग की बढ़ती हुई औद्योगिक प्रगति, बड़े पैमाने पर उत्पादन बाजारों का विस्तार आदि परिवहन के साधनों के कारण ही सम्भव हो सके हैं।

(III) सहायक कार्य 

विपणन के कार्यों में वाणिज्य एवं भौतिक कार्यों के साथ-साथ कुछ अन्य कार्यों को भी सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें सहायक कार्य कहते हैं जोकि विपणन के कार्य को सुविधाजनक बनाने में अपना विशेष स्थान रखते हैं, जिन्हें निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-

(1) विपणन वित्त-व्यवस्था करना- वर्तमान समय में कोई भी व्यवसायी केवल नकद व्यवहार के द्वारा अपने व्यवसाय की प्रगति नहीं कर सकता। इसीलिए व्यावसायियों को अपने व्यवसाय की उन्नति के लिए साख की सुविधा का सहारा लेना पड़ता है। वास्तव में देखा जाय तो वितरण कार्य में संलग्न सभी श्रृंखलाएँ ही साख सुविधा का लाभ उठाती हैं और साख सुविधा अन्य को प्रदान करती हैं, जैसे- निर्माता बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं से साख पर धन लेता है और बदले में थोक व्यापारियों को साख पर माल विक्रय करता है। थोक व्यापारी निर्माता के साथ-साथ अन्य वित्तीय संस्थाओं से भी जरूरत पड़ने पर साख पर धन स्वीकार करते हैं और बदले में फुटकर व्यापारियों को साख पर माल देते हैं।

(2) बाजार सम्बन्धी सूचनाएँ इकट्ठी करना- किसी भी व्यवसाय की सफलता पर्याप्त सूचनाओं के बिना असम्भव है। विभिन्न व्यापारियों, समुदायों, सरकार एवं अन्य संस्थाओं द्वारा समय-समय पर वस्तुओं का उत्पादन, वितरण एवं उपभोग से सम्बन्धित सूचनाएँ इकट्ठी की जाती है और उन्हें समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाता है। एक व्यवसायी उन सूचनाओं के आधार पर अपनी विपणन, उत्पादन या वितरण नीति में जरूरी परिवर्तन करके स्वयं को भावी प्रतिकूल प्रभावों से बचा सकता है या इन प्रभावों को कम कर सकता है।

(3) जोखिम वहन करना- विपणनकर्ता को अनेक प्रकार की जोखिमों को वहन करना पड़ता है; जैसे- कीमतों में कमी होना, रुचि व फैशन में परिवर्तन होते रहना, बाजार में वस्तु की माँग में कमी होना। इस प्रकार की जोखिमों का बीमा कराना भी सम्भव नहीं है, लेकिन इन जोखिमों को विपणन अनुसंधान, विज्ञापन, विक्रय संवर्धन, विक्रय पूर्वानुमान आदि की सहायता से कुछ कम अवश्य किया जा सकता है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त सभी कार्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक विपणनकर्ता इन्हीं विपणन क्रियाओं के निष्पादन द्वारा अपनी वस्तुओं अथवा सेवाओं को अन्तिम उपभोक्ता या प्रयोगकर्ता तक सफलतापूर्वक पहुँचा सकता है।

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