विपणन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकृति, क्षेत्र एवं महत्व

विपणन का अर्थ 

एक विक्रेता के लिए विपणन से आशय ग्राहकों को वस्तुएँ बेचना है। एक कृषक के लिए अपनी उपज बाजार में बेचना ही विपणन है। किसी महिला के लिए विपणन का अर्थ बाजार जाकर खरीददारी करना है। वास्तव में, 'विपणन' शब्द सर्वाधिक प्रचलित परन्तु सर्वाधिक अस्पष्ट शब्द है। इसी कारण विपणन विशेषज्ञों ने 'विपणन' शब्द का प्रयोग अपनी स्थिति, योग्यता, आवश्यकता एवं वातावरण के सन्दर्भ में किया है।

प्रायः विपणन से अभिप्राय वस्तुओं के क्रय-विक्रय से लगाया जाता है, जबकि विपणन का वास्तविक अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक है। वास्तव में, विपणन का अर्थ केवल वस्तुओं के क्रय-विक्रय से ही नहीं है, बल्कि इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की जाने वाली क्रियाओं से लेकर उनके वितरण एवं आवश्यक विक्रयोपरान्त सेवाओं तक को सम्मिलित किया जाता है।

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विपणन की परिभाषायें

विपणन की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

जे. एफ. पाइले के अनुसार- "विपणन में क्रय एवं विक्रय दोनों ही क्रियाएँ शामिल होती हैं।"  

प्रो. मेल्कम मेक्नेयर के अनुसार- "विपणन का तात्पर्य जीवन स्तर का सृजन कर उसे समाज को प्रदान करना है।"

एडवर्ड एवं डेविड के अनुसार- "विपणन एक आर्थिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं को बदला जाता है तथा उनके मूल्य मुद्रा में तय किये जाते हैं।"

क्लार्क एवं क्लार्क के अनुसार- "विपणन में वे सभी प्रयत्न शामिल हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के स्वामित्व हस्तान्तरण एवं उनके भौतिक वितरण में सहायता प्रदान करते हैं।" 

हैन्सन के अनुसार- "विपणन उपभोक्ता आवश्यकताओं की खोज और उन्हें विशिष्ट उत्पादों एवं सेवाओं में बदलने और तत्पश्चात् इन उत्पादों और सेवाओं द्वारा अधिकाधिक उपभोक्ताओं के उपभोग को सम्भव बनाने की प्रक्रिया है।"

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सेण्ट थॉमस के अनुसार- "विपणन किसी व्यवसाय के प्रबन्ध करने का तरीका है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय इस पूर्ण जानकारी के साथ लिये जाते हैं कि उस निर्णय का ग्राहक पर क्या प्रभाव पड़ेगा।"

विलियम जे. स्टेण्टन के अनुसार- "विपणन का आशय उन अन्त: क्रियाशील व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली से है जिसका उद्देश्य वर्तमान तथा भावी क्रेताओं की आवश्यकता पूर्ति करने वाली वस्तुओं और सेवाओं का नियोजन करना, कीमत निर्धारण करना, संवर्द्धन करना तथा वितरण करना है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विपणन एक आर्थिक, सामाजिक एवं मानवीय क्रिया है जो वस्तु बाजार के उत्पन्न होने से प्रारम्भ होती है और यह तब तक चलती रहती है, जब तक कि ग्राहक सन्तुष्ट न हो जाए।

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विपणन की विशेषताएँ 

विपणन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) विपणन आय (Revenue) का सृजन करता है।

(2) विपणन समाज के जीवन स्तर में वृद्धि करता है।

(3) विपणन में वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण किया जाता है।

(4) विपणन के अन्तर्गत उपयोगिताओं का सृजन किया जाता है।

(5) विपणन उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करता है। 

(6) विपणन व्यावसायिक दर्शन है जिसका समाज से निकटतम सम्बन्ध है।

(7) विपणन एक गतिमान प्रणाली है जो एक संगठन को उसके बाजारों से जोड़ती है। 

(8) विपणन एक क्रियात्मक कार्य है जो उत्पाद को उत्पादन केन्द्रों से उपभोग केन्द्रों तक पहुँचाने से सम्बन्धित है।

(9) विपणन का कार्य-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, क्योंकि इसमें उत्पादन से पूर्व तथा विक्रय के बाद की क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं।

(10) विपणन एक व्यावसायिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्पादों को बाजार के अनुरूप बनाया जाता है और स्वामित्व हस्तान्तरण किये जाते हैं।

विपणन की प्रकृति

विपणन की प्रकृति या स्वभाव का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(1) विपणन एक मानवीय क्रिया है- 

विपणन मुख्य रूप से एक मानवीय क्रिया है क्योंकि इसमें मानवीय आवश्यकता की सन्तुष्टि हेतु मानवीय प्रयत्न किये जाते हैं।

(2) विपणन एक सामाजिक एवं आर्थिक क्रिया है- 

वर्तमान समय में विपणन एक सामाजिक एवं आर्थिक क्रिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य समाज के व्यक्तियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करके उचित लाभ अर्जित क्रिया है।

(3) विपणन एक विनिमय प्रक्रिया है- 

विपणन को एक विनिमय प्रक्रिया कहा जाता है, क्योंकि इसमें उत्पादक एवं सम्भावित उपभोक्ताओं के बीच मूल्य के बदले वस्तु, सेवा अथवा उपयोगी वस्तुओं का लेन-देन किया जाता है।

(4) विपणन क्रियात्मक है- 

विपणन की इस प्रकृति के अनुसार विपणन उन क्रियाकलापों का अध्ययन करता है जो उत्पादन केन्द्रों से उपभोग केन्द्रों तक वस्तुएँ पहुँचाने से सम्बन्धित होती हैं।

(5) विपणन एक प्रणाली है- 

विपणन की प्रणालीकृत प्रकृति के अनुसार विपणन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें अनेक क्रियाएँ शामिल हैं जो परस्पर सम्बन्धित हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जैसे- सन्तुलन एवं प्रभावी विपणन संगठन की स्थापना करना।

(6) विपणन एक गतिशील प्रक्रिया है- 

विपणन सर्वाधिक गतिशील प्रक्रिया है। विपणनकर्ता सदैव तेजी से बदलते हुए फैशन, बाजार प्रवृत्तियों, ग्राहक माँगों, पसन्द एवं आधुनिक परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित करता है।

(7) विपणन ग्राहकोन्मुखी प्रक्रिया है- 

विपणन की आधुनिक प्रकृति के अनुसार विपणन उपभोक्ताओं की माँगों को सन्तुष्टि प्रदान करता है। यदि देखा जाय तो समूचा उत्पादन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं रुचियों के अनुरूप ही किया जाता है। इस दृष्टि से यह ग्राहकोन्मुखी प्रक्रिया है क्योंकि केन्द्र बिन्दु ग्राहक है। विपणन का प्रारम्भ एवं अन्त ग्राहक से ही होता है।

(8) विपणन कला एवं विज्ञान दोनों है- 

यदि गौर किया जाए तो विपणन कला एवं विज्ञान दोनों ही है। विपणन सही स्थान पर, सही रूप से, सही हाथों तक, सही समय पर, सही मूल्यों पर एवं सही किस्म का माल पहुँचाने की कला है। साथ ही यह गतिशील एवं विकासशील विज्ञान भी है क्योंकि यह पूर्ति को माँग के अनुरूप बनाये रखने पर जोर देता है। साथ ही नयी वस्तु के निर्माण से पूर्व बाजार परीक्षण, उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन, अभिप्रेरण अनुसंधान आदि का समुचित प्रयोग किया जाता है, अतः विपणन एक विज्ञान है।

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विपणन का क्षेत्र

सामान्यतः विपणन के क्षेत्र के तहत् निम्न क्रियाओं को शामिल किया जाता है-

(1) उत्पाद सम्बन्धी निर्णय-

उत्पाद सम्बन्धी निर्णय के तहत् यह निश्चित किया जाता है कि कौन-सी वस्तु कितनी मात्रा में उत्पादित करनी है तथा वस्तु का आकार, रंग, डिजाइन, ब्राण्ड, पैकिंग आदि किस प्रकार होंगे, ताकि उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।

(2) वितरण मार्ग सम्बन्धी निर्णय-

वस्तु का मूल्य निर्धारित होने के पश्चात् यह निश्चित किया जाता है कि वस्तु को किस माध्यम से वितरित किया जाये, वितरण मार्ग का चयन किस आधार पर किया जाये, कितना लम्बा मार्ग चुना जाये तथा उस पर कितना व्यय किया जाये आदि।

(3) मूल्य सम्बन्धी निर्णय-

उत्पादित वस्तु को उपभोक्ता तक किस मूल्य पर भेजा जाये इसका निर्णय करना भी विपणन के क्षेत्र में आता है। उत्पादन की अधिक सफलता मूल्य पर ही निर्भर करती है। अतः मूल्य सम्बन्धी निर्णय लेते समय विभिन्न घटकों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

(4) प्रवर्तन सम्बन्धी निर्णय-

विक्रय वृद्धि या प्रवर्तन सम्बन्धी निर्णय भी विपणन में शामिल हैं, जैसे- विज्ञापन किया जाय या नहीं, विज्ञापन के लिए किस साधन को अपनाया जाय, साथ ही विज्ञापन कब, कहाँ, और कितना किया जाये ताकि अधिक से अधिक लोगों को वस्तु खरीदने के लिए आकर्षित किया जा सके।

(5) उपभोक्ता सम्बन्धी निर्णय- 

विपणन में उपभोक्ताओं के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं कि ग्राहक किस वस्तु को पसन्द करता है, कितने मूल्य पर चाहता है तथा वर्तमान ग्राहकों की संख्या एवं उनका क्षेत्र कितना है। सम्भावित ग्राहकों या उपभोक्ताओं की संख्या व क्षेत्र कितना है आदि सभी बातों का विस्तृत रूप से अध्ययन कर निर्णय लिये जाते हैं।

विपणन का महत्व

वर्तमान समय में प्रत्येक संस्था या फर्म की व्यावसायिक क्रियाओं में विपणन को प्रथम स्थान दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, "विपणन के निर्णयों के आधार पर ही अन्य व्यावसायिक क्रियाएँ निष्पादित की जाती हैं।" पीटर एफ. डूकर के अनुसार, "विपणन ही व्यवसाय है।" व्यवसाय कार्य के रूप में विपणन के महत्व को निम्न शीर्षकों के तहत् समझाया जा सकता है-

(1) आधुनिकीकरण में मददगार- 

वर्तमान समय में विपणन उपभोक्ताओं की भावी माँग की किस्म एवं संख्या को निर्धारित करता है और उसी के अनुरूप उत्पादन की सलाह देता है, फलस्वरूप बदलती हुई स्थितियों के अनुसार आधुनिकीकरण को प्रोत्साहन मिलता है और उद्योग भावी माँग की पूर्ति करने में सक्षम होता है।

(2) लाभों में वृद्धि- 

प्रत्येक फर्म का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। विपणन एक और विभिन्न विपणन लागतों में कमी करके वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में कमी करता है और दूसरी ओर विपणन के आधुनिक तरीकों, जैसे-विज्ञापन, विक्रय संवर्धन आदि के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि करता है। फलस्वरूप वस्तुओं की लागतों में कमी और माँग में वृद्धि होने के कारण कुछ बिक्री में वृद्धि होती है जिससे फर्म के लाभों में वृद्धि होती है।

(3) नियोजन और निर्णयन में सहायक- 

आधुनिक परिवर्तित परिस्थितियों में उत्पादन क्षमता के अनुसार नियोजन करना खतरे से खाली नहीं है। उत्पादन नियोजन करने से पहले प्रत्येक संस्था को बिक्री पूर्वानुमान करना चाहिये कि वस्तुओं या सेवाओं की माँग क्या होगी ? उसका कुल बाजार में क्या हिस्सा होगा? इसके पश्चात् ही संस्था का अध्यक्ष उत्पाद नियोजन, उत्पादन, क्रय और विक्रय आदि विभागों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित कर सकता है। उत्पादन करने वाली वस्तुओं, उनकी विशेषताओं, कीमत, वितरण वाहिकाओं, विज्ञापन एवं विक्रय माध्यम आदि के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने में भी विपणन सहायक होता है।

(4) वितरण लागतों में कमी- 

विपणनकर्ता वितरण लागतों में कमी करने के लिये हमेशा कोशिश करता रहता है। विपणन लागतों में कमी होने से प्रायः वस्तुओं का मूल्य कम हो जाता है जिससे वे वस्तुएँ उन ग्राहकों की पहुँच में आ जाती हैं जो कि पहले ऊँची कीमतों के कारण उन वस्तुओं को नहीं खरीद पाते थे। इसीलिए समाज के विभिन्न वर्गों में वस्तुओं का उपभोग बढ़ जाता है। 

दूसरी ओर यदि यह मान भी लिया जाये कि वितरण लागतों में कमी के बावजूद उत्पादन वस्तु की कीमत कम नहीं करते हैं तो इससे संस्था के लाभों में वृद्धि होगी जो कि अंशधारियों, ऋणधारियों एवं कर्मचारियों में विभाजित होगी और यदि इन अतिरिक्त लाभों को वितरित भी नहीं किया जाता है तो इन्हें उत्पाद अनुसन्धान कार्यों में लगा दिया जाता है, जिससे समाज को लाभ पहुँचता है।

(5) सम्प्रेषण में सहायक-

विपणन फर्म और समाज के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। विपणन के द्वारा, उपभोक्ताओं की जरूरतों, अभिरुचियों और फैशन आदि के सम्बन्ध में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों की सूचना फर्म के उच्च प्रबन्धकों को प्रदान की जाती है। आज के ग्राहक अभिमुखी समय में कोई भी फर्म इन सूचनाओं के बिना भविष्य में अपना व्यवसाय सफलतापूर्वक संचालित नहीं कर सकती। विपणन न केवल समाज में होने वाले परिवर्तनों के विषयों में सूचना एकत्र करता है वरन् अपने प्रतिस्पर्धियों की उत्पादक नीतियों, कीमत नीति, विज्ञापन एवं विक्रय संवर्धनों के तरीकों आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ फर्म को प्रेषित करता है जिससे कि फर्म बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिये उचित नीति अपना सके।

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